जोखिम प्रबंध और अंतर-बैंक लेनदेन - आरबीआई - Reserve Bank of India
जोखिम प्रबंध और अंतर-बैंक लेनदेन
15 दिसंबर 2011 जोखिम प्रबंध और अंतर-बैंक लेनदेन विदेशी मुद्रा बाज़ार की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि अगली समीक्षा करने तक, निम्नलिखित उपाय तत्काल प्रभाव से लागू किये जाएं। i. संविदागत एक्स्पोजर के तहत, वायदा संविदाएं जिनमें मुद्राओं में से एक मुद्रा रुपया है, जिसे निवासियों ने चालू खाते के लेनदेनों को हेज करने के लिए बुक किया है, भले ही उनकी अवधि कितनी भी क्यों न हो, और पूंजीगत खाते को हेज करने के लिए, जो एक वर्ष में देय हों, को रद्द करने और फिर से बुक करने की अनुमति दी गई थी। अब यह निर्णय लिया गया है कि उपर्युक्त सुविधा वापस ले ली जाए। निवासियों द्वारा बुक की गयी वायदा संविदाएं, अंतर्निहित एक्सपोजर के स्वरुप तथा अवधि पर ध्यान दिये बिना एक बार रद्द किये जाने पर फिर से बुक नहीं की जा सकती हैं। ii. विगत निष्पादन पर आधारित संभावित एक्सपोजर के तहत, निवासियों को विगत तीन वित्तीय वर्षों (अप्रैल से मार्च) के दौरान वास्तविक आयात/निर्यात पण्यावर्त (टर्नओवर) या विगत वर्ष के वास्तविक आयात/निर्यात पण्यावर्त (टर्नओवर), में से जो भी उच्चतर हो, के औसत तक एक्स्पोजर के संबंध में की गई घोषणा के आधार पर और विगत निष्पादन के आधार पर मुद्रा जोखिम को हेज करने के लिए अनुमति दी गयी थी। इसके अतिरिक्त, पात्र सीमा के 75 प्रतिशत के अतिरिक्त बुक की गयी संविदाएं सुपुर्दगी-योग्य आधार पर की जानी थीं तथा रद्द नहीं की जा सकती थीं। अब यह निर्णय लिया गया है कि ए. उपर्युक्त विगत निष्पादन सुविधा का लाभ उठाने वाले सभी आयातकों के लिए, उक्त सुविधा घटाकर उपर्युक्तानुसार आकलित सीमा के 25 प्रतिशत तक की गयी है अर्थात विगत तीन वित्तीय वर्षों (अप्रैल से मार्च) के दौरान वास्तविक आयात/निर्यात पण्यावर्त (टर्नओवर) या विगत वर्ष के वास्तविक आयात/निर्यात पण्यावर्त (टर्नओवर), में से जो भी उच्चतर हो, के औसत के 25 प्रतिशत तक। जिन आयातकों ने संशोधित/ कम की गयी सीमा से अधिक सुविधा का उपयोग पहले ही कर लिया है उन्हें इस सुविधा के तहत और बुकिंग की अनुमति न दी जाए। बी. अब से निर्यातकों और आयातकों दोनों द्वारा इस सुविधा के तहत बुक की गयी सभी वायदा संविदाएं पूर्णत: सुपुर्दगी-योग्य आधार पर होंगी। रद्द किये जाने के मामले में, विदेशी मुद्रागत लाभ, यदि कोई हुआ हो, ग्राहक को न दिया जाए। iii. ग्राहकों की ओर से प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा सभी कैश/टॉम/स्पॉट लेनदेन वास्तविक विप्रेषण / सुपुर्दगी के आधार पर किये जाएंगे तथा रद्द नहीं किये जा सकते हैं/नकद में भुगतान नहीं किया जा सकता है। iv. विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआईएस) को वर्तमान में भारत में ईक्विटी और/या ऋणों में हुए संपूर्ण निवेश के किसी तारीख विशेष को बाजार मूल्य के संबंध में मुद्रा जोखिम को हेज करने के लिए अनुमति दी गयी है। एक बार रद्द की गयी संविदाएं वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में पोर्टफोलियो के बाजार मूल्य के 10 प्रति शत की सीमा से अधिक पुन: बुक नहीं की जा सकती हैं। तथापि, वायदा संविदाएं परिपक्वता तारीख को अथवा उसके पहले रोलओवर की जा सकती हैं। अब यह निर्णय लिया गया है कि अब से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआईएस) द्वारा बुक की गयी वायदा संविदाएं, एक बार रद्द किये जाने पर पुन: बुक नहीं की जा सकती हैं। तथापि, वायदा संविदाएं परिपक्वता तारीख को अथवा उसके पहले रोलओवर की जा सकती हैं। v. प्राधिकृत व्यापारियों के निदेशक बोर्ड को नेट ओवरनाइट ओपन एक्स्चेंज पोज़िशन (एनओओपीएल) तथा सकल अंतराल सीमा के साथ विभिन्न खजाना कार्यों के लिए यथोचित सीमाएं निर्धारित करने के लिए अनुमति दी गयी थी, जिसे रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक था। यह निर्णय लिया गया है कि ए. प्राधिकृत व्यापारियों की नेट ओवरनाइट ओपन पोज़िशन लिमिट (एनओओपीएल) सभी के लिए घटायी जाएगी। अलग-अलग बैंकों के संबंध में संशोधित सीमाएं प्राधिकृत व्यापारियों को अलग से सूचित की जा रही हैं। बी. प्राधिकृत व्यापारियों की इंट्रा-डे ओपन पोज़िशन/डेलाइट लिमिट रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित मौजूदा एनओओपीएल से अधिक नहीं होनी चाहिए। सी. उपर्युक्त व्यवस्था की समीक्षा उभरती बाज़ार स्थितियों को ध्यान मे रखते हुए निरंतर आधार पर की जाती रहेगी। अन्य ब्योरे 15 दिसंबर 2011 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 58 में उपलब्ध हैं। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/945 |