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अप्रैल 2001

क्रेडिट इन्फ़र्मेशन रिव्यू

अप्रैल, 2001

मुख्य-मुख्य बातें

  • उद्योग क्षेत्र के निम्नतर कार्य निष्पादन और वित्तीय बाज़ार के कुछेक क्षेत्रों में प्रतिकूल गतिविधियों के बावजूद वर्ष 2000-01 में समष्टि-आर्थिक, मौद्रिक और मूल्य संबंधी स्थिति और बाह्य क्षेत्र की गतिविधियाँ मोटे तौर पर अनुकूल।

  • रिज़र्व बैंक ऋण वृद्धि को पूरा करने तथा निवेश मांग के पुन:प्रचलन को सहायता देने के लिए यथोचित चलनिधि प्रदान करेगा।
  • रिज़र्व बैंक मौजूदा स्थिर ब्याज दर का वातावरण जारी रखने की अपेक्षा रखना चाहता है और वर्ष के दौरान उसमें और नरमी की वरीयता घोषित करता है।
  • निर्यात ऋण पर 1 से 1.5 प्रतिशत अंकों से ब्याज दर कम करने और निर्यात ऋण पुनर्वित्त युक्तिसंगत बनाने के उपाय।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अगले चरण पर जाने के उपाय : बैंकों और प्राथमिक व्यापारियों को बैक-स्टॉप सुविधा सहित अन्य उपायों का विस्तृत पैकेज।
  • प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात और लचीला, प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात की बकाया राशि पर ब्याज में वृद्धि।
  • मूल उधार दर मानदंड उदारीकृत।
  • वरिष्ठ नागरिकों द्वारा रखी गयी जमाराशियों पर उच्चतर ब्याज दर देने के लिए बैंकों को अनुमति।
  • शहरी सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने के लिए विवेकपूर्ण उपाय।
  • रिज़र्व बैंक, सहकारी बैंकों के लिए स्वतंत्र उच्च पर्यवेक्षी निकाय के पक्ष में है।
  • रिज़र्व बैंक वित्तीय संस्थाओं में अपने स्वामित्व का विनिवेश करके अपनी भूमिका सरल बनाएगा।
  • रिज़र्व बैंक से ऋण प्रबंधन कार्य अलग करने का एक स्तर निश्चित करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।
  • शेयर बाज़ारों में बैंकों के निवेश पर संशोधित दिशानिर्देश अगले परामर्शों के बाद मई 2001 से प्रभावी।

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. विमल जालान ने 19 अप्रैल 2001 को बैंकों वे मुख्य कार्यपालकों के साथ एक बैठक में 2001-02 के लिए वार्षिक मौद्रिक और ऋण नीति प्रस्तुत की। इस वक्तव्य में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों, मौद्रिक नीति की अवस्थितियों तथा वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ करने और बाजारों तथा संस्थागत संरचना के विकास के लिए व्यापक दायरे वाले उपायों के पैकेज की समीक्षा निहित थी। अपने इस वक्तव्य में गवर्नर महोदय ने मौद्रिक नीति तथा विदेशी मुद्रा विनिमय दर और आरक्षित निधि के प्रबंधन से सम्बन्धित कुछ विश्लेषणात्मक और व्यावहारिक मुद्दों का भी उल्लेख किया।

शुरूआत करते हुए, गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि इस वर्ष की नीति ऐसे समय प्रस्तुत की जा रही है जब वित्तीय प्रणाली के कुछ खंडों में गंभीर कमियाँ उजागर हुई हैं। गवर्नर महोदय ने कहा कि ध्यान में आयी इन कमज़ोरियों को दूर करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने की तत्काल जरूरत है ताकि भारत का वित्तीय क्षेत्र लगातार सुदृढ़ॅ और सुरक्षित रहे।

2001-02 के लिए मौद्रिक नीति की अवस्थिति

सामान्य परिस्थिति के अंतर्गत और घरेलू अथवा बाह्य क्षेत्रों में किसी विपरीत और अप्रत्याशित गतिविधियों को छोड़कर वर्ष 2001-02 के लिए मौद्रिक नीति की कुल अवस्थिति इस प्रकार होगी:

  • कीमत स्तर में गतिविधियों पर नज़र रखते हुए निवेश-मांग में चेतना लाने और ऋण संवृद्धि को पूरा करने के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान।
  • मध्यम अवधि में ब्याज दर व्यवस्था को अधिकाधिक लोचशीलता प्रदान करने के समग्र फ्रेमवर्क के भीतर वर्तमान स्थिर ब्याज दर परिवेश को यथासंभव सरल बनाने की तरजीह के साथ स्थितियों के अनुसार व्यवस्था।

वित्तीय क्षेत्र के सुधार और मौद्रिक नीति के उपाय

वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने और वित्तीय बाजारों के विभिन्न खण्डों के कार्यों में सुधार के लिए गवर्नर महोदय ने कुछ संरचनात्मक उपाय घोषित किए।

नकदी समायोजन सुविधा की समीक्षा - चरण II

यह निर्णय लिया गया है कि नकदी समायोजन सुविधा का दूसरा चरण आगे कार्यान्वित किया जाये।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक से उपलब्ध स्थायी चलनिधि सुविधाओं को दो भागों, अर्थात् (I) सामान्य सुविधा और (ii) बैक-स्टॉप सुविधा, में विभाजित करने का प्रस्ताव है।
  • सामान्य सुविधा बैंक दर पर उपलब्ध करायी जायेगी।
  • बैक-स्टॉप सुविधा प्रति-पुनर्खरीद/एनएसई-एमआइबीओआर से जुड़ी परिवर्तनशील दर पर उपलब्ध करायी जायेगी।
  • प्राथमिक व्यापारियों तथा बैंकों को उपलब्ध नकदी समर्थन की कुल सीमाओं से प्रारंभ में सामान्य सुविधा लगभग दो तिहाई हिस्से होगी और बैंक स्टॉप सुविधा लगभग एक तिहाई होगी।

निर्यात ऋण पुनर्वित्त

पांच मई 2001 से शुरू होने वाले पखवाड़े से वाणिज्य बैंकों को द्वितीय पूर्ववर्ती पखवाड़े के अंत की स्थिति के अनुसार पुनर्वित्त के लिए पात्र बकाया निर्यात ऋण के 15.0 प्रतिशत की सीमा तक निर्यात ऋण पुनर्वित्त दिया जायेगा। फार्मूला में परिवर्तन के कारण, उपर्युक्त उल्लिखित बैंक पुनर्वित्त के कतिपय प्रतिशत को 31 मार्च 2002 तक पाने के हकदार बने रहेंगे। यदि इन बैंकों द्वारा लिये जानेवाले निर्यात ऋणों की मात्रा में वृद्धि होती है तो उनको दी जानेवाली पुनर्वित्त सुविधा में भी तदनुसार वृद्धि होगी।

निर्यात ऋण संबंधी ब्याज दरों को युक्तिसंगत बनाया गया

बैंकों द्वारा दिये जानेवाले निर्यात ऋणों पर ब्याज दर को युक्तिसंगत बनाया गया है और उसे पीएलआर के साथ जुड़ी उच्चतम दर के रूप में दर्शाया जायेगा ताकि बैंकों द्वारा लगायी गयी ब्याज दर वस्तुत: निर्धारित दर से कम हो। प्रमुख सरकारी क्षेत्र के बैंकों के 180 दिन तक के मौजूदा पीएलआर के आधार पर इस बात की संभावना है कि ब्याज दर में 1.0-1.5 प्रतिशत बिंदु की कमी आये। बैंक निर्यात ऋण के लिए पीएलआर में से 1.5 प्रतिशत दर घटाते हुए निचली दर का भी प्रस्ताव कर सकते हैं।

मुद्रा बाजारों से संबद्ध उपाय

  • कंपनियों (कार्पोरेट) को प्राथमिक व्यापारियों के माध्यम से अपने मांग कारोबार करने की अनुमति 30 जून, 2001 तक होगी ।
  • मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में कार्य करने के लिए अन्य गैर-बैंक संस्थाओं (वित्तीय संस्थाओं, म्युचुअल फंड एवं बीमा कंपनियों सहित) की पहुंच को धीरे-धीरे चार चरणों में कम किया जाएगा :
    • चरण I में, वर्ष 2000-01 के दौरान गैर-बैंकों को मांग बाजार में अपने औसत दैनिक उधार का 85 प्रतिशत उधार देने की अनुमति होगी।
    • चरण II में, गैर-बैंकों को समाशोधन निगम के परिचालन में आने की तारीख से मांग बाजार में अपने औसत दैनिक उधार का 70.0 प्रतिशत उधार देने की अनुमति होगी;
    • चरण -III में, चरण II के तीन महीने बाद की तारीख से गैर-बैंकों की मांग/सूचना मुद्रा में बाजार में पहुंच मांग बाज़ार में उनके औसत दैनिक उधार के 40.0 प्रतिशत के बराबर होगी; और
    • चरण IV में, चरण III के तीन महीने बाद की तारीख से गैर-बैंकों की मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में पहुंच मांग बाजार में उनके औसत दैनिक उधार के 10.0 प्रतिशत के बराबर होगी।

    • चरण IV के प्रारंभ हो जाने के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित तारीख से गैर-बैंकों को मांग/सूचना मुद्रा बाजार में उधार देने की अनुमति नहीं होगी। उपर्युक्त उपायों से बाजार-सहभागियों को बाजार में बिना किसी रुकावट के अपने संविभाग (पोर्टफोलियो) के दोनों पक्षों को उधार देने व उधार लेने को समायोजित करने के लिए पर्याप्त समय होगा।
    • यह निर्णय किया गया है कि 15 लाख रुपये और उससे अधिक की थोक जमाराशि की न्यूनतम परिपक्वता अवधि वर्तमान 15 दिन से कम करके 7 दिन कर दी जाए।
    • 11 अगस्त, 2001 से शुरू होने वाले पखवाड़े से रिपोर्टिंग पखवाड़े के पहले सात दिनों के लिए दैनिक न्यूनतम अपेक्षा 65.0 प्रतिशत से घटाकर 50.0 प्रतिशत कर दी गयी है। 65.0 प्रतिशत की न्यूनतम अपेक्षा रिपोर्टिंग शुक्रवार सहित बिना किसी अपवाद के अगले सातों दिन के लिए लागू होगी।
    • हालांकि मध्यकालिक लक्ष्य यह होगा कि प्रारक्षित नकदी अनुपात सांविधिक न्यूनतम तक लाया जाये, एक मध्यकालिक उपाय के रूप में पात्र शेष राशियों पर ब्याज दर को दो चरणों में बैंक दर पर लाया जाये। 21 अप्रैल 2001से शुरू होनेवाले पखवाड़े से ब्याज दर बढ़ा कर 6.0 प्रतिशत कर दिया जायेगा।
    • 15 दिन और उससे अधिक की अंतर-बैंक मीयादी देयताओं की अवधि समाप्ति से 3.0 प्रतिशत की सांविधिक नकदी अनुपात की न्यूनतम अपेक्षा से छूट है।
    • मौजूदा 14 दिवसीय खजाना बिल और 182 दिवसीय खजाना बिल नीलामियाँ समाप्त की जा रही हैं और 91 दिवसीय खजाना बिल नीलामियाँ बढ़ाकर 250 करोड़ रुपये की जा रही हैं। 91 दिवसीय और 364 दिवसीय बिल आदान-प्रदान योग्य स्टॉक का रूप ले लेंगे ताकि गौण बाजार गतिशील हो सके।
    • 2 जून 2001 से प्रभावी प्रस्तावित नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम के लिए बाज़ार प्रतिभागी खुद को तैयार कर सकें, इसके लिए रिज़र्व बैंक के डीवीपी प्रणाली के ज़रिये निपटाये गये सभी लेनदेन टी +1 आधार पर होंगे।

    ब्याज दर नीति

    (क) न्यूनतम उधार संबंधी मानदंडों की समीक्षा

    • यह निर्णय लिया गया है कि 2 लाख रुपये से अधिक के ऋणों के लिए आधार दर के रूप में न्यूनतम उधार दर की आवश्यकता को शिथिल किया जाए। बैंक, अपने-अपने बोर्डों द्वारा अनुमोदित पारदर्शिता तथा उद्देश्यता नीति के समान ही सरकारी उद्यमों सहित निर्यातकर्ताओं तथा अन्य भरोसेमंद उधारकर्ताओं को न्यूनतम उधार दर से कम दर पर ऋण दे सकेंगे।
    • (ख) वरिष्ठ नागरिकों के लिए जमा

      योजनाएं

      • बैंकों को अनुमति दी गयी है कि वे किसी भी आकार की सामान्य जमाराशियों की तुलना में उच्चतम संगठनों तथा नियत ब्याज दर ऑफर करते हुए विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के लिए बनी नियत जमा योजनाओं को निरूपित कर सकते हैं।

      (ग) मीयादी जमाराशियां - बैंकों के लिए लचीलापन

      • बैंकों को यह स्वतंत्रता दी जायेगी कि बैंक एकल और हिंदु अविभक्त परिवारों से इतर पक्षों द्वारा रखी गई बड़ी जमाराशियों के असामयिक आहरण को अस्वीकार करने के अपने विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकेंगे।
      • परिपक्वता अवधि में प्रचलित ब्याज दर पर अतिदेय जमाराशियों का नवीकरण केवल 14 दिवसीय अतिदेय अवधि के लिए ही अनुमत होगा।
      • (घ) विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) जमाराशियों पर ब्याज दर

        • लंदन अंतर-बैंक प्रस्तुत दर/ स्वैप दर + पचास आधार पाइंट की उच्चतम सीमा को संशोधित करके अधोमुखी उच्चतम सीमा को लेबोर/स्वैप में पुनरीक्षित किया जाए।
        • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार की गतिविधियां

          केंद्र सरकार के 2001-02 के बजट में की गई घोषणा के बाद समाशोधन निगम तथा एक इलैक्ट्रानिक नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम शुरू किये जाने की आशा है तथा लोक ऋण अधिनियम के स्थान पर सरकारी प्रतिभूति अधिनियम लाये जाने का प्रस्ताव है।

          • खुदरा व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए एकल व्यक्तियों और भविष्य निधियों को प्राथमिक व्यापारियों और अनुषंगी व्यापारियों के ही माध्यम से गैर-प्रतिस्पर्धात्मक आधार पर सहभागिता की अनुमति दी जायेगी।
          • चुनिंदा और प्रायोगिक आधार पर दिनांकित प्रतिभूतियों के लिए एकसमान कीमत नीलामी फार्मेट

          ऋण प्रबंधन को अलग करने की दिशा में हुई प्रगति

          गवर्नर ने उल्लेख किया कि हालांकि मौद्रिक प्रबंधन से ऋण प्रबंधन को अलग करने के संबंध में 1997 में एक कार्यकारी दल ने सिफारिश की थी, किंतु दोनों कार्यों को अलग करना तीन पूर्व शर्तों अर्थात् वित्तीय बाज़ारों के विकास, राजकोषीय घाटे पर संपूर्ण नियंत्रण और आवश्यक वैधानिक परिवर्तनों को पूरा करने पर निर्भर था और बाद की गतिविधियों से सभी स्तरों पर पर्याप्त प्रगति हुई है :

          • प्रतिभूति संविदा (विनियम) अधिनियम संशोधन जिससे वित्तीय बाजारों पर भारतीय रिज़र्व बैंक और सेबी की विनियामक भूमिकाएं अलग-अलग तय की गईं।
          • वित्त मंत्री द्वारा मौद्रिक नीति तैयार करने और वित्तीय प्रणाली के विनियमन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को अधिक परिचालनगत सहूलियत देने की आवश्यकता पर बल।
          • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के अधिनियम में संशोधन का तथा राजकोषीय घाटे पर यथोचित नियंत्रण लाने के लिए राजकोषीय उत्तरदाायित्व विधेयक लाने का प्रस्ताव।
          • समाशोधन निगम का गठन तथा स्वयंपूर्ण नकदी समायोजन सुविधा की शुरूआत।

          गवर्नर ने उल्लेख किया कि वैधानिक कार्रवाई पूरी हो जाने पर भारतीय रिज़र्व बैंक से सरकारी ऋण प्रबंध को अलग करने की संभावना और इस बारे में आगे और कदम उठाने के लिए सरकार के साथ मामला उठाने का प्रस्ताव है।

          विवेकपूर्ण उपाय

          (क) ऋण को अनर्जक के रूप में मानने के लिए 90 दिन का मानदंड

          31 मार्च 2004 को समाप्त वर्ष से ऋण को अनर्जक के रूप में मानने के लिए 90 दिन के मानदंड को अपनाने का निर्णय लिया गया है, लेकिन उसके लिए प्रावधान 31 मार्च 2002 से किए जाने होंगे।

          (ख) वित्तीय संस्थाओं के लिए विवेकशील उपाय

          वित्तीय संस्थाओं के लिए विवेकपूर्ण मानदण्ड किसी वित्तीय संस्था की आस्तियां अनर्जक आस्ति के रूप में मान ली जायेंगी जब उस पर ब्याज और/या मूल धन वर्तमान के 365 दिन के बजाय 180 दिन के लिए अतिदेय हो जाये। यह व्यवस्था 31 मार्च 2002 को समाप्त होनेवाले वर्ष से प्रभावी होगी।

          (ग) निजी बैंकों के लिए सांविधिक केन्द्रीय लेखा परीक्षकों के लिए मानदंड

          वर्ष 2001-02 से, भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा उनके यहां सांविधिक लेखा-परीक्षकों के रूप में जिन लेखा-परीक्षा फर्मों की सिफारिश की जाती है, उन्हें इस संबंध में निर्धारित मानकों को पूरा करना होगा जैसे उनका न्यूनतम स्थायित्व (स्टैंडिंग), पूर्णकालिक भागीदारों की न्यूनतम संख्या, फर्म के साथ शुरू से ही जुड़े रहे सनदी लेखाकारों की न्यूनतम संख्या, आदि।

          (घ) अनर्जक परिसंपत्तियों की वसूली हेतु संशोधित मार्गदर्शी सिद्धांत

          एक-कालिक आशोधित मार्गदर्शी सिद्धांत जो 31 मार्च, 2001 तक लागू थे, उनकी अवधि जून, 2001 तक बढ़ा दी गई थी। इन आवेदनों/मामलों की प्रोसेसिंग के लिए बैंकों को 30 सितंबर 2001 तक का समय दिया गया है।

          (ङ) ऋण-राशि जोखिम की गणना की विधि

          • समान रूप से राशि-सीमा निर्धारित करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी पर्याप्तता मानकों के अंतर्गत यथापरिभाषित पूंजी-निधि के सिद्धांत को 31 मार्च, 2002 से अपनाया जाए।
          • गैर निधि-आधारित राशियों की गणना सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय परंपराओं के अनुरूप पहली अप्रैल, 2003 से 100 प्रतिशत पर की जाए और उसके अतिरिक्त बैंक विदेशी विनिमय में वायदा संविदा और अन्य व्युत्पन्न प्रोडक्ट शामिल कर लें।
          • मार्च, 2002 के अंत में एकल उधारकर्ता के लिए राशि-सीमा का समायोजन वर्तमान 20 प्रतिशत से 15 प्रतिशत किया जाए। इसी प्रकार से, समूह राशि-सीमा पूंजी-निधि के 40 प्रतिशत से समायोजित की जाएगी।
          • (च) ऋण वसूली अधिकरण

            सरकार ने विद्यमान 22 ऋण वसूली अधिकरणों एवं 5 अपीलीय अधिकरणों के अतिरिक्त वर्ष 2001-02 के दौरान 7 और ऋण वसूली अधिकरणों की स्थापना का निर्णय लिया है ताकि बैंक, उधारकर्ताओं से अपने बकायों की वसूली तेज़ी से कर सकें। इसके अलावा, सरकार ने एक कानून लाने का भी प्रस्ताव किया है ताकि चूक होने पर प्रतिभूतियों का मोचन-निषेध (फोर क्लोजर ) तथा प्रवर्तन हो सके और बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं अपने बकायों की वसूली कर सकें।

            (छ) चूककर्ता सूची-कवरेज को व्यापक बनाना

            बैंकिंग विधि में संशोधन होने को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को सूचित किया है कि वे ऋण-करार में एक शर्त जोड़ें जिसमें उधारकर्ता की यह सहमति प्राप्त की जाएगी कि वे चूककर्ता होने पर अपने नाम बता देंगे। वे बैंक, जिन्होंने उधारकर्ताओं की सहमति प्राप्त करने की शर्त नहीं जोड़ी है उन्हें सूचित किया जा रहा है कि वे इस कार्य को 30 सितंबर, 2001 तक पूरा कर लें।

            (ज) शेयर बाजार में बैंकों की राशियों का एक्सपोजर

            भारतीय रिज़र्व बैंक-सेबी तकनीकी समिति की रिपोर्ट जो 12 अप्रैल, 2001 को भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की गई थी, जारी कर दी गयी है। यह रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक वेबसाइट पर उपलब्ध है।

            तकनीकी समिति की सिफारिशों से यह अपेक्षा की जाती है कि आपस में सांठ गांठ वाली कुछ स्टॉक ब्रोकिंग संस्थाओं और कुछ निजी क्षेत्र के और सहकारी बैंकों के प्रवर्तकों/प्रबंधकों के बीच ऐसे अवांछित और अनैतिक ‘संबंध’ उभरने की संभावना कम हो जाएगी। तकनीकी समिति की सिर्ग़्स्रिशों के आलोक में, भारतीय रिज़र्व बैंक यह प्रस्ताव रखता है कि शेयरों में बैंकों के निवेशों तथा शेयरों के बदले अग्रिमों और अन्य संबंधित निवेशों के संबंध में पूर्व में नवंबर 2000 में जारी किये गये मार्गदर्शी सिद्धांतों में संशोधन किया जाए। यह प्रस्ताव है कि इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक को भविष्य में प्राप्त होने वाले अभिमतों/सुझावों को विचार में लेते हुए अंतिम मार्गदर्शी सिद्धांत मई 2001 के शुरू में जारी किये जाएं।

            (झ) माँग मुद्रा बाज़ार पर निर्भरता

            हाल ही के एक मूल्यांकन से यह संकेत प्राप्त हुआ है कि कुछ बैंकों ने मांग मुद्रा बाजार पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए स्थायी जमा आधार बनाने, प्रतिबद्ध ऋण-व्यवस्था आदि करने के लिए ठोस कदम उठाये हैं। तथापि, यदि कोई बैंक अपने बैंकिंग परिचालनों के लिए मांग मुद्रा बाजार पर अत्यधिक रूप से निर्भर रहना जारी रखता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक उसके साथ विचार-विमर्श के बाद मांग मुद्रा पर उसकी दीर्घकालिक निर्भरता को कम करने के लिए विशेष सीमा निर्धारित करेगा।

            (ट) वाणिज्यिक पेपर

            (i) अमूर्तीकृत (डीमैट) धारिता के लिए वरीयता

            यह निर्णय लिया गया है कि 30 जून, 2001 से बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, प्राथमिक व्यापारियों और गौण व्यापारियों को नये निवेश करने के लिए और वाणिज्यिक पेपर को केवल अमूर्तीकृत (डीमैट) रूप में रखने के लिए ही अनुमति दी जाए तथा प्रतिभूति-पत्र के रूप में बकाया निवेशों को भी अक्तूबर, 2001 तक अमूर्तीकृत रूप में परिवर्तित किया जाए। साथ ही, यह भी समयोचित समझा गया कि बांडों, डिबेंचरों और ईक्विटियों जैसे अन्य निवेशों को भी अमूर्तीकृत रूप में रखने वे लिए सूचित किया जाए। तदनुसार, 31 अक्तूबर 2001 से वित्तीय संस्थाओं, प्राथमिक व्यापारियों और गौण व्यापारियों को नये निवेश करने के लिए और निजी रूप से अथवा अन्यथा रखे गये बांडों और डिबेंचरों को केवल अमूर्तीकृत फार्म में रखने की अनुमति दी जाएगी। प्रतिभूति-पत्र के रूप में बकाया निवेश जून, 2002 के अंत तक अमूर्तीकृत रूप में परिवर्तित किये जाएं।

            (ii) प्रलेखीकरण और क्रियाविधि

            वाणिज्यिक पेपर के निर्गम के संबंध में अक्तूबर 2000 में जारी नये मार्गदर्शी सिद्धांतों के एक भाग के रूप में, फिक्स्ड इन्कम मनी मार्केट एंड डेरिवेटिव्ज़ एसोसिएशन "फिम्मडा’ को यह कार्य सौंपा गया कि वे अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप सहभागियों द्वारा पालन किये जाने के लिए मानक क्रियाविधि और प्रलेखीकरण निर्धारित करे। इन्हें अंतिम रूप देने से पहले "फिम्मडा’ अपने सदस्यों और बाजार के अन्य सहभागियों के बीच इन मार्गदर्शी सिद्धांतों का प्रारूप परिचालित करेगा।

            (ठ) ऋण सूचना ब्यूरो

            विद्यमान ढांचे में जहां ऋण सूचना ब्यूरो काम कर सकता है, वहीं ब्यूरो की कार्य-प्रणाली को और कारगर बनाने के लिए वैधानिक प्रणाली को और सुदृढ़ करने हेतु ब्यूरो के दायित्वों, सदस्य ऋण संस्थाओं के अधिकारों और कर्तव्यों तथा गोपनीयता के अधिकारों की रक्षा को शामिल करते हुए एक प्रारूप व्यापक विधान (ड्राफ्ट लेजिस्लेशन) भारत सरकार को भेजा गया है।

            शहरी सहकारी बैंक

            (i) विवेकपूर्ण मानदंड

            शहरी सहकारी बैंकों के लिए, उनके सदस्यों तथा जमाकर्त्ताओं के हित में विवेकपूर्ण उपाय मजबूत करने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रस्ताव है :

            • तत्काल प्रभाव से, शहरी सहकारी बैंकों को यह सूचित किया जा रहा है कि वे किसी व्यक्ति अथवा अन्य कंपनियों को शेयर की जमानत पर प्रत्यक्षत: अथवा अप्रत्यक्षत: ऋण देने के नये प्रस्ताव प्राप्त न करें। उन्हें यह भी सूचित किया जा रहा है कि शेयर दलालों को दिये गये विद्यमान ऋण या शेयरों में प्रत्यक्ष निवेश जल्द से जल्द वापस ले लिये जाएं।
            • मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार में दैनिक आधार पर उनकी कुल उधारियाँ पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत में उनकी सकल जमाराशियों के 2.0 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
            • रक्षोपाय के रूप में शहरी सहकारी बैंकों को सूचित किया जा रहा है कि वे अन्य शहरी सहकारी बैंकों के पास अपनी मीयादी जमाराशियाँ न बढ़ायें।
            • शहरी सहकारी बैंकों की सभी श्रेणियों के लिए एनडीटीएल के प्रतिशत के रूप में सरकारी तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में रखे जाने के लिए अपेक्षित सांविधिक चलनिधि अनुपात बढ़ाया जा रहा है। पहली अप्रैल 2003 से शहरी सहकारी बैंकों को अपनी निवल मांग और मीयादी देयताओं का 25.0 प्रतिशत समस्त सांविधिक चलनिधि आस्तियाँ केवल सरकारी और अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाये रखनी होंगी।
            • समस्त अनुसूचित तथा बड़े शहरी सहकारी बैंकों को अपने निवेश केवल रिजॅर्व बैंक के पास रखे एसजीएल खाते में अथवा सरकारी क्षेत्र के बैंकों तथा प्राथमिक व्यापारियों के पास रखे ग्राहक एसजीएल खाते में सरकारी प्रतिभूतियों में ही रखने होंगे।
            • सभी उपाय स्वभावत: "संभावनापूर्ण’ हैं अथवा शहरी सहकारी बैंकों को अपने सदस्यों के हित में उन्हें कार्यान्वित करने के लिए काफी समय दिया गया है।

            (ii) शहरी सहकारी बैंकों के लिए नयी पर्यवेक्षी संरचना

            हाल ही के अनुभव के आलोक में कई विकल्पों में से एक विकल्प, जिसे गंभीरता से स्वीकार किया जाना चाहिए, वह है नई शीर्ष पर्यवेक्षी संस्था जो अनुसूचित और गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में संपूर्ण निरीक्षण/पर्यवेक्षी कार्य करेगी। यह शीर्ष संस्था केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों, भारतीय रिजॅर्व बैंक और साथ ही विशेषज्ञों वाले एक अलग उच्च-स्तरीय पर्यवेक्षी बोड़ के नियंत्रण के अधीन हो सकती हैं। इसे शहरी सहकारी बैंकों के निरीक्षण और पर्यवेक्षण तथा भारतीय रिजॅर्व बैंक द्वारा प्रस्तुत विवेकपूर्ण, पूंजी पर्याप्तता और जोखिम प्रबंध मानदंडों वाले उनकी अनुपालना को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी दी जा सकती है।

            ऋण वितरण व्यवस्था

            गुजरात के लिए राहत कार्य

            गुजरात के लिए राहत के रूप में कई राहत उपाय किये गये हैं। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं :

            • ऋणों पर ब्याज दर के उद्देश्यों के लिए भारतीय स्टेट बैंक की न्यूनतम उधार दर।
            • प्रभावित निर्यातकर्ताओं के लिए राहत/रियायत में पैकिंग ऋण की अवधि बढ़ाना, उपयुक्त किस्तों में प्रतिदेय अल्पावधि ऋणो में देय राशि का परिवर्तन और अनर्जक परिसम्पत्ति वर्गीकरण मानदंडों में छूट शमिल हैं ।
            • कृषि ऋणों के संबंध, में बैंक प्रभावित किसानों से 7 वर्षों तक के पुनर्व्यवस्था के लिए प्रावधान सहित दो वर्षों के लिए मूलधन अथवा ब्याज की वसूली नहीं करेंगे ।

            प्रौद्योगिकी संवर्धन

            (क) भुगतान प्रणाली सूचक दस्तावेज

            रिज़र्व बैंक इन अभिमतों/प्रतिसूचनाओं की जांच कर रहा है और इस पक्ष प्रदर्शक दस्तावेज का अंतिम स्वरूप जल्दी प्रकाशित होगा।

            (ख) चेकों में कमी करने के लिए अग्रगामी अवधारणा

            वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित कार्यदल परक्राम्य लिखत अधिनियम के अंतर्गत "चेकों में कमी’ की वैधानिक अपेक्षाओं की जांच कर रहा है।

            (ग) इंटरनेट बैंकिंग

            विभिन्न बैंकों में प्रौद्योगिकी की प्रचलन के स्तरों पर आधारित व्यापक दृष्टिकोण तैयार किया जा रहा है जिसमें अत्यधिक सुरक्षित वातावरण में इंटरनेट आधारित लेनदेन और समुचित जोखिम नियंत्रण उपाय तथा जोखिम प्रबंध तकनीक शामिल हैं।

            विधिक सुधार

            भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में व्यापक संशोधनों के लिए भारत सरकार को अपनी सिफारिशें भेजी हैं जो सरकार के विचाराधीन हैं। भारत सरकार ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के प्रावधानों में परिवर्तन का सुझाव देने के लिए एक कार्य दल का गठन किया है ताकि उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के समरूप बनाया जा सके और परक्राम्य लिखत अधिनियम की सीमा के अंतर्गत इलेक्ट्रानिक चेक, प्रतिभूतिकृत प्रमाणपत्र तथा अन्य तैयार उत्पादों के निगमन की जांच की जा सके। इस कार्यदल ने अधिनियमन के लिए परिसंपत्ति प्रतिभूतिकरण के लिए एक विधेयक का प्रारूप तैयार किया है और उसे सरकार को भेज दिया गया है।

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