विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतियों से संबंधित वक्तव्य - फरवरी 2018 - आरबीआई - Reserve Bank of India
विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतियों से संबंधित वक्तव्य - फरवरी 2018
7 फरवरी 2018 विकासात्मक एवं विनियामकीय नीतियों से संबंधित वक्तव्य - फरवरी 2018 वस्तु एवं सेवा कर के तहत पंजीकृत एमएसएमई उधारकर्ताओं के लिए राहत 1. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत पंजीकरण के माध्यम से कारोबार को औपचारिक रूप प्रदान करने का अपेक्षाकृत छोटी संस्थाओं के नकदी प्रवाह पर परिवर्तन काल में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिसके कारण बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के प्रति उनके पुनर्भुक्तान संबंधी दायित्वों को पूरा करने में कठिनाई हुई। औपचारिक कारोबारी माहौल में उनके परिवर्तन को सहारा प्रदान करने वाले उपाय के रूप में यह निर्णय लिया गया है कि जीएसटी के तहत पंजीकृत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई), जो 31 अगस्त 2017 की स्थिति के अनुसार मानक रूप में थे, और जिनके संबंध में बैंकों और एनबीएफसी का समग्र एक्सपोजर 31 जनवरी 2018 की स्थिति में ₹ 250 मिलियन से अधिक नहीं होता है उनको 1 सितंबर 2017 की स्थिति के अनुसार बकाया राशि तथा 1 सितंबर 2017 और 31 जनवरी 2018 के बीच बकाया भुगतानों की अदायगी उनकी अदायगी की मूल नीयत तारीख से 180 दिनों तक किए जाने हेतु बैंकों तथा एनबीएफसी द्वारा आस्ति गुणवत्ता का दरजा घटाए बगैर करने की अनुमति दी जाए। विस्तृत अनुदेश आज जारी किए किए गए हैं। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के तहत एमएसएमई (सेवाओं) के संबंध में ऋण सीमाओं को हटाया जाना 2. विभिन्न हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के आलोक में तथा हमारी अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र के बढ़ते महत्व के अनुरूप यह निर्णय लिया गया है कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के तहत वर्गीकरण के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (सेवाओं) पर प्रति उधारकर्ता प्रयोज्य क्रमश: ₹ 50 मिलियन और ₹ 100 मिलियन की ऋण सीमा को समाप्त किया जाए। तदनुसार, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 के तहत उपकरण में निवेश के अंतर्गत परिभाषित सेवाएं उपलब्ध कराने/सेवाएं देने वाले एमएसएमई सभी बैंक ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्राप्त करने के लिए अर्ह होंगे, जिसमें ऋण की कोई सीमा निर्धारित नहीं होगी। 20 या अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों के लिए लघु एवं सीमांत किसानों और सूक्ष्म उद्यमों से संबंधित उप-लक्ष्यों की प्रयोज्यता 3. बैंकों के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण प्रदान करने के संबंध में समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए अप्रैल 2015 में यह निर्धारित किया गया कि 2018 के बाद (अर्थात, दिशानिर्देश जारी किए जाने के तीन वर्षों के बाद) लघु एवं सीमांत किसानों तथा सूक्ष्म उद्यमों को ऋण प्रदान करने के उप-लक्ष्य 20 या अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों पर भी लागू किए जाएंगे। यह निर्णय लिया गया है कि समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) या बैलेंस शीट से इतर एक्सपोजर के तुल्य ऋण राशि (सीईओबीई), जो भी अधिक हो, के 8 प्रतिशत तुल्य ऋण लघु एवं सीमांत किसानों को प्रदान करने का उप-लक्ष्य 20 या अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों पर वित्तीय वर्ष 2018-19 से लागू किया जाएगा। इसके अलावा, देश के सूक्ष्म उद्यमों को एएनबीसी या सीईओबीई के 7.50 प्रतिशत, जो भी अधिक हो, के तुल्य ऋण प्रदान करने का उप-लक्ष्य भी 20 या अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों पर वित्तीय वर्ष 2018-19 से लागू किया जाएगा। बेंचमार्क दर कार्यप्रणाली को सुसंगत बनाना 4. रिज़र्व बैंक ने बेस दर आधारित व्यवस्था की कमियों को समझते हुए सीमांत निधि-लागत आधारित उधार दर (एमसीएलआर) प्रणाली का श्रीगणेश किया जो 01 अप्रैल 2016 से लागू हुई। जब एमसीएलआर प्रणाली लाई गई तो आशा यह की जा रही थी कि मौजूदा बेस दर आधारित ऋण जोखिम एमसीएलआर प्रणाली के अंतर्गत आ जाएगा। फिर भी, यह देखा जा रहा है कि रिज़र्व बैंक द्वारा पहले के मौद्रिक नीति वक्तव्यों में इस संबंध में चिंता व्यक्त किए जाने के बाद भी बैंक ऋण का एक बड़ा हिस्सा अभी भी बेस दर से जुड़ा हुआ है। चूंकि एमसीएलआर नीतिगत संकेतों के प्रति अधिक संवेदनशील है, अत: बेंचमार्क दरें निर्धारित करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए इसे बेस दर से जोड़ने का निर्णय लिया गया जो 01 अप्रैल 2018 से प्रभावी होगा। इस संबंध में आवश्यक अनुदेश आगामी सप्ताह के अंत तक जारी कर दिए जाएंगे। रेपो संबंधी समग्र दिशानिर्देश 5. वर्तमान में रिज़र्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और कॉर्पोरेट ऋणों के लिए रिपो संबंधी दिशानिर्देश अलग-अलग जारी किए जाते हैं। इन दिशानिर्देशों में, अन्य बातों के साथ-साथ, रिपो लेनदेन के लिए अधिकृत इकाइयों और संपार्श्विक के तौर पर उपयोग में लाए जाने वाले कॉर्पोरेट बॉण्डों की न्यूनतम क्रेडिट रेटिंग को निर्दिष्ट किया जाता है। भिन्न–भिन्न प्रकार के संपार्श्विकों से संबंधित विनियमों को आसान बनाने तथा बेहतर सहभागिता, विशेष रूप से कॉर्पोरेट कर्ज रिपो के लिए, सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रिपो दिशानिर्देशों को सरल और आसान बनाये जाने का प्रस्ताव है। इस माह के अंत तक संशोधित दिशानिर्देश जारी कर दिए जाएंगे। देश में फॉरेक्स हेजिंग के लिए अनिवासियों को अभिगम सहूलियत 6. अनिवासियों को अपने चालू और पूंजी खाते में लेनदेन से पैदा होने वाले भारतीय रुपया मुद्रा जोखिम की हेजिंग के लिए अभिगम को हेजिंग हेतु अनुमति प्राप्त जोखिमों के प्रकार और प्रयुक्त होने वालों लिखतों से सीमित रखा गया है। ऐसे अनिवासियों को अपनी हेजिंग आवश्कताओं, मसाला बॉन्ड जोखिमों सहित, के लिए देश के बाजार में अभिगम को सहज करने की दृष्टि से अब यह प्रस्ताव किया जाता है कि किसी भी अनुमत लिखत का प्रयोग करते हुए उन्हें देश में अपने करेन्सी और ब्याज दर जोखिमों को डायनामिकली हेज़ करने की अनुमति दी जाए। फेमा विनियमों में भारत सरकार द्वारा आवश्यक परिवर्तनों को अधिसूचित किए जाने के बाद उपरोक्त अनुमति के लिए परिपत्र जारी किया जाएगा। एक्सचेंज ट्रेडेट करेन्सी डेरिवेटिव्स (ईटीसीडी) के लिए सीमाओं में संशोधन 7. वर्तमान में अन्तर्निहित जोखिम का प्रमाण स्थापित किए बिना ही प्रयोक्ता एक्सचेन्ज ट्रेडेट करेन्सी डेरिवेटि में यूएसडी-आईएनआर के लिए प्रत्येक एक्सचेन्ज में 15 मिलियन यूएसडी तक पोजिशन ले सकते हैं। पिछली बार मार्च 2015 में इस सीमा की समीक्षा की गई थी। रिज़र्व बैंक ने एक्सचेन्जों में आईएनआई वाले करेन्सी ऑप्शन कॉन्ट्रेक्टों की शुरूआत के लिए बाद में अनुमति दी। एक्सचेन्ज ट्रेडेट करेन्सी डेरिवेटिव्स में और सहभागिता को प्रोत्साहन देने के प्रयोजन से अब यह प्रस्ताव किया जाता है कि सभी विदेशी मुद्रा-आईएनआर युग्मों के लिए इन पोजिशन-सीमाओं को समामेलन कर दिया जाए और सभी एक्सजेंच ट्रेडेट करेन्सी डेरिवेटिव्स के संबंध में सभी एक्सचेंज में संयुक्त रूप से प्रत्येक प्रयोक्ता (निवासी और अनिवासी दोनों) के लिए यूएसडी 100 मिलियन की एकल सीमा प्रदान की जाए। इस माह के अंत तक इस बारे में परिपत्र जारी कर दिया जाएगा। एफबीआईएल द्वारा सरकारी प्रतिभूति बेंचमार्क और विदेशी मुद्रा संदर्भ दर को नियंत्रण में लेना 8. फाइनैंशियल बेंचमार्क इंडिया प्रा. लिमिटेड (एफबीआईएल) को वित्तीय बेंचमार्क समिति की सिफारिशों के अनुसार वर्ष 2014 में निगमित किया गया था। एफबीआईएल ने अब तक मुंबई अंतर-बैंक आउटराइट दर (एमआईबीओआर) जैसी मौजूदा दर तथा ऑप्शन अस्थिरता को अपने नियंत्रण में लिया है तथा बाजार रेपो ओवरनाइट दर (एमआरओआर), जमा प्रमाण-पत्र (सीडी) तथा टी-बिल प्रतिफल वक्र जैसी नई बेंचमार्क शुरू की हैं। मूल्यांकन बेंचमार्क सहित सभी वित्तीय बाजार बेंचमार्कों के संचालन के लिए स्वतंत्र संस्था के रूप में एफबीआईएल का विकास इन बेंचमार्कों की विश्वसनीयता और वित्तीय बाजारों की सत्यनिष्ठा के लिए महत्वपूर्ण है। तदनुसार, यह प्रस्तावित है कि (i) एफबीआईएल सरकारी प्रतिभूतियों (केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जारी) के मूल्यांकन को मानकीकृत करने की जिम्मेदारी लेगा जिन्हें वर्तमान में फिम्डा द्वारा किया जा रहा है तथा (ii) एफबीआईएल स्पोट यूएसडी/आईएनआर तथा रुपया की तुलना में अन्य प्रमुख मुद्राओं के लिए दैनिक ‘संदर्भ दर’ के परिकलन और प्रसार की जिम्मेदारी भी लेगा जिसे वर्तमान में रिज़र्व बैंक द्वारा किया जा रहा है। इन दो कार्यों के कार्यान्वयन के लिए प्रभावी तारीखों को एफबीआईएल और रिज़र्व बैंक द्वारा दर्शाया जाएगा। गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के ग्राहकों के लिए लोकपाल योजना 9. गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) के ग्राहकों को लागत मुक्त और तीव्र शिकायत समाधान तंत्र उपलब्ध कराने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के लिए लोकपाल योजना शुरू की जाए। इस योजना में सभी जमा स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों और एक बिलियन रुपए या इससे अधिक के परिसंपत्ति आकार वाले ग्राहक इंटरफेस वाली कंपनियों को कवर किया जाएगा। शुरुआत में, यह योजना जमा स्वीकार करने वाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए इस महीने के अंत तक परिचालित की जाएगी। मुद्रा प्रबंध प्रणाली की समीक्षा 10. जैसाकि 4 अक्तूबर 2016 को चौथे द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में घोषित किया गया, रिज़र्व बैंक ने खजाने के स्थानांतरण की सुरक्षा सहित मुद्रा प्रबंधन के पूरे पहलुओं की समीक्षा के लिए दो उच्च स्तरीय अंतर-एजेंसी समितियों का गठन किया है। रिजर्व बैंक ने सरकार के साथ परामर्श से, चार मुद्रा प्रेसों जिनमें से दो रिजर्व बैंक की सहायक कंपनी द्वारा और दो सरकार की एक इकाई द्वारा चलाई जाती हैं, के एक बाहरी समूह द्वारा एक लेखापरीक्षा की व्यवस्था की है, ताकि नोट मुद्रण प्रक्रियाओं, कच्चे माल की खरीद, गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रियाओं, सुरक्षा आदि को मानकीकृत किया जा सके। नौ महीने के भीतर उपरोक्त समितियों की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक कार्यबल का गठन किया जा रहा है। मुद्रा वितरण और विनिमय योजना की समीक्षा (सीडीईएस) 11. बैंकों के मुद्रा संचालन में प्रौद्योगिकीय अवशोषण को प्रोत्साहित करने और बेहतर ग्राहक सेवा प्रदान करने के लिए, विभिन्न मशीनों की स्थापना के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर प्रोत्साहन प्रदान किए गए है। यह देखा गया है कि इस उद्देश्य को काफी हद तक हासिल भी किया गया है। कम नकदी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, प्रोत्साहन योजनाओं की समीक्षा की गई है और नकदी पुनर्चक्रण मशीन (सीआरएम) और स्वचालित टेलर मशीन (एटीएम) की स्थापना के लिए प्रोत्साहनों को बंद करने का निर्णय लिया गया है। जोस जे. कट्टूर प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/2147 |