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मौद्रिक नीति 2009-10 की तीसरी तिमाही समीक्षा : गवर्नर, डॉ. डी.सुब्बाराव का प्रेस वक्तव्य

29 जनवरी 2010

मौद्रिक नीति 2009-10 की तीसरी तिमाही समीक्षा :
गवर्नर, डॉ. डी.सुब्बाराव का प्रेस वक्तव्य

"आज सुबह प्रमुख बैंकों के प्रधानों के साथ मेरी एक बैठक हुई जहाँ हमने भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा जारी की और उस पर चर्चा की। समष्टि आर्थिक स्थिति का एक पूर्वावलोकन और भारतीय रिज़र्व बैंक की नीति के रुझान के बारे में बताने से पहले मैं बैंकों की प्रतिक्रिया पर कुछ कहूँगा।

रिज़र्व बैंक के नीति रुझान का बैंकों ने आम तौर पर स्वागत किया है। उन्होंने इंगित किया है कि रिज़र्व बैंक ने जिन मौद्रिक उपायों की घोषणा की है उनसे उधार दरों पर तुरंत ही कोई दबाव नहीं पड़ेगा। मौद्रिक नीति के अलावा, (i) ऋण वृद्धि एवं मौद्रिक प्रेषण; (ii) सरकार के बाज़ार उधारी कार्यक्रम; (iii) बुनियादी संरचना का वित्तपोषण; तथा (iv) वित्तीय समावेशन जैसे विशिष्ट मसलों पर विचार-विमर्श केंद्रित रहा। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भविष्य में अपने उधारी परिचालनों को बनाए रखने के लिए उन्हें अपनी पूँजी में विस्तार करने की आवश्यकता है। बैंकों ने संकेत दिया कि रिज़र्व बैंक ने पहले जे मौद्रिक नरमी दिखाई थी उसके प्रत्युत्तर में उन्होंने अपनी उधार दरों को कम किया है। इसके फलस्वरूप, उनके निवल ब्याज मार्जिन पर दबाव पड़ा है। गैर-निष्पादक अस्तियों (एनपीए) में, विशेष रूप से, पुनर्गठित आस्तियों, में वृद्धि होने की संभावना है। उनके अनुसार, यदि अगले वर्ष सरकारी उधार काफी अधिक होंगे तो संसाधनों और ब्याज दरों पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि ऋण में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है। बैंक मूलभूत संरचना क्षेत्र के प्रति बढ़ते हुए अपने जोखिम के प्रति चिंतित हैं और उनका सुझाव है कि सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक अपने तुलन पत्रों में आस्ति देयता असमानता और जोखिम की समस्या के समाधान के लिए नीतिगत हस्तक्षेप करें। अंत में बैंकों ने रिज़र्व बैंक को आश्वासन दिया कि वे वित्तीय समावेशन में अपनी सहभागिता के लिए प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने बताया कि वे बैंक रहित क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं के विस्तार के लिए काम कर रहे हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था

वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता के वृद्धिशील लक्षण परिलक्षित हैं जबकि एशियाई क्षेत्र में तुलनात्मक रूप में अधिक मज़बूती से उछाल आया है। 2009 की तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान वैश्विक आर्थिक निष्पादन में सुधार हुआ है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) को 2009 में आर्थिक संकुचन की पूर्वानुमानित दर, अक्तूबर 2009 में 1.1 प्रतिशत से कम करके जनवरी 2010 में 0.8 प्रतिशत करने का आधार मिला है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक विकास की दर में, 2010 के लिए 3.1 प्रतिशत से संशोधित करके 3.9 प्रतिशत का, भी पूर्वानुमान किया है। तथापि कई महत्वपूर्ण जोखिम बने हुए हैं : (i) कई अर्थव्यवस्थाओं में सरकारी व्यय के कारण ही सुधार हुआ है, (ii) वैश्विक चलनिधि के ऊँचे स्तर के कारण वस्तुओं और आस्तियों के मूल्य में वृद्धि हुई है तथा (iii) उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाएँ (ईएमई) जिनमें विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में तेजी से सुधार हुए हैं, के समक्ष बढ़ती हुई मुद्रास्फीति का दबाव आ सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

विकास

भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी हद तक लचीलापन दिखाई देता है क्योंकि 2009-10 की दूसरी तिमाही के दौरान, अपेक्षा से बेहतर, 7.9 प्रतिशत, विकास दर्ज हुआ है। परवर्ती आंकड़ों से इस मूल्यांकन की पुष्टि होती है कि अर्थव्यवस्था में निरन्तर सुधार हो रहे हैं हालांकि सरकारी व्यय अभी भी अहम मुद्दा बना हुआ है तथा विभिन्न क्षेत्रों में निष्पादन अनियमित है तथा यह संकेत मिलते हैं कि सुधारों को पर्याप्त रूप से व्यापक आधारित बनाया जाना है।

अक्तूबर 2009 की दूसरी तिमाही समीक्षा में, हमने 2009-10 के लिए सकल घरेलू उत्पाद में विकास के लिए न्यूनतम पूर्वानुमान 6 प्रतिशत रखा था जो इससे अधिक हो सकता था। संपदा क्षेत्र की गतिविधि के अद्यतन संकेतकों में हलचल से बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं। यह मानते हुए कि कृषि उत्पादन में लगभग शून्य वृद्धि होगी तथा औद्योगिक उत्पादन तथा सेवा क्षेत्र गतिविधि में लगातार सुधार होगा 2009-10 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के न्यूनतम पूर्वानुमान को बढ़ा कर अब 7.5 प्रतिशत कर दिया गया है।

2010-11 के आगे के महौल को देखते हुए बेसलाइन परिदृश्य हेतु हमारा आरंभिक मूल्यांकन है कि वर्तमान वृद्धि दर बनी रहेगी। 2010-11 में वृद्धि संभावनाओं के बारे में हम अप्रैल 2010 में औपचारिक रूप से इंगित करेंगे।

मुद्रास्फीति

कुछ महीनों से, खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति चिंता का विषय है ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों का प्रभाव अन्य पण्यों तथा सेवाओं पर पड़ना शुरू हो रहा है।अक्तूबर 2009 की समीक्षा में मार्च 2010 को समाप्त होने वाली तिमाही हेतु थोक मूल्य सूचंकांक को ऊपरी स्तर के स्तर पर रखते हुए 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना व्यक्त की गई थी। खराब मानसून के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें उच्च स्तर पर रहने के उच्च जोखिम को पहले ही ध्यान में ले लिया गया था। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की ऊंची कीमत तथा फसलों के मौसम में खाद्य पदार्थों की कीमत में आने वाली अपेक्षित नरमी के न आने जैसे कारकों के दबाब ने भी कीमतों को ऊंचे स्तर पर बनाए रखा। मार्च 2010 को समाप्त होने वाली तिमाही के लिए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के बेसलाइन अनुमान को अब बढ़ाकर 8.5 प्रतिशत कर दिया गया है।

वृद्धि के मामले के अनुसार ही हम 2010-11 हेतु मुद्रास्फीति संभावनाओं की अपनी औपचारिक घोषणा अप्रैल 2010 में करेंगे। तथापि, यह मानते हुए कि मानसून सामान्य रहेगा तथा तेल की वैश्विक कीमतें वर्तमान स्तर के आसपास बनी रहेंगी, यह संभावना है कि जुलाई 2010 से मुद्रास्फीति में नरमी आएगी। मुद्रास्फीति में नरमी कई कारकों पर निर्भर करेगी, इन कारकों में स्थिति सामान्य करने की प्रक्रिया में रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए तथा किए जाने वाले उपाय भी शामिल हैं।

मुद्रा तथा ऋण

वर्तमान वित्तीय वर्ष में मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि इस वित्तीय वर्ष के शुरू के 20 प्रतिशत से कम होकर 15 जनवरी 2010 को 16.5 प्रतिशत के स्तर पर रह गई, यह बैंक ऋण की वृद्धि में आ रही गिरावट को प्रदर्शित करती है। अक्तूबर 2009 में खाद्येतर ऋण की वृद्धि वर्ष- दर-वर्ष आधार पर 10 प्रतिशत थी जो 2010 की मध्य जनवरी तक बढ़कर 14 प्रतिशत से अधिक हो गई है। निधियों के स्रोत हेतु कॉरपोरेट जगत की पहुंच बैंक से इतर स्रोतों तक भी बेहतर रही है जिससे काफी हद तक बैंक ऋण की वृद्धि में आ रही कमी के प्रभाव को कम करने में सहायता मिली है। 2009-10 हेतु निदर्शी समायोजित खाद्येतर ऋण वृद्धि को पहले के 18 प्रतिशत के अनुमान से घटाकर 16 प्रतिशत कर दिया गया है तथा 2009-10 हेतु एम3 की वृद्धि नीतिगत उद्देश्य हेतु पहले के 17 प्रतिशत के अनुमान से घटाकर 16.5 प्रतिशत कर दिया गया है।

वित्तीय बाज़ार

वित्तीय बाज़ार व्यवस्थित बने रहे एवं चूंकि चलनिधि स्थितियां आसान रहीं इसलिए एकदिवसीय (ओवरनाइट) मुद्रा बाज़ार दर चलनिधि समायोजन सुविधा दर कॉरीडोर के निचले दायरे के नीचे या इसके आसपास बनी रही। बड़ी मात्रा में लिए गए सरकारी उधार के बावजूद, ऋण की कम मांग, खुले बाज़ार परिचालन (ओएमओ) तथा रिज़र्व बैंक के सक्रिय चलनिधि प्रबंधन के चलते प्रतिफल दायरे में रहा। ईक्विटी बाज़ार का व्यवहार वैश्विक तरीके से सुसंगत है।

जोखिम कारक

आधारमूल परिदृष्य भले ही सुखद दिखाई देता है परंतु वृद्धि के लिए कम जोखिम एवं मुद्रास्फीति के लिए अधिक जोखिम को स्वीकरने की जरुरत है। इसमें निम्नलिखित बातें शामिल हैं : (i) वैश्विक समुत्थान की गति और आकार के बारे में संशय; (ii) तेल की कीमतों में उछाल, यदि वैश्विक वसूली अपेक्षा से अधिक मज़बूत हुई हो; (iii) वर्ष 2010 के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून में आयी अनिश्चितता; (iv) अर्थव्यवस्था द्वारा अवशोषण की क्षमता से ऊपर पूंजीगत प्रवाह में तीव्र वृद्धि जिससे विनिमय दर और मौद्रिक प्रबंधन में जटिलता तथा (v) मुद्रास्फीति अपेक्षाओं की प्रबलता हो सकती है यदि उत्पाद अंतराल को कम करने के लिए अधिक तत्परता बने रहने की अनुमति दी जाती है। इसके अतिरिक्त बड़े राजकोषीय घाटे से अल्पावधि आर्थक प्रबंधन तथा मध्यम अवधि के आर्थिक परिदृश्य दोनों पर बड़े जोखिम दिखाई देते हैं। जैसे जैसे समुत्थान में प्रगति होती जाती है यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि राजकोषीय एवं मौद्रिक निकासी में समन्वयन रहे। मौद्रिक समायोजना का निराकरण तब तक प्रभावी नहीं हो सकता है जब तक सरकारी उधारों को वापस न किया जाए। अतःयह अनिवार्य होगा कि सरकार राजकोषीय समेकन के रास्ते पर चले - जैसे प्रारंभ में अस्थायी घटकों को चरणबद्ध रूप में वापस लेना शुरु करे। इसके पश्चात, सरकार राजकोषीय समेकन के लिए खाका तैयार करें तथा कर नीतियों एवं व्यय दबाव के लिए वस्तृत निर्देश जारी करे जिससे खाता परिभाषित हो सकेगा।

मौद्रिक नीति रुझान

अक्तूबर 2009 की दूसरी तिमाही समीक्षा में रिज़र्व बैंक ने कुछ क्षेत्र विशेष की सुविधाओं को समाप्त करके तथा वाणिज्यिक बैंकों की सांविधिक चलनिधि अनुपात को संकट-पूर्व के स्तर पर लाकर विस्तृत मौद्रिक नीति से प्रथम चरण की निकासी को घोषित किया। वर्तमान वैश्विक तथा घरेलू व्यष्टि आर्थक हालातों के संभावित जोखिम की पृष्ठभूमि में हमारी नीति तीन निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातों के आधार पर तैयार की जाती है : (i) पहले, समुत्थान का समेकन स्पष्ट और सुनिश्चित रूप से हमें इस बात के लिए प्रोत्साहित करे कि हम अपनी स्थिति को, ‘संकट प्रबंधन’ से हटा कर ‘समुत्थान प्रबंधन’ पर लाएं तथा यह आवश्यक होगा कि इस पूरी प्रक्रिया को आगे निकासी तक ले जाएं, (ii) दूसरे, यद्यपि घरेलू व्यवस्था में मुद्रास्फीति दबाव आपूर्ति की तरफ से प्रबलता से संघर्ष करेगी, पर समुत्थान का समेकन इन दबावों के जोखिम को व्यापक मुद्रास्फीति प्रक्रिया द्वारा बढाएगा; तथा (iii)  तीसरे, सुदृढ़ प्रति मुद्रा स्फीति उपाय वसूली को क्षति पहुचाएंगे जबकि इसे अभी भी पूरी तरह से मजबूत होना है।

उक्त समग्र मूल्यांकन के आधार पर वर्ष 2009-10 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति की स्थिति निम्नानुसार रहेगी :

  • मौद्रिक अपेक्षाओं को स्थिर रखना तथा मुद्रास्फीति की प्रवृति पर चौकसी रखना। आवश्यकतानुसार नीति समायोजन के माध्यम से तत्परता एवं प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दर्शाना।

  • चलनिधि का सक्रियता से प्रबंध करना ताकि उत्पाद क्षेत्रों की ऋण मांग मूल्य स्थिरता के अनुकूल पर्याप्त रूप से पूरी हो सके।

  • मूल्य स्थिरता तथा वित्तीय स्थिरता के अनुकूल एवं वृद्धि प्रक्रिया के समर्थन में ब्याज दर वातावरण बताए रखना।

मौद्रिक नीति उपाय

हमारी तीसरी तिमाही समीक्षा में निम्नलिखित मौद्रिक उपायों का प्रस्ताव किया गया है :

  1. अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में दो चरणों में 75 आधार अंकों की वृद्धि करते हुए उसे निवल माँग और देयताओं (एनडीटीएल) के 5.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 5.75 प्रतिशत कर दिया गया है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप, प्रणाली में से 36,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त चलनिधि कम हो जाएगी।

  2. नीतिगत दरों, रिपो और रिवर्स दरों, में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

प्रत्याशित परिणाम

उपर्युक्त नीति से हमें उम्मीद है कि तीन निम्नलिखित परिणाम प्राप्त होंगे :

  1. अतिरिक्त चलनिधि में कमी होने से मुद्रास्फीति पर नियंत्रण लगेगा।

  2. मूल्य स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ही सुधार की प्रक्रिया को सहायता मिलेगी।

  3. निर्धारित बहिर्गमन से नीतिगत लिखतों तथा वर्तमान और अर्थव्यवस्था की उभरती स्थिति में सांमजस्य स्थापित होगा।

आगामी मार्ग

रिज़र्व बैंक स्थूल आर्थिक परिस्थितियों, विशेषकर मूल्य स्थिति, की कड़ाई से निगरानी जारी रखेगा और आवश्यकतानुसार आगे की कार्रवाई करेगा।"

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1052

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