जनवरी 2001
क्रेडिट इन्फ़र्मेशन रिव्यू
जनवरी 2001
विषय वस्तु
- निर्यात ऋण पर ब्याज दर
- आयात वित्त पर ब्याज दर अधिभार
- निर्यात ऋण कार्यविधियों में सुधार
- पांच सौ रुपये के नोटों को स्वीकार न करना
- मुद्रा विनिमय सुविधाओं पर नागरिकों का चार्टर
- दिवंगत ग्राहकों के खाते
- सरकार द्वारा प्रायोजितकार्यक्रमों के लिए संपार्श्विक जमानत
- जिला स्तर पर समीक्षा बैठकें
- बैंकों के कार्यपालकों द्वारा ग्रामीण शाखाओं का निरीक्षण
- अलाभकारी लघु उद्योग इकाइयों को कार्यक्षम बनाना
- धन संचलन वाली योजनाओं के लिए प्रेषण
- एसीयू डॉलर खातों पर ब्याज का भुगतान
- फेमा 1999 - विवरणियां
- जीआर/पीपी/सॉफ्टेक्स क्रियाविधि
- पीपी फार्म पर प्रतिहस्ताक्षर
- सॉफ्टवेयर इन्वाइसिंग के लिए भुगतान की शर्तें
- साफ्टैक्स फार्मों का निपटान
- शट आउट पोतलदान तथा शॉर्ट पोतलदान
- एयर कार्गो को एक साथ मिलाना
- बार्ज़ेस/देसी क्राफ्टों/सड़क परिवहन से निर्यात
निर्यात ऋण पर ब्याज दर
अतिदेय निर्यात बिलों के लिए पोतलदानोत्तर स्थिति में लागू अन्यथा निर्धारित न किये गये निर्यात ऋण पर 25 प्रतिशत प्रति वर्ष (न्यूनतम) की दर से लगायी जाने वाली ब्याज दर 6 जनवरी 2001 से समाप्त कर दी गयी है। बैंक अब अपनी मूल उधार दर और ऋण संबंधी दिशा निर्देशों को ध्यान में रखकर उचित ब्याज दर तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। उपर्युक्त के अनुसार ब्याज दर में संशोधन 6 जनवरी 2001 से प्रभावी होगा और वह न केवल नूतन अग्रिमों परंतु शेष अवधि के लिए मौजूदा अग्रिमों पर भी लागू होगा। तथापि यह सुनिश्चित करने के संबंध में कि निर्यात की प्राप्य राशियों को वापिस लाने में जानबूझ कर विलंब करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है, वर्तमान अनुदेश लागू रहेंगे।
अद्यतन स्थिति की समीक्षा के बाद निर्धारित ब्याज दर बंद करने का निर्णय लिया गया है।
6 जनवरी 2001 से आयात वित्त पर ब्याज दर अधिभार भी न लगाये जाने का निर्णय लिया गया है। तदनुसार, उक्त तारीख से नूतन आहरणों तथा आयात वित्त के लिए बकाया बैंक ऋण, ब्याज दर अधिभार के अधीन नहीं होंगे।
निर्यात ऋण कार्यविधियों में सुधार
रिज़र्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों को सूचित किया है कि वे निर्यात ऋण वितरण संबधी कार्यविधियों में और सुधार लाने के लिए गठित बैंकरों के समूह द्वारा दी गयी निम्नलिखित अनुशंसाओं को लागू करें जो कि निर्यात संगठनों और निर्यातकों से प्राप्त सुझावों पर आधारित हैं।
जिन मामलों में निर्यात ऋण सीमाओं का पूर्णत: उपयोग किया जाता है, उनमें बैंक साखपत्रों के आधार पर आहरित बिलों के परक्रामण के मामले में लचीला रुख अपनाएँ और ऐसे मामलों में शाखा प्रबंधकों को विवेकाधीन/अधिक मंजूरी के अधिकार देने पर भी विचार करें ताकि शाखा प्रबंधक, निर्यातकों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। उसी प्रकार, जब तक उन प्राधिकारियों/बोड़/समिति से मंजूरी नहीं मिल जाती जिन्होंने प्रस्ताव को मूलत: मंजूरी दी थी, तब तक शाखाओं को भी बढ़ी हुई/तदर्थ ऋण सीमा का कुछ प्रतिशत भाग संवितरित करने के लिए प्राधिकृत किया जा सकता है ताकि निर्यातक अति आवश्यक निर्यात आदेशों को समय से पूरा कर सकें ।
यह रिपोर्ट मिली है कि जिन निर्यातकों का पिछला रिकाड़ अच्छा है उनके मामले में भी बैंक, आदेश/साखपत्र प्रस्तुत किये जाने में छूट देने में झिझक महसूस करते हैैं, क्योंकि इस प्रकार की छूट दिए जाने से निर्यात ऋण गारंटी द्वारा दावों के निपटान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। निर्यात ऋण गारंटी निगम ने बताया है कि आदेश/साखपत्र प्रस्तुत किये जाने में छूट दिए जाने को निर्यात-ऋण सीमा की मंजूरी संबंधी शर्त का अंग बनाया जाना चाहिए तथा उसकी सूचना निर्यात ऋण गारंटी निगम को भी दी जानी चाहिए। जिन मामलों में छूट दिए जाने की अनुमति आरंभ में ही दे दी जाती है तथा बकाया आदेशों/साखपत्रों का आवधिक विवरण मँगाए जाने की प्रणाली लागू की जा चुकी है, उनमें इनका विवरण मंजूरी संबंधी प्रस्तावों में तथा निर्यातकों को जारी किए जाने वाले मंजूरी-पत्रों में शामिल कर दिया जाना चाहिए और उसकी सूचना निर्यात ऋण गारंटी निगम को भी दी जानी चाहिए। इसके अलावा, यदि उक्त छूट दिए जाने की अनुमति, निर्यात ऋण सीमा की मंजूरी के बाद उपयुक्त प्राधिकारी के अनुमोदन से प्रदान की गई है तो उसे संशोधन के माध्यम से मंजूरी की शर्तों में शामिल कर लिया जाना चाहिए तथा उसकी सूचना निर्यात ऋण गारंटी निगम को दे दी जानी चाहिए।
पांच सौ रुपये के नोटों को स्वीकार न करना
रिज़र्व बैंक ने यह स्पष्ट किया है कि समय-समय पर उसके द्वारा जारी 500 रुपये के सभी नोट वैध मुद्रा हैं और सभी लेनदेनों के लिए उनका मुक्त रूप से स्वीकार जारी है। पिछले नवंबर में संशोधित रंग योजना में 500 रुपये के नोट जारी करते समय रिज़र्व बैंक ने जनसाधारण को आह्वान किया था कि वे पुराने डिज़ाइन के 500 रुपये के हरे नोटों (जलचिन्ह में अशोक स्तंभ के साथ) के बदले नये डिज़ाइन के 500 रुपये के नोट प्राप्त करें। रिज़र्व बैंक ने यह स्पष्ट किया है कि जनसाधारण को पुराने डिज़ाइन के अपने 500 रुपये के नोटों का विनिमय आसान कराने के लिए ही यह सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। इन नोटों का स्वीकार न करने के लिए बैंक यह कारण न बतायें।
शेष राशियों का भुगतान
रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि उन मामलों में जिनमें कोई विवाद है और सभी कानूनी वारसदार बैंकों को क्षतिपूर्ति करने के लिए एक साथ नहीं जुड़ते, अथवा बैंक को इस बात पर शक करने के यथोचित कारण हैं कि दावेदार ही जमाकर्ता का अकेला/अकेले कानूनी वारसदार नहीं है/हैं, वहां बैंक दिवंगत जमाकर्ताओं के कानूनी वारसदारों से उत्तराधिकार प्रमाणपत्र मांग सकते हैं।
यह निर्णय लिया गया है कि जमाराशि की अवधिपूर्णता की तारीख के पहले जमाकर्ता की मृत्यु होने तथा अवधिपूर्णता की तारीख के बाद जमाराशि का दावा किये जाने की स्थिति में, बैंक अवधिपूर्णता की तारीख तक संविदागत दर पर ब्याज अदा करेगा। अवधिपूर्णता की तारीख से अदायगी की तारीख तक बैंक, अवधिपूर्णता की तारीख के बाद बैंक के पास जमाराशि रहने तक की अवधि के लिए, अवधिपूर्णता की तारीख को प्रचलित लागू दर पर साधारण ब्याज अदा करेगा।
अलबत्ता, अवधि समाप्ति की तारीख से पूर्व जमाकर्ता की मृत्यु हो जाने की स्थिति में, बैंकों द्वारा अवधिपूर्णता की तारीख से अदायगी की तारीख तक अवधिपूर्णता की तारीख को बैंक, लागू बचत जमा दर पर ब्याज अदा करें। ये अनुदेश आरसीएफ खाता योजना के अंतर्र्गत रखी बचत जमाराशियों के मामले में भी लागू होंगे।
प्रधान मंत्री रोज़गार योजना के लिए संपार्श्विक जमानत
रिज़र्व बैंक ने वाणिज्य बैंकों को दिये गये अपने अनुदेशों को दोहराया है कि वे प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत एक लाख रुपये तक के ऋणों की मंजूरी/संवितरण के समय बैंकों को जमानत/तृतीय पक्ष गारंटी पर तथा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (एसजेएसआरवाइ) और स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाइ) के अंतर्गत क्रमश: 50,000 रुपये तक के वैयक्तिक ऋणों और 3.00 लाख रुपये तक के समूह ऋणों की स्वीकृति के लिए किसी ज़मानत/गारंटी पर ज़ोर न दें।
रिज़र्व बैंक ने सभी अग्रणी बैंकों के अध्यक्षों को सूचित किया है कि वे प्रत्येक तिमाही में कम से कम एक बार ज़िला ऋण योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जिला स्तरीय समीक्षा समिति की बैठक आयोजित करें। अध्यक्षों को यह भी सूचित किया गया है कि वे इन बैठकों में भाग लेने के लिए सांसदों/विधायकों तथा जिला पंचायत प्रमुखों को आमंत्रित करें।
बैंकों के कार्यपालकों द्वारा ग्रामीण शाखाओं का निरीक्षण
भारतीय रिज़र्व बैंक ने सूचित किया है कि सरकारी क्षेत्र के सभी बैंकों के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशकों/अन्य वरिष्ठ कार्यपालकों को चाहिए कि वे आवधिक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की शाखाओं में जाकर प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने में शाखाओं के कार्यनिष्पादन की निगरानी करें। उन्हें यह भी सूचित किया गया है कि वे खंड स्तरीय बैंकर समिति (ब्लॉक लेवल बैंकर्स कमिटी), जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति आदि की बैठकों में उनकी सहभागिता की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। उन्हें यह भी चाहिए कि वे छुट्टियों के दिन शाखा प्रबंधकों की अभिप्रेरक बैठकें आयोजित करें ताकि वे प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को उधार देने से संबंधित सरकार की नीति स्पष्ट कर सकें।
अलाभकारी लघु उद्योग इकाइयों को कार्यक्षम बनाना
लघु उद्योग क्षेत्र की अलाभकारी इकाइयों (सिक यूनिट्स) को कार्यक्षम बनाने से संबंधित मौजूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा करने, दिशानिर्देशों के संशोधन की सिफारिश करने और इस समय अलाभकारी परंतु संभावित रूप से सक्षम लघु उद्योग इकाइयों को पारदर्शी और गैर-विवेकशील बनाने के लिए भारतीय बैंंक संघ के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कार्यकारी दल का गठन किया गया है। मंत्री समूह की बैठक में इस तरह का निर्णय लिया गया था कि रिज़र्व बैंक ऐसी इकाइयों के लिए विस्तृत, पारदर्शी और गैर-विवेकशील दिशानिर्देश तैयार करे।
धन संचलन वाली योजनाओं के लिए प्रेषण
रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि प्राधिकृत व्यापारियों को चाहिये कि वे ऐसी योजनाओं के अंतर्गत वेबसाइटों की खरीद के लिए विदेशी मुद्रा में प्रेषण की अनुमति न दें जो वृद्धिशील आधार पर नये ग्राहकों की संख्या को ध्यान में लेकर अमेरिकी डॉलर में और/या अन्य विदेशी मुद्रा में उपार्जन का प्रस्ताव रखते हैं, जिससे होने वाला कार्य व्यापार, धन संचलन (मनी सर्वुलेशन) जैसा लगे।
एसीयू डॉलर खातों पर ब्याज का भुगतान
एशियाई समाशोधन यूनियन की ढाका में 20 और 21 मई 2000 को आयोजित 29 वीं बोड़ बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि सभी सदस्य केंद्रीय बैंकों को चाहिए कि उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आनेवाले वाणिज्य बैंकों को अन्य एसीयू सदस्य देशों के संपर्ककर्ता बैंकों के एसीयू डॉलर खातों की बकाया राशि पर अपने विवेकानुसार ब्याज के भुगतान की अनुमति दें ताकि खातों का तत्परता से निधियन आसान हो सके। तदनुसार यह निर्णय लिया गया है कि भारत में परिचालन कर रहे बैकों के एसीयू डॉलर वोस्ट्रो खातों पर ब्याज के भुगतान की अनुमति दी जाए। परंतु ब्याज का भुगतान, ब्याज की दर तथा अन्य शर्तें हर बैंक के अपने विवेक पर छोड़ दी गयी हैं।
यह निर्णय लिया गया है कि ‘आर’ विवरणियों के साथ रसीदों के अनुपूरक विवरण में जो गैर निर्यात प्राप्तियां दिखाना जरूरी होता है, उनकी 1,00,000 रुपये की उच्चतम निर्दिष्ट सीमा बढ़ाकर 10,000 अमेरिकी डॉलर कर दी गयी है। तदनुसार, 15 जनवरी 2001 को समाप्त पखवाड़े तथा उसके बाद की अवधि के लिए प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा ‘आर’ विवरणियों के साथ जो ‘गैर - निर्यात रसीदों का अनुपूरक विवरण’ प्रस्तुत किया जायेगा उनकी प्राप्तियां 10,000 अमेरिकी डॉलर के समतुल्य और उससे अधिक की होनी चाहिये।
जिन मामलों में आवक प्रेषण की राशि 10,000 अमेरिकी डॉलर के समतुल्य या उससे अधिक हो, पूंजी अंतरण, बचत की राशि, उपहार, लाभांश आदि सुनिश्चित करके अनुपूरक विवरण में उसकी रिपोर्ट की जाए। इस जानकारी के न होते हुए भुगतान देरी से नहीं किया जाना चाहिए। उक्त जानकारी स्वतंत्र रूप से हासिल करके बाद में रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जा सकती है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि गैर-व्यापार से संबंधित आवक प्रेषण के लिए ग्राहकों के खातों में तत्परता से राशि जमा की जाती है यह निर्णय लिया गया है कि आंतरिक लेखा परीक्षक/ प्राधिकृत व्यापारियों के निरीक्षक यह प्रमाणित करें के भारत से बाहर के निजी प्रेषणों के मामले में शाखा द्वारा हिताधिकारियों के खातों में तत्परता से और निर्धारित नियमों और विनियमों के अनुसार राशि जमा की गयी है।
जीआर/पीपी/सॉफ्टेक्स क्रियाविधि
(क) निर्यातक द्वारा जीआर फार्म दो प्रतियों में तैयार किये जाने चाहिए और दोनों ही प्रतियाँ शिपिंग बिल के साथ शिपमेंट के बंदरगाह पर सीमा शुल्क प्राधिकारियों को प्रस्तुत की जानी चाहिए। सीमा शुल्क प्राधिकारी संबंधित शिपिंग बिल स्वीकार करने के बाद दोनों प्रतियों पर एक सतत क्रमसंख्या देंगे। सीमा शुल्क क्रमसंख्या में 10 अंक होंगे जो पोतलदान का बंदरगाह, कैलेंडर वर्ष और 6 अंकीय सतत क्रमसंख्या दर्शायेंगे। सीमा शुल्क प्राधिकारी दिये गये स्थान पर जीआर फार्म की दोनों प्रतियों में निर्यातक द्वारा घोषित मूल्य को सत्यापित करेंगे और आकलन किये मूल्य को भी दर्ज करेंगे। वे निर्यातक को फार्म की दूसरी प्रति लौटा देंगे और मूल प्रति रिज़र्व बैंक को भेजे जाने के लिए अपने पास रख लेंगे। निर्यातक को चाहिए कि वह जीआर की दूसरी प्रति फिर से भेजे जानेवाले माल के साथ सीमा शुल्क में प्रस्तुत करे। माल की जांच करने और दूसरी प्रति में लदान के लिए पास किये गये माल की जांच करने के बाद सीमा शुल्क प्राधिकारी इसे निर्यातक को लौटा देंगे ताकि निर्यात बिलों के निपटान या वसूली के लिए उसे प्राधिकृत व्यापारी के पास जमा कराया जा सके।
ख) निर्यात की तारीख से 21 दिन के भीतर निर्यातक को चाहिए कि वह संबंधित पोतलदान दस्तावेजों के साथ दूसरी प्रति तथा बीजक की अतिरिक्त प्रति जीआर फार्म में दिये गये नामवाले प्राधिकृत व्यापारी के पास जमा करे। दस्तावेज वसूली के लिए जमा किये जाने/भेज देने के बाद प्राधिकृत व्यापारी को चाहिए कि वह इस लेनदेन के बारे में यथोचित और अनुपूरक आर विवरणी के कवर के अंतर्गत ईएनसी विवरणी में रिज़र्व बैंक को इस लेनदेन की सूचना दें। बीजक की प्रति के साथ फार्म की दूसरी प्रति तथ्य के लिए प्राधिकृत व्यापारी द्वारा रख ली जायेगी जब तक पूरे निर्यातफल वसूल नहीं किये जाते और उसके बाद यथोचित आर अनुपूरक विवरणी के कवर के अंतर्गत विधिवत् सत्यापित करके रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत नहीं कर दिये जाते।
ऐसे मामले में जहां निर्यात आस्थगित ऋण व्यवस्था के अंतर्गत अथवा विदेश में संकेत तत्वावधान के अंतर्गत ईक्विटी भागीदारी अथवा रुपया ऋण अनुबंध के अंतर्गत भेजी गयी हो, ऐसी स्थिति में रिज़र्व बैंक के अनुमोदन की संख्या तथा तारीख और/अथवा रिज़र्व बैंक परिपत्र की संख्या तथा तारीख जीआर फार्म में दर्ज की जानी चाहिए। ऐसी स्थिति में जहां जीआर फार्म की दूसरी प्रति इधर उधर हो गयी है, प्राधिकृत व्यापारी सीमा शुल्क प्राधिकारी द्वारा विधिवत् सत्यापित डुप्लीकेट जीआर फार्म की दूसरी प्रति स्वीकार कर सकता है।
ग) घोषित सीमा शुल्क कार्यालयों में जहां पोतलदान बिल इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रोसेस किया जाता है, इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज की जरूरत हो जाने के कारण मौजूदा जीआर फार्म में मौजूदा घोषणा का स्थान एसडीएफ फार्म घोषणा लेगी। एसडीएफ फार्म दो प्रतियों में सीमा शुल्क आयुक्त को प्रस्तुत किया जाना चाहिए जो ‘विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रति’ अंकित पोतलदान बिल की एक प्रति निर्यातक को सौंप देगा। इसमें एसडीएफ फार्म निर्यात की तारीख से 21 दिन के भीतर प्राधिकृत व्यापारी को प्रस्तुत करने के लिए एसडीएफ फार्म दर्ज किये गये हैं। पोतलदान की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रति (और उसके नीचे दी गयी एसडीएफ फार्म) के निपटान का तरीका वही रहेगा जो जीआर फार्म का होता है।
घ) ऐसे मामलों में जहां ईसीजीसी उनके पास बीमाकृत निर्यातकों के संबंध में निर्यातकों के दावों का प्रारंभिक दायरे पर निपटान करती है और बाद में खरीदार/खरीदारों के देश से निर्यात आय प्राप्त करती है, इस तरह प्राप्त राशि में से निर्यातकों का हिस्सा उस बैंक के जरिए वितरित किया जाता है जिसने पोतलदान के दस्तावेजों को निपटाया है। ऐसे मामलों में पूरा प्रतिफल प्राप्त हो जाने के बाद ईसीजीसी बैंक को एक प्रमाणपत्र जारी करेगा। इस प्रमाणपत्र में घोषणापत्र की संख्या निर्यातक का नाम, प्राधिकृत व्यापारी का नाम , निपटान की तारीख, बिल की संख्या, बीजक मूल्य और ईसीजीसी द्वारा वास्तव में प्राप्त राशि दर्शायी जायेगी। यह प्राधिकृत व्यापारियों के लिए विधिसंमत होगा कि वे जीआर फार्म/पोतलदान बिल की विदेशी मुद्रा नियंत्रण प्रति की दूसरी प्रति को ईसीजीसी द्वारा जारी प्रमाणपत्र के आधार पर सत्यापित करें और उन्हें रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें। ईसीजीसी द्वारा जारी प्रमाणपत्र जीआर/एसडीएफ/पीपी की दूसरी प्रति के साथ और उन्हें रिज़र्व बैंक के पास भेजते समय संलग्न किया जा सकता है।
(ड़) जहां आय का कुछ हिस्सा ईईएफसी खाते में जमा किया जाता है निर्यात घोषणा (दूसरी प्रति) फार्म निम्नलिखित रूप में सत्यापित किया जा सकता है।
‘--- के साथ निर्यातक द्वारा रखे गये ईईएफसी खाते में जमा निर्यात वसूली (प्रतिशत) की आय (राशि)’
(च) पीपी फार्म के निपटान का तरीका जीआर फार्म के निपटान के तरीके जैसा ही है। डाक प्राधिकारी डाक द्वारा माल के निर्यात की अनुमति तभी देंगे जब फार्म की मूल प्रति किसी प्राधिकृत व्यापारी द्वारा प्रति हस्ताक्षरित होगी। पीपी फार्म पहले निर्यातक द्वारा प्रतिहस्ताक्षर के लिए प्राधिकृत व्यापारी को प्रस्तुत किये जाने चाहिए। प्राधिकृत व्यापारी निदेशों के अनुसार फार्मों पर प्रति हस्ताक्षर करेगा और मूल प्रति निर्यातक को लौटा देगा जो पार्सल के साथ डाक कार्यालय में फार्म प्रस्तुत करेगा। पीपी फार्म की दूसरी प्रति उस प्राधिकृत व्यापारी द्वारा रख ली जायेगी। निर्यातक निर्धारित अवधि के भीतर निपटान/वसूली के लिए बीजक की अतिरिक्त प्रति के साथ संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करेगा।
पीपी फार्म निर्यातक द्वारा प्राधिकृत व्यापारी को प्रतिहस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किये जायेंगे। प्राधिकृत व्यापारी पीपी फार्म पर यह सुनिश्चित कर लेने के बाद प्रति हस्ताक्षर करेगा कि पार्सल, आयातक के देश में उनकी शाखा द्वारा संबंधित बैंक को संबोधित किया जा रहा है। संबंधित विदेशी शाखा अथवा प्रतिनिधि को यह अनुदेश दिया जाना चाहिए कि वे भुगतान पर अथवा संबंधित बिल को स्वीकार करने पर परिवीक्षा को पार्सल की वसूली दे दे। अलबत्ता प्राधिकृत व्यापारी प्रेषितियों को सीधे संबोधित पार्सल वाले पीपी फार्मों पर प्रति हस्ताक्षर कर सकते हैं बशर्ते
(क) निर्यातक के पक्ष में निर्यातक के पूरे मूल्य के लिए एक साख पत्र खोला गया है और इसकी सूचना प्राधिकृत व्यापारी के जरिए दी गयी है; अथवा
ख) प्राधिकृत व्यापारी के ज़रिए निर्यातक द्वारा पोतलदान का पूरा मूल्य अग्रिम रूप में प्राप्त हो गया है; अथवा
ग) निर्यातक की स्थिति और ट्रॅक रिकॉड़ के आधार पर प्राधिकृत व्यापारी इस बात से संतुष्ट है कि निर्यात आय की वसूली के लिए व्यवस्थाएँ ठीक-ठाक हैं और वह निर्यात आय वसूल कर सकता है।
ऐसे मामलों में निर्यातक के अग्रिम भुगतान/साख पत्र/प्राधिकृत व्यापारी का स्थायी प्रमाणपत्र आदि को विधिवत् अदा प्रमाणपत्र के अंतर्गत फार्म पर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। पीपी फार्म पर प्ेा्रषिती के नाम और पते में कोई भी परिवर्तन प्राधिकृत व्यापारी द्वारा उसकी मुहर और हस्ताक्षर के साथ अभिप्रमाणित किया जाना चाहिए।
सॉफ्टवेयर इन्वाइसिंग के लिए भुगतान की शर्तें
(i) लम्बी अवधि के ऐसे करारों के मामले में जिनमें लेनदेन कई बार करना पडता हो, निर्यातकों को चाहिए कि वे अपने विदेशी ग्राहकों के लिए नियमित अंतरालों पर उदाहरण के लिए महीने में एक बार अथवा विदेशी ग्राहक के साथ किये गये करार में की गयी व्यवस्था के अनुसार ‘माइल स्टोन’ पर पहुँचने पर तैयार करें और अंतिम इन्वाइस/बिल करार की मीयाद पूरी होने के 15 दिन के भीतर भेज दिया जाना चाहिए। निर्यातकों के लिए यह नियमानुकूल होगा कि वे किसी विदेशी ग्राहक विशेष के मामले में तैयार की गयी सभी इन्वाइस संयुक्त साफ्टेक्स फार्म में प्रस्तुत करें। इन में महीने के दौरान प्राप्त अग्रिम प्रेषण भी शामिल होंगे।
(ii) ऐसे करारों के मामले में जहां ‘वन शोट आपरेशन’ है, इन्वाइस / बिल सामान भेजने की तारीख से 15 दिन के भीतर प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए।
(iii) निर्यातक को चाहिए कि वह भारत सरकार के पास एसटीपीआई/ईपीज़ेड में मूल्यांकन / प्रमाणपत्रन के लिए महीने के दौरान प्रस्तुत की गयी इन्वाइस की अंतिम इन्वाइस की तारीख से 30 दिन के भीतर प्रस्तुत कर दे।
(iv) ऊपर (i) से (iii) में बताये गये अनुसार विदेशी ग्राहकों को भेजी गयी इन्वाइसों को भारत सरकार द्वारा सोफ्टैक्स पर घोषित निर्यात के मूल्यांकन, और इन्वाइस मूल्य में बाद में किये गये संशोधन, यदि कोई हों, की शर्त पूरी करनी होगी।
जहां तक साफ्टैक्स फार्मों के निपटान का सवाल है, निर्यात विनियमावली के विनियम 6 में दर्शायी गयी क्रियाविधि अपनायी जायेगी। निर्यातक से साफ्टैक्स फार्म की दूसरी प्रति प्राप्त होने पर प्राधिकृत व्यापारी, फार्म पर घोषित मूल्य की पूरी वसूली हो जाने पर अथवा पदनामित अधिकारियों (जो भी वरिष्ठ हों) द्वारा प्रमाणित किये जानेपर उसे विधिवत प्रमाणित करके रिजर्व बैंकों को इन्वाइस/सों की प्रति/यों के साथ उपयुक्त ‘आर’ रिटर्न के कवर के साथ प्रस्तुत करेगें।
शट आउट पोतलदान तथा शॉर्ट पोतलदान
(i) यदि सीमा शुल्क को पहले ही प्रस्तुत किये जा चुके जीआर फार्म के अन्तर्गत आने वाले पोतलदान का कोई हिस्सा कम भेजा जाता है (शार्ट शिप्ड) तो निर्यातक अवश्य ही निर्धारित तरीके से तथा फार्म में सीमा शुल्क प्राधिकारियों को कम पोतलदान की सूचना देगा। सीमा शुल्क से नोटिस प्राप्त होने में विलम्ब के मामले में, निर्यातक प्रधिवृत व्यापारी को इस आशय का वचनपत्र देगा कि उसने सीमा शुल्क को नोटिस दे दिया है और कि वह नोटिस के वापस प्राप्त करते ही प्रस्तुत कर देगा। प्राधिकृत व्यापारी को चाहिए कि वह जीआर डुप्लीकेट के साथ शॉर्ट पोतलदान का नोटिस रिज़र्व बैंक को भेजे।
(ii)जहां पूरा का पूरा पोतलदान ही शट-आउट हो गया है और फिर से पोतलदान करने व ी व्यवस्थाएं करने में समय लग रहा है वहाँ निर्यातक इस प्रयोजन के लिए निर्धारित फार्म में निर्धारित तरीके से सीमा शुल्क को दो प्रतियों में नोटिस देगा और उसके साथ जीआर फार्म की प्रयोग में न लायी गयी प्रति तथा पोतलदान बिल संलग्न करेगा। सीमा शुल्क नोटिस की प्रति का सत्यापन करेगा और उसके सही होने का प्रमाण पत्र देगा और उसे जीआर फार्म की प्रयोग में न लायी गयी दूसरी प्रति के साथ रिज़र्व बैंक को भेज देगा। उस मामले में, सीमा शुल्क से पहले प्राप्त मूल जीआर फार्म रद्द कर दिया जायेगा। यदि बाद में पोतलदान किया जाता है तो जीआर फार्म का नूतन सेट तैयार किया जाना चाहिए।
जब एयर कार्गो को एक साथ मिलाकर लदान किया जाता है तो एयर लाइन कंपनी का मास्टर एयरवे बिल कन्सॉलिडेटिंग के अंतर्गत कार्गो एजेंट को जारी किया जायेगा जो इसके बदले में अलग-अलग माल भेजनेवालों (शिपर्स) को अपने खुद के हाउस एयरवे बिल (एचएडब्ल्यूबी) जारी करेगा। प्राधिकृत व्यापारी इन एचएडब्ल्यूबी को तभी स्वीकारेगा जब संबंधित साख पत्र में इन दस्तावेजों को एयर लाइन कंपनी द्वारा जारी एयर के बिलों के स्थान पर स्वीकार करने के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख हो।
बार्ज़ेस/देसी क्राफ्टों/सड़क परिवहन से निर्यात
जहां निर्यात सड़क, रेल अथवा नदी परिवहन के ज़रिये पड़ोसी देशों को भेजे जाते हैं, वहां मूल जीआर/एसडीएफ फार्म प्रस्तुत करने के लिए निर्यातकों द्वारा निम्नलिखित क्रियाविधि अपनायी जानी चाहिए :
ऐसे निर्यातों के मामले में, निर्यातक अथवा उसके एजेंट द्वारा फार्म उस सीमा पर, जिससे होकर जलयान अथवा वाहन को पार करके विदेशी क्षेत्र में प्रवेश करना है, सीमा-शुल्क के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। इस प्रयोजन के लिए निर्यातक यह व्यवस्था कर सकता है कि वह सीमा-शुल्क पर देने के लिए यह फार्म जलयान या वाहन के प्रभारी व्यक्ति को दे दे अथवा अपने एजेंट के पास भेज दे ताकि वह सीमा-शुल्क पर जमा करा सके।
जहां तक रेल द्वारा निर्यात किये जाने का प्रश्न है, सीमा-शुल्क औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए कई नामित रेलवे स्टेशनों पर सीमा-शुल्क स्टाफ तैनात किया गया है, वे इन स्टेशनों पर लदान किये गये माल के संबंध में जीआर/एसडीएफ फार्म प्राप्त करेंगे ताकि माल सीमा पर और औपचारिकताओं के बिना सीधे ही दूसरे देश में जा सके। नामित रेलवे स्टेशनों की सूची रेलवे से प्राप्त की जा सकती है। इस तरह के कार्य के लिए निर्धारित स्टेशनों के अलावा किसी अन्य स्टेशन से माल लदा जाता है तो निर्यातक इस बात की अवश्य ही व्यवस्था करे कि बाड़र लैंड कस्टम स्टेशन पर सीमा-शुल्क अधिकारी के समक्ष जीआर/एसडीएफ प्रस्तुत किये जाते हैं ताकि वहां सीमा-शुल्क औपचारिकताएं पूरी की जा सके।
भारत तथा म्यानमार के बीच बॉड़र ट्रेड पर हुए करार के शर्तों के अधीन, अदला-बदली कारोबार व्यवस्था और मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्रा में कारोबार के अंतर्गत भारत-म्यानमार सीमा के दोनों तरफ रहनेवाले लोगों द्वारा स्थानीय रूप से उत्पादित सामान की कुछेक मदों के आदान-प्रदान की समय-समय पर प्राधिकृत व्यापारियों को रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार अनुमति दी गयी है। प्राधिकृत व्यापारी इनका कड़ाई से पालन करें।
(फेमा के अंतर्गत सामान और सेवाओं की निर्यात संबंधी ब्यौरों के लिए कृपया नवंबर 2000 का क्रेडिट इन्फ़र्मेशन रिव्यू देखें।)