रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन एसएस(डीइएपी) : 2/2010 विषय भारत में मौद्रिक नीति व्यवहार : टेलर-टाइप नीति ढाँचे से साक्ष्य
2 जून 2010 रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन एसएस(डीइएपी) : 2/2010 विषय भारत में मौद्रिक नीति व्यवहार : टेलर-टाइप नीति ढाँचे से साक्ष्य भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन एसएस(डीइएपी) : 2/2010 विषय "भारत में मौद्रिक नीति व्यवहार : टेलर-टाइप नीति ढाँचे से साक्ष्य " जारी किया। भुपाल सिंह द्वारा लिखित स्टाफ अध्ययन टेलर नियम के ढाँचे में मुद्रास्फीति और उत्पादन अंतर के लिए भारत में मौद्रिक नीति कार्रवाईयों की जाँच करता है। वर्ष 1993 में जॉन बी.टेलर द्वारा प्रस्तावित टेलर नियम एक मौद्रिक नीति नियम है जो यह निर्धारित करता है कि केंद्रीय बैंक को लक्ष्य मुद्रास्फीति दरों से वास्तविक मुद्रास्फीति दरों और संभाव्य उत्पादन से वास्तविक उत्पादन की भिन्नता की प्रतिक्रिया में नामांकित ब्याज दर में कितना परिवर्तन करना चाहिए। टेलर नियम पर मौद्रिक नीति की चर्चा का अधिकतम भाग मौद्रिक नीति को कैसे आयोजित किया जाए और नियम आधारित मानदण्डों से वास्तविक नीति आयोजन कितना भिन्न होता है इससे संबंधित है। 2000 के शुरू की मंदी के बाद विश्व भर में समायोजनीय मौद्रिक नीति के कारण काफी समय से टेलर नियम का उल्लंघन होता है। संदर्भ के अनुसार इस अध्ययन की प्रमुख प्रेरणा भारत में मौद्रिक नीति भार में परिवर्तन को समझ जाता है जो मौद्रिक नीति के प्रमुख उद्देश्य मुद्रास्फीति और उत्पादन में अंतर से संबंधित है। यह अध्ययन भारत में सरल मौद्रिक नीति नियमों द्वारा सुझाए गए ब्याज दर मार्ग की जाँच करता है। ऐसे नियमों का महत्त्व यह है कि नियम आधारित मौद्रिक नीति क्या सुझाव देती है इसका मूल्यांकन नीतिकर्ताओं को निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन दे सकता है। कार्रवाई की कार्यपद्धति का आकलन सामान्य न्यूनतम समान अथवा पिछे की ओर जाने वाले कार्यों के लिए लिखतों के उतार-चढ़ाव का प्रयोग करके किया गया है और आगे की ओर जाने वाले नियमों के लिए गति की सामान्यकृत पद्धति से किया गया है जैसे कि मानक अनुभवमूलक साहित्य की प्रथा है। इसके अलावा यह अध्ययन उत्पादन अंतर, मुद्रास्फीति अंतर और नीति ब्याज दर के साथ एक ढाँचागत वीएआर मॉडल में भारत में मौद्रिक दृष्टिकोण का भी मूल्यांकन करता है। ढाँचागत वीएआर मॉडल का प्रयोग स्थायी मॉडलों से उभरे निष्कर्षों की जानकारी देने के लिए किया गया है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भारत में टेलर नियम के लिए आकलन किए गए कई मॉडल यह सुझाव देते हैं कि जबकि मौद्रिक नीति वर्ष 1950-51 से 1987-88 की अवधि के दौरान मुद्रास्फीति अंतर से उत्पादन अंतर के लिए अधिक उत्तरदायी दिखाई दी, वर्ष 1988-89-2008-09 की अवधि के दौरान उत्पादन अंतर से मुद्रास्फीति अंतर में तेज़ कार्रवाई के साथ नीति कार्रवाई में परिवर्तन हुआ । इसके बाद की अवधि में मुद्रास्फीाति अंतर का मौद्रिक नीति की अनुपातिक से अधिक कार्रवाई के सबूत भी मिले है। कुछ समय से मुद्रास्फीति अंतर की सक्षमता की मात्रा में भी वृद्धि हुई है जो यह सुझाव देते हैं कि मौद्रिक नीति का मुद्रासफीति चिंताओं की ओर अधिक झुकाव रहा है। केंद्रीय बैंक का ब्याज दर को सरल बनाने के व्यवहार में महत्त्वपूर्ण अंतर है। शुरू की अवधि में अल्पावधि ब्याज दरों को व्यापक रूप से सरल बनाने का टेलर नियम द्वारा सुझाए गए दरों से बाद की अवधि में धीरे-धीरे अल्पावधि ब्याज दरों की ओर जाना था। यह आर्थिक वातावरण और नीति दरों में अंतरण से घिरी अनिश्चितताओं के कारण केंद्रीय बैंक की सीमित कार्रवाई के अनुरूप है। ढाँचागत वीएआर रूपरेखा से आकलन निश्चित तौर पर यह भी दर्शाते है कि अल्पावधि ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव अधिकतर उत्पादन अंतर के बजाए मुद्रासफीति अंतर के कारण होता है। जी. रघुराज उप महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1627 |