रिज़र्व बैंक ने द माधवपुरा मर्केंटाइल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) का लाइसेंस रद्द किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक ने द माधवपुरा मर्केंटाइल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) का लाइसेंस रद्द किया
7 जून 2012 रिज़र्व बैंक ने द माधवपुरा मर्केंटाइल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) का लाइसेंस रद्द किया इस तथ्य को धन में रखते हुए कि द माधवपुरा मर्केंटाइल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) [द को-ऑपरेटिव बैंक] के अर्थक्षम नहीं रह जाने, भारत सरकार के परामर्श से बैंक को पुनरुज्जीवित करने के प्रयास असफल हो जाने तथा सतत अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होनेवाली असुविधा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 04 जून 2012 को कारोबार की समाप्ति के बाद बैंक को दिया गया लाइसेंस रद्द करने का आदेश जारी किया। सहकारी समितियों के केंद्रीय पंजीयक, नई दिल्ली (सीआरसीएस) से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। इस को-ऑपरेटिव बैंक को भारत में कारोबार शुरू करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 19 अगस्त 1994 को लाइसेंस प्रदान किया गया था। वर्ष 1999-2000 के दौरान इस को-ऑपरेटिव बैंक ने ऋण मानदंडों के सकल उल्लंघन में विशेषकर शेयर दलाली फर्मों को अंधाधुंध ऋण प्रदान किया। मार्च 2001 में इस बैंक के बारे में अचानक अफवाह फैली कि इसने मुंबई के एक अग्रणी शेयर दलाल केतन पारिख जिसने अपने शेयर कारोबार में भारी हानि उठाई थी को भारी निवेश किया था। यह को-ऑपरेटिव बैंक गुजरात में बड़ी संख्या में शहरी सहकारी बैंकों और अन्य बैंकों से अंतर बैंक जमाराशि के रूप में आवश्यक राशि (₹800.00 करोड़) भी धारण करता था और इससे गुजरात में सहकारी बैंकों को प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न हुआ। जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने की दृष्टि से भारतीय रिज़र्व बैंक ने कतिपय परिचालनों को प्रतिबंधित करते हुए बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू) [अधिनियम] की धारा 35ए के अंतर्गत 13 मार्च 2001 को बैंक को निर्देश जारी किया। भारतीय रिज़र्व बैंक ने सहकारी समितियों के केंद्रीय पंजीयक (सीआरसीएस) को बहु राज्य समितियां अधिनियम, 1984 की धारा 48 के अंतर्गत को-ऑपरेटिव बैंक के निदेशक बोर्ड को अधिक्रमित करने के लिए अभ्यावेदन जारी किया। सीआरसीएस ने बोर्ड को अधिक्रमित कर दिया तथा को-ऑपरेटिव बैंक के कार्यों की देखभाल के लिए 14 मार्च 2001 को एक प्रशासक नियुक्त किया। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस बैंक की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में इस अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2001 को कराए गए को-ऑपरेटिव बैंक के सांविधिक निरीक्षण से अन्य बातों के साथ-साथ इसकी खराब वित्तीय स्थिति का निम्न प्रकार पता चला:
जमाकर्ताओं और उन शहरी सहकारी बैंकों जिन्होंने इस को-ऑपरेटिव बैंक के पास जमाराशियॉं रखी थीं के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार/सीआरसीएस ने इस को-ऑपरेटिव बैंक को पुनर्संरचित करने के लिए एक योजना तैयार की। इसके परिणामस्वरूप बैंकिंग विनियमन अधिनियम,1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35ए के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लागू किए गए निर्देश वापस लिए गए और भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन से 23 अगस्त 2001 को कारोबार की समाप्ति से दस वर्षों की अवधि के लिए पुनर्संरचना की योजना लागू की गई। इस योजना में निधियॉं डाला जाना, विद्यमान जमाराशियों को रोक रखना, बैंकों/संस्थाओं से मॉंग मुद्रा उधारों को सावधि जमाराशियों में बदला जाना, को-ऑपरेटिव बैंक के पात्र जमाकर्ताओं को निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम द्वारा पूर्ण रूप से इसकी देयताओं को पूरा करना, सरकारी प्रतिभूतियों में नई जमाराशियों के निवेश, प्रबंधन पहलू आदि परिकल्पित किए गए थे। दस वर्षों की अवधि के दौरान मुख्य रूप से शहरी सहकारी बैंकों द्वारा पुनरुज्जीवन निधि प्रदान करने की प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किए जाने तथा केतन पारिख सहित वसूली के खराब कार्यनिष्पादन के कारण इस पुनर्संरचना योजना में अधिक प्रगति नहीं हुई। यह योजना 23 अगस्त 2011 को समाप्त हो गई। भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में 31 मार्च 2011 को इस अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत को-ऑपरेटिव बैंक का सांविधिक निरीक्षण कराया। इससे पता चला कि को-ऑपरेटिव बैंक की आकलित निवल संपत्ति (-)₹1316.50 करोड़, सीआरएआर (-)₹1941.1 प्रतिशत, सकल अनर्जक आस्तियां₹1126.55 करोड़ अर्थात् इसके सकल अग्रिमों का प्रय: 99.99 प्रतिशत, संचित हानि 1357.41 करोड़ तथा जमाराशियों में ह्रास 100 प्रतिशत आकजित किया गया था। को-ऑपरेटिव बैंक की अत्यंत खराब वित्तीय स्थिति के कारण 23 अगस्त 2011 को कारोबार की समाप्ति से उक्त अधिनियम की धारा 35ए के अंतर्गत छह महीनों की अवधि के लिए इस पर निर्देश लागू किए गए तथा समीक्षा के अधिन इसे 23 अगस्त 2012 तक बढ़ाया गया था। विद्यमान प्रशासक बोर्ड को अगले आदेशों तक बने रहने की अनुमति भी दी गई थी। कृषि मंत्रालय, भारत सरकार को 23 अगस्त 2011 को विभिन्न स्टेक धारकों के परामर्श से इस को-ऑपरेटिव बैंक के पुनरुज्जीवन के लिए प्रस्ताव यदि हों को तैयार करने और उसे पुन: विचार के लिए हमारे पास अग्रेषित करने हेतु सूचित किया गया था। भारत सरकार ने 07 सितंबर 2011 के अपने पत्र के अनुसार को-ऑपरेटिव बैंक द्वारा प्रस्तावित एक संशोधित पुनर्संरचना योजना अग्रेषित किया था। संशोधित पुनर्संरचना योजना की जांच की गई और यह पाया गया कि इसकी निवल संपत्ति नकारात्मक बनी रहेगी यदि कथित संशोधित योजना को लागू किया जाता है। अत: इसे पुनरुज्जीवन के अवसर दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़े। भारत सरकार को इस स्थिति से भी सूचित किया गया कि बैंक के समापन की प्रक्रिया शुरू करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। केंद्रीय टीएएफसीयूबी ने 4 जनवरी 2012 को आयोजित अपनी बैठक में भी यह सिफारिश की थी कि बैंक के समापन के लिए उपाय शुरू किए जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। को-ऑपरेटिव बैंक की अत्यंत खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए को-ऑपरेटिव बैंक को 16 मार्च 2012 को एक कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किया गया जिसमें यह पूछा गया था कि कृपया कारण बतायें कि उक्त अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत भारत में बैंकिंग कारोबार करने के लिए स्वीकृत लाइसेन्स को क्यों नहीं निरस्त किया जाए। को-ऑपरेटिव बैंक ने 18 अप्रैल 2012 को इस कारण बताओ नोटिस का जवाब देते हुए यह स्वीकार किया कि को-ऑपरेटिव बैंक की अत्यंत खराब वित्तीय स्थिति तत्कालीन निदेशक बोर्ड के सदस्यों की मिली-भगत से केतन पारिख और उनके सहयोगियों सहित शेयर दलाली समुदाय के अलावा को-ऑपरेटिव बैंक में₹1200.00 करोड़ की राशि की धोखाधडी के कारण हुई। बैंक के अनुसार कुल अग्रिमों के 72 प्रतिशत वाले₹803.00 करोड की एक राशि अप्रयोज्य प्रतिभूतियों और दोषपूर्ण अभिलेखन के कारण गैर-जमानती थी, अत: इसे वसूला नहीं जा सका। को-ऑपरेटिव बैंक ने यह भी स्वीकार किया कि पुर्नसंरचना योजना पुर्नज्जीवन निधि में योगदान के लिए शहरी सहकारी बैंकों की प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किए जाने के कारण असफल हुई क्योंकि कई शहरी सहकारी बैंकों को अपनी राशि की सुरक्षा के लिए भय था और इसके बावजूद भी को-ऑपरेटिव बैंक द्वारा किए गए अभ्यावेदन पर अप्रैल 2008 की सीआरसीएस की अधिसूचना तथा उनके द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय में दर्ज अभ्यावेदन के अनुसार₹343.36 करोड़ की राशि लौटाई गई थी। इस संकल्प के अनुसार प्रशासक बोर्ड ने इसे भारतीय रिज़र्व बैंक पर को-ऑपरेटिव बैंक के भविष्य के गठन पर निर्णय के लिए छोड़ दिया। इस प्रकार को-ऑपरेटिव बैंक ने लाइसेन्स के निरसन के लिए जारी कारण बताओ नोटिस में पायी गई सभी अनियमितताओं/कमियों को स्वीकार किया। को-ऑपरेटिव बैंक ने एक दूसरी पुनर्ज्जीवन योजना प्रस्तुत की जिसमें विश्व बैंक/यूरोपियन बैंकों से ₹1000.00 करोड़ के एक ऋण की परिकल्पना की गई थी जो एक अनिवासी भारतीय द्वारा उपलब्ध करायी जाएगी जो ₹5000.00 करोड़ के कुल अधिमान शेयरों के स्वरूप में अगले दस वर्षों के लिए ₹500.00 करोड़ का निवेश करेगा। यह पाया गया कि को-ऑपरेटिव बैंक न तो उस निवेशक के पूर्व वृत्त से अवगत था और न ही वह निधियों के स्रोतों की असलियत से अवगत था। को-ऑपरेटिव बैंक निश्चिंत नहीं था कि क्या यह प्रस्ताव को-ऑपरेटिव बैंक अपनी निवल संपत्ति को सकारात्मक बनाते हुए अपनी स्थिति में बदलाव ला पाएगा। यह प्रस्ताव किसी निवेशक को अधिमान शेयरों के आबंटन के लिए बैंक उप-विधियों के अनुरूप भी नहीं है जो कोई ऋणकर्ता नहीं है तथा प्रस्तावित पूँजी संरचना बहु- राज्य सहकारी समितियों अधिनियम, 2002 की धारा 33 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। अत: इसे पुनर्ज्जीवन के लिए एक ठोस प्रस्ताव नहीं माना गया है। जैसाकि पहले कहा जा चुका है कि को-ऑपरेटिव बैंक की वित्तीय स्थिति 31 मार्च 2011 को आकलित निवल सम्मत्ति (-)₹1316.50 करोड़, सीआरएआर (-)₹1941.1 प्रतिशत, सकल अनर्जक आस्तियां इसके सकल अग्रिमों (₹1125.59 करोड) का 99.99 प्रतिशत और संचित आनि ₹1357.41 करोड़ के साथ अत्यंत गंभीर हो गई थी। बैंक की जमाराशियां पूरी तरह समाप्त हो गई थीं। को-ऑपरेटिव बैंक ने स्वीकार किया था कि बैंक का पुनर्ज्जीवन अंशदान करने वाले शहरी सहकारी बैंकों से पुनर्ज्जीवन निधि की वसूली में कठिनाई तथा खासकर केतन पारिख समूह से खराब वसूली के कारण असफल हो गया। को-ऑपरेटिव बैंक पर उक्त अधिनियम की धारा 35ए के अंतर्गत 23 अगस्त 2011 से निर्देश लागू किए गए। भारत सरकार द्वारा प्रेषित संशोधित पुनर्संरचना योजना व्यवहार्य नहीं पाई गई और भारत सरकार को हमारे 26 दिसंबर 2011 के पत्र द्वारा सूचित कर दिया गया। नया प्रस्ताव जिसमें ₹1000.00 करोड़ रुपए का निवेश परिकल्पित था वह न तो पूर्ण था और नहीं को-ऑपरेटिव बैंक के पुनर्ज्जीवन के लिए व्यवहार्य था जैसाकि उपर्युक्त पैरा 9 में पहले ही वर्णित है। यह बहु-राज्य सहकारी समितियां अधिनियम,2002 के प्रावधानों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप भी नहीं था। ऊपर निर्दिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों से यह पाया गया है कि:
अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने को-ऑपरेटिव बैंक के जमाकर्ताओं के हित में इस को-ऑपरेटिव बैंक के लाइसेंस को निरस्त करने का आत्यंतिक कदम उठाया है। लाइसेंस निरस्त किए जाने के परिणामस्वरूप द माधवपुरा मर्केंटाइल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) को बैंककारी विनियमन अधिनियम,1949(सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 5(बी) में यथापारिभाषित 'बैंकिंग' कारोबार करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता श्री कमलजीत सिंह, सहायक महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, अहमदाबाद से संपर्क कर सकते हैं। उनके संपर्क ब्योरे निम्न प्रकार हैं: डाक पता: शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, अहमदाबाद क्षेत्रीय कार्यालय, ला गज्जर चैंबर्स, आश्रम रोड, अहमदाबाद-380 009, दूरभाष संख्या:(079) 26582822, फैक्स सं. (079) 26584853, इ;मेल अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1949 |