RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S3

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

81103620

रिज़र्व बैंक ने दि प्रिमियर ऑटोमोबाइल एंप्लॉइज को-आपरेटिव बैंक लि., मुंबई, (महाराष्ट्र) का लाइसेंस के लिए आवेदन अस्वीकृत किया

3 अगस्‍त 2012

रिज़र्व बैंक ने दि प्रिमियर ऑटोमोबाइल एंप्लॉइज को-आपरेटिव बैंक लि., मुंबई, (महाराष्ट्र) का
लाइसेंस के लिए आवेदन अस्वीकृत किया

बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू) की धारा 22 के अंतर्गत भारत में बैंकिंग कारोबार करने के लिए दि प्रिमियर ऑटोमोबाईल एंप्लॉइज को-आपरेटिव बैंक लि., मुंबई, (महाराष्ट्र) (बैंक) का 31 मई 1966 का बैंकिंग लाइसेंस प्रदान करने के लिए किया गया आवेदन भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस तथ्य से संतुष्ट होने के बाद अस्वीकृत किया है कि अधिनियम की धारा 22(3) में अपेक्षित शर्तों को बैंक पूर्ण नहीं करता हैं। यह आदेश 23 जुलाई 2012 को कारोबार की समाप्ति से लागू होगा तथा बैंक के लिए यह बाध्यकारी है कि वे अधिनियम की धारा 5(ख) के अंतर्गत आनेवाला “बैंकिंग” कारोबार तुरंत प्रभाव से बंद करें। निबंधक, सहकारी समितियां,  महाराष्ट्र से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। यह उल्लेख किया जाता है कि बैंक के समापन पर हर जमाकर्ता निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से 1,00,000/- (एक लाख रुपये मात्र) की उच्चतम मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है।

अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2006 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए सांविधिक  निरीक्षण के निष्कर्षों  के आधार पर बैंक को निरिक्षण उपरांत बैठक में अन्य बातों के साथ-साथ यह सूचित किया गया था कि जमकर्ताओं के हित की रक्षा करने के लिए किसी अन्य बैंक के साथ विलयन करने की संभावना का पता लगाए या अधिनियम के दायरे से बाहर जाने पर विचार करें। यही बातें बैंक को 4 सितंबर 2007 के पत्र के माध्यम से भी सूचित की गयी। तथापि बैंक ने उसपर कोई कार्रवाई नहीं की।

अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2007 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए सांविधिक निरीक्षण से  कारोबार में विभिन्न कमियां / अनियमितताएं पायी गयी। 31 मार्च 2007 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में किए गए निरीक्षण के निष्कर्षों के आधार पर 25 मार्च 2008 के पत्र शबैंवि. मुक्षेका. बीएसएस II/3358/12.07.184/2007-08 के माध्यम से बैंक पर पर्यवेक्षी कार्रवाई लगायी गयी जिससे नए एटीएम / विस्तार पटल/ शाखाएं खोलने तथा परिचालन क्षेत्र में विस्तार, बैंक की अनुमति के बिना लाभांश घोषित करना और बैंक के लिए परिसर खरीदना या कार्यालय परिसर का स्थान बदलने पर प्रतिबंध लगाए गए।

अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2009 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला कि कई कमियां अब भी बैंक में मौजूद हैं। 31 मार्च 2007 की स्थिति के लिए  सकल ओर निवल एनपीए 34.9 % था जो बढ़कर 31 मार्च 2009 की स्थिति के लिए 43.0 % हुआ। भारतीय रिज़र्व बैंक को बैंकिंग लाइसेंस के लिए 31 मई 1966 के आवेदन में बेंक ने यह कहा था की सदस्यता केवल प्रिमियर ऑटोमोबाईल लिमिटेड के कर्मचारियों को ही दी जाएगी। अब बैंक के उप-नियमों में प्रिमियर ऑटोमोबाईल लिमिटेड के कर्मचारियों के अतिरिक्त व्यक्तियों को सदस्यता देने का प्रावधान है जो रिज़र्व बैंक के 8 अगस्त 2001 के परिपत्र शबैंवि. सं.बीएल.(एसइबी)5ए/ 07.01.00/2001-02 के पैरा 1(ii) का उल्लंघन है। बैंक द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार 31 मार्च 2010 की स्थिति के अनुसार कुल 3400 सदस्यों में से 1150 सदस्य़ मूल कंपनी के कर्मचारी नहीं हैं। बैंक ने प्रिमियर ऑटोमोबाईल लि. के कर्मचारेतर व्यक्तियों को ऋण दिया हैं।

बैंक के कारोबार की प्रमुख कमियां/ अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए तथा जनहित और जमाकर्ताओं के हित के लिए, अधिमानी भुगतान तथा बैंक की संपत्ति की बिक्री को रोकने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 28 जुलाई 2010 के निदेश शबैंवि. केंका. बीएसडी-1 सं डी-02/12.22.184/2010-12 के माध्यम से (2 अगस्त 2010 को करोबार समाप्ति से प्रभावी) अधिनियम की धारा 35 क के अंतर्गत निदेश लगाए गए। निदेशों के अनुसार अन्य बातों के साथ-साथ नयी जमाराशिया स्वीकार करना और ऋण देने तथा प्रति जमाकर्ता 1000/- से अधिक आहरण पर प्रतिबंध लगाए गए।

अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2010 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति और अधिक खराब हुई है। बैंक की मूल्यांकित निवल संपत्ति 31 मार्च 2009 की स्थिति 114.25 लाख से घटकर 31 मार्च 2010 को 83.71 लाख हो गयी। बैंक का सकल एनपीए 31 मार्च 2009 की स्थिति के लिए सकल अग्रिम के 43.0% था जो 31 मार्च 2010 की स्थिति के लिए 49.3% हुआ। उसी अवधि में बैंक का निवल एनपीए निवल अग्रिम के 7.7% से बढ़कर 10.9% हो गया। एनपीए की वसूली का कार्य संतोषजनक नहीं था इसलिए एनपीए बढ़ रहा था। बैंक एनपीए को नियंत्रित नहीं कर सका। वर्ष 2009-10 के दौरान मूल्यांकित निवल हानि 15.70 लाख से बढ़कर 25.35 लाख हुई। बैंक उच्च दर वाले जमाराशियों पर निर्भर था इसलिए उसका लाभप्रदता पर विपरित परिणाम हुआ। बोर्ड या वरिष्ठ प्रबंधन दोनों में से किसी ने भी बैंक के जोखिम प्रबंधन के लिए नीतियां नहीं बनायी। निदेशक मंडल की समिति का कार्यनिष्पादन संतोषजनक नहीं था। बैंक नें निदेशक मंडल में व्यावसायिक निदेशक पर भारतीय रिज़र्व बैंक के 21 अप्रैल 2008 के दिशानिर्देश शबैंवि.पीसीबी.परि. 41/09.103.01/2007-08 के साथ पठित 5 अप्रैल 2002 के दिशानिर्देश शबैंवि.पीसीबी.परि.पीओटी.39/09.103.01/2001-02 का उल्लंघन किया।

अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2011 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति और अधिक खराब हो गयी है। मूल्यांकित निवल मूल्य में और गिरावट आई है तथा वह .62.49 लाख हुआ। 31 मार्च 2011 की स्थिति के लिए सकल एनपीए बढकर 193.26 लाख (64.0%) और निवल एनपीए 40.19 लाख (27.0%)हुआ।  एनपीए की वसूली संतोषजनक नहीं पायी गयी। वर्ष 2010-11 के दौरान .5.90 लाख  की एनपीए वसूली की गयी तथा 28.81 लाख नए एनपीए शामिल हो गये। 31 मार्च 2011 की स्थिति के लिए बैंक की मूल्यांकित निवल हानि (-).18.51 लाख थी। बैंक निरंतर हानि में चल रहा था सभी लाभप्रदता अनुपात नकारात्मक हो गए थे। बैंक ने विमको, अम्बरनाथ नगर परिषद,  इसीके एचएयुबीओडी, आदि के कर्मचारियों को सदस्य के रूप में स्वीकार किया था तथा 8 अगस्त 2001 के परिपत्र शबैंवि.एसं. बीएल.(एसइबी). 5ए के अनुच्छेद 1 (ii) में निहित निर्देशों का उल्लंघन करते हुए  उनमें से कुछ सदस्यों को ऋण प्रदान किया था। बैंक की विभिन्न जोखिमों की पहचान करना, उस पर उपाय करना, उनकी निगरानी करना तथा उन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई भी प्रणाली निर्धारित नहीं की गयी थी।

बैंक की वित्तीय स्थिति में गिरावट से बैंक की स्थिति में कोई सुधार लाने के लिए तथा गिरावट को रोकने के लिए प्रबंधन की अक्षमता दिखाई देती है। बैंक के निदेशक मंडल का कार्यनिष्पादन संतोषजनक नहीं था क्योकि उन्होंने बैंक की जोखिम प्रबंधन के लिए नीति बनाने की पहल नहीं की। बैंक के 27 अप्रैल 2012 के पत्र से यह देखा गया कि अधिनियम की धारा 35क के अंतर्गत 28 जुलाई 2010 के निर्देश शबेंवि.केंका.बीएसडि1-सं. डी-02/12.22.184/2010-11 के माध्यम से सर्वसमावेशी निर्देश लगाने के बाद तथा 25  मार्च 2008 के पत्र शबैंवि.एमआरओ. बीएसएस 2/3358/12.07.184/2007-08 के द्वारा पर्यवेक्षी कारवाई लगाने तथा बैंक को कार्यालय परिसर लेने या स्थानांतरित करने से रोकने के बावजूद भी बैंक ने कोहिनुर प्लानेट कंस्ट्रकशन प्राइवेट लि., से कंपनी द्वारा अग्रीमेंट के आधार पर विकसित किए जा रहे परिसर के बदले में अचल संपत्ति ली।

12 जनवरी 2012 के पत्र शबैंवि.केंका.बीएसडी-1/एससीएन/67/12.22.184/2011-12 के माध्यम से बैंक को कारण बताओं सूचना जारी की गयी तथा सूचित किया गया की इस सूचना की प्राप्ति के 30 दिनों के अंदर यह बताया जाए कि क्यों न अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत बैंकिंग व्यवसाय करने के लिए लाइसेंस प्रदान करने का उनका 31 मई 1966 का आवेदन अस्वीकृत किया जाए तथा बैंक को समाप्त करने के लिए कार्रवाई शुरू की जाए। कारण बताओ सूचना को  बैंक द्वारा दिया गया 1 मार्च 2012 के जवाब की जांच की गयी तथा उसे संतोषजनक नहीं पाया गया।

उपर्युक्त बतायी गयी गंभीर अनियमितताओं से यह पता चला कि बैंक का कारोबार जमाकर्ताओं के हित के विरुद्ध हो रहा था। बैंक के सभी वित्तीय पैरामीटर और अधिक खराब हुए। बैंक के पास विलयन की या समिति बनाने की कोई सक्षम योजना भी नही थी । किए गए सुधार के लिए बैंक ने कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए।

बैंक ने प्रवेश बिंदु  मानदंड को पूरा नहीं किया था और वेतन अर्जक बैंक के सदस्य के रूप मे बाहरी व्यक्तियों शामिल करते हुए वर्तमान निर्देशों का उल्लंघन किया था। पूंजी संरचना और बैंक की कमाई की संभावनाए घट रही थी तथा बैंक ने अधिनियम की धारा 22 (3) (घ) का अनुपालन नहीं किया था।  बैंक की वित्तीय स्थिति में गिरावट से प्रबंधन की अक्षमता दिखायी दे रही थी। इस प्रकार, बैंक का कारोबार अधिनियम की धारा 22 (3)(ख) का उल्लंघन करते हुए अपने वर्तमान / भावी जमाकर्ताओं के हित में नहीं है और बैंक के प्रबंधन कि सामान्य प्रवृत्ति अधिनियम की धारा22 (3) खंड (ग) के उल्लंघन में जन हित या अपने जमाकर्ताओं के हित प्रतिकूल है।

अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक के जमाकर्ताओं के हित में अंतिम उपाय के रूप में उक्त बैंक का लाइसेंस के लिए आवेदन अस्वीकृत करने का निर्णय लिया। लाइसेंस अस्वीकृत होने तथा परिसमापन की कार्यवाही शुरू होने के साथ ही दि प्रिमियर ऑटोमोबाईल एंप्लॉइज को-आपरेटिव बैंक लि., मुंबई, (महाराष्ट्र) के जमाकर्ताओं को निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अनुसार बीमाकृत राशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी।

लाइसेंस रद्द होने के परिणामस्वरुप दि प्रिमियर ऑटोमोबाईल एंप्लॉइज को-आपरेटिव बैंक लि., मुंबई, (महाराष्ट्र) को अधिनियम की धारा 5(बी) के अंतर्गत यथापरिभाषित "बैंकिंग व्यवसाय" करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

इस संबंध में किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता श्रीमती के.एस.ज्योत्सना, उप महाप्रबंधक, भारतीय रिज़र्व बैंक, शहरी बैंक विभाग, मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय, मुंबई से संपर्क कर सकते हैं। उनसे संपर्क का विवरण नीचे दिया गया है:

डाक पता: शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय, दूसरी मंज़िल, गारमेट हाउस, वरली,  मुंबई-400018; टेलीफोन सं. :(022) 24920225; फैक्स सं. : (022) 24935495; ई-मेल पता:

जे. डी. देसाई
सहायक प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/194

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?