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डॉ. रघुराम राजन द्वारा 4 सितंबर 2013 को पद ग्रहण करने के बाद दिया गया वक्तव्य

4 सितंबर 2013

डॉ. रघुराम राजन द्वारा 4 सितंबर 2013 को पद ग्रहण करने के बाद दिया गया वक्तव्य

नमस्कार, मैंने भारतीय रिज़र्व बैंक के 23वें गवर्नर के रूप में आज अपराह्न में कार्यभार ग्रहण कर लिया। यह आसान समय नहीं है और अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना कर रही है। साथ ही साथ भारत उज्ज्वल भविष्य के साथ मूलरूप से अच्छी अर्थव्यवस्था है। आज हमारा कार्य वैश्विक वित्तीय बाजारों द्वारा उत्पन्न हुई तुफानी लहरों के ऊपर भविष्य के लिए पुल का निर्माण करना है। मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा करने में हम सफल हो जाएंगे। आज मैं हमारे द्वारा उठाए जाने वाले कुछ प्रारंभिक कदमों, ठोस कार्यों और हमारे द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं पर आधारित कार्रवाई के हमारे इरादों के बारे में बताना चाहता हूं।

सुनिश्चित कार्रवाई के बारे में बताने से पहले मैं उसी बात को दुहराना चाहता हूं जो मैंने मेरी नियुक्ति वाले दिन कही थी। रिज़र्व बैंक सत्यनिष्ठा, स्वतंत्रता और व्यवसायिकता की परंपरा के साथ एक महान संस्था है। मैं डॉ. सुब्बाराव को बहुत कठिन समय में बैंक का मार्गदर्शन करने के लिए उनके नेतृत्व के लिए बधाई देता हूं और उनके द्वारा शुरू किए गए कुछ महत्वपूर्ण प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के समर्पित कर्मचारियों के साथ कार्य करने की प्रतीक्षा कर रहा हूं। मैं भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ द्वारा गर्मजोशी से किए गए स्वागत से प्रभावित हूं।   

भारतीय रिज़र्व बैंक की मौजूदा परंपराओं जो हमारे कार्य की आधारशीला होंगी, उनमें हम दो और परंपराओं पर जोर देंगे जो इस समय महत्वपूर्ण हैं: पारदर्शिता और पूर्वानुमान। ऐसे समय में जब वित्तीय बाजार अस्थिर हैं और आगामी चुनावों के कारण कुछ घरेलू राजनीतिक अनिश्चितता है, भारतीय रिज़र्व बैंक स्थिरता और अपने उद्देश्यों के लिए प्रकाश की किरण होना चाहिए। यह कहना नहीं चाहिए कि हम कार्यों से कभी भी बाजारों को आश्चर्यचकित नहीं कर सकेंगे। केंद्रीय बैंक को कभी भी ‘कभी’ नहीं कहना चाहिए!  परंतु लोगों के दिमाग में स्पष्ट रूपरेखा होनी चाहिए कि हम कहां जा रहे हैं और यह समझना चाहिए कि क्या हमारे नीतिगत कार्य उस रूपरेखा में ठीक बैठते हैं। इन सब के लिए संप्रेषण महत्वपूर्ण है, और मैं कार्यालय में पहले दिन ही अपने वक्तव्य से संप्रेषण को रेखांकित करना चाहता हूं।

मौद्रिक नीति

हम 20 सितंबर को मेरे कार्यकाल का पहला मौद्रिक नीति वक्तव्य बनाएंगे। मैंने मूलरूप से निर्धारित तारीख को थोड़ा टाल दिया है ताकि अब मुझे सभी प्रमुख कार्यकलापों पर आवश्यक ब्योरे के साथ विचार करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। तब तक मैं हमारे नीति रूझान का व्यापक स्पष्टीकरण दे दूंगा, किंतु मैं इस बात पर बल देना चाहता हूं कि भारतीय रिज़र्व बैंक अपना अधिदेश भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 से प्राप्त करता है जिसमें कहा गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक का गठन किया गया है-

“बैंक नोटों के निर्गम को नियंत्रित करने और भारत में मौद्रिक स्थिरता सुरक्षित करने की दृष्टि से मुद्रा भंडार बनाए रखने और सामान्य रूप से देश की मुद्रा और ऋण प्रणाली का इसके लाभ के लिए परिचालन करने” के लिए।

जैसा कि अधिनियम में कहा गया है केंद्रीय बैंक की प्राथमिक भूमिका मौद्रिक स्थिरता अर्थात देश की मुद्रा के मूल्य में विश्वास कायम रखना है। अंततः इसका अर्थ मुद्रास्फीति की कम और स्थिर प्रत्याशा से है, चाहे वह मुद्रास्फीति घरेलू स्रोतों या मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन, आपूर्ति प्रतिबंधों या मांग के दबाव से उत्पन्न हो। मैंने उप गवर्नर ऊर्जित पटेल से कहा है कि वे बाह्य विशेषज्ञों और भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ से पैनल का गठन कर तीन महीनों के अंदर सुझाव दें कि हमारे मौद्रिक नीति ढ़ांचे में संशोधन करने और उसे सुदृढ़ करने के लिए किन-किन आवश्यकताओं पर कार्य किया जाए। एफएसएलआरसी सहित अनेक पूर्व समितियों ने इस पर राय दी है और उनके विचारों पर भी सावधानी से विचार किया जाएगा।

समावेशी विकास

मैंने बताया कि भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रमुख भूमिका रुपए की खरीद क्षमता को परिरक्षित करना है किंतु हमारे दो अन्य महत्वपूर्ण अधिदेश हैं- समावेशी वृद्धि और विकास तथा वित्तीय स्थिरता।

विकासशील देश के केंद्रीय बैंक के रूप में हमारे पास वृद्धि बढ़ाने के अतिरिक्त साधन हैं – हम वित्तीय विकास और समावेशन तेज कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्र, विशेषकर हमारे गांव और देश में लघु तथा मध्यम उद्यम विकास के महत्वपूर्ण इंजीन रहे हैं चाहे बड़ी कंपनियों का विकास धीमा हुआ है। किंतु गरीबों, और ग्रामीण तथा लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए वित्त सुलभता अभी भी कम है। हमें तेज, व्यापक आधार वाले, समावेशी विकास की आवश्यकता है जिससे गरीबी में तेजी से कमी आएगी।

भारतीय जनता को बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा से लाभ मिलेगा और बैंकों को निर्णय लेने में अधिक स्वतंत्रता से लाभ मिलेगा। भारतीय रिज़र्व बैंक शीघ्र ही देश के प्रत्येक भाग में घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र बैंक शाखा खोलने के लिए परिपत्र जारी करेगा। अच्छा कारोबार करने वाले अनुसूचित घरेलू वाणिज्यिक बैंक को शाखा खोलने के लिए अनुमति हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक के पास नहीं आना पड़ेगा। निस्संदेह रूप से हमें बैंकों से अपेक्षित होगा कि वे शहरी क्षेत्रों में अपने विस्तार के अनुपात में अल्प बैंकिंग सेवाओं वाले क्षेत्रों में समावेशन के कुछ मापदंड पूरा करें और हम अनुचित ढ़ंग से प्रबंध वाली बैंकों के विस्तार पर प्रतिबंध लगाएंगे जब तक वे पर्यवेक्षकों को अपनी स्थिरता का विश्वास न दिला दें। खराब प्रबंध वाली बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित घरेलू वाणिज्यिक बैंकों के लिए शाखाकरण स्वतंत्र होगा।

नए बैंक लाइसेंस पर अच्छा-खासा सार्वजनिक ध्यान दिया गया है। भारतीय रिज़र्व बैंक पारदर्शिता और तत्परता के उच्चतर मानकों के अनुरूप शीघ्र ही नए बैंकों को लाइसेंस देगा। हम एक बाह्य समिति गठित करने की प्रक्रिया में हैं। डॉ. बिमल जालान, प्रसिद्ध पूर्व गवर्नर इसकी अध्यक्षता करने के लिए सहमत हो गए हैं, इस समिति में स्वच्छ प्रतिष्ठा वाले लोग शामिल होंगे। यह समिति भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ द्वारा आवेदनों के प्रारंभिक समेकन के बाद लाइसेंस आवेदनों की छंटनी करेगी। बाह्य समिति भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और उप गवर्नरों को अपनी सिफारिश करेगी और हम भारतीय रिज़र्व बैंक बोर्ड समिति को अंतिम सूची का प्रस्ताव करेंगे। मुझे आशा है कि हम लाइसेंस की घोषणा इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने वाले उप गवर्नर आनंद सिन्हा के कार्यकाल के अंदर या उसके तुरंत बाद करेंगे। उनका कार्यकाल जनवरी 2014 में समाप्त होगा।

हम इन लाइसेंसों को बंद नहीं करेंगे। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर एक उत्कृष्ट दस्तावेज डाला है जिसमें लघु बैंकों और थोक बैंकों की अलग-अलग लाइसेंसों की संभावना का पता लगाना, निरंतर अथवा “जारी” लाइसेंसिंग की संभावना तथा बड़े शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों में परिवर्तित करने की संभावना शामिल है। हम भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ के इन रचनात्मक विचारों का पालन करेंगे तथा आवश्यक सुधारों और स्टेकधारकों से अभिमत प्राप्त करने के बाद मुक्त प्रवेश एवं लाइसेंसिंग प्रक्रिया को और तेज करने के लिए विनियमों की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करेंगे।

भारत में विदेशी स्वधिकृत बैंकों की काफी संख्या है जिनमें से कई हमारे साथ लंबे समय से हैं और उन्होंने हमारी वृद्धि में ऊर्जा प्रदान करने में सहायता की है। वे उत्पादकता में सुधार करने और नए उत्पादकों के सृजन दोनों के मामले में नवोन्मेषीकरण में अग्रपंक्ति में रहे हैं। हम अपनी वृद्धि में उनकी और सहभागिता चाहते हैं लेकिन बदले में हम स्थानीय परिचालनों में अधिक विनियामक और पर्यवेक्षी नियंत्रण चाहेंगे जिससे कि हम अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों से अंधेरे में नहीं रहें। भारतीय रिज़र्व बैंक अर्हक विदेशी बैंकों को एक संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक संरचना की ओर जाने के लिए प्रोत्साहित करेगा जहां वे परस्पर आधार पर राष्ट्रीय व्यवहार को निकटता से देखेंगे। हम कुछ बाकी मुद्दों को पता करने की प्रक्रिया में हैं, इसलिए यह प्रयास शुरू किया जा सकता है। 

अंत में हमारे बैंकों के कई दायित्व हैं जो ऋण देने की प्रक्रिया को रोकते हैं और वास्तव में उसकी अनुमति देते हैं जिसे डॉ. राकेश मोहन, प्रसिद्ध पूर्व उप गवर्नर ने “आलसी बैंकिंग” कहा था। इस अधिनियम में भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए एक अधिदेश अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों के लिए ऋण प्रवाह सुनिश्चित करना है। इस संदर्भ में हमें एक समायोजित तरीके से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के लिए बैंकों की आवश्यकता में कमी करने की जरूरत है जिसकी कड़ाई के साथ विवेकशील परिप्रेक्ष्य में जरूरत है।

इस प्रकार इसे रातोंरात नहीं किया जा सकता। जैसे ही सरकारी वित्त में सुधार होगा ऐसी कमी की गुंजाइश बढ़ जाएगी। इसके अतिरिक्त पेंशन निधियों और बीमा कंपनियों जैसी अन्य वित्त संस्थाओं का प्रवेश बढ़ता है, वैसे ही हम सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के लिए नियमित वाणिज्यिक बैंकों की आवश्यकता में कमी कर सकते हैं।

हम अपने बैंकों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र की उधार की विभिन्न अपेक्षाओं के अंतर्गत लाएंगे। मेरा विश्वास है कि किसी विकासशील देश में ऐसे अधिदेश की एक भूमिका होती है – बैंकों को उन क्षेत्रों में पहुंचाना उपयोगी है जहां वे अन्य प्रकार से जाने का साहस नहीं करते हैं। लेकिन ऐसा अधिदेश अर्थव्यवस्था की जरूरत के अनुसार हो तथा इसे यथासंभव अधिक सक्षम तरीके से कार्यान्वित किया जाए। हमें याद रखना चाहिए कि देश के सारे हिस्सों में व्यापक वित्तीय पहुंच हमारा लक्ष्य है, न कि कार्मिक मापदंडों का पालन करना। मैं डॉ. नचिकेत मोर से कहूंगा कि वे एक समिति की अध्यक्षता करें जो अगला मार्ग सुझाने के लिए वित्तीय समावेशन के प्रति हमारे दृष्टिकोण के प्रत्येक पहलू का आकलन करे। इस तरह से हम भारतीय रिज़र्व बैंक के विकासात्मक लक्ष्य को और आगे ले जाएंगे।

वित्तीय बाजार

कुछ लोग मानते हैं कि वित्तीय बाजार बैंकों के प्रतिस्पर्धी हैं। वे ऐसा हैं, लेकिन ये उनके पूरक हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत से जोखिम वाणिज्यिक बैंकों की ओर आकर्षित होते हैं चाहे उन्हें अत्यंत नजदीकी वित्तीय बाजारों द्वारा समाहित किया जाए। लेकिन जोखिम दूर करने वाले दीर्घावधिक वित्त उपलब्ध कराने की अपनी आवश्यक भूमिका अदा करने तथा निवेश अवसरों के बारे में जानकारी प्रदान करने में हमारे वित्तीय बाजारों को और अधिक गंभीरता से कार्य करना होगा। हम केवल सामने से कार्रवाई को रोकने अथवा कारोबार आधार पर विधि सम्मत जरूरतों पर ही आदेश देने से इस गंभीरता का सृजन कर सकते हैं। मुद्रा परिवर्तनीय है, इसलिए ऐसे प्रतिबंध हट जाते हैं लेकिन कुछ स्तर पर सभी निवेश विश्वास और जोखिम उठाने के कार्य है। इससे बेहतर है कि निवेशक घरेलू स्तर पर खड़े रहे और हमारे बाजारों को विदेशी भूमि पर ले जाने की अपेक्षा हमारी अर्थव्यवस्था को गहराई और लाभ प्रदान करें।

दोनों, सरकार और सेबी जैसे विनियामकों के साथ हम स्थिर रूप से किंतु निश्चित रूप से हमारे बाजारों और निवेश और स्थिति लेने के प्रतिबंधों को उदारीकृत बनाएंगे। वर्तमान बाजार उथल-पुथल के कारण हमारे कार्य संयत गति किंतु प्रतीकात्मक तत्कालिक भुगतान (डाउन पेमेंट) पर होंगे। हम निम्नलिखित कार्य करेंगेः

(1) वर्तमान में निर्यातकों को रद्द की गई संविदाओं की 25 प्रतिशत तक के मूल्य की सीमा तक रद्द किए गए फारवर्ड विनिमय संविदाओं को फिर से बुक करने की अनुमति है। यह सुविधा आयातकों के लिए नहीं है। जोखिम प्रबंधन में निर्यातकों/आयोतकों के अधिक लचीलेपन के लिए हम निम्नलिखित कार्य करेंगेः

(i) निर्यातकों के लिए उपलब्ध सीमा को 50 प्रतिशत तक बढ़ाना; और

(ii) आयातकों के लिए 25 प्रतिशत की सीमा तक इस सुविधा की अनुमति देना।

(2) इसके अतिरिक्त मुद्रा और सरकारी बाजारों के विकास के लिए हम नकदी निपटान वाली 10 वर्षीय ब्याज दर भावी संविदाओं को शुरू करेंगे;

(3) हम ओवरनाइट ब्याज दरों पर ब्याज दर फ्यूचर्स के प्रारंभ की भी जांच करेंगे।  

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण और पूंजी अंतर्वाह

इस समय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की बात करना एक विचित्र समय हो सकता है, लेकिन हमें कुछ महीनों के बाद इसके बारे में सोचना है। जैसे ही हमारे व्यापार का विस्तार होता है, हम रुपए में और निपटान में बढ़ावा देंगे। इसका अर्थ यह भी होगा कि हमें अपने वित्तीय बाजारों को उन लोगों के लिए भी खोलना होगा जो रुपए को वापस इसी में निवेश करने के लिए प्राप्त करते हैं। हमारा अभिप्रायः स्थिर उदारीकरण के मार्ग को जारी रखना है।

भारतीय रिज़र्व बैंक हमारे चालू खाता घाटे के निधियन के लिए सुरक्षित मुद्रा लाने में हमारे बैंकों की सहायता करना चाहता है। भारतीय रिज़र्व बैंक एफसीएनआर जमाराशियों के अदला-बदली के लिए एक विशेष रियायत विंडो पर विचार करने पर बैंकों से अनुरोध कर रहा है जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल में दी गई रियायतों के बाद कार्यान्वित किया जाएगा। हम जमाराशियों की अवधि के लिए प्रतिवर्ष 3.5 प्रतिशत की निर्धारित दर पर तीन वर्ष या उससे अधिक की नियमित अवधि के लिए प्राप्त नई एफसीएनआर (बी) डॉलर निधियों की अदला-बदली के लिए बैंकों को ऐसा एक सुविधा प्रदान करेंगे।

इसके अतिरिक्त, बैंकों से प्राप्त अनुरोधों के आधार पर हमने निर्णय लिया है कि अक्षत टीयर I पूंजी की 50 प्रतिशत की वर्तमान समुद्रपारीय उधार सीमा को 100 प्रतिशत तक बढाया जाएगा तथा इस प्रावधान के अंतर्गत प्राप्त उधारों की बैंक के विकल्प पर बाजार में व्याप्त जारी स्वैप दर से 100 आधार अंक कम की रियायत दर पर भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ अदला-बदली की जा सकती है।

उपर्युक्त योजनाएं 30 नवंबर 2013 तक खुली रहेंगी जो उस अवधि के अनुरूप हैं जब अनिवासी भारतीय जमाराशियों पर रियायत समाप्त होती है। भारतीय रिज़र्व बैंक को यह अधिकार है कि वह उचित नोटिस के साथ पहले ही इस योजना को बंद कर दे।

वित्तीय मूलभूत सुविधा

वित्त तब बढ़ता है जब वित्तीय मूलभूत सुविधा मजबूत हो। भारतीय रिज़र्व बैंक देश की वित्तीय मूलभूत सुविधा में सुधार करने के लिए कठिन परिश्रम कर रहा है। उदाहरण के लिए इसने देश में भुगतान और निपटान प्रणालियों को मजबूत बनाने में अत्यधिक उन्नति की है। इसी प्रकार यह ऐसी एजेंसियों जैसे कि ऋण ब्यूरो और दर निर्धारण एजेंसियों के माध्यम से सूचना सहभागिता में सुधार करने का कार्य कर रहा है। यह ऐसे कार्य को संचालित करने का प्रस्ताव करता है जो सुरक्षा और प्रवाहों की गति के साथ-साथ गुणवत्ता तथा देश में ऋण की मात्रा को बढ़ाने में अत्यधिक महत्वपूर्ण होंगे।

खुदरा पक्ष पर मैं विशेषरूप से व्यक्तिगत ऋण वृत्तांतों के निर्माण में विशिष्ट पहचान आधार के उपयोग पर जोर डालना चाहता हूं। यह खुदरा ऋण में क्रांति का आधार बनेगा।

लघु और मध्यम फर्मों के लिए हम इलेक्ट्रॉनिक बिल फैक्टरिंग एक्सचेंज को सुविधा प्रदान करने का अभिप्रायः रखते हैं जिसके द्वारा बड़ी कंपनियों के बदले एमएसएमई बिलों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्वीकार और इनकी नीलामी की जा सकती है ताकि एमएसएमई को तत्परता से भुगतान किया जा सके। यह वर्ष 2008 में वित्तीय क्षेत्र सुधारों पर मेरी समिति की रिपोर्ट में एक प्रस्ताव था और मैं इसे कार्यान्वित होते हुए देखना चाहता हूं।

वित्त केवल ऋण देने के बारे में नहीं है, यह ऋण वसूली के बारे में भी है। खासकर हमें वर्तमान आर्थिक अनिश्चितता के समय में वसूली प्रणाली की दक्षता को सुधारना होगा। वसूली का ध्यान दक्षता और निष्पक्षता पर केंद्रित होना चाहिए जिसमें अंतर्निहित मूल्यवान आस्तियों के मूल्य और जहां संभव हो नौकरियों को भी तब संरक्षित रखना होगा जब नए उपयोगों में अव्यवहार्य आस्तियों को पुनर्नियोजित तथा कर्मचारियों को निष्पक्ष रूप से क्षतिपूर्ति की जा रही हो। यह सब तब सुनिश्चित करते हुए किया जाए जब संविदात्मक प्राथमिकताएं पूरी कर ली गई हों। इस प्रणाली को कुप्रबंधन और जालसाजी पर कड़ाई करते समय वास्तविक कठिनाई के प्रति सहिष्णु रहना है।

प्रवर्तकों को प्रभार में रहने का कोई दैवीय अधिकार नहीं हैं कि वे कितने बुरे ढ़ंग से उद्यम का कुप्रबंध करते हैं, और न ही उन्हें अपने असफल उद्ययों के पुनः पूंजीकरण के लिए बैंकिंग प्रणाली के उपयोग करने का अधिकार है।

अभी-अभी हमें ऋण वसूली ट्रिब्यूनल तथा आस्ति पुनर्संरचना कंपनियों के कार्यों को गति प्रदान करने की आवश्यकता है। उप गवर्नर आनन्द सिन्हा और मैं आवश्यक उपायों की जांच करते रहेंगे।

मैंने उप गवर्नर डॉ. चक्रवर्ती से कहा है कि वे बढ़ती हुई अनर्जक आस्तियों और पुनर्संरचना और वसूली प्रक्रिया पर बारिकी से नजर रखें और हम भी जल्दी ही अगला उपाय करेंगे। भारतीय रिज़र्व बैंक संपूर्ण बैंकों में ऋण आंकड़ों के संकलन और भारी सामान्य एक्सपोजरों की जांच करने का प्रस्ताव करता है। इससे बड़े ऋणों पर केंद्रीय संग्रहण का सृजन हो सकेगा जिसे हम बैंकों के साथ आदान-प्रदान कर सकेंगे। इससे स्वयं बैंक भी लिवरेज तथा सामान्य एक्सपोजरों के प्रति सतर्क हो सकेंगे।

जबकि अवरूद्ध परियोजनाओं के पुनः शुरू किए जाने तथा मजबूत वृद्धि से बैंकिंग प्रणाली की कुछ कठिनाइयां दूर होंगी, हम बैंकों को उनके तुलन पत्रों को स्पष्ट करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे और जहां कहीं आवश्यक हो, एक पूंजी बढ़ोतरी कार्यक्रम के लिए प्रतिबद्ध बनाएंगे। खराब ऋण समस्या अभी भयावह नहीं है लेकिन इसका समाधान नहीं किया गया तो यह केवल बढ़ेगी और विकसित होगी।

हम वित्तीय फर्मों के लिए बढ़े हुए समाधान संरचना के गठन के लिए एफएसएलआरसी के सुझाव को भी अपनाएंगे।  वित्तीय संस्थाओं के लिए समाधान व्यवस्था पर कार्यदल इसका अवलोकन कर रहा है और हम इसकी सिफारिशों की जांच करेंगे और इसके बाद कार्रवाई करेंगे।

परिवार

प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षित निवेश माध्यम, अपने प्रिय लोगों को विप्रेषण अंतरित करने, बीमा, महंगी हस्तक्षेप मध्यस्थ संस्थाओं के बिना सरकार से सीधे लाभ प्राप्त करने और व्यवहार्य निवेश अवसरों के लिए निधि प्राप्त करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त सहज उपभोग आवश्यकताओं के लिए ऋण सुलभता या संकट से निकलना वांछनीय है, विशेषकर न्यून आय दशमक में परिवारों के लिए जब यह अनुपयोगी ऋण भार लागू नहीं करता है। रिज़र्व बैंक इसे संभव बनाने के लिए अपनी भूमिका निभाता रहेगा।

विशेषरूप से, मैं विशेष कार्यों की घोषणा करना चाहता हूं: 

पहला, परिवारों ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति से सुरक्षित करने की इच्छा व्यक्त की है। सरकार के साथ मिलकर हम नवंबर 2013 के अंत तक खुदरा निवेशकों के लिए मुद्रास्फीति सूचकांकित बचत प्रमाण पत्र जारी करेंगे जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के नए सूचकांक से जुड़ा हुआ। 

दूसरा, हम राष्ट्रीय ऋण अंतरण निपटान प्रणाली आधारित भारतीय बिल भुगतान प्रणाली लागू करेंगे जिससे कि परिवार विद्यालय का शुल्क, उपयोगिता, चिकित्सा बिल का भुगतान करने के लिए बैंक खातों का उपयोग कर सकें और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक रूप से पैसे का अंतरण कर सकें। हम कहीं भी कभी भी भुगतान को वास्तविकता बनाना चाहते हैं।

तीसरा, वर्तमान में केवल बैंकों को ही प्वाइंट ऑफ सेल टर्मिनल खोलने की अनुमति है और शहरी क्षेत्रों में ये मुख्य रूप से कुछ बैंकों द्वारा ही स्थापित किए जाते हैं। जैसाकि वार्षिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में घोषणा की गई है, हम देश को कवर करने के लिए गैर-बैंक संस्थाओं को “श्वेत” प्वाइंट ऑफ सेल उपकरण और लघु एटीएम स्थापित करने की सुविधा देंगे जिससे कि ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं की पहुंच में सुधार हो सके।

चौथा, वर्तमान में गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा जारी प्री-पेड लिखतों के धारकों को अपने प्री-पेड कार्डों या इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट में बकाया शेष से नकदी निकालने की अनुमति नहीं है। दूरस्थ क्षेत्रों में भुगतान और विप्रेषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऐसी लिखतों की व्यापक संभावना के कारण हम ऐसी लिखतों और आधार संख्या आधारित पहचान का उपयोग करके पायलेट समर्थित नकदी भुगतान शुरू करने का विचार कर रहे हैं।

अंततः मोबाइल आधारित भुगतानों की काफी संभावना है। हम एक तकनीकी समिति का गठन करेंगे जो कूटलेखित एसएमएस आधारित फंड अंतरण का उपयोग करने की व्यवहार्यता की जांच करेगी जिसमें किसी भी प्रकार के हैंडसेट पर चलने वाली एप्लिकेशन का उपयोग किया जाएगा। हम मोबाइल भुगतान शुरू करने में सहयोग देने के लिए बैंकों और मोबाइल कंपनियों को भी कार्य करने के लिए कहेंगे। मोबाइल भुगतान वित्तीय क्षेत्र और मोबाइल कंपनियों, दोनों के लिए पासा पलटने वाले हो सकते हैं।

यह रिज़र्व बैंक में मेरे लघुकालिक समय सारणी का हिस्सा है। इसमें काफी बदलाव शामिल है और बदलाव जोखिम भरा है। किंतु चूंकि भारत विकास कर रहा है तो क्या बदलाव जोखिम भरा नहीं है। हमें अपनी व्यवस्था के अच्छे पक्ष को अपनाना है जिसकी काफी मात्रा है, चाहे जहां आवश्यक हो वहां भिन्न तरीके से कार्य करें। भारतीय रिज़र्व बैंक ने हमेशा अपने कार्य में बदलाव किया है जब भी जरूरत हुई है, हाल के जुनून का अनुसरण नहीं कर रहा हैं बल्कि वही कर रहा है जो आवश्यक है। मैं रिज़र्व बैंक के अपने उत्कृष्ट सहकर्मियों, वरिष्ठ प्रबंधन के साथ कार्य करने का इच्छुक हूं जिन्होंने हमारे द्वारा अपेक्षित बदलाव को हासिल करने के लिए इस परिचर्चा में प्रतिनिधित्व किया है।

अंततः एक व्यक्तिगत नोटः केंद्रीय बैंक के गवर्नर के लिए आने वाला कोई भी व्यक्ति संभवतः अपनी लोकप्रियता के चरमोत्कर्ष पर कार्य शुरू करता है। मेरे द्वारा किए जाने वाले कुछ कार्य लोकप्रिय नहीं होंगे। केंद्रीय बैंक के गवर्नर का कार्यभार वोट प्राप्त करने या फेसबुक लाइक प्राप्त करने के लिए नहीं है। मुझे आशा है कि मैं ठीक ही करुंगा, इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसकी आलोचना होगी, आलोचना से भी सिखने के लिए रुडयार्ड किपलिंग ने इसे बेहतर रूप से प्रस्तुत किया है जब उन्होंने अपनी कविता “इफ” में आदर्श केंद्रीय बैंकर की आवश्कताओं पर चिंतन किया:

जब सभी व्यक्ति आप पर संदेह करते हैं तो क्या आप अपने आप पर विश्वास कर सकते हैं, किंतु उन्हें भी संदेह करने दो:

“व्यक्ति” के लिए किपलिंग का संदर्भ केवल इन पंक्तियों में है, किंतु उनके शब्द स्पष्ट हैं।

हम विस्तृत से उन मुद्दों पर विचार करेंगे जो हमने संक्षेप में घोषित किया है, और इसके बाद सुधारों की व्यापक रूपरेखा तैयार करेंगे। उचित अधिसूचनाएं शीघ्र ही जारी की जाएंगी। चूंकि इस पर कार्य चल रहा है, इसलिए हम मध्य तिमाही नीति वक्तव्य को तैयार करने का कार्य करेंगे।

सबीता बाडकर
सहायक प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/493

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