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रिज़र्व बैंक ने गाजियाबाद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजियाबाद (यूपी) का लाइसेंस रद्द किया

19 नवंबर 2012

रिज़र्व बैंक ने गाजियाबाद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजियाबाद (यूपी) का लाइसेंस रद्द किया

इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कि गाजियाबाद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजियाबाद (यूपी) शोधक्षम नहीं रह जाने और बैंक की वित्तीय स्थिति के पुनरुज्जीवन के लिए कोई गुंजाइश न रहने तथा निरंतर अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होनेवाली असुविधा के कारण भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए दिया गया लाइसेंस रद्द करने का आदेश 16 नवंबर 2012 को जारी किया। सहकारिता आयुक्‍त और सहकारी समितियों के पंजीयक (आरसीएस), उत्‍तर प्रदेश सरकार से बैंक के परिसमापन और उसके लिए परिसमापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध भी किया गया है। उल्लेख किया जाता है कि बैंक के परिसमापन पर जमाकर्ता, निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से सामान्य शर्तों के अधीन 1,00,000 (एक लाख रुपये मात्र) की मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 21 अप्रैल 1997 को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 22 के अंतर्गत बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए लाईसेंस प्रदान किया था।

रिज़र्व बैंक द्वारा 31 मार्च 2001 को बैंक की वित्तीय स्थिति के संबंध में अधिनियम की धारा 35 के तहत किए गए सांविधिक निरीक्षण से पता चला कि बैंक की नेटवर्थ (-)1035.91 लाख थी और जमाराशि 20.8 प्रतशित तक थी जिससे यह पता चलता है कि बैंक अधिनियम की धारा 11(1), और 22(3)(ए) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं कर रहा है। बैंक का परिचालन जमाकर्ताओं के हित के विरुद्ध था इसलिए 20 जून 202 को बोर्ड पर आरसीएस द्वारा अतिक्रमण किया गया।

31 मार्च 2002 को किए गए सांविधिक निरीक्षण से पता चला कि बैंक की नेटवर्थ में और गिरावट आई जिसे (-)1878.35 लाख पर आकलित किया गया था, जिससे 32.6 प्रतशित तक जमा में कमी आई। जमाकर्ताओं के वर्तमान और भावी हित की सुरक्षा करने के लिए बैंक को 18 मई 2002 से अधिनियम की धारा 35ए की शर्तों के तहत दिशानिर्दश दिए गए जिन्‍हें 16 जून 2004 के संशोधित किया गया और इसमें मौजूदा जमाओं में प्रति जमाकर्ता 1000 की अधिकतम राशि से निकासी के साथ नई जमा की स्‍वीकृति पर रोक लगाई गई।

30 जून 2004 को किए गए सांविधिक निरीक्षण से पता चला कि बैंक अधिनियम की धारा 11(1) और 22(3)(ए) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं कर रहा था क्‍योंकि इसकी नेटवर्थ गिरकर 3411.99 लाख हो गई और जमा में कमी 74.7 प्रतशित के चिंताजनक स्‍तर पर पहुँच गई। बैंक ने कुछ सहकारी समितियों को इसके सदस्‍यों के रूप में स्‍वीकार कर अधिनियम की धारा 5सीसीवी (3) का उल्‍लंघन किया था। 19 जनवरी 2005 को बैंक को कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किया गया जिसमें यह दर्शाया गया कि अधिनियम की धारा 22 के तहत उसे प्रदान किया गया बैंकिंग लाइसेन्‍स क्‍यों न रद्द किया जाए। तथापि, बैंक ने वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए कुछ समय का अनुरोध किया जिसकी अनुमति दे दी गई।

31 मार्च 2005 को किए गए सांविधिक निरीक्षण जिसमें 70.5 प्रतशित जमा में कमी की रिपोर्ट दी गई थी, के आधार पर बैंक को 31 अक्‍टूबर 2006 को दूसरा एससीएल जारी किया गया जिसमें यह दर्शाया गया कि उन्‍हें जारी किया गया बैंकिंग लाइसेन्‍स क्‍यों न रद्द किया जाए। बैंक ने पुन: सुधार के लिए समय मांगा और उसे समय दिया गया।

31 मार्च 2007, 2008, 2009 और 2010 को किए गए सांविधिक निरीक्षण में भी कोई सुधार नहीं दर्शाया और बैंक अधिनियम की धारा 11(1) और 22(3)(ए) के प्रावधानों के उल्‍लंघन में कारोबार करती रही।

31 मार्च 2011 को किए गए सांविधिक निरीक्षण से पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। बैंक की आकलित नेटवर्थ (-)3388.89 थी जिसमें 69.4 प्रतशित जमा में कमी थी और इस प्रकार बैंक अधिनियम की धारा 11(1) और 22(3)(ए) का उल्‍लंघन करता रहा। अग्रिम संविभाग लगभग एनपीए में बदल गया (99.5 प्रतशित)।  बैंक ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान कई अवसरों पर एसएलआर और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) के अनुरक्षण में चूक की थी और इस प्रकार अधिनियमकी धारा 18 एवं 24 का उल्‍लंघन किया।

उपर्युक्‍त तथ्‍यों एवं परिस्थितियों से यह देखा गया है कि :

  1. बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (एएसीएस) की धारा 11(1), 18 और 24 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करता है।

  2. बैंक अपने वर्तमान और भावी जमाकर्ताओं का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है और इस प्रकार अधिनियम की धारा 22(3)(बी) का अनुपालन नहीं करता है।

  3. बैंक के कार्य वर्तमान और भावी जमाकर्ताओं के हितों के विरुद्ध थे और अब भी हैं जिसका अर्थ है कि बैंक अधिनियम की धारा 22(3)(बी) का अनुपालन नहीं करता है।

  4. बैंक की वित्तीय स्थिति में सुधार होने की बहुत कम गुंजाइश है।

  5. सार्वजनिक ब्‍याज पर प्रतिकुल असर पड़ेगा यदि बैंक को अपना कारोबार और जारी रखने की अनुमति दी जाती है।

उपर्युक्‍त को ध्‍यान में रखते हुए बैंकिंग कारोबार करने के लिए बैंक को दिया गया लाइसेन्‍स रद्द किया जाना चाहिए। तदनुसार, गाजियाबाद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजियाबाद (यूपी) को अधिनियम की धारा 22 के तहत भारत में बैंकिंग कारोबार करने के लिए 21 अप्रैल 1997 को दिया गया लाइसेन्‍स रद्द कर दिया गया है। लाइसेन्‍स के रद्द करने और परिसमापन कार्रवाहियां शुरू करने के साथ गाजियाबाद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजियाबाद (यूपी) के जमाकर्ताओं का भुगतान करने की प्रक्रिया जमा बीमा योजना की शर्तों के अधीन शुरू की जाएगी।

लाइसेन्स रद्द किये जाने के अनुसरण में गाजियाबाद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, गाजियाबाद (यूपी) पर बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 5(ख) के अंतर्गत 'बैंकिंग' के रूप में पारिभाषित कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता श्री आर.पी.पाण्‍डेय, उप महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक, लखऊ कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। उनका संपर्क ब्यौरा निम्नानुसार है:

डाक पता : उप महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, 8-9 विपिन खण्‍ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010; टेलीफोन नंबर : 0522-2304878 फैक्स नंबर : 0522-2393584; ई-मेल:

आर. आर. सिन्‍हा
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/836

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