मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा : डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर द्वारा प्रेस वक्तव्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा : डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर द्वारा प्रेस वक्तव्य
24 जनवरी 2012 मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा : 1. ''सबसे पहले तो मैं भारतीय रिज़र्व बैंक की तरफ से 2011-12 के लिए मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा में आपका सहर्ष स्वागत करता हूँ। 2. कुछ ही पहले हमने इस समीक्षा के साथ-साथ मौद्रिक नीति उपायों की घोषणा की थी। वर्तमान मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति के आकलन के आधार पर हमने निर्णय किया है कि :
3. नीतिगत ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है। तदनुसार चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रेपो दर 8.5 प्रतिशत ही रहेगी। 4. इसके परिणामस्वरूप, एलएएफ के तहत रिवर्स रेपो दर को 100 आधार अंक के अंतराल से रेपो दर से कम रखते हुए 7.5 प्रतिशत रखा जाएगा, और मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर को रेपो दर से ऊपर 100 आधार अंकों का अंतराल रखते हुए 9.5 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया है। नीतिगत कार्रवाई के पीछे विचारधारा 5. सीआरआर को घटाने का निर्णय लेने के तीन प्रधान विचार रहे।6. पहला यह कि विकास की गति कम हो रही है। यह कई कारकों के मिले जुले प्रभाव को प्रकट करता है : अनिश्चित वैश्विक परिवेश, विगत में मौद्रिक नीति में सख्ती का समग्र प्रभाव और स्वदेश में नीतिगत अनिश्चितता। यद्यपि मॉंग में बढ़ोतरी में कुछ कमी होना तो मंहगाई को काबू में रखने के लिए हमारे पूर्ववर्ती मौद्रिक नीति के क्रियाकलापों का अपेक्षित परिणाम था, पर इस समय विकास के लिए जोखिम बढ़ गया है। 7. दूसरे यह कि हेडलाइन डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति में तो नरमी आ रही है, जो मुख्य रूप से मौसमी खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट के कारण है। अन्य प्रमुख कारकों को देखें, खासकर प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों और गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पादों के संबंध में, मुद्रास्फीति ऊँची बनी हुई है। इसके अलावा, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों, रुपये के अवमूल्यन के स्थायी प्रभाव और राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम है। 8. हमारे निर्णय को प्रभावित करनेवाला तीसरा विचार यह है कि चलनिधि की स्थितियां रिज़र्व बैंक के लिए संतोषजनक दायरे के बाहर और तंगहाल ही रहीं। यद्यपि, रिज़र्व बैंक ने खुले बाज़ार परिचालन किए और ₹ 700 बिलियन से अधिक चलनिधि प्रणाली में डाल दी फिर भी संरचनात्मक घाटे में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो गई। इससे अर्थव्यवस्था के उत्पादक स्रोतों को मिलनेवाले ऋण प्रवाह पर असर हो सकता है। प्रणाली में भारी संरचनात्मक घाटे के होने से प्रणाली में स्थायी रूप से प्राथमिक चलनिधि डाली जाने की बात को ठोस आधार मिलता है। मौद्रिक नीति रुख 9. नीति दस्तावेज़ हमारे मौद्रिक नीति रुख के तीन स्थूल रूपों के बारे में बताते है। ये इस प्रकार हैं :
मार्गदर्शन 10. जैसाकि अब यह एक मानक प्रथा बन गई है, हमने भावी अवधि के लिए मार्गदर्शन भी दिया है। 11. रिज़र्व बैंक ने सीआरआर को कम करते हुए चलनिधि में होने वाले संरचनात्मक दबावों का समाधान करने का प्रयास इस तरह से किया है जो प्रचलित मौद्रिक रुख के अनुरूप नहीं है। हमारे पिछले दो मार्गदर्शनों में हमने उल्लेख किया था कि ब्याज वृद्धि चक्र चरम पर पहुँच चुका है और आगे की कार्रवाई इस चक्र को उलटने की हो सकती है। 12. इस तथ्य सहित कि प्रणाली में काफी दमित मुद्रास्फीति है अत:, वर्तमान मुद्रास्फीति वक्र रेखा के आधार पर नीतिगत दर कम करने की शुरूआत समय-पूर्व उपाय होगा। मुद्रास्फीति में समुचित नरमी के संकेतों से नीतिगत दर में कटौती को निर्धारित किया जाएगा। इसी तरह से निरंतर सख्त चलनिधि स्थितियों से ऋण प्रवाह में बाधा आ सकती है और साथ ही विकास के लिए जोखिम बढ़ सकते हैं। इस संदर्भ में देखें तो निर्धारित समयावधि के लिए चलनिधि को स्थायी रूप से डालने के लिए सीआरआर सर्वाधिक प्रभावी उपाय है। सीआरआर में कटौती को इस मार्गदर्शन को प्रबल करने के रूप में भी देखा जा सकता है कि ब्याज दर का चक्र उच्चतम हे और दरों में भावी कार्रवाई नीतिगत ब्याज दर को नीचे लाने के लिए होगी। 13. ऐसा कहने के बाद मुझे इस बात पर बल देना ही है कि भावी दर संबंधी कार्रवाईयों का समय और स्वरूप कई घटकों पर आधारित होगा। नीति और प्रशासनिक कार्रवाईयां महत्वपूर्ण हैं जो निवेश को बढ़ावा देती हैं जिससे खाद्यान्न और बुनियादी सुविधा की सहज आपूर्ति में सहायता होती है। श्रम बाज़ारों में कौशल के बेमेलपन को कम करने के उपायों से मज़दूरी पर होने वाले दबाव कम करने में सहायता मिलेगी। प्रत्याशित राजकोषीय गिरावट जो अधिकांश रूप से सरकार द्वारा किए गए उच्च स्तर के उपभोग व्यय से हुआ है, मुद्रास्फीति प्रबंध और अधिक व्यापक रूप में समष्टि आर्थिक स्थिरता दोनों के लिए प्रमुख खतरा है। अपेक्षित परिणाम 14. हमें आशा है कि आज की नीतिगत कार्रवाई और हमारे द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के निम्नलिखित तीन परिणाम होंगे : पहला, चलनिधि स्थितियां सहज होंगी दूसरा, विकास में गिरावट आने के जोखिम कम होंगे। अंतत:, कम और स्थिर मुद्रास्फीति की प्रामाणिक प्रतिबद्धता के आधार पर मध्यावधि मुद्रास्फीति अपेक्षाओं पर अंकुश रहेगा। वैश्विक और देशी गतिविधियॉं 15. हमारा नीति निर्णय वैश्विक और देशी समष्टि आर्थिक गतिविधियां दोनों के विस्तृत मूल्यांकन पर आधारित है। मैं वैश्विक अर्थव्यवस्था से प्रारंभ करता हूँ। वैश्विक अर्थव्यवस्था 16. रिज़र्व बैंक द्वारा अक्टूबर समीक्षा के बाद वैश्विक परिदृश्य में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। एक ओर यूरो क्षेत्र में सरकारी देनदारी की समस्या और बढ़ गई है। दूसरी ओर, अमरीका में सुधार के सीमित संकेत दिखाई दे रहे हैं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मंदी और पहले किए गए मौद्रिक नियंत्रण के प्रभाव को परिलक्षित करते हुए उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि कम हो रही है। 17. समग्र रूप में, अक्टूबर समीक्षा के बाद अमरीका में सुधार के संकेत होते हुए भी सार्वभौमिक वृद्धि की संभावनाएं कमज़ोर हुई हैं। पिछले वर्ष सितंबर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया था कि 2012 के दौरान वैश्विक वृद्धि 4 प्रतिशत होगी। अब हमें आशा है कि वह कम होगी। भारतीय अर्थव्यवस्था 18. देशी अर्थव्यवस्था को दखें तो वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि 2011-12 की पहली तिमाही के 7.7 प्रतिशत से कम होकर दूसरी तिमाही में 6.9 प्रतिशत हो गई। इसका मुख्य कारण था औद्योगि वृद्धि में मंदी जबकि सेवा स्रोत अपेक्षाकृत अच्छा रहा। सकल देशी उत्पाद वृद्धि पिछले वर्ष की पहली छमाही के 8.6 प्रतिशत से कम होकर 2011-12 की पहली छमाही में 7.3 प्रतिशत हो गई। 19. मांग पक्ष के संबंध में वृद्धि में हुई मंदी के पीछे जो मुख्य कारण रहा वह है दूसरी तिमाही में स्थिर पूँजी निर्माण में आया संकुचन। यदि ऐसा स्वरूप निरंतर बना रहा तो मध्यावधि वृद्धि संभावनाएं आहत होंगी, मुद्रास्फीतिकारी दबाव और बढेंगे और बाह्य तथा आंतरिक स्थिरता को खतरा होगा। 20. कमज़ोर औद्योगिक निष्पादन और मंद निवेश गतिविधि के लिए सार्वभौमिक परिवेश अंशत: ही जिम्मेदार है, इसके लिए कई देशी घटक जिम्मेदार हैं - हानिकारक राजकोषीय स्थिति, उच्च ब्याज दर और नीति तथा प्रशासनिक अनिश्चितता। 21. रिज़र्व बैंक ने अपनी अक्टूबर 2011 की समीक्षा में उल्लेखनीय नकारात्मक जोखिमों के बावजूद 2011-12 के लिए 7.6 प्रतिशत की सकल देशी उत्पाद वृद्धि का अनुमान लगाया था। इन नकारात्मक जोखिमों ने अब असर दिखाया है। तदनुसार, इस वर्ष के लिए सकल देशी उत्पाद वृद्धि के आधारभूत अनुमान को संशोधित करते हुए 7.6 प्रतिशत से कम करके 7.0 प्रतिशत किया गया है। 22. आगामी वर्ष को देखते हुए हम अप्रैल के अपने वार्षिक नीति वक्तव्य में औपचारिक अनुमान देंगे, इस समय रिज़र्व बैंक का आधारभूत परिदृश्य यह है कि अगले वर्ष वृद्धि इस वर्ष से थोड़ी-सी अधिक होने के साथ सीमित सुधार दिखाई देगा। मुद्रास्फीति 23. अब मैं मुद्रास्फीति पर आता हूँ। रुपए में उल्लेखनीय मूल्यह्रास के बावजूद जैसे अनुमान लगाया था वैसे मुद्रास्फीति नियंत्रित होने की शुरूआत हो गई है। प्रमुख (हेडलाइन) थोक मूल्य सूचकांक जो अप्रैल-अक्टूबर 2011 के दौरान औसतन 9.7 प्रतिशत (साल-दर-साल) थी, नवंबर में कम होकर 9.1 प्रतिशत हो गई और दिसंबर में 7.5 प्रतिशत पर आ गई। 24. खाद्य मुद्रास्फीति में अपेक्षा से अधिक गिरावट से कुछ राहत मिली है। विशेष रूप से, खाद्य पदार्थ मुद्रास्फीति नवंबर में 8.5 प्रतिशत से दिसंबर में 0.7 प्रतिशत तक तेजी से नीचे आयी है। इस तेज गिरावट में सब्जियों की कीमतों की बड़ी भूमिका थी। यदि हम सब्जियों को छोड़ दें तो खाद्य पदार्थ मुद्रास्फीति नवंबर में 8.0 प्रतिशत से दिसंबर में मात्र 7.1 प्रतिशत तक साधारण है। हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि खाद्य मुद्रास्फीति के संरचनात्मक अवयव को दर्शाते हुए, प्रोटीन पदार्थों - 'अंडे, मछली, मांस', दूध और दलहन की मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी हुई है। 25. गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर और सुविधा जनक स्तर से काफी ऊपर बनी हुई है। जबकि कीमत निर्धारक शक्तियों के संकेतकों से पता चलता है कि इसके कम होने की प्रवृत्ति जारी रहेगी, फिर भी इसमें वृद्धि का जोखिम महत्वपूर्ण रहेगा। गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति के गति संकेतक को अभी भी प्रत्यक्ष गिरावट प्रवृत्ति दिखाना है। तदनुसार, रिज़र्व बैंक के नीतिगत रुख को वृद्धि जोखिम के प्रति अधिक संवेदनशील बनना पड़ेगा। इसे मुद्रास्फीति के निरंतर जोखिम के विरुद्ध बचाव करने की आवश्यकता है। 26. गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में अपेक्षित कमी के मद्देनज़र, देशी आपूर्ति कारकों और जिन्स कीमतों में वैश्विक प्रवृत्ति, मार्च 2012 के थोक कीमत सूचकांक मुद्रास्फीति के लिए आधार-रेखा अनुमान 7 प्रतिशत ही रखा गया है जैसा कि हमारी अक्टूबर की समीक्षा में निर्धारित किया गया था। 27. हमने वृद्धि के अपने आकलन को कम करते हुए संशोधित किया है, किंतु अपने मुद्रास्फीति आकलन में परिवर्तन नहीं किया है। यह इस अपेक्षा के प्रतिकूल जाता है कि वृद्धि अनुमान में महत्वपूर्ण कमी से मुद्रास्फीति अनुमान में अधोगामी संशोधन करना चाहिए। ऐसा क्यों नहीं हुआ? यह दो कारणों से नहीं हुआ। पहला, धीमी वृद्धि में मुद्रास्फीति के समायोजन में विलंब करते हुए, रुपये का अवमूल्यन मूल मुद्रास्फीति को बढ़ाता रहा है। दूसरा, और बहुत महत्वपूर्ण रूप से, पेट्रोलियम उत्पाद और कोयले की कीमतों की दबी हुई मुद्रास्फीति बहुत महत्वपूर्ण बनी हुई है। इन कीमतों के औचित्यीकरण का, स्पष्ट रूप से, विविध जाने-माने कारणों के लिए स्वागत है, किंतु यह अल्पावधि में देखी गई मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगा। तदनुसार, हमारा मुद्रास्फीति अनुमान इन कीमतों में किए जाने वाले कुछ समायोजनों की संभावना पर आधारित है। 28. 2012-13 में मुद्रास्फीति परिदृश्य क्या होगा? हम अप्रैल में अपनी वार्षिक नीति कथन में औपचारिक अनुमान की घोषणा करेंगे। इस समय अगले वर्ष के लिए रिज़र्व बैंक का बेसलाइन अनुमान यह है कि मुख्य मुद्रास्फीति में कुछ कमी देखने को मिल सकती है, हालांकि विविध उच्च जोखिम के लिए असुरक्षित रहेगी, जिसकी चर्चा मैं थोड़ी देर में करूंगा। चलनिधि और मौद्रिक स्थिति 29. इस वर्ष के दौरान चलनिधि प्रबंध भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है। चलनिधि स्थिति, जो कि आम तौर पर घाटे में रही है, आंशिक रूप से, रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा बाजार परिचालन और अग्रिम कर आउटफ्लो को दिसंबर के मध्य के आसपास दर्शाते हुए, नवंबर 2011 के दूसरे सप्ताह की शुरुआत से और भी तंगहाल हो गई। रिज़र्व बैंक ने, रिकार्ड पर खुलेआम यह कहा है कि वह एलएएफ विंडों का साधारण घाटे, एनडीटीएल के +/- 1 प्रतिशत की सीमा में, जो कि लगभग ₹ 600 बिलियन होता है, में रहना पसंद करेगा। एलएएफ पहुंच का वर्तमान स्तर लगभग ₹ 1,200 बिलियन पर है, जो इस सीमा से बहुत अधिक है। रिज़र्व बैंक ने चलनिधि में तंगहाली को कम करने और अपनी मौद्रिक नीति रुख के अनुरूप, नवंबर 2011 से जनवरी 2012 के मध्य के दौरान कुल ₹ 700 बिलियन से अधिक का खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) संचालित किया है। 30. जबकि चालू वर्ष में व्यापक मुद्रा आपूर्ति वृद्धि 15.5 प्रतिशत की अनुमानित ट्रैजेक्टरी के साथ विकसित हुई है, गैर-खाद्य ऋण वृद्धि अब 18 प्रतिशत की अनुमानित ट्रैजेक्टरी से नीचे आ गई है। बढ़ी हुई सरकारी उधारी और निजी ऋण मांग में कमी के मद्देनज़र, 2011-12 के लिए एम3 अनुमान को 15.5 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है, जबकि गैर-खाद्य ऋण वृद्धि को 16.0 प्रतिशत तक कम किया गया है। ये संख्याएं, हमेशा की तरह, सांकेतिक अनुमान हैं, लक्ष्य नहीं। फॉरेक्स मार्केट की गतिविधियॉं 31. जोखिम के घटक का उल्लेख करने से पहले मैं विदेशी मुद्रा बाज़ार की गतिविधियों का जिक्र करना चाहूँगा, जो 2011-12 की तीसरी तिमाही के दौरान दबाव में रहा। यह प्रतिकूल वैश्विक विचारधारा और पूँजी के अंतर्वाह में नरमी को प्रकट करता है। पूँजी अंतर्वाह को बढ़ावा देने और सट्टेबाजी को रोकने के लिए रिज़र्व बैंक ने कई कदम उठाने के अलावा मार्केट में हस्तक्षेप भी किया, जो कि उतार-चढ़ाव को काबू में रखने और विघटनकारी गतिविधियों से बचाव की हमारी नीति के अनुरूप है। बाह्य क्षेत्र में हो रही गतिविधियों और विनिमय दर पर इनके प्रभावों पर रिज़र्व बैंक ने बारीकी से निगरानी बानाए रखी। जब और जैसा उचित होगा हम कार्रवाई करेंगे। जोखिम घटक 32. अब अंत में मैं 2011-12 के दौरान विकास और मुद्रास्फीति की हमारी प्रत्याशाओं के लिए जोखिमों का उल्लेख करना चाहूँगा। हमनें इन सात को शामिल किया है : पहला, यूरो क्षेत्र में सरकारी देनदारी के कारण विकास के समग्र परिदृश्य के लिए गिरावट का प्रमुख जोखिम है। दूसरा प्रमुख जोखिम पैदा होता है चालू खाते में घाटे को देखते हुए पूँजी के अंतर्वाह में कमी के कारण। विकास के लिए तीसरा जोखिम है वैश्विक ऊर्जा कीमतें और जियो-पॉलिटिकल कारकों और वैश्विक मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिति के कारण मुद्रास्फीति। जोखिमों की हमारी इस सूची में चौथा यह है कि बैंकों में जोखिम से बचने की भावना बढ़ रही है, जो कि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। पॉंचवां यह कि संरचनागत असंतुलनों के कारण प्रोटीन आधारित पदार्थों की मंहगाई। समुचित आपूर्ति प्रतिक्रियाओं की गैर-मौजूदगी में खाद्य मुद्रास्फीति का जोखिम ऊपर ही बना रहेगा। अगला जोखिम यह कि कुछ नियंत्रित उत्पादों की स्वदेशी कीमतों जो बाज़ार की अंतर्निहित स्थितियों को प्रकट नहीं करतह हैं, में मुद्रास्फीति का बड़ा तत्व छिपा रहा है। स्वदेशी नियंत्रित कीमतों में बदलाव से स्फीतिकारी दबाव बढ़ेंगे, हालांकि मुझे यह भी नोट करना चाहिए कि आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए इस प्रकार के परिवर्तन जरूरी होते हैं। अंतत: यह भी कि सरकार का राजकोषीय घाटा निजी क्षेत्र को मिलने वाले ऋण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा राजकोषीय घाटे में होने वाले परिवर्तन स्फीतिकारी दबावों में बढ़ोतरी करते रहे हैं और यह मंहगाई के लिए जोखिम बना रहेगा। 33. अब मैं राजकोषीय-मौद्रिक नीति के समन्वय के महत्वपूर्ण क्षेत्र का संक्षेप में उल्लेख करते हुए बात पूरी करूँगा। बड़े राजकोषीय घाटों के अमर्यादित निहितार्थों, जो सर्वविदित हैं, पर विचार करें तो निर्णयकारी राजकोषीय समेकन की तत्काल ज़रूरत है, जोकि सकल मॉंग के संतुलन को सरकार से निजी और उपभोग से पूँजी निर्माण की ओर ले जाएगा। बार-बार बढ़ने वाली मुद्रास्फीति के संभावित जोखिम के बिना दरों को कम करने के लिए अपेक्षित अंतराल पैदा करने के लिए यह महत्वपूर्ण है। आगामी यूनियन बज़ट में इस प्रक्रिया को विश्वसनीय और पुख्ता तरीके से शुरू करने के अवसर अवश्य तलाशे जाएं।" अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1185 |