विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य
7 दिसंबर 2022 विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य यह वक्तव्य (i) विनियमन और पर्यवेक्षण; (ii) भुगतान और निपटान प्रणाली; और (iii) वित्तीय बाजार से संबंधित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीति उपायों को निर्धारित करता है। I. विनियमन और पर्यवेक्षण 1. परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) श्रेणी में एसएलआर धारिताएं भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 सितंबर 2020 को या उसके बाद से 31 मार्च 2023 तक अर्जित सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) पात्र प्रतिभूतियों के संबंध में परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) श्रेणी के अंतर्गत शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) की सीमा को 19.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 23 प्रतिशत कर दिया था। एचटीएम सीमा में वृद्धि की यह छूट 31 मार्च 2023 तक उपलब्ध कराई गई थी। बैंकों को अपने निवेश संविभाग को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में सक्षम बनाने की दृष्टि से, यह निर्णय लिया गया है कि 23 प्रतिशत की बढ़ी हुई एचटीएम सीमा को 31 मार्च 2024 तक बढ़ाया जाए और बैंकों को बढ़ी हुई एचटीएम सीमा में 1 सितंबर 2020 और 31 मार्च 2024 के बीच अर्जित प्रतिभूतियों को शामिल करने की अनुमति दी जाए। 30 जून 2024 को समाप्त तिमाही से चरणबद्ध तरीके से एचटीएम की सीमा 23 प्रतिशत से 19.5 प्रतिशत तक बहाल की जाएगी। II. भुगतान और निपटान प्रणाली 2. एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) में वृद्धि - एकल-ब्लॉक-और-बहु-डेबिट के साथ प्रसंस्करण अधिदेश एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) व्यक्ति से व्यक्ति (पी2पी) और व्यक्ति से व्यापारी (पी2एम) लेनदेनों के लिए एक लोकप्रिय खुदरा भुगतान प्रणाली के रूप में उभरा है। यूपीआई में ऐसी विशेषताएं हैं जो आवर्ती लेनदेनों और एकल-ब्लॉक-और-एकल-डेबिट कार्यात्मकता के लिए अधिदेशों के प्रसंस्करण को सक्षम बनाती हैं। परिणामस्वरूप, प्रत्येक माह यूपीआई की ब्लॉक सुविधा का उपयोग करके लगभग 70 लाख स्वभुगतान अधिदेशों को संचालित किया जाता है और आधे से अधिक प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ) आवेदनों को प्रसंस्कृत किया जाता है। ग्राहक को विशिष्ट उद्देश्यों के लिए अपने बैंक खाते में धनराशि अवरुद्ध करके, जिसे आवश्यकतानुसार डेबिट किया जा सकता हो, एक व्यापारी के लिए भुगतान अधिदेश तैयार करने में सक्षम बनाकर यूपीआई की क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है। यह होटल बुकिंग, द्वितीयक पूंजी बाजार में प्रतिभूतियों की खरीद के साथ-साथ आरबीआई की रिटेल डायरेक्ट योजना का उपयोग करके सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद, ई-कॉमर्स लेन-देन आदि में सहायक होगा। यह लेन-देन में उच्च स्तर का विश्वास उत्पन्न करेगा क्योंकि व्यापारी समय पर भुगतान के लिए आश्वासित होंगे, जबकि वस्तु या सेवाओं की वास्तविक सुपुर्दगी तक ग्राहक के खाते में धनराशि बनी रहेगी। अतः, यूपीआई में एकल-ब्लॉक-और-बहु डेबिट कार्यात्मकता शुरू करने का निर्णय लिया गया है, जो ई-कॉमर्स क्षेत्र में भुगतान और प्रतिभूतियों में निवेश को आसान बनाएगा। शीघ्र ही एनपीसीआई को अलग से निर्देश जारी किए जाएंगे। 3. सभी भुगतान और संग्रहण को शामिल करने के लिए भारत बिल भुगतान प्रणाली (बीबीपीएस) के दायरे का विस्तार करना भारत बिल भुगतान प्रणाली (बीबीपीएस), एनपीसीआई भारत बिलपे लिमिटेड (एनबीबीएल) द्वारा संचालित एक इंटरऑपरेबल प्लेटफॉर्म है, जो उपभोक्ताओं और बिलर्स की बिल भुगतान आवश्यकताओं को समान रूप से सुविधाजनक बनाता है। वर्ष 2017 में इसकी शुरुआत के बाद से, भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर, इस प्लेटफ़ॉर्म में विभिन्न सुधारों की घोषणा की है, यथा आवर्ती बिल जुटाने वाले बिलर्स की सभी श्रेणियों को शामिल करना, आवक सीमापारीय बिल भुगतान की सुविधा, परिचालन इकाइयों (बीबीपीओयू) के लिए पात्रता मानदंड को कम करना, आदि। इस स्तर पर संचालित किए जाने वाले लेन-देन की मात्रा और मूल्य में लगातार वृद्धि हो रही है। तथापि, बीबीपीएस वर्तमान में गैर-आवर्ती भुगतान या व्यक्तियों की संग्रहण आवश्यकताओं के लिए सक्षम नहीं है, भले ही वे आवर्ती प्रकृति के हों। परिणामस्वरूप, भुगतान/ संग्रहण की कुछ श्रेणियां बीबीपीएस के दायरे से बाहर रहती हैं, यथा पेशेवर सेवा शुल्क भुगतान, शिक्षा शुल्क, कर भुगतान, किराया संग्रहण, आदि। अतः, बीबीपीएस के दायरे का विस्तार करने का निर्णय लिया गया है ताकि आवर्ती और अनावर्ती दोनों प्रकृति की भुगतान और संग्रहण की सभी श्रेणियां को शामिल किया जा सके। इससे यह मंच व्यक्तियों और व्यवसायों के व्यापक समूह के लिए सुलभ होगा जो पारदर्शी और समान भुगतान अनुभव, निधियों तक तेज़ पहुंच और बेहतर दक्षता से लाभान्वित हो सकते हैं। इस संबंध में एनबीबीएल को अलग से दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। III. वित्तीय बाजार 4. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी) में स्वर्ण कीमत जोखिम की हेजिंग भारत में निवासी संस्थाओं को वर्तमान में समुद्रपारीय बाजारों में स्वर्ण की कीमत के जोखिम के प्रति अपने एक्सपोजर को हेज करने की अनुमति नहीं है। इन संस्थाओं को अपने स्वर्ण एक्सपोजर के कीमत जोखिम को कुशलतापूर्वक हेज करने हेतु अधिक लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से, यह निर्णय लिया गया है कि निवासी संस्थाओं को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफ़एससी) में मान्यता प्राप्त विनिमयों पर अपने स्वर्ण की कीमत के जोखिम को हेज करने की अनुमति दी जाए। संबंधित निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1321 |