विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट
विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी अर्ध वार्षिक रिपोर्ट विषयवस्तु विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी अर्ध वार्षिक रिपोर्ट: 30 सितंबर 2008 की स्थिति 1. परिचय वर्ष 2003 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पारदर्शिता और प्रक टन के साथ विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन संबंधी प्रमुख नीति और परिचालनगत मामलों की समीक्षा की और अधिक पारदर्शिता लाने एवं प्रक टन के स्तर में वृद्धि लाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया कि विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन के संबंध में अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट तैयार का जाए एवं उसे सार्वजनिक कि या जाए। इस प्रकार का पहली रिपोर्ट 30 सितंबर,2003 का स्थिति के अनुसार तैयार का गई और 3 फरवरी 2004 काट इसे पब्लिक डोमेन पर प्रदर्शित कि या गया। यह रिपोर्ट अब प्रत्येक वर्ष 31मार्च और 30 सितम्बर का स्थिति के संदर्भ में 3 माह बाद तैयार का जाती है। 30 सितंबर 2008 का स्थिति पर आधारित विदेशी मुद्रा भंडार का यह 11 वीं रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में बाह्य भंडार जैसे विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के स्रोत , विदेशी मुद्रा भंडार के परिप्रेक्ष्य में देयताएं, बाह्य ऋण का समयपूर्व भुगतान ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) का वित्तीय लेनदेन योजना (एफ टीपी),विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्तता आदि के संबंध में मात्रात्मक जानक ारी संक लित का गई है। पुनरावृत्ति काट टालने के लिए पहली रिपोर्ट के खण्ड II और III ; जो कि क्रमश: विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधनात्मक पहलू का गुणात्मक ता और विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के संबंध में विभिन्न देशों के प्रकटन का तुलना से संबंधित है ,काट इस रिपोर्ट में शामिल नहीं कि या गया है। इच्छुक पाठक इन्हें भारतीय रिजर्व बैंक बुलेटिन के मार्च 2004 के अंक में अथवा भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाईट (प्ूज्://ींi्दम्े.ींi.दीु.iह /ी्दम्े/ ँल्त्तूiह /PDFे /52069.pdf ) पर विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी पहली रिपोर्ट में देख सकते हैं। 2 . विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर एवं संरचना
टिप्पणी : 3. 1991 से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की समीक्षा भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 1991 से काफी वृद्धि हुई है। विदेशी मुद्रा भंडार जो कि मार्च 1991 के अंत में 5.8 बिलियन अमरीकी डॉलर था, क्रमिक रुप से बढ़कर मार्च 1995 के अंत में 25.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। 1990 के दशक के उत्तरार्ध में भी इसमें लगातार वृद्धि होती रही और मार्च 2000 के अंत में यह 38.0 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर को छू गया। बाद में , यह मार्च 2004 के अंत में 113.0 बिलियन अमरीकी डॉलर, मार्च 2005 के अंत में 141.5 बिलियन अमरीकी डॉलर, मार्च 2006 के अंत में 151.6 बिलियन अमरीक ा डॉलर , मार्च 2007 के अंत में 199.2 बिलियन अमरीका डॉलर और बाद में मार्च 2008 के अंत में बढ़कर 309.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया । उसके बाद सितंबर 2008 के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो कर 286.3 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया (चार्ट 1) । यह उल्लेखनीय है कि 2002-03 से पहले के विदेशी मुद्रा भंडार के आकड़ों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा काटष (आईएमएफ) में रिजर्व ट्रांच पोज़ीशन (आरटीपी) सम्मिलित नहीं है। चार्ट 1 : विदेशी मुद्रा भंडार का स्थिति
4. विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के स्रोत सारणी 2 में मार्च 1991 से सितंबर 2008 तक का अवधि के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में हुई वृद्धि के प्रमुख स्रोतों के विवरण दिए गए हैं।
सारणी 3 में अप्रैल 2008 से सितंबर 2008 के दौरान और उसके पहले के वर्ष में उसी अवधि में विदेशी मुद्रा भंडार में हुए परिवर्तन के विवरण दिए गए हैं।अप्रैल - सितंबर 2007 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई जबकि अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान मुख्यत: 20.9 बिलियन के अमरीकी डॉलर के मूल्यांकन नुकसान के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट हुई । अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 89.3 प्रतिशत की कमी मूल्यांकन हानि के कारण हुई । अप्रैल - सितंबर 2008 के दौरान चालू खाता घाटे के अलावा विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का अन्य मुख्य स्रोत रही एफएफआई के अंतर्गत बाहर जानेवाली राशियां ।
1991 के बाद आर्थिक सुधारों की संपूर्ण अवधि में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के स्रोतों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ डीआई) में 1991-92 के 129 मिलियन अमरीक ा डॉलर क ा तुलना में 2007-08 में 15.4 बिलियन अमरीका डॉलर तक हुई वृद्धि के कारण विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि संभव हुई । अप्रैल -सितंबर 2008 के दौरान निवल एफ डीआई 14.6 बिलियन अमरीका डॉलर रहा। भारतीय पूंजी बाजार में जनवरी 1993 से शुरु हुए एफ आईआई निवेश ,में भी बाद के वर्षों में क ाफी वृद्धि देखी गई।संचयी निवल एफ आईआई निवेश में मार्च 1993 के अंत में 1 मिलियन अमरीका डॉलर से मार्च 2008 के अंत तक 66.6 बिलियन अमरीका डॉलर तक वृद्धि हुई और चालू वित्त वर्ष के पहले अर्ध वर्ष के दौरान 6.6 बिलियन अमरीका डॉलर का निवल घटौती के साथ सितंबर 2008 के अंत तक वह 60.0 बिलियन अमरीका डॉलर तक घट गया।बकाया अनिवासी भारतीय जमाराशियां मार्च 1991 के अंत में 14.0 बिलियन अमरीका डॉलर से बढकर मार्च 2008 के अंत में 43.7 बिलियन अमरीका डॉलर हो गईं । सितंबर 2008 के अंत में बकाया अनिवासी भारतीय जमाराशियां 40.6 बिलियन अमरीकी डॉलर रहीं। चालू खाते का विचार करें तो, भारत के निर्यात जोकि 1991-92 के दौरान 18.3 बिलियन अमरीका डॉलर थे, बढकर 2007- 08 में 166.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गए । अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान भारत के निर्यात 96.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गए । भारतीय आयात जो कि 1991-92 में 24.1 बिलियन अमरीकी डॉलर थे 2007-08 में 257.8 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढे । अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान भारत के आयात , 165.9 बिलियन अमरीकी डॉलर रहे। अदृश्य (iहviेiंते); विशेषत: निजी विप्रेषणों का भी चालू लेखा में काफी योगदान रहा। निवल अदृश्य अंतर्वाहों, जिसमें मुख्यत: निजी अंतरण विप्रेषण और सेवाएं शामिल रहती हैं, में भी 1991-92 में 1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर से 2007-08 में 74.6 बिलियन अमरीकी डॉलर तक की वृद्धि हुई। अप्रैल- सितंबर 2008 के दौरान निवल इन्विज़िबल्स 46.8 बिलियन अमरीकी डॉलर रहे। भारत का चालू खाता शेष, जो कि 1990-91में जीडीपी के 3.0 प्रतिशत घाटे में था, 2001-02 में 0.7 प्रतिशत और आगे 2002-03 में 1.2 प्रतिशत अधिशेष में बदल गया। वित्तीय वर्ष 2003-04 के दौरान चालू खाते में मुख्यत: अदृश्य खातों में अधिशेष के कारण 14.1 बिलियन अमरीकी डॉलर का अधिशेष दर्ज किया गया । तथापि, 2004-05 के दौरान निरंतरता के न रहते हुए चालू खाते में मुख्यत: अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में उछाल के कारण 2.5 बिलियन अमरीकी डॉलर का घाटा दर्ज किया गया । 2005-06 और 2006-07 के दौरान चालू खाता घाटे में मुख्यत: तेल और गैर-तेल के आयात की जोरदार मांग के कारण और अधिक वृद्धि हुई और वह जीडीपी के 1.0 प्रतिशत के आसपास रहा। वर्ष 2007-08 के दौरान चालू खाता घाटा 17.0 बिलियन अमरीकी डॉलर अर्थात जीडीपी का 1.5 प्रतिशत रहा। अप्रैल- सितंबर 2008 के दौरान उच्च आयात भुगतानों के कारण चालू खाता घाटा 22.3 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा । 5.बाह्य देयताएं बनाम विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा भंडार में हुई वृद्धि को देश की कुल बाह्य देयताओं के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए । जून 2008 के अंत में उपलब्ध भारत की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) जोकि देश की बाह्य वित्तीय आस्तियों और देयताओं के स्टॉक का संक्षिप्त रेकॉर्ड है, सारणी 4 के अनुसार है ।
6. बाह्य ऋण का समय-पूर्व भुगतान विदेशी मुद्रा भण्डार में हुई काफा वृध्दि के कारण फरवरी 2003 में भारत सरकार द्वारा एशियन विकास बैंक (एडीबी)और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (आईबीआरडी) /विश्व बैंक से लिए गए 3.03 बिलियन अमरीकी डॉलर के कुछ उच्च लागत वाले विदेशी मुद्रा ऋणों का समय-पूर्व भुगतान संभव हो पाया। वर्ष 2003-04 में सरकार द्वारा आईबीआरडी और एडीबी से लिए गए 2.6 बिलियन अमरीक ा डॉलर के उच्च लागत वाले ऋणों का समय-पूर्व भुगतान किया गया। इसके अतिरित्त 1.1 मिलियन अमरीकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋणों का भी समय-पूर्व भुगतान कि या गया। इस प्रक ार से वर्ष 2003-04 के दौरान कुल 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की कुल राशि का समय-पूर्व भुगतान कि या गया । वर्ष 2004-05 के दौरान 30.3 मिलियन अमरीकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋणों का भुगतान किया गया । 2006-07 के दौरान माह अप्रैल 2006 में 58.7 मिलियन अमरीकी डॉलर का एक समय-पूर्व भुगतान किया गया। 2007-08 और 2008-09 (सितंबर 2008 तक) के दौरान किसी ऋण का पूर्व भुगतान नहीं किया गया।7.अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफ टीपी) फरवरी 2003 में अतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपनी वित्तीय लेनदेन योजना में भारत को ऋणदाता के रुप में प्राधिकृत किया गया। इस व्यवस्था के अनुसार भारत ने मार्च- मई 2003 में बुरुंडी को 5 मिलियन एसडीआर और जून-सितम्बर 2003 में ब्राजील को 350 मिलियन एसडीआर के आईएमएफ द्वारा किए गए वित्तीय सहयोग में अंशदान किया। एफटीपी के अंतर्गत इंडोनेशिया को दिसबर 2003 में 43 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराए गए। वर्ष 2004-05 के दौरान एफटीपी के अंतर्गत उरुग्वे,हैती,डोमिनिकन रिपब्लिक और श्रीलंका आदि देशों को 61 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराए गए। मई-जून 2005 में टर्की और उरुग्वे को 34 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराए गए । वर्ष 2007-08 में 317 मिलियन एसडीआर बंग्लादेश , टर्की और पाकिस्तान जैसे देशों को उपलब्ध कराए गए। इस तरह से दिसंबर 2008 के अंत तक कुल 810 मिलियन एसडीआर खरीदे गए। एफटीपी की पुनर्खरीद लेनदेनों में नवंबर 2005 से भारत को शामिल किया गया। नवंबर 2005 से दिसंबर 2008 तक की अवधि में टर्की, अल्जेरिया, ब्राजील, इंडोनेशिया ,उरुग्वे, युक्रैन और मोल्दोवा आदि 7 देशों से 772 मिलियन एसडीआर के 21 पुनर्खरीद लेनदेन कि ए गए। 8. विदेशी मुद्रा भंडार का पर्याप्तता विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता विदेशी उतार-चढावों को सहने की कि सी देश का क्षमता काट नापने संबंधी महत्वपूर्ण मापदण्ड के रुप में उभर रही है। पूंजी प्रवाहों के बदलते स्वरुप के साथ आयात के लिए सुरक्षित पूंजी के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्तता का मूल्यांकन करने का पारंपरिक दृष्टिकोण विस्तृत हो गया है और अब इसमें विभिन्न प्रकार के पूंजी प्रवाहों के आकार,संरचना और जोखिम के स्वरुप के साथ-साथ बाहरी उतार -चढावों के प्रकार जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं;से संबंधित अन्य कई मानदण्ड भी शामिल किए गए हैं। भुगतान संतुलन पर बनी उच्चस्तरीय समिति,जिसके अध्यक्ष डॉ.सी.रंगराजन, तत्कालीन गवर्नर , भारिबैंक थे , द्वारा यह सुझाव दिया गया कि विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता निर्धारित करते समय 3 से 4 माह के आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा (इंपोर्ट कवर ) के पारंपरिक मापदंड के अतिरिक्त भुगतान संबंधी दायित्वों की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए । 1997 में श्री एस.एस.तारापोर की अध्यक्षता में पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता के लिए वैकल्पिक मानदंडों का सुझाव दिया गया जिसमें लेनदेन आधारित निर्देशांकों के अतिरिक्त मुद्रा और ऋण आधारित निर्देशांक भी शामिल किए गए । पूर्णतर पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति (अध्यक्ष श्री एस.एस.तारापोर , जुलाई 2006) का भी यही मत रहा है । हाल के वर्षों में नए उपायों के लागू किए जाने से विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का मूल्यांकन प्रभावित हुआ है। ऐसे ही एक उपाय के अनुसार प्रयोज्य विदेशी मुद्रा भंडार अगले वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा ऋणों के अनुसूचित परिशोधन (रोल-ओवर के बगैर ) से अधिक होना चाहिए । एक अन्य उपाय ’जोखिम में चलनिधि ’ नियम पर आधारित है जिसमें किसी देश के संदर्भ में संभावित जोखिमों का ध्यान रखा जाता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार यह अपेक्षित है कि वित्तीय स्थिति को प्रभावित करनेवाली मदों ; जैसे कि विनिमय दर,उपभोक्ता वस्तु कीमतें,ऋण सीमा (क्रेडिट स्प्रेड) आदि जैसे पूंजी लेखा प्रवाहों के संभाव्य परिणामों की विस्तार-सीमा के अंतर्गत उस देश की विदेशी मुद्रा तरलता की स्थिति का परिकलन किया जाए। भारिबैंक विदेशी मुद्रा भंडार के "जोखिम में चलनिधि" (एलएआर) का अंदाज लगाने के लिए अत:प्रेरणा और जोखिम प्रतिमानों के आधार पर कार्य कर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का पारंपरिक लेनदेन आधारित निर्देशांक ,अर्थात आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा ,जो दिसंबर 1990 के अंत में 3 सप्ताहों के आयात तक कम हो गया था, उसमें मार्च 2002 के अंत में 11.5 माह की आयात तक और आगे 14.2 माह की आयात अथवा मार्च 2003 के अंत में करीब 5 वर्ष की ऋण चुकौती (डेट सर्विसिंग) तक वृद्धि हो गई। मार्च 2004 के अंत में आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा(इंपोर्ट कवर ) 16.9 माह थी जो मार्च 2008 के अंत में 14.4 माह तक और आगे सितंबर 2008 के अंत में 11.2 माह तक कम हो गई।लघु अवधि ऋण* का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात मार्च 1991 के अंत में 146.5 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2005 के अंत तक 12.5 प्रतिशत हो गया किंतु मार्च 2006 के अंत में बढ़कर 12.9 प्रतिशत हो गया। लघु अवधि ऋण की बढ़ती व्याप्ति के साथ यह अनुपात मार्च 2007 के अंत में 14.1 प्रतिशत और मार्च 2008 के अंत तक 15.2 प्रतिशत और आगे सितंबर 2008 के अंत तक 20.2 प्रतिशत तक बढ गया। अस्थिर पूंजी प्रवाह (आवर्ती संविभाग अंतर्वाहों और लघु अवधि ऋण के समावेश के लिए व्याख्यित) का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात मार्च 1991 के अंत में 146.6 प्रतिशत से कम होकर मार्च 2007 के अंत में 46.2 प्रतिशत हो गया । यह अनुपात जो मार्च 2008 के अंत में 45.4 प्रतिशत तक घट गया था सितंबर 2008 के अंत में 48.2 प्रतिशत तक बढ़ गया ।9. विदेशी मुद्रा आस्तियों के निवेश का स्वरुप और उससे आय सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के व्यापक अनुसरण में बने मौजूदा मानदण्डों के अनुरुप विदेशी मुद्रा आस्तियों का निवेश बहु मुद्रा, बहु आस्ति संविभागों मे किया जाता है। सितंबर 2008 के अंत की स्थिति के अनुसार 277.3 बिलियन अमरीकी डॉलरों की कुल विदेशी मुद्रा आस्तियों में से 111.3 बिलियन अमरीकी डॉलरों का निवेश प्रतिभूतियों में किया गया, 160.6 बिलियन अमरीकी डॉलर अन्य केंद्रीय बैंकों, अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) में जमा किए गए और 5.4 बिलियन अमरीकी डॉलर विदेशी वाणिज्य बैंकों / बाह्य आस्ति प्रबंधकों ( ईएएम ) के पास जमा किए गए (सारणी 5) ।
विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण से प्राप्त आय, मूल्यह्रास की गणना के बाद वर्ष 2006-07 के दौरान 4.6 प्रतिशत थी परंतु वर्ष 2007-08 (जुलाई - जून) के दौरान वह बढ़ कर 4.8 प्रतिशत हो गई। * ( 2005-06 से 180 दिनों तक आपूर्तिकर्ता की साख और एफआईआई निवेश का सरकारी खजाना बिल और अन्य लिखतों में समावेश के साथ और आगे मार्च 2007 में बैंकिंग प्रणाली की बाह्य ऋण देयताओं और विदेशी केंद्रीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के समावेश के साथ पुनर्व्याख्यित ) |