डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर का मौद्रिक नीति वक्तव्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर का मौद्रिक नीति वक्तव्य
4 मार्च 2015 डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर का मौद्रिक नीति वक्तव्य ज्ञात हो कि 15 जनवरी 2015 को घोषित मौद्रिक नीति वक्तव्य में रिज़र्व बैंक ने नीति दर में 25 आधार अंकों की कटौती की थी और सूचित किया था, ‘‘आगे की सहजता के लिए वे आंकड़े महत्वपूर्ण हैं जो निरंतर अवस्फीतिकारी दवाबों की पुष्टि करते हैं। इसके साथ-साथ संधारणीय उच्च गुणवत्ता राजकोषीय समेकन..... भी महत्वपूर्ण होगा।’’ 3 फरवरी को घोषित छठे द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में रिज़र्व बैंक ने उस समय तक मुद्रास्फीति या राजकोषीय दृष्टिकोण में कोई बदलाव दिखाई न देने के कारण ब्याज दर के प्रति अपने रुख को बरकरार रखा था। रिज़र्व बैंक ने सूचित किया था कि वह 2015-16 के दौरान मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति तथा 2015-16 के केंद्रीय बजट की दृष्टि से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में होने वाले बदलाव पर पैनी नज़र रखेगा। आंकड़ों में उतार-चढ़ाव वर्ष 2012 को आधार बनाते हुए नया सीपीआई 12 फरवरी 2015 को जारी किया गया। नए सूचकांक के आधार पर परिकलित जनवरी 2015 का 5.1 प्रतिशत का मुद्रास्फीति स्तर जनवरी 2015 के लिए निर्धारित 8 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी कम है। सब्जियों का दाम घटा और खुशी की बात है कि खाद्य वस्तुओं और ईंधन को छोड़कर अन्य वस्तुओं के संदर्भ में व्यापक रूप से मुद्रास्फीति अभूतपूर्व निचले स्तर पर दर्ज हुई है। अत: रिज़र्व बैंक द्वारा जनवरी 2014 में आकलित पथ के अनुरूप अवस्फीति का दौर शुरू हो गया है और वस्तुत: यह पूर्व में आकलित गति से कहीं अधिक तेजी से आगे बढ़ रही है। तथापि, मुद्रास्फीति के आकलन को लेकर बनी रहने वाली अनिश्चितताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। हाल के सप्ताहों में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और शायद भू-राजनीतिक गतिविधियों की वजह से इसमें और तेजी आने से मुद्रास्फीति के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव होगा। वैश्विक मांग कम रहने के कारण अन्य अंतरराष्ट्रीय पण्य वस्तुओं की कीमतें कम रहने की संभावना है। अक्सर दक्षिण-पश्चिम मानसून से पहले होने वाले मौसमी बदलाव के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होती हैं और सरकार द्वारा खाद्य प्रबंधन की दिशा में उठाए जाने वाले कदम मुद्रास्फीति के प्रति दृष्टिकोण को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। विदेशी मुद्रा विनिमय दर और आस्ति मूल्य सरणी के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों में होने वाले उतार-चढ़ाव के परिणामी प्रभावों का जोखिम भी काफी महत्व रखता है। संभवत: उपलब्ध क्षमता और कुल मांग के अनुरूप निकट भविष्य में मुद्रास्फीति में बदलाव आएगा। मांग-आपूर्ति संतुलन के संबंध में हाल में दो घटनाएं घटीं, वे हैं हाल में जारी जीडीपी अनुमान और 2015-16 का केंद्रीय बजट। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन ने जीडीपी अनुमान की प्रक्रिया में बदलाव कर सराहनीय कार्य किया है, जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्कृष्ट प्रथा की कोटि में शामिल हुआ है। उसमें एक मज़बूत अर्थव्यवस्था का चित्रण किया गया है, जहां पिछले तीन वर्ष के दौरान वृद्धि दर में काफी तेजी आई है, वहीं उत्पादन, ऋण, आयातों एवं क्षमता के प्रयोग की दिशा में और महत्वपूर्ण उपाय उठाया जाना है तथा साथ ही आर्थिक चक्र की स्थिति का उपाख्यानात्मक प्रमाण भी दिए गए हैं। तथापि, अर्थव्यवस्था में स्थिरतापूर्वक सुधार का जो चित्रण किया गया है वह सही प्रतीत हो रहा है। केंद्रीय बजट में राजकोषीय कदमों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इस बजट में संरचनागत सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किए गए हैं, जिनसे मध्यावधि में आपूर्ति में सुधार के लिए मदद मिलेगी। तथापि, राजकोषीय समेकन के 3 प्रतिशत के लक्ष्य को एक वर्ष के लिए स्थगित करने से अल्पावधि में कुल मांग में बढ़ोतरी होगी। जब आर्थिक सुधार गति पकड़ रही है तो ऐसे में कुल मांग प्रबंधन की दृष्टि से, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए बड़ी मात्रा में उधार लेने का नियत कार्यक्रम प्रथमदृष्ट्या काफी चिंता की बात है। कुछ कारक इस चिंता को कुछ हद तक दूर कर रहे हैं। सरकार ने ऐसे कई परंपरागत मुद्दों को सुलझाने की इच्छा जाहिर की है जो राजकोषीय नीति की वास्तविक स्थिति चित्रित नहीं करते हैं और जो उसके अनुमानों में रहने वाली आशावादिता को प्रभावित करते हैं। अत: राजकोषीय समेकन का वास्तविक स्तर हेडलाइन नंबरों में दिखाई देने वाले अंकों से काफी अधिक होगा। साथ ही, सरकार काफी बड़ी राशि राज्यों को अंतरित कर रही है और उसने इसके लिए केंद्रीय कार्यक्रमों को निधि प्रदान करने की अपनी जि़म्मेदारी को पूरी तरह छोड़ा भी नहीं। सामान्य राजकोषीय घाटे में उस हद तक कमी आएगी, जिस हद तक राज्यों के बजट घाटे में कमी आती हो। इसके अलावा, ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी आने से सब्सिडी के लिए खर्च की जाने वाली राशि का प्रयोग बुनियादी संरचना के लिए और बेहतर लक्ष्य प्राप्ति के लिए करना तथा सीधे अंतरण के माध्यम से सब्सिडियों में कटौती करना सराहनीय कदम है। केंद्र सरकार ने रिज़र्व बैंक के साथ ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके मुद्रास्फीति के संबंध में रिज़र्व बैंक के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है। इस कदम से अब कई बातें स्पष्ट हो गई हैं, जैसे- सरकार और रिज़र्व बैंक समान उद्देश्य रखते हैं तथा राजकोषीय और मौद्रिक नीति पूरक के रूप में काम करेंगी। संक्षेप में यह बताया जा सकता है कि सरकार राजकोषीय समेकन में हुई देरी की भरपाई के लिए समायोजन की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रति अपनी वचनबद्धता व्यक्त की है। ये सारे कारक सकारात्मक चिंतन के द्योतक हैं। कुल मिलाकर राजकोषीय आवेग केंद्रीय और राज्य सरकार दोनों की आगे की कार्रवाई पर निर्भर रहेगा। अन्य देशों की मुद्रा की तुलना में रुपया मज़बूत रहा है। तथापि, रुपया की अत्यधिक मज़बूती अवांछित है, क्योंकि इससे अवस्फीतिकारी प्रभाव भी पैदा हो सकते हैं। यह दोहराया जाता है कि रिज़र्व बैंक न तो विनिमय दर के किसी स्तर को लक्ष्य बनाता है और न ही वह विदेशी मुद्रा भंडार के लिए कोई समग्र लक्ष्य रखता है। वह विनिमय दर में टाली जा सकने वाली अस्थिरता को कम करने के लिए दोनों दिशाओं में समय-समय पर मध्यक्षेप करता है। भंडार किसी प्रत्यक्ष उद्देश्य को लेकर नहीं, बल्कि ऐसी किन्हीं कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप तैयार होता है। नीति का रुख सारांशत: 2015-16 की पहली छमाही में मुद्रास्फीति का स्तर कम रहने तथा दूसरी छमाही के दौरान बढ़कर 6 प्रतिशत से कम रहने की संभावना है। हालांकि राजकोषीय समेकन कार्यक्रम में देरी हो रही है, फिर भी उसकी भरपाई गुणवत्ता के सहारे हो सकती है, बशर्ते इसके लिए राज्य सरकारों का सहयोग प्राप्त हो जाए। क्षमता के अपेक्षाकृत कम प्रयोग के मद्देनज़र तथा अब भी उत्पादन और ऋण के अच्छे संकेत नहीं दिखाई देने के कारण रिज़र्व बैंक को एहतियात बरतते हुए नीतिगत कदम उठाना समुचित होगा ताकि मौद्रिक निभाव के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो सके। तदनुसार यह निर्णय लिया गया है कि :
परिणामस्वरूप, एलएएफ के अंतर्गत प्रतिवर्ती रिपो रेट को तत्काल प्रभाव से 6.5 प्रतिशत पर समायोजित किया गया है तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर को तत्काल प्रभाव से 8.5 प्रतिशत कर दिया गया है। नीति के समीक्षा-चक्र के बाहर कार्रवाई करने के पीछे दो कारण हैं : पहला, चूंकि अगला द्वि-मासिक नीति वक्तव्य 7 अप्रैल 2015 को जारी किया जाएगा, अत: अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों की कमज़ोर स्थिति के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर शिथिलता की प्रवृत्ति को देखते हुए यह महसूस किया गया कि कोई भी नीतिगत कार्रवाई नीतिगत रुख के लिए पर्याप्त रूप से समर्थन देने वाले आंकड़े प्राप्त होने पर प्रत्याशामूलक हो। दूसरा, मौद्रिक नीति के ढांचे के संबंध में करार हो जाने के कारण रिज़र्व बैंक के लिए यह उचित होगा कि वह अपने अधिदेशों को लागू करने के लिए किस प्रकार मार्गदर्शन करने वाला है। आरबीआई करार में किए गए उपबंध के अनुसार मुद्रास्फीति दर को 4 +/- 2 प्रतिशत के बैंड के मध्य बिंदु पर लाने के लिए प्रयास करेगा, अर्थात वित्तीय वर्ष 2016-17 से शुरू होने वाली दो वर्ष की अवधि के अंत तक उसे 4 प्रतिशत तक लाना। दिसंबर 2014 के पांचवें द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में उल्लिखित मार्गदर्शन में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं किया गया है। आगे उठाए जाने वाले मौद्रिक कदम प्राप्त आंकड़ों, विशेष रूप से आपूर्ति संबंधी अड़चनों को हटाने, बिजली, भूमि, खनिजों और बुनियादी संरचना जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों से संबंधित सूचना की बेहतर उपलब्धता, उच्च कोटि के राजकोषीय समेकन की दिशा में प्रगति, दर में कटौती का लाभ उधार दरों में कटौती कर पहुंचाने, मानसून की मात्रा तथा अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में होने वाली घटनाओं आदि पर निर्भर करेंगे। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/1847 |