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भारतीय रिज़र्व बैंक ने श्री शिवाजी सहकारी बैंक लिमिटेड, गढ़हिंग्‍लज, कोल्‍हापुर (महाराष्‍ट्र) का लाइसेंस रद्द किया

19 जून 2014

भारतीय रिज़र्व बैंक ने श्री शिवाजी सहकारी बैंक लिमिटेड,
गढ़हिंग्‍लज, कोल्‍हापुर (महाराष्‍ट्र) का लाइसेंस रद्द किया

श्री शिवाजी सहकारी बैंक लिमिटेड, गढ़हिंग्‍लज, कोल्‍हापुर (महाराष्‍ट्र) के अर्थक्षम नहीं रह जाने और महाराष्‍ट्र सरकार के परामर्श से बैंक को पुनर्जीवित करने के प्रयास असफल हो जाने तथा सतत अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होनेवाली असुविधा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 14 जून 2014 को कारोबार की समाप्ति के बाद बैंक को दिया गया लाइसेंस रद्द करने का आदेश ज़ारी किया। सहकारी समितियों के पंजीयक, महाराष्‍ट्र से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। उल्लेख किया जाता है कि समान्य निबंधन व शर्तों के अधीन बैंक के समापन पर हर जमाकर्ता निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से 1,00,000 (एक लाख रुपये मात्र) रुपये की मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है।

बैंक को 06 जनवरी 1995 में बैंकिंग कारोबार शुरू करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा लाइसेंस प्रदान किया गया। 31 मार्च 2005 की वित्‍तीय स्थिति को देखते हुए आरबीआई द्वारा 09 जनवरी 2006 को पहली बार परिचालनगत अनुदेश जारी किए गए और इन्‍हीं अनुदेशों को 29 अक्‍तूबर 2006, 22 अप्रैल 2008, 12 मार्च 2009, 10 सितंबर 2009 और 25 नवंबर 2010 के पत्रों के माध्‍यम से संशोधित/ जारी किया गया। परिचालनात्‍मक अनुदेशों के अनुसार, बैंक पर अन्‍य बातों के साथ-साथ परिचालन क्षेत्र के विस्‍तार, नए परिसर लेने या आरबीआई के अनुमोदन के बिना वर्तमान परिसर से स्‍थानांतरण करने तथा लाभांश की घोषणा व भुगतान करने के संबंध में प्रतिबंध लगाया गया। बैंक को यह भी सूचित किया गया था कि वह (i) अपनी उधारराशियों की चुकौती करे और नए उधार लेने से बचे (ii) ऐसे ऋण खातों में ही परिचालन की अनुमति देते हुए उनका नवीकरण करे जिन्‍हें मानक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत किया है, (iii) बाज़ार की दरों से संसाधन जुटाए (iv) जमाराशि व ऋण वसूली से प्राप्‍य राशियों को सरकार / एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश करे तथा वसूली के लिए किए गए प्रयास तथा सीडी अनुपात को अनुकूल स्‍तर पर बनाए रखने कदम उठाए। बैंक को अगले अनुदेशों तक नए सिरे से ऋण देने से प्रतिबंध किया गया था।

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) (इसके बाद अधिनियम कहा जाएगा) की धारा 35 के अंर्तगत 31.03.2007 के सांविधिक निरीक्षण के दौरान वित्‍तीय स्थिति तथा अन्‍य बातों के साथ-साथ यह पता चला है कि सकल व निवल अनर्जक अस्तियों (एनपीए) को क्रमश: 36.3% और 26.4% पर आंका गया है। बैक की मूल्‍यांकित निवल हानि 31.20 लाख रही। संचित हानि 128.57 लाख रही। इसके बाद 31 मार्च 2008, 31 मार्च 2009, 31 मार्च 2010, 31 मार्च 2011 तथा 31 मार्च 2013 के निरीक्षणों के दौरान वित्‍तीय संकेतकों से पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति अधिक खराब हो चुकी थी।

31 मार्च 2010 के दौरान किए गए सांविधिक निरीक्षण के दौरान अन्‍य बातों के साथ-साथ यह पता चला कि बैंक की निवल संपत्ति घटकर (-) 34.33 लाख पर पहुँच गई तथा सीआरएआर (-) 3.4% रहा, सकल व निवल अनर्जक आस्तियां सकल व निवल अग्रिमों की तुलना में क्रमश: 37.9% & 26.0% पर पाई गईं। मूल्‍यांकित निवल हानि 170.63 लाख रही। बैंक की संचित हानि 283.77 लाख रिपोर्ट की गई। बैंक वर्ष 2007-08 से 2009-10 के बीच सीआरआर/एसएसलआर बनाए रखने में चूक की है। बैंक के निदेशक मंडल बैंक की खराब वित्‍तीय स्थिति के लिए जि़म्‍मेदार थे। बैंक को परिचालन अनुदेश जारी करने तथा उन्‍हें नए सिरे से उधार देने पर प्रतिबंध लगाने तथा बैंक को ऋण वसूली से प्राप्‍य राशियों को सरकार व एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए सूचित करने के बावजूद बैंक प्रबंधन ने शाखा समायोजन खाते में नामे डालकर आठ खातों में 23.88 लाख की वित्‍तीय सहायता प्रदान की है। बैंक ने इस प्रकार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी परिचालनात्‍क अनुदेशों का उल्‍लंघन किया है। चूंकि बैंक का निदेशक मंड़ल प्रभावी नहीं था तथा बैंक की खराब वित्‍तीय स्थिति के लिए जि़म्‍मेदार होने के कारण टॉफकब की सिफारिशों के अनुसरण में दिनांक 22 दिसंबर 2010 के पत्र के माध्‍यम से आरसीएस से बोर्ड का अधिक्रमण करने के लिए अनुरोध किया गया। तदनुसार, सहकारी समितियों के पंजीयक (आरसीएस) ने 27 दिसंबर 2010 के अपने आदेश के माध्‍यम से बोर्ड का अधिक्रमण किया तथा 3 सदस्‍य वाला प्रशासकीय बोर्ड नियुक्त किया। बोर्ड प्रशासकों की अवधि को समय-समय पर बढ़ाया गया।

31 मार्च 2011 की वित्तीय स्थिति के अनुसार किए गए सांविधिक निरीक्षण के दौरान अन्‍य बातों के साथ-साथ यह पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति अत्यधिक खराब हुई है। सीआरएआर ऋणात्‍मक था जिसे (-) 48.8% पर आंका गया, निवल संपत्ति (-) 334.62 लाख पर पहँच गई थी, सकल व निवल आस्तियों की तुलना में सकल व निवल अनर्जक आस्तियां (एनपीए) क्रमश: 70.5% और 60.8% पर पाई गईं तथा निवल हानि 368.21 लाख पर रहीं। 31.3% का जमा ह्रास हो चुका था। बैंक से जमाराशि वापस लेने की दौड़ शुरु हो गई थी जिससे बैंक की जमाराशि में 24.1%. की गिरावट आ गई। बैंक ने वर्ष 2007-08 से 2010-11 के बीच लगातार उसके लिए विनिर्दिष्‍ट सीआरआर/एसएलआर बनाए रखने में चूक की है। बैंक ने 130.00 लाख की एकमुश्‍त मीयादी जमाराशि के आहरण के लिए अनुमति दी थी, जिसे एक ऋण (मातोश्री रमाबाई आंबेडकर मागासवर्गीय सुत गिरनी) के लिए पुनग्रर्हणाधिकार (लियन) के रूप में रखा गया था तथा इस ऋण की बकाया राशि 31 मार्च 2011 के अनुसार 110.30 लाख है। साथ ही, 49.50 लाख को 90 विभिन्‍न व्‍यक्तिगत जमाकर्ताओं को अं‍तरित कर दिया गया जो या तो कर्मचारी हैं या मातोश्री रमाबाई आंबेडकर मागासवर्गीय सुत गिरनी के अध्‍यक्ष के रिश्‍तेदार हैं। भविष्‍य में डीआईसीजीएसी के अंतर्गत बीमा संबंधी दावे प्रस्‍तुत करने के इरादे से इस प्रकार किया है। उपर्युक्‍त व्‍यक्तिगत जमाराशियों को मातोश्री रमाबाई आंबेडकर मागासवर्गीय सुत गिरानी के ऋण के लिए पुनर्ग्रहणाधिकार के रूप में नहीं रखा है, जिसकी वजह से उपर्युक्‍त ऋण गैर-ज़मानती ऋण बन गया। प्रमुख खातों से संबंधित बहियों का मिलान नहीं किया गया तथा अंतर-शाखा के खातों की विभिन्‍न प्रविष्टियों को समायोजित नहीं किया गया। कुछ वाउचरों को प्राधिकृत नहीं किया गया था। 31 मार्च 2011 के अनुसार किए गए सांविधिक निरीक्षण के दौरान यह पाया गया कि बैंक की वित्‍तीय स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, जिसके चलते बैंक को 24 अक्‍तूबर 2011 के निदेश यूबीडी.सीओ.बीएसडी-I/डी-61/12.22.249/2011-12 के माध्‍यम से सर्वसमावेशी निदेश जारी किया गया। यह निदेश 25 अक्‍तूबर 2011 से छ: माह तक की अवधि के लिए लागू था। इसके बाद विभिन्‍न निदेश जारी किए गए जिनमें 16 अप्रैल 2014 को जारी किया गया निदेश यूबीडी.सीओ.बीएसडी-I/डी-30/12.22.249/2013-14 नवीनतम है, जिसकी अवधि को 25 अप्रैल 2014 से 24 अक्‍तूबर 2014 तक बढ़ा दी गई।

31.3% के जमा ह्रास तथा बिगड़ती वित्‍तीय स्थिति को देखते हुए बैंक लाइसेंस को रद्द करने के लिए बैंक को 24 नवंबर 2011 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। बैंक ने 15 दिसंबर 2011 के अपने पत्र के ज़रिए उक्‍त कारण बताओ नोटिस के लिए उत्‍तर भेजा था परंतु, वह संतो‍षजनक नहीं पाया गया। इसी बीच बैंक ने सूचित किया कि दो शहरी सहकारी बैंकों ने विलयन के लिए इच्‍छा व्‍य‍क्‍त की। अन्‍य शहरी सहकारी बैंक ने भी बैंक की समुचित सावधानी का आयोजन किया तथा अपना विलयन प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत किया। यद्यपि, विलयन प्रस्‍ताव कार्यान्वित नहीं हो पाया क्‍योंकि श्री शिवाजी सहकारी बैंक लिमिटेड ने विलयन प्रस्‍ताव के खिलाफ संकल्‍प पारित कर दिया था।

प्रसंगवश, लंबित विलयन प्रस्‍ताव को देखते हुए 31 मार्च 2012 के अनुसार बैंक का सांविधिक निरीक्षण नहीं किया गया। चूंकि विलयन प्रस्‍ताव सफल नहीं हुआ, यह निर्णय लिया गया था कि 31 मार्च 2013 की वित्‍तीय स्थि‍ति के संदर्भ में निरीक्षण किया जाए ताकि बैंक का पुर्नगठन पर निर्णय लिया जा सके। 31 मार्च 2013 की स्थिति के अनुसार किये गये सांविधिक निरीक्षण के दौरान अन्‍य बातों के साथ-साथ यह पाया गया कि निवल संपत्ति को 819.16 लाख पर आंका गया, सीआरएआर (-) 415.7% पर पहुँच गया, बैंक का 82.6% तक का जमाह्रास हुआ था, बैंक की निवल हानि 645.80 लाख रही तथा बैंक के निवल व सकल अनर्जक आस्तियां क्रमश: 705.66 लाख (94.8%) तथा 58.00 लाख (59.9%) पर दर्ज की गईं। बैंक ने वर्ष 2007-08 से सीआरआर/एसएलआर न बनाए रखने के संबंध में लगाए गए दंडात्‍मक ब्‍याज को अदा नहीं किया है। बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लगाए गए सर्वसमावेशी निदेश का उल्‍लंघन किया है।

उपर्युक्‍त कमियों से पता चला कि बैंक के कार्यकलाप जमाकर्ताओं के हित के विरुद्ध हो रहे हैं। बैंक ने अधिनियम की धारा 11(1), 22(3) (ए) और 22(3) (बी) का अनुपालन नहीं किया है। 31 मार्च 2013 की स्थिति के अनुसार किए गए निरीक्षण के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने 28 जनवरी 2014 के अपने पत्र यूबीडी.सीओ.बीएसडी-I.एससीएन.04/12.22.249/2013-14 के माध्‍यम से काराण बताओ नोटिस जारी किया कि अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत 06 जनवरी 1995 को बैंकिंग कारोबार करने के लिए जारी किया गया लाइसेंस क्यों न रद्द किया जाए और बैंक का परिसमापन क्यों न किया जाए। दिनांक 12, 14 व 25 फरवरी 2014 के पत्रों के माध्‍यम से कारण बताओ नोटिस के लिए प्रेषित बैंक के उत्‍तरों की जांच की गई तथा उन्‍हें संतोषजनक नहीं पाया गया।

इसलिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक के जमाकर्ताओं के हित में अंतिम उपाय के रूप में बैंक का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया है। लाइसेंस रद्द किए जाने और परिसमापन प्रक्रिया आरंभ करने से श्री शिवाजी सहकारी बैंक लिमिटेड, गढहिंग्‍लज, कोल्‍हापुर (महाराष्‍ट्र) के जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी अधिनियम के अंतर्गत बीमाकृत राशि के भुगतान की प्रक्रिया निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन प्रारंभ की जाएगी।

लाइसेंस रद्द किये जाने के अनुसरण में श्री शिवाजी सहकारी बैंक लिमिटेड, गढहिंग्‍लज, कोल्‍हापुर (महाराष्‍ट्र) अधिनियम की धारा 5(ख) के अंतर्गत 'बैंकिंग' के रूप में परिभाषित कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, मुंबई से संपर्क कर सकते हैं। उनका संपर्क ब्योरा निम्नानुसार है:

डाक पता: शहरी बैंक विभाग, मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, दूसरी मंजिल, गारमेंट हाउस, डॉ.ए.बी. रोड, वरली, मुंबई – 400 018; दूरभाष संख्‍या: (022) 24824000, फैक्‍स संख्‍या: (022) 24935495 ई-मेल.

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/2460

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