सार्क वित्त हमारी स्थिरता के लिए ज़रूरी रही है अच्छी नीति : गवर्नरों की परिचर्चा में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने कहा - आरबीआई - Reserve Bank of India
सार्क वित्त हमारी स्थिरता के लिए ज़रूरी रही है अच्छी नीति : गवर्नरों की परिचर्चा में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने कहा
26 मई 2016 सार्क वित्त “हमारी स्थिरता के लिए ज़रूरी रही है अच्छी नीति”, डॉ. रघुराम राजन, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुंबई में आज आयोजित सार्क वित्त गवर्नरों की परिचर्चा में अपने उद्घाटन भाषण में ऐसा कहा। भारत के मामले में, वैश्विक अनिश्चितताओं से निपटने के लिए संवृद्धि को बढ़ाने के लिए कई संरचनात्मक सुधार; बेहतर खाद्य प्रबंधन, मुद्रास्फीति के एक नए ढांचे और सुविचारित मौद्रिक नीतियों के मेल के माध्यम से मुद्रास्फीति पर नियंत्रण; तथा संवृद्धि को समर्थन देने के लिए बैंकों के तुलन-पत्रों को बाधा-रहित बनाने की दृष्टि से बैंकिंग प्रणाली में अशोध्य कर्जों के परिमार्जन की शुरुआत जैसे तत्वों का प्रयोग किया जा रहा है। संवृद्धि को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने सिंचाई, बीमा, बाज़ारों तक पहुंच के माध्यम से उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए कृषि क्षेत्र में किए गए महत्वपूर्ण प्रयास, कारोबार अविनियमन को बल देना, विशेष रूप से स्टार्ट-अपों के मामले में, बिजली संवितरण कंपनियों में संकट को दूर करना, तथा बैंक खातों और प्रत्यक्ष लाभ अंतरणों के प्रावधान के माध्यम से वंचित लोगों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए किए गए गहन कर संरचनात्मक सुधार किए हैं। बहुप्रतीक्षित माल व सेवा कर सुधार को छोड़ दें तो कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं, जिनके अंतर्गत दिवालियापन संबंधी नया विधेयक भी शामिल है, जिससे संकट को त्वरित रूप से दूर करने में काफी मदद मिलने की संभावना है। इसके अलावा, स्पेक्ट्रम और खनन जैसे सार्वजनिक संसाधनों के आबंटन की प्रक्रिया के परिमार्जन के साथ ही महत्वपूर्ण कार्मिक, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुखों की नियुक्ति प्रक्रिया सरकार द्वारा किया गया सर्वाधिक प्रभावी सुधार है। उन्होंने कहा, “इससे हमारी प्रणाली में पारदर्शिता काफी बढ़ी है”। गवर्नर ने बाहरी असंतुलनों से निपटने की दृष्टि से चार तत्वों पर प्रकाश डाला, जो हैं अच्छी नीतियां; विवेकपूर्ण पूंजी प्रवाह प्रबंधन व स्वैप व्यवस्थाएं; विदेशी मुद्रा विनिमय की अत्यंत अस्थिरता की रोकथाम; तथा वाजिब विदेशी मुद्रा भंडार का निर्माण। वैश्विक रूप से अंतर्संबद्ध विश्व में सार्क देशों के सम्मुख रहने वाली चुनौतियों के संदर्भ में अच्छी नीतियों के बारे में चर्चा करते हुए गवर्नर ने कहा कि यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों की उथल-पुथल की स्थिति में इस क्षेत्र ने आघात-सहनीयता प्रदर्शित की और विश्व में तेजी से विकासमान क्षेत्र के रूप में अपनी जगह कायम रखी है। तथापि, यह क्षेत्र विश्व के अन्य भागों में रहने वाली अनिश्चितताओं से नई चुनौतियों का सामना कर रहा है। उन्होंने यूएस फेड द्वारा संभावित कदम, तेल की कीमतों में संभावित उछाल, संभावित ब्रेक्सिट, मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक जोखिम और रिस्क-ऑन या रिस्क-ऑफ विचार के कारण वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता जैसी कतिपय संभावनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने यह बताया कि चीनी अर्थव्यवस्था में अत्यंत मंदी से वैश्विक अर्थव्यवस्था और सार्क क्षेत्र के लिए अत्यधिक जोखिम पैदा कर रही है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष चीनी आयातों में अत्यंत गिरावट व्यापार, विश्वास, पर्यटन और विप्रेषण सरणियों के माध्यम से प्रभाव-विस्तार शुरू हो चुका है तथा सार्क राष्ट्र इस प्रभाव को दूर करने में समर्थ नहीं हो पाए। चीनी अर्थव्यवस्था के संधारणीय पथ पर समायोजित हो जाने के बाद और अधिक नकारात्मक बाहरी प्रभाव पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, चीन ने पहले ही अधिक्षमता और उच्च लीवरेज की दो समस्याओं से कष्ट उठाया है। बैंकिंग प्रणाली में अशोध्य ऋण वर्तमान स्तर से बढ़ने की संभावना है और इसके अतिरिक्त, छाया बैंकिंग प्रणाली में गंभीर कमजोरी आ सकती है जो बैंकों पर असर डाल सकती है। दोनों ही महत्वपूर्ण डाउनसाइड जोखिम हो सकते हैं क्योंकि इनका सार्क अर्थव्यवस्थाओं पर दूसरे चरण का प्रभाव हो सकता है। चीनी वृद्धि केवल इसकी नीतियों पर निर्भर नहीं करेगी बल्कि विश्व में और कहीं वृद्धि पर भी प्रभाव डालेगी। दूसरे स्तर के सुरक्षा के रूप में भारत ने उपाय किए हैं जैसे विदेशी उधार विशेषकर अति लघुकालिक उधार के प्रति सावधान रहना। इसके अतिरिक्त, सरकार के एफडीआई विनियमों के उदारीकरण के परिणामस्वरूप पिछले वित्तीय वर्ष में रिकार्ड एफडीआई अंतर्वाह हुआ। इसके अतिरिक्त, भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा हस्तक्षेप के माध्यम से मुद्रा में अधिक अस्थिरता की अवधि में नियंत्रण व्यवस्था करता रहा है, हालांकि यह तभी होता है जब उतार-चढ़ाव अधिक होता है और विदेशी मुद्रा भंडार के प्रति पहुंच बढ़ा रहा है जिसमें भंडारों की पूलिंग शामिल है। गवर्नर ने बताया कि अल्पकालिक विदेशी मुद्रा आवश्यकताओं को कम करने के लिए अनेक सार्क देशों ने भारत के साथ सार्क स्वैप व्यवस्था की है और यह मददगार रही है। निष्कर्ष में, गवर्नर ने कहा कि अन्य सार्क अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि को प्रभावित करने में भारतीय अर्थव्यवस्था की भूमिका के बारे में सचेत रहते हुए, भारत ने समष्टि स्थिरता को सुरक्षित और संरक्षित करना अपने एजेंडा में शीर्ष पर रखा है जिससे कि किसी भी नकारात्मक बाह्य प्रभाव से बचा जा सके और उन्होंने आशा व्यक्त की कि सार्क देशों में इस उथल-पुथल से भरे विश्व में अपेक्षाकृत अधिक स्थिरता और सहयोग रह सकता है। संपादकों के लिए नोट: सार्क 1को क्षेत्रीय ब्लॉक के रूप में 1985 में स्थापित किया गया था जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय आर्थिक वृद्धि को तेज करना, सामूहिक आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करना तथा इस क्षेत्र में पारस्परिक विश्वास, एक दूसरे की समझ और प्रशंसा में योगदान देना था। संधारणीय विकास सार्क देशों का एक आम लक्ष्य है और वे एक जैसी अनेक विकासात्मक चुनौतियों का सामना करते हैं। क्रय शाक्ति समता के आधार पर जीडीपी के मामले में विश्व में सार्क देशों की हिस्सेदारी 1980 के 4.0 प्रतिशत से तेजी से बढ़कर 2016 में 9.0 प्रतिशत हो गई। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/2751 1 अफगानिस्तान, बंगलादेश, भूटान, भारत मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका |