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भारत और चीन के बीच प्रभावी सहभागिता के लिए आवश्यक भारत की घरेलू और बाह्य नीतियों की पुनर्संरचना : भारतीय रिज़र्व बैंक का परियोजना अनुसंधान अध्ययन

13 जून 2013

भारत और चीन के बीच प्रभावी सहभागिता के लिए आवश्यक भारत की घरेलू और
बाह्य नीतियों की पुनर्संरचना : भारतीय रिज़र्व बैंक का परियोजना अनुसंधान अध्ययन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर ''भारत चीन द्विपक्षीय व्यापार संबंध'' शीर्षक एक परियोजना अनुसंधान अध्ययन जारी किया। यह परियोजना अनुसंधान अध्ययन प्रो. एस.के.मोहंती, विकसित देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (आरआईएस), नई दिल्ली को इस उद्देश्य के साथ सौंपा गया था कि वे चीन के विरूद्ध भारत के बढ़ते हुए व्यापार घाटे की दृष्टि से भारत और चीन के बीच व्यापार सहबद्धता पर गहन विश्लेषण करें।

परियोजना अनुसंधान अध्ययन भारत और चीन दोनों देशों में विश्व अर्थव्यवस्था के साथ व्यापक समेकन की उनकी खोज़ में शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण की अपरिवर्तनीय प्रक्रृति की पहचान करता है तथा आर्थिक कार्य के लिए उनके व्यापार और क्षेत्रवार संपूरकों के विद्यमान ढांचे के विश्लेषण द्वारा उनकी विकास प्रक्रिया में सहक्रियाओं की पहचान करता है।

परियोजना अनुसंधान अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

  1. चूंकि दोनों देशों में व्यापार प्रवाह एशिया खासकर दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया में संकेंद्रित है, यह मान्यता व्यापार बढ़ाने के लिए एक विश्वसनीय प्लेटफॉर्म प्रस्तुत कर सकती है।

  2. लोकप्रिय धारणाओं के विपरीत, चीन से भारत में द्विपक्षीय आयात अन्यों के बीच वस्त्रोद्योग और वस्त्र, आटोमोटिव, रसायन, आदि सहित कई क्षेत्रों में गैर-प्रतिस्पर्धी रहा है।

  3. प्रकट तुलनात्मक लाभ्(आरसीए) की पद्धति पर आधारित यह अध्ययन यह निष्कर्ष देता है कि भारत चीन से गैर-प्रतिस्पर्धी उत्पादों की भारी मात्रा में आयात करता रहा है जिसकी आपूर्ति अपेक्षत: भारत को सस्ते मूल्य पर चीन के अन्य प्रतिस्पर्धी देश आसानी से कर सकते हैं।

  4. संगणित सामान्य समतुल्यन(सीजीई) माडलिंग के अंतर्गत प्रोत्साहनों पर आधारित इस अध्ययन का यह निष्कर्ष है कि केवल एशियान+3 देशों के बीच उदारीकरण उनके आर्थिक एकीकरण के स्तर के निरपेक्ष कल्याणकारी लाभ का प्रत्याशित स्तर उत्पन्न नहीं कर सकता है; और

  5. गतिशील पैनल आंकड़ा विश्लेषण के आधार पर परियोजना अनुसंधान अध्ययन का निष्कर्ष है कि युआन के अधिमूल्यन/अवमूल्यन का अन्य देशों में भारत के निर्यात पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है।

इस अध्ययन के अनुसार भारत को चीन के साथ अपनी सहबद्धता से लाभ संभावित है बशर्ते इसकी द्विपक्षीय आर्थिक सहबद्धता में भारत के दीर्घावधि हितों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक सतर्क दृष्टिकोण का अनुपालन किया जाए। इसके लिए दो पड़ोसी देशों के बीच प्रभावी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए भारत की घरेलू और बाह्य नीतियों को पुनर्संरचित करना अपेक्षित है।

रिज़र्व बैंक ने वास्तविक अर्थव्यवस्था, मौद्रिक क्षेत्र, वित्तीय अर्थव्यवस्था आदि जैसे क्षेत्रों में आर्थिक अनुसंधान की सहायता के लिए रिज़र्व बैंक की योजना के अंतर्गत बाहरी विशेषज्ञों की सहायता से शुरु किए गए अनुसंधान प्रतिफल के प्रसारण की दृष्टि से ''अनुसंधान परियोजना अध्ययन/रिपोर्ट श्रृंखला'' लागू की थी। यह इसकी वेबसाइट पर 'प्रकाशन> सामयिक >>परियोजना अनुसंधान अध्ययन' पर उपलब्ध है।

अनुसंधान परियोजना अध्ययन/रिपोर्टें नीति उन्मुख अनुसंधान को प्रोत्साहित करने तथा व्यापक रूप में अनुसंधानकर्ताओं को आंकड़ा और रिपोर्टें उपलब्ध कराने के लिए भी रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए दूसरे प्रयास हैं। अनुसंधान परियोजनाओं को निधि सहायता इस योजना के अंतर्गत दी जाती है और उन्हें बाह्य अनुसंधान संस्थानों/विद्वानों को सौंपा जाता है जिनमें आंतरिक अनुसंधानकर्ता भी सहयोग करते हैं। इन परियोजनाओं के पूरा होने पर ये अध्ययन वर्तमान रूचि के विषयों पर अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के बीच रचनात्मक चर्चा उत्पन्न करने की दृष्टि से व्यापक संचालन के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाले जाते हैं।

अनुसंधान परियोजना अध्ययन/रिपोर्टों सहित रिज़र्व बैंक के सभी अनुसंधान प्रकाशनों में व्यक्त विचार रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं और इस प्रकार उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों के प्रतिनिधित्व के रूप में उनकी रिपोर्ट नहीं की जाए। इन अनुसंधान परियोजना रिपोर्टों/अध्ययनों का सर्वाधिकार भारतीय रिज़र्व बैंक के पास है।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/2094

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