रिज़र्व बैंक ने कसुंदिया सहकारी बैंक लिमिटेड हावड़ा (पश्चिम बंगाल) का लाइसेंस रद्द किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक ने कसुंदिया सहकारी बैंक लिमिटेड हावड़ा (पश्चिम बंगाल) का लाइसेंस रद्द किया
26 सितंबर 2013 रिज़र्व बैंक ने कसुंदिया सहकारी बैंक लिमिटेड हावड़ा (पश्चिम बंगाल) का लाइसेंस रद्द किया भारतीय रिज़र्व बैंक ने 6 सितंबर 2013 से कसुंदिया सहकारी बैंक लिमिटेड हावड़ा (पश्चिम बंगाल) का लाइसेंस रद्द कर दिया है क्योंकि यह अर्थक्षम नहीं रहा और जमाकर्ताओं को सतत अनिश्चितता की असुविधा हो रही थी। लाइसेंस रद्द होने के परिणामस्वरूप कसुंदिया सहकारी बैंक लिमिटेड हावड़ा (पश्चिम बंगाल) को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(बी) में यथापरिभाषित 'बैंकिंग' कारोबार करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। सहकारी समितियों के पंजीयक, पश्चिम बंगाल से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। लाइसेन्स रद्द किये जाने और समापन प्रक्रिया आरंभ करने से कसुंदिया सहकारी बैंक लिमिटेड हावड़ा (पश्चिम बंगाल) के जमाकर्ताओं को डीआईसीजी अधिनियम 1961 के अनुसार निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन बीमाकृत की गई जमाराशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। समापन पर प्रत्येक जमाकर्ता सामान्य शर्तों के तहत जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से ₹ 1,00,000/- (एक लाख रुपए मात्र) की मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशि की अदायगी के लिए पात्र है। इस संबंध में किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता, श्री सी. पटनायक, महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, कोलकाता क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, कोलकाता से संपर्क कर सकते हैं। उनसे संपर्क करने का विवरण नीचे दिया गया है: डाक पता: भारतीय रिज़र्व बैंक, शहरी बैंक विभाग, 15, नेताजी सुभाष रोड, कोलकाता-700001; टेलीफोन सं. : (033)22130687; फैक्स सं.: (033) 22439290; ई-मेल. पृष्ठभूमि: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 22 के तहत 26 जुलाई 1986 को लाइसेंस मंज़ूर किया गया था। बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 के अंतर्गत 30 सितंबर 2002 से किए गए सांविधिक निरीक्षण से पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति में गिरावट आ रही थी जिसके परिणामस्वरूप अन्य बातों के साथ-साथ बैंक की जमाराशियां 11.5 प्रतिशत की कमी आई। बैंक के वित्तीय सूचकों में गिरावट जारी रही जैसाकि 30 सितंबर 2004, 31 मार्च 2005 और 31 मार्च 2006 को इसकी वित्तीय स्थिति के संबंध में किए गए बाद के निरीक्षणों से पता चला। बैंक को 15 जनवरी 2004 को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35(ए) के अंतर्गत निदेशाधीन किया गया जिन्हें बाद में जनवरी 2007 में संशोधित किया गया जिससे बैंक पर (i) नई जमाराशियां स्वीकार करने, (ii) जमाराशियों के समय से पहले आहरण की अनुमति और (iii) सीसी/ओडी को छोड़कर कोई ऋण प्रदान करने/नवीकरण करने पर रोक लगाई गई बशर्ते कि यह आहरण पर सीमा के बिना एक मानक खाता हो। 31 मार्च 2009 को किए गए सांविधिक निरीक्षण से बैंक की वित्तीय स्थिति में और गिरावट का पता चला जिससे बैंक की निवल संपत्ति (-) ₹1465.60 लाख हो गई और जमाराशियों में कमी 69 प्रतिशत हुई। बैंक की सकल और निवल अनर्जक आस्तियां ₹ 328.85 लाख और ₹ 94.14 लाख थी जो क्रमशः सकल और निवल अग्रिमों का 66.9 प्रतिशत और 36.6 प्रतिशत है। बैंक ने बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 11(1) और धारा 22(3) का अनुपालन नहीं किया और प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और सांविधिक चलनिधि अनुपात की विनियामक प्रारक्षित अपेक्षाओं के अनुपालन में भी चूक की। बैंक ने गंभीर चलनिधि प्रतिबंधों का सामना किया और बार-बार सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री तथा पश्चिम बंगाल राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड से उधार का सहारा लिया। बैंक की गिरती हुई वित्तीय स्थिति की दृष्टि से 7 अगस्त 2009 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जिसमें पूछा गया कि बैंक को जारी किया गया बैंकिंग लाइसेंस रद्द क्यों नहीं किया जाए। बैंक ने 10 सितंबर 2009 को अपने जवाब में कहा कि वह राज्य सरकार से प्रस्तावित वित्तीय सहायता से पांच वर्षों में सकारात्मक निवल संपत्ति प्राप्त कर लेगा और सीआरएआर अपेक्षाओं की अनुपालन कर लेगा। राज्य सरकार ने विशेष आरक्षित निधि के रूप में सहायता का आश्वासन दिया जिससे कि बैंक की निवल संपत्ति को सकारात्मक बनाया जा सके। इसको ध्यान में रखते हुए बैंक का लाइसेंस रद्द करने की प्रस्तावित कार्रवाई का स्थिगित कर दिया गया। वित्तीय वर्ष 2009-10 के दौरान बैंक ने वर्तमान दिशानिर्देशों के उल्लंघन में भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमोदन लिए बिना स्थायी जमाराशियों पर ऋण लेकर पश्चिम बंगाल राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड से उधार का सहारा लिया। परिणामस्वरूप, बैंक पर बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 46(4) के साथ पठित बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 47ए (1)(बी) के प्रावधानों के तहत 1 अक्टूबर 2010 को रु. 1.00 लाख का दंड लगाया गया जिसका बैंक द्वारा 4 नवंबर 2010 को भुगतान किया गया। 31 मार्च 2010 की स्थिति के संबंध में किए गए सांविधिक निरीक्षण ने वित्तीय स्थिति में भयावह गिरावट दर्शाई जिसमें निवल संपत्ति (-) ₹ 1819.50 लाख और जमाराशियों में कमी 74.7 प्रतिशत आकलित की गई, सकल और निवल अनर्जक आस्तियां क्रमशः72.7 प्रतिशत और 66.70 प्रतिशत रही। 31 मार्च 2011 को बैंक की वित्तीय स्थिति के संबंध में किए गए सांविधिक निरीक्षण से कम हुई वित्तीय स्थिति का पता चला जिसमें निवल संपत्ति (-) ₹ 891.32 लाख आकलित की गई, सकल और निवल अनर्जक आस्तियां राज्य सरकार से ₹ 14.66 करोड़ के पूंजी के बावजूद 77.5 प्रतिशत और 44.4 प्रतिशत रही। जुलाई 2012 में बैंक ने गंभीर चलनिधि कमी का सामना किया। बैंक ने नकदी भुगतान पूरी तरह से बंद कर दिए और समाशोधन बैंकर के पास निधियों की कमी के कारण अधिकांश जावक समाशोधन लिखतों को वापस कर दिया। उपर्युक्त अपवाद परिस्थितियों और जमाकर्ताओं के हित की दृष्टि से बैंक पर 25 सितंबर 2012 को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35ए के तहत समावेशी दिशानिर्देश लगाया गया जिससे प्रति जमाकर्ता ₹ 1000/- तक की जमाराशियों का आहरण सीमित किया गया। 31 मार्च 2012 को बैंक के सांविधिक निरीक्षण से पता चला कि आकलित निवल संपत्ति उल्लेखनीय रूप से कम होकर (-) ₹ 2142 लाख हो गई, सीआरएआर (-) ₹ 318.96 प्रतिशत रहा तथा सकल और निवल अनर्जक आस्तियां क्रमशः 77.27 प्रतिशत और 46.58 प्रतिशत रही। बैंक की जमाराशियों में कमी 55.7 प्रतिशत के भयावह स्तर पर रही। ₹ 3906.30 लाख की संचित हानि के साथ बैंक की आकलित निवल हानि ₹ 1769.21 लाख रही। बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक के वर्तमान दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन किया। उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 22 के तहत बैंक को 5 फरवरी 2013 को दूसरा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। बैंक के 7 मार्च 2013 के जवाब की जांच की गई और इसे संतोषजनक नहीं पाया गया। भविष्य में आमेलन के प्रस्ताव के बिना और इसके पुनर्जीवन के कम संभावना के चलते बैंक की जोखिमपूर्ण वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए बैंक का लाइसेंस जारी रखना जनहित के विरूद्ध होगा। इसलिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक जमाकर्ताओं के हित में बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/652 |