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2000 के दौरान महत्त्वपूर्ण गतिविधियां (दिसम्बर 2000)

257
दिसम्बर
2000

2000 के दौरान महत्त्वपूर्ण गतिविधियां

क्रेडिट इन्फ़र्मेशन रिव्यू

जनवरी

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रिज़र्व बैंक ने यह निर्णय लिया कि अंतर-शाखा खातों में निवल नामे शेष के विरुद्ध प्रावधान करने के लिए समयांतर को 31 मार्च 2001 को समाप्त हो रहे लेखाकरण वर्ष से तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष कर दिया जाये। तदनुसार, बैंकों के लिए यह अपेक्षित था कि वे 31 मार्च 1998 तक की अवधि से संबंधित अंतर-शाखा खातों में नामे और जमा प्रविष्टियों को अलग-अलग करें तथा 31 मार्च 2001 को जो बकाया होंगे, से अलग करके निवल स्थिति निकालें। बैंकों को सूचित किया गया था कि निवल नामे होने की स्थिति में वे 2000-01 के लिए शत-प्रतिशत के बराबर प्रावधान करें।

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बैंकों को यह सूचित किया गया था कि चालू खाता खोलते समय वे खातेदार से इस आशय की घोषणा करने पर जोर दें कि वह किसी अन्य बैंक से किसी भी प्रकार की ऋण सुविधा का लाभ नहीं उठा रहा है अथवा वह अन्य बैंक से ली जा रही ऋण सुविधा के ब्यौरे घोषित करे। ऐसा अनर्जक आस्तियों में कमी लाने हेतु ऋण अनुशासन की महत्ता को ध्यान में रखते हुए किया गया था।

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रिज़र्व बैंक ने इससे पूर्व जारी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से संबंधित कतिपय निदेश आशोधित और स्पष्ट किये।

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रिज़र्व बैंक ने दस अखिल भारतीय ऋणदाता और पुनर्वित्त संस्थाओं के लिए परिसंपत्ति देयता प्रबंधन संबंधी व्यापक दिशानिर्देश जारी किये।

फरवरी

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रिज़र्व बैंक ने निर्यात परियोजना वित्त के लिए आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये।

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रिज़र्व बैंक ने एडीआर और जीडीआर जारी करने के लिए सामान्य अनुमति मंजूर की।

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बैंकों को यह सूचित किया गया कि उनके द्वारा एकल उधारकर्ताओं को जारी किये गये लघु-ऋणों को, चाहे वे सीधे दिये गये हों या किसी मध्यस्थ के माध्यम से दिये गये हों, उनके प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को दिये गये उधारों के एक अंग के रूप में गिना जायेगा।

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रिज़र्व बैंक ने पूंजी पर्याप्तता अनुपात की गणना तथा आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण के संबंध में विवेकशील मानदण्डों के लिए जोखिम भार की गणना के लिए मानदंडों के संबंध में बैंकों को टेक-आउट वित्त के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये।

मार्च

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रिज़र्व बैंक ने सूचित किया कि बुनियादी संरचनावाली परियोजनाओं के वित्तपोषण के संबंध में बैंकों द्वारा सामूहिक रूप से वित्त प्रदान किये जाने संबंधी मानदण्डों में छूट मात्र चार क्षेत्रों, अर्थात, सड़क, विद्युत, दूर संचार और बंदरगाह क्षेत्रों में ही मिलेगी।

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रिज़र्व बैंक ने बैंकों को सूचित किया कि मूल्यांकन पद्धति के कारण प्रतिभूतियों के मूल्य में होनेवाली किसी भी वृद्धि को आय के रूप में दर्ज न करें। इसके अलावा, वे बैंक जिन्होंने प्रतिभूतियों के मूल्यांकन के लिए सुझायी गयी पद्धति की अपेक्षा अधिक उत्तम पद्धति अपना रखी है, वे अपनी पद्धति जारी रखें।

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विनियम समीक्षा प्राधिकरण के निर्णय की अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में मुद्रा बाजार पारस्परिक निधियों को सेबी के विनियमों के दायरे में लाया गया। अब बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को केवल मुद्रा बाजार पारस्परिक निधियों के संचालन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से मंजूरी लेनी होगी।

अप्रैल

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रिज़र्व बैंक ने 27 अप्रैल 2000 को वर्ष 2000-2001 की मौद्रिक और ऋण नीति घोषित की।

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बीमा कारोबार में बैंकों के प्रवेश के लिए अंतिम दिशानिर्देश जारी।

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निर्यात ऋण वित्त सुविधा उदार बनायी गयी।

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निर्यात परियोजनाओं को मंजूरी मिल जाने के बाद दिये जानेवाले ऋण की सीमा में वृद्धि।

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आरक्षित नकदी निधि अनुपात जमा शेष की न्यूनतम दैनिक आवश्यकता 65 प्रतिशत तक घटायी गयी।

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जमा प्रमाणपत्रों की न्यूनतम परिपक्वता अवधि घटाकर 15 दिन की गयी।

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बैंकों को यह स्वतंत्रता दी गयी कि वे अलग अलग अवधि समाप्ति के लिए अलग अलग पीएलआर पर कार्य कर सकते हैं।

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बाज़ार को और अधिक ‘ऑन लाइन’ बनाने के लिए बैंकों को यह स्वतंत्रता दी गयी कि वे एफसीएनआर जमाराशियों के प्रस्ताव देते समय चालू बदली (स्वैप) दरों में से दरें चुन सकते हैं।

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विवेकपूर्ण विनियमन और पर्यवेक्षण में बेहतर प्रणालियों की ओर जाना।

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ऋण सुपुर्दगी प्रणालियों में सुधार का निर्णय लिया गया।

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बैंकों को यह स्पष्ट किया गया था कि निवेश के मूल्य में गिरावट आने की स्थिति में आवश्यक प्रावधान को लाभ-हानि खाते में नामे किया जाये और, यदि आवश्यक हो, ‘निवेश घट-बढ़ प्रारक्षित खाता’ से उसके बराबर की राशि उस वर्ष का लाभ निकालने के पश्चात लाभ-हानि खाते में उस वर्ष का लाभ लाइन के नीचे की मद में अंतरित कर दिया जाये। उक्त अनुदेश 31 मार्च 2000 को समाप्त वर्ष के लिए तैयार किये जाने वाले तुलन-पत्र से लागू हैं।

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कृषि क्षेत्र को ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंकों द्वारा दिये गये उधारों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को दिये गये उधारों के अंतर्गत गिना जायेगा।

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विनियम समीक्षा प्राधिकरण को पहली अप्रैल 1999 से मूलत:एक वर्ष की अवधि के लिए रिज़र्व बैंक के विनियमों को सरल, कारगर बनाने तथा अनावश्यक कागजी कार्रवाई कम करने के प्रयोजन से गठित किया गया था। डॉ वाइ वी रेड्डी, उप गवर्नर को विनियम समीक्षा प्राधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। विनियम समीक्षा प्राधिकरण की मीयाद पहली अप्रैल 2000 से एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गयी थी।

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रिज़र्व बैंक ने बैंकों के जोखिम आधारित पर्यवेक्षण की दिशा में कदम बढ़ाने की घोषणा की। जोखिम आधारित पर्यवेक्षण में पर्यवेक्षी संसाधनों का विनिधान करके बैंकों की निगरानी तथा प्रत्येक संस्था के जोखिम के स्वरूप के अनुसार उस पर पर्यवेक्षी ध्यान केन्द्रित करना शामिल है।

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एक स्पष्टीकरण में, बैंकों को सूचित किया गया कि वे केवल चूककर्ता इकाइयों द्वारा जारी और राज्य सरकार द्वारा गारण्टीशुदा प्रतिभूतियों के लिए ही 100 प्रतिशत जोखिम भार दें न कि उस राज्य सरकार द्वारा जारी या गारंटी दी गयी सभी प्रतिभूतियों के संबंध में। बैंकों को सूचित किया गया कि वे उस राज्य सरकार की गारंटी के आधार पर उस राज्य में सरकारी क्षेत्र के उद्यमों को और ऋण देने के अनुरोध पर विचार करते समय अपनी गारंटी का भुगतान करने में राज्य सरकार के रिकाड़ को उचित सम्मान दें।

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बैंकों को सूचित किया गया कि उन लघु उद्योग इकाइयों को जिनकी रुग्ण इकाई के रूप में रूप में पहचान की गयी है और जहाँ बैंकों द्वारा स्वयं अथवा संघीय व्यवस्था के तहत पुनर्व्यवस्था पैकेज/सुश्रूषा कार्यक्रम तैयार किये गये हैं वहाँ एक वर्ष के लिए प्रदत्त अतिरिक्त ऋण सुविधाओं के संबंध में कोई प्रावधान करने की आवश्यकता नहीं है।

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बैंकों को सूचित किया गया था कि वे सार्वभौमिक संविभागीय आधार पर न कि मात्र देशी अग्रिमों के संबंध में मानक आस्तियों पर 0.25 प्रतिशत का सामान्य प्रावधान करें। मानक आस्तियों के संबंध में किये गये प्रावधानों को ‘मानक आस्तियों के विरुद्ध आकस्मिक प्रावधान’ के रूप में दर्शाया जाये और ये टियर II पूंजी में शामिल किये जाने के लिए पात्र नहीं हैं।

मई

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विवेकसम्मत विचारों तथा अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप बैंकों को सूचित किया गया था कि वे स्वैच्छिक रूप से अपने तुलन पत्र में सैद्धांतिक आधार पर अपनी सहायक कंपनियों के बारे में जोखिम भारित घटकों का समावेश करें जो कि उस बैंक की स्वनिधियों के लिए लागू जोखिम भार के सममूल्य हों। बैंकों को पुन: सूचित किया गया था कि वे एक समयावधि में अपनी बहियों में अतिरिक्त पूंजी निश्चित करें ताकि जब कुछ समय के पश्चात पूरे समूह के लिए एक स्वीकृत तुलनपत्र बनाना शुरू किया जाये तो उनकी निवल मालियत के क्षरण की संभावना दूर हो जाये। बैंकों को सूचित किया गया था वि मार्च 2001 को समाप्त होने वाले वर्ष से शुरू करते हुए चरणबद्ध रूप में बैंक की बहियों में अतिरिक्त पूंजी का प्रावधान करें।

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बैंकों को सूचित किया गया था कि वे ऋण और अन्य सूचना एक स्थान पर एकत्र करने और उसका समेकन करने के लिए अपनी संस्था में ही आवश्यक व्यवस्था करें ताकि जब कभी ऋण सूचना ब्यूरो की स्थापना हो तो ये सूचनाएं उन्हें भेजी जा सकें।

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जमा परिपक्वता, उधार ऋण एवं अग्रिम और निवेश की गतिविधियाँ तथा संवेदनशील क्षेत्रों को दिये गये उधार के विवरण का प्रकटीकरण मार्च 2001 के अंत के तुलन पत्र की ‘लेखा टिप्पणी’ में अतिरिक्त सूचना के रूप में किया जाना चाहिए न कि मार्च 2001 के अंत के 2000 के तुलन पत्र में, जैसा कि मूलत: निर्दिष्ट किया गया था। कुछ बैंकों द्वारा अनुभव की गयी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया था।

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बैंकों को दुपहिया और तिपहिया गाड़ियों की बिक्री से उत्पन्न गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा भुनाये गये बिल की पुनर्भुनाई की अनुमति दी गयी, बशर्ते विनिर्माता द्वारा बिल का आहरण केवल व्यापारी पर किया गया हो।

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25 करोड़ रुपये की न्यूनतम कार्यशील पूंजीवाले और अन्य मानदंड पूरा करनेवाले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को एन.आर.ई रुपया खाता खोलने/रखने के लिए अधिकृत किया गया।

जून

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विदेशी व्यापार और भुगतानों को सरल बनाने और भारत के विदेशी मुद्रा बाजारों के सुचारु विकास और अनुरक्षण को बढ़ावा देने के लिए पहली जून 2000 से विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा) 1973 के स्थान पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) लाया गया। फेमा में संपूर्ण चालू खाता परिवर्तनीयता दी गयी है तथा उसमें पूंजी खाता लेनदेनों के प्रगामी उदारीकरण के लिए प्रावधान तैयार किये गये हैं।

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बैंकों से गैर-निष्पादक आस्तियों के संबंध में लंबित सभी वादग्रस्त मामलों की तत्काल समीक्षा करने और सभी स्तर पर कार्यकर्ताओं को उससे अवगत कराने के लिए सूचित किया गया और उन्हें वादग्रस्त और डिक्री-प्राप्त मामलों की निरंतर गहन निगरानी करते रहने की ज़रूरत के बारे में बताया गया।

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अल्पावधि मुद्रा बाजार दर की गतिविधि एक विशिष्ट सीमा में रखने और उसे सरल बनाने, उसमें बेहतर स्थिरता लाने और अल्पावधि रुपया यील्ड कर्व का निर्गमन आसान बनाने के लिए पुनर्खरीद और प्रत्यावर्तनीय पुनर्खरीदों के माध्यम से संपूर्ण चलनिधि समायोजन सुविधा शुरू की गयी।

जुलाई

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बैंकों द्वारा निर्गत जीडीआर/एडीआर आगम के प्रत्यावर्तन के मामले की समीक्षा की गयी और बैंकों से कहा गया कि वे निर्गम प्रक्रिया पूरी होते ही जीडीआर/एडीआर की पूरी राशि प्रत्यावर्तित करें। यह उपबंध बहुपक्षीय संस्थाओं सहित अनिवासी भारतीयों/विदेशी कंपनी निकायों, विदेशी बैंकिंग कंपनियों द्वारा बैंकों में किये गये प्रत्यक्ष निवेश पर भी लागू किया गया।

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रिज़र्व बैंक ने गैर-निष्पादक आस्तियों की वसूली के लिए सरलीकृत गैर-विवेकाधीन और अभेदमूलक व्यवस्था देने की दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये। इन दिशा-निर्देशो में सभी क्षेत्रों की 5 करोड़ रुपये तक की गैर-निष्पादक आस्तियाँ शामिल हैं, लेकिन इनमें इरादतन चूक, धोखाधड़ी और दुष्करण शामिल नहीं है। मार्च 1997 के अंत में संदिग्ध श्रेणी की सभी गैर-निष्पादक आस्तियाँ, हानि आस्तियाँ और उस तारीख को जो अवमानक आस्तियाँ संदिग्ध हो चुकी हैं, को भी संशोधित दिशा निर्देशों में शामिल कर लिया गया। समझौता राशि की अदायगी एक वर्ष में की जानी थी और उसके साथ समझौता की तारीख से अंतिम भुगतान की तारीख तक मौजूदा मूल उधार दर पर ब्याज का भुगतान किया जाना था। दिशा-निर्देश मार्च 2001 के अंत तक लागू रहेंगे। बैंकों के निदेशक बोड़ से भी कहा गया है कि वे 5 करोड़ रुपये से अधिक की गैर-निष्पादक आस्तियों के एकबारगी निपटान से संबंधित व्यापक नीतिगत दिशा-निर्देश तैयार कर सकते हैं और उनमें ऋण वसूली नीति के भाग के रूप में अभिकलन सूत्र, वसूलनीय राशि, निर्धारित तिथि और भुगतान शर्तें आदि शामिल करें तथा ऐसी नीति के अनुसार अलग-अलग मामलों पर निर्णय ले सकते हैं।

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रिज़र्व बैंक ने अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा संसाधन जुटाने से संबद्ध मौजूदा दिशानिर्देश आशोधित किये जिनके तहत अब वित्तीय संस्थाओं को बांड जारी करके संसाधन जुटाने के लिए रिज़र्व बैंक का निर्गमवार पूर्वानुमोदन/पंजीकरण लेना आवश्यक नहीं है।

अगस्त

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रिज़र्व बैंक ने बैंकों को यह सूचित किया कि बैंक अपने स्वयं के स्टाफ को मंजूर किये गये सभी प्रकार के ऋणों तथा अग्रिमों के लिए 100 प्रतिशत जोखिम भार दें। इस तरह के ऋणों तथा अग्रिमों को तुलन पत्र की अनुसूची 11 में ‘अन्य आस्तियों’ के अंतर्गत दर्शाया जाना चाहिये तथा एक पाद टिप्पणी में उनकी कुल मात्रा दर्शायी जानी चाहिये।

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रिज़र्व बैंक ने (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकाें को छोड़ कर) सभी वाणिज्यिक बैंको को यह स्पष्ट किया कि उनके द्वारा टीयर II पूंजी के रूप में जुटाये गये रुपया अधीनस्थ ऋण एकल/समूह उधारकर्ताओं को ऋण की अधिकतम सीमा का निर्धारण करने के प्रयोजन के लिए पूंजीगत निधियों में शामिल करने के लिए नहीं माने जायेंगे।

सितंबर

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विदेशी संस्थागत निवेशकों को भारत के मान्यताप्राप्त शेयर बाजारों में बचाव व्यवस्था के ज़रिए एक्सचेंज ट्रेडेड इंडेक्स फ्यूचर्स में निवेश की अनुमति दी गयी।

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प्रतिभूति निपटान के ग्रिड लॉक्स से बचने के लिए रिज़र्व बैंक ने विशेष निधि सुविधा योजना प्रारंभ की।

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सरकार ने नये बाह्य वाणिज्यिक उधारों और मौजूदा बाह्य वाणिज्यिक उधारों के अनुमोदन के लिए 50 मिलियम अमेरिकी डॉलर तक की स्वचालित रूट योजना परिचालित की।

अक्तूबर

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रिज़र्व बैंक ने 10 अक्तूबर 2000 को मौद्रिक तथा ऋण नीति की मध्यकालिक समीक्षा घोषित की।

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मानक आस्तियों से संबंधित सामान्य प्रावधान टियर II पूंजी में शामिल करने की अनुमति दी गयी।

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प्राथमिक निर्गमों में आवंटन पाने वाले बैंकों तथा प्राथमिक व्यापारियों को अब रिज़र्व बैंक यह अनुमति देता है कि वे उसी दिन आवंटित की गयी प्रतिभूतियां बेच सकते हैं।

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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के तुलन पत्रों में और अधिक पारदर्शिता लाने की दृष्टि से तथा समेकित पर्यवेक्षण हेतु और अतिरिक्त प्रकटीकरण प्रदान करने के अतिरिक्त उपाय के रूप में निर्णय लिया गया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 31 मार्च 2001 को समाप्य वर्ष से शुरू होने वाले तुलन-पत्र में अपनी प्रत्येक अनुषंगी का तुलन-पत्र, लाभ और हानि लेखा, निदेशक बोड़ की रिपोर्ट और लेखा-परीक्षक की रिपोर्ट मिला देनी चाहिए।

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‘पूर्व देय’ 30 दिन की अनुकंपा अवधि की अवधारणा, जो अप्रैल 1992 में लागू आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण संबंधी दो तिमाही की चूक संबंधी मानदंड में शामिल की गयी थी, 31 मार्च 2001 से समाप्त कर दी जाएगी।

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दैनिक चल निधि स्थितियों को समायोजित करने तथा विदेशी मुद्रा बाजार में उतार चढ़ाव का सामना अल्पावधि ब्याज दरों को प्रभावित करने के लिए रेपो तथा रिवर्स रेपो के जरिये एलएएफ का प्रयोग तथा अनुमेय दरों और दिशाओं दोनों की दृष्टि से एलएएफ का प्रयोग लोचशील गति से किया जाता रहेगा।

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ईक्विटियों के बैंक वित्तपोषण पर स्थायी समिति द्वारा किेये गये प्रस्तावों पर मीडिया तथा बाजार प्रतिभागियों की ओर से अभिमतों तथा रिज़र्व बैंक तथा प्रमुख बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के बीच बैठकों में व्यक्त किये गये विचारों के आधार पर रिज़र्व बैंक ने पूंजी बाजार में बैंकों की सहभागिता पर अंतिम दिशा निर्देश जारी किये।

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रिज़र्व बैंक ने वाणिज्यिक पत्र के लिए अंतिम दिशानिर्देश जारी किये। निगमों को वाण्ज्यिक पत्रों के जरिये संसाधन जुटाने के लिए और अधिक लचीलापन दिया गया।

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बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों, दोनों के द्वारा जारी जमा प्रमाण पत्रों की हस्तांतरणियता को आसान बनाया गया।

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ऋण सुपुर्दगी तंत्र में सुधार, प्रौद्योगिकी उन्नयन, और अधिक अविनियम, तथा क्रियाविधियों को अधिक तर्कपूर्ण बनाने के लिए उपाय किये गये।

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सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं की तुलना में ऋण जोखिम सीमा संबंधी चालू प्रथाओं की समीक्षा करने के बाद यह निर्णय किया गया कि इस विषय पर एक व्यापक चर्चा पत्र तैयार किया जाए। अनुमान है कि दिसंबर 2000 तक उसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इस से संबंधित टिप्पणियों और सुझावों के आधार पर तथा बैंकों के साथ सहयोग के बाद रिज़र्व बैंक दृष्टिकोण संबंधी निर्णय लेगा, जो मार्च 2002 वे अंत से लागू करने की दृष्टि से अपनाया जाएगा।

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विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते (ईईएफसी) के सम्बन्ध में 14 अगस्त 2000 को घोषित उपायों की समीक्षा करने के बाद यह निर्णय लिया गया है कि (i) निर्यातोन्मुखी इकाइयों, निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र की इकाइयों, सॉफ्टवेयर टेक्नॉलॉजी पार्क या इलेक्टा्रनिक हाड़वेयर टेक्नॉलॉजी पार्क की इकाइयों के ईईएफसी खाते में उनके आवक प्रेषण के 70 प्रतिशत, तथा (ii) अन्य इकाइयों के मामले में आवक प्रेषण के 50 प्रतिशत की पुरानी पात्रता बहाल की जाए।

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बैंकों को और परिचालनात्मक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए उन्हें ऋणियों पर दंड ब्याज लगाने की स्वतंत्रता दी गई। बैंक अपने बोर्डों के अनुमोदन से दण्ड ब्याज दर लगाने के सम्बन्ध में पारदर्शी नीति तैयार कर सकते हैं।

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बाजार स्थितियों की समीक्षा करने के बाद तथा बैंकों को मार्जिन निर्धारित करने में स्वतंत्रता देने के लिए खुली बिक्री चीनी पर चयनात्मक ऋण नियंत्रण पर 15 प्रतिशत का न्यूनतम मार्जिन हटा लिया गया। खुली बिक्री चीनी पर बैंक अपने वाणिज्यिक निर्णय के आधार पर मार्जिन तय करेंगे।

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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को यह सूचित किया गया कि वे कृषक उधारकर्ताओं को किसान क्रेडिट काड़ जारी करने के लिए बैंक के लिए निर्धारित वार्षिक लक्ष्य के अन्तर्गत मासिक लक्ष्य निर्धारित करें तथा समग्र लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कार्य योजना बनाएँ।

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रिजर्व बैंक ने बैंकों के निवेश संविभाग के श्रेणीकरण और मूल्यांकन से संबंधित अंतिम दिशा-निर्देश परिचालित किया। दिशा-निर्देश 30 सितंबर 2000 को समाप्त छमाही से लागू किये गये हैं।

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रिज़र्व बैंक ने घटक एसजीएल खाताधारकों के लिए दिशानिर्देश जारी किये।

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बैंकों तथा प्राथमिक व्यापारियों को आपस में या गैर बैंक ग्राहकों के साथ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, ओटीसीआई तथा स्टॉक एक्सचेंज, मुंबई के जरिये प्रतिभूतियों के लेनदेन की अनुमति दी गयी।

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भारतीय स्टेट बैंक को इंडिया मिलेमियम डिपाज़िट स्कीम शुरू करने की अनुमति दी गयी।

नंवबर

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रिज़र्व बैंक ने समस्त अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को अनुदेश दिये हैं कि वे पहली दिसम्बर 2000 से शुरू होने वाले रिपोर्टिंंग शुक्रवार से संशोधित तरीके के अनुसार परशिष्ट ए तथा बी के साथ फार्म ए में विवरिणयां प्रस्तुत करें।

दिसंबर

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364 दिवसीय ख़ज़ाना बिलों की अधिसूचित राशि 500 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 750 करेाड़ रुपये कर दी गयी।

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प्राथमिक व्यापारियों के लिए पूंजी पर्याप्तता मानदंड श्ुारू किये गये।

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रिज़र्व बैंक ने सरकारी क्षेत्र के समस्त बैंकों को सूचित किया कि वे महिलाओं, विश्ेाष रूप से छोटे तथा लघु उद्योग क्षेत्र में ऋण सुपुर्दगी प्रणाली को मजूबत करने के लिए तैयार की गयी रिपोर्ट में दी गयी कार्य योजना को लागू करें। संभावित महिला उद्य्मियों तक पहुंचने तथा उन्हे बैंकों से ऋण तथा ऋणों से जुड़ी अन्य सेवाएं लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बैंकों को जिन कार्य मदो ंपर कार्यवाही करनी है, वे इस प्रकार हैं:बैंक की नीतियों की नये सिरे से परिभाषा करना, दीर्घकालीन योजनाएं बनाना, महिला कोष्ठकों का गठन, महिलाओं से जुड़ी समस्याओं/महिलाओं की ऋण ज़रूरतों के प्रति बैंक अधिकारियों/स्टाफ को संवेदनशील बनाना आदि।

समितियां एवं कार्यदल

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रिजॅर्व बैंक ने मार्च 2000 में बैंकिंग प्रौद्योगिकी में प्राथमिक क्षेत्रों पर एक कार्यदल गठित किया। यह दल भारत में बैंकिंग तथा वित्तीय क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते हुए उपयोग को देखते हुए गठित किया गया था। इस दल में विशेषज्ञ शामिल किये गये हैं तथा इसे इस संबंध में इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च इन बैंकिंग टैक्नॉलाजी, हैदराबाद द्वारा महसूस की जाने वाली महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की प्राथमिकता तय करने के लिए गठित किया गया था।

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गवर्नर महोदय ने डॉ. वाइ. वी. रेड्डी, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानकों तथा कूटों पर एक स्थायी समिति का गठन किया। इस समिति ने विभिन्न विषय क्षेत्रों में विशेषज्ञों वाले 10 परामर्शी समूहों को नियुक्त किया। इन 10 परामर्शी समूहों में से निम्नलिखित ने सितंबर 2000 में अपनी रिपोर्टें प्रस्तुत कर दी थीं :

मौद्रिक तथा वित्तीय नीतियों में पारदर्शिता पर परामर्शी दल। इसका गठन भारत में संबंधित मानकों तथा कूटों की प्रासंगिकता तथा अनुपालन को लागू करने की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करने, अनुपालन की व्यावहारिकता की समीक्षा करने और वह समय सीमा दर्शाने, जिसके भीतर भारत में मौजूदा विधिक तथा संस्थागत व्यवहारों को देखते हुए इन्हें पूरा किया जा सकता है, भारत में पालन किये जाने के स्तरों की, औद्योगिक देशों और साथ ही उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले उनकी तुलना करने और विशेष रूप से भारत की स्थिति को समझने और अधिक महत्वपूर्ण मानकों तथा कूटों पर कार्रवाई की प्राथमिकता तय करने तथा सर्वोत्तम व्यवहारों को प्राप्त करने के लिए कार्य योजना बनाने के लिए किया गया था।

बीमा विनिमय पर सलाहकार दल ने अपनी रिपोर्ट का भाग I प्रस्तुत किया। यह भारत में बीमा विनियम के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट पद्धतियां प्राप्त करने के लिए की जाने यथोचित कार्रवाई की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। दल ने अंतर्राष्ट्रीय बीमा पर्यवेक्षक संघ (आइएआइएस) द्वारा निर्धारित मानकों और कूटों तथा ओईसीडी द्वारा अपने सदस्यों के लिए जारी बीस बीमा दिशानिर्देशों की तुलना में भारतीय बीमा कानून पर विचार-विमर्श किया।

बैंकिंग पर्यवेक्षण पर सलाहकार दल ने अपनी रिपोर्ट का भाग I प्रस्तुत किया। यह बैंकों में कंपनी नियंत्रण, विदेशी बैंकिंग का पर्यवेक्षण, बैंकों में पारदर्शिता और बैंकों में आंतरिक दर निर्धारण प्रणाली से संबंधित है।

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रिज़र्व बैंक ने नवंबर 2000 में बहुविध अनुशासनात्मक कार्यकारी दल गठित किया, जो समेकित लेखाकरण का प्रारंभ कर सके और समेकित पर्यवेक्षण के अन्य मात्रात्मक तकनीकों पर नज़र रख सके। हाल ही में बैंक समूहों के समेकित पर्यवेक्षण के लिए पर्यवेक्षकों को अधिकार प्रदान किये जाने पर पुन: जो ध्यान केंद्रीकृत किया गया है उस पृष्ठभूमि में यह दल गठित किया गया है। समेकित पर्यवेक्षण पर नये सिरे से इसलिए ध्यान केंद्रीकृत किया जा रहा है क्योंकि अपने सहायक उद्यमों के परिचालन के असफल हो जाने के कारण बड़े अंतर्राष्ट्रीय बैंक सफल नहीं हुए और कारोबार के अन्य क्षेत्रों में बैंकों की प्रविष्टि के कारण चिंताएं सामने आने लगीं थीं। यह दल निम्नलिखित कार्य करेगा :-

1. ऐसे दलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय उत्कृष्ट पद्धतियों के अनुसार समेकित लेखाकरण प्रणाली की संभावना की जांच करना जिनमें बैंक या तो मूल रूप में या सहायक कम्पनी के रूप में हैं।

2. लेखों को समेकित करने के लिए (i) दायरा और (ii) तकनीक निर्धारित करना और इस प्रयोजन के लिए किसी भी लेखाकरण मानकों को अपनाना या उनका प्रारंभ करना।

3. दल के विवेकपूर्ण मानदंडों जैसी अन्य मात्रात्मक प्रणालियों की सिफ़ारिश करना जिससे समेकित पर्यवेक्षण, राजस्व निर्धारण और दल की वित्तीय स्थिति में परिवर्तन संबंधी विवरण बनाना आसान हो सके।

4. समेकित लेखाकरण और अन्य मात्रात्मक प्रणालियों की रूपरेखा तैयार करना।

5. समेकित लेखाकरण और अन्य मात्रात्मक प्रणालियों के प्रारंभ के लिए आवश्यक वैधानिक संशोधन निर्धारित करना।

हीरा निर्यातकों को ऋण

रिज़र्व बैंक ने यह निर्णय लिया है कि बैंक उन सभी ग्राहकों - जिन्हें हीरों से संबंधित कुछ भी कारोबार करने के लिए ऋण दिया जाता है, से संशोधित फार्मेट में एक वचनपत्र प्राप्त करें। यह निर्णय यूएन सिक्युरिटी काउंसिल के संकल्प सं.1306(2000) के अंतर्गत जारी सिएरा लिओन से प्राप्त होने वाले सभी अनगढ़ हीरों के प्रत्यक्ष/परोक्ष आयात पर लगाये गये और प्रतिबंधों को ध्यान में रखकर लिया गया है।

हीरों का उद्योग करने वाले जिन ग्राहकों से वे संशोधित फार्मेट में वचनपत्र प्राप्त करते हैं, उनके ब्यौरे (नाम और पता) रिज़र्व बैंक को 31 दिसंबर 2000 को या उससे पहले प्राप्त हो जाने चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे जून और दिसंबर के अंत में छमाही आधार पर इन ब्यौरों में यदि कुछ जोड़/परिवर्तन हो, तो उसके बारे में भी सूचित करें।

साथ ही वे लगाये गये प्रतिबंधों का उल्लंघन करनेवाले कथित अतिक्रमणों के बारे में जानकारी देनेवाला विवरण छमाही अंतरालों पर रिज़र्व बैंक को इस तरह प्रेषित करें जो उसे संबंधित छमाही की समाप्ति के बाद 15 दिनों के अंदर प्राप्त हो जाना चाहिए। यदि कुछ जानकारी न हो तो ञ्कुछ नहींट विवरण प्रेषित किया जाए। इस तरह का पहला विवरण दिसंबर 2000 को समाप्त होने वाली अवधि से संबंधित होना चाहिए।

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