बैंकिंग प्रणाली में दबाव दूर करना और क्रेडिट वृद्धि को पुनःस्थापित करना वृद्धि एजेंडा के लिए महत्वपूर्ण हैः भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकिंग प्रणाली में दबाव दूर करना और क्रेडिट वृद्धि को पुनःस्थापित करना वृद्धि एजेंडा के लिए महत्वपूर्ण हैः भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
22 जून 2016 बैंकिंग प्रणाली में दबाव दूर करना और क्रेडिट वृद्धि को पुनःस्थापित करना “बैंक तुलन-पत्रों को दुरुस्त करना तथा क्रेडिट वृद्धि को पुनःस्थापित करना वृद्धि एजेंडा के लिए महत्वपूर्ण और संबंधित कारक हैं। सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक इस कठिन किंतु महत्वपूर्ण कार्य में हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सहायता कर रहे हैं।” ऋण वसूली प्रक्रिया को तेज करने और नई दिवालियापन प्रणाली का सृजन करने में सरकार के प्रयास समाधान प्रक्रिया में सुधार करने के लिए दो महत्वपूर्ण कदम हैं, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अभिशासन में सुधार करने और बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने से अल्पावधि में बड़े लाभांश मिलेंगे। इसी समय रिज़र्व बैंक पूरी तरह से नई असाध्य ऋण समाधान प्रक्रिया सृजित करने के लिए प्रयास कर रहा है जिसमें सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाएगा और प्रणाली अधिक अनुशासन और पारदर्शिता के अधीन होगी। “अच्छी बात यह है कि बैंक तुलन-पत्रों को दुरुस्त कर रहे हैं और परियोजनाओं को पुनः शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने हेतु अनिच्छुक प्रवर्तकों से बाते कर रहे हैं।” “मुझे मालूम है कि इस प्रक्रिया से काम हो रहा है, इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जल्द ही दुबारा से इस अर्थव्यवस्था की बड़ी जरूरतों को वित्तपोषित करने के लिए तैयार हो जाएंगे।” भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम जी. राजन ने यह बात 22 जून 2016 को बेंगलूरु में उद्योग और व्यापार के बीच चर्चापरक बैठक में एसोचैम द्वारा आयोजित कराए गए अपने वक्तव्य “बैंकिंग प्रणाली में दबाव दूर करना” में कही। गवर्नर ने अपने भाषण में आंकड़ों की सहायता से इस बात पर तर्क दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में क्रेडिट वृद्धि में मंदी मुख्य रूप से दबाव के कारण रहीं है, न कि उच्च ब्याज दरों या पूंजी के अभाव में। उनके अनुसार उधारकर्ता के आधारभूत तथ्य अच्छे नहीं होना और इन्हें प्राप्त करने में ऋणदाता की योग्यता का कमजोर होना इस प्रणाली में चालू निराशा के कारण हैं। इसके अतिरिक्त, अतार्किक आधिक्य, अन्यों के द्वारा किए गए मूल्यांकनों पर अधिक निर्भरता तथा कमजोर निगरानी, बैंकों के लिए लागतों का बढ़ना और वैश्विक वित्तीय संकट जिसके बाद मंदी का आना, अभिशासन की समस्याएं और जांच का डर, दिल्ली में निर्णय लेने की धीमी गति जिनकी वजह से बुनियादी सुविधा परियोजनाओं के लिए अनुमति प्राप्त करना कठिन हो गया, ने परियोजना लागत को बढ़ाने और परियोजनाओं को रोकने का काम किया। इससे प्रवर्तकों द्वारा ऋण लौटाना काफी मुश्किल हो गया। कुछ उधारकर्ताओं का दुराचार भी देखा गया। प्रबंधकों का लघु कार्यकाल जैसे विकृत प्रोत्साहनों के चलते गलत परियोजनाओं के लिए अधिक उधार संभव हो सका और साथ में चलने वाली व्यवहार्य परियोजनाओं को कम उधार दिया गया। गवर्नर ने कहा कि कमजोर बैंको के ऋण संकट को समझना और उसका खुलासा करने, अलाभकारी परियोजनाओं द्वारा इनको छुपाने,परियोजनाओं की नकदी सृजन क्षमता पर यथार्थवादी होने और उससे मेल खाने के लिए ऋण और उसकी चुकौती की संरचना करने तथा अव्यवहार्य परियोजनाओं के लिए उनके द्वारा ऋण देना जारी रखने,भले ही वे अतीत में पुनर्गठित किया गए हो और एनपीए थे, के लिए दुविधा का सामना करना पड़ा, भारतीय रिज़र्व बैंक ने नई समर्थ प्रक्रियाएं बनाकर तुलनपत्रों को दुरुस्त करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना पड़ा। इस प्रकार बैंकिंग प्रणाली को दुरूस्त करने के लिए रिज़र्व बैंक के दृष्टिकोण में अनेक उपाय किए गए,जैसे कि,एक बड़े ऋण डेटाबेस (सीआरआईएलसी) का निर्माण, एक संयुक्त ऋणदाताओं के फोरम (जेएलएफ) के माध्यम से उधारदाताओं में समन्वय,बैंकों द्वारा अलाभकारी परियोजनाओं के पुनर्गठन को रोकना जो हानि पहचानने से बचना चाहते है, सामरिक ऋण पुनर्गठन (एसडीआर) योजना शुरू की ताकि बैंकों को कमजोर प्रमोटरों को विस्थापित करने के लिए ऋण को इक्विटी में परिवर्तित किया जा सके और बड़े दबावग्रस्त खातों के समाधान के लिए एक वैकल्पिक ढांचे के रूप से “दबावग्रस्त आस्तियों के सतत संरचना के लिए योजना” (एस4ए) की शुरुआत की। गवर्नर ने इस बात पर जोर दिया कि नियामक का महत्वपूर्ण कर्तव्य गैर-निष्पादित आस्तियों की समय पर पहचान (एनपीए) करना और जब वे बनते है उनका खुलासा करने के लिए मजबूर करना। उन्होंने कहा “यह तब जब संयम या पहचान न किए जाने के कारण असाध्य ऋण समस्या जमा होने लगती है,तो नियामकों को प्रणाली को वापस पटरी पर लाने में बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है", और यह भी कहा "इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक के संयम की समाप्ति और 2015 के मध्य में एसेट क्वालिटी समीक्षा मंदी के लिए जिम्मेदार नहीं थे।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उच्च आर्थिक विकास के लिए बैंकों के लिए एक ही रास्ता है कि वे ऋण की आवश्यकता के लिए अर्थव्यवस्था की जरूरत की आपूर्ति के लिए इसे दुरुस्त और पुनर्पूंजीकरण करें। गवर्नर के अनुसार, रिजर्व बैंक कैपिटलाइजिंग पब्लिक सेक्टर बैंक - के आर्थिक सर्वेक्षण में बताए गए सुझाव- कार्रवाई का एक गैर पारदर्शी तरीका था और स्वंय के बैंक से एक बार फिर बैंकिंग नियामक को लेने से ब्याज के हितों में टकराव का कारण था। उन्होंने कहा कि बल्कि रिजर्व बैंक सरकार को जितना हो सके अधिकतम लाभांश दे रहा है,और सिर्फ पर्याप्त अधिशेष बफर बनाए रखता है जो एक अच्छे केंद्रीय बैंक जोखिम प्रबंधन प्रणाली के लिए सुसंगत है। उन्होंने कहा "वास्तव में, हम यह करते हैं, और पिछले तीन साल में, हमने हमारे सभी अधिशेष का भुगतान सरकार को किया है", अलग से,सरकार बैंकों में पूंजी डाल सकती है। वैकल्पिक रूप में, इक्विटी के बदले में कम प्रभावी रूप से पूंजी के रूप में "सरकार पूंजीकरण बांड" जारी करना होगा। उनके तुलनपत्रों पर बांड को धारित करना बैंकों के तुलनपत्रों के टाई अप का हिस्सा होगा, लेकिन निश्चित रूप से वह पूंजी होगा। भाषण के अंत में, गवर्नर ने कहा, “यहां तक कि जब हमने प्रतिबद्ध प्रमोटरों को पुनर्गठित करना आसान किया है जब वे बुरे भाग्य या अप्रत्याशित समस्याओं का सामना करते हैं, हमें जालसाज़ या इरादतन चूककर्ता, जो भुगतान कर सकता है लेकिन बस ऐसा करने के लिए अनिच्छुक है, या जालसाज़ से छुटकारा पाने के लिए उनकी क्षमता को कम करना होगा। यही कारण है कि यह बेहद जरूरी है कि बैंकों को उन प्रमोटरों या धोखेबाजों के लिए जो प्रणाली का आदतन दुरुपयोग करते हैं नई लचीली योजनाओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।" अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/2982 |