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रिज़र्व बैंक का स्पष्टीकरण

Reserve Bank Of India

यह स्पष्टीकरण, मीडिया के कुछ वर्गों की रिपोर्ट के संबंध में है, जिसमें कहा गया है कि आरबीआई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के निजीकरण के विरुद्ध है। इन मीडिया रिपोर्टों में आरबीआई बुलेटिन के अगस्त 2022 के अंक में प्रकाशित "सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण: एक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य" नामक एक लेख का संदर्भ दिया गया है। यह लेख आरबीआई के शोधकर्ताओं द्वारा लिखा गया है।

2. इस संबंध में, यह स्पष्ट किया जाता है कि:

i) जैसा कि लेख में स्पष्ट रूप से कहा गया है, लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

ii) अगस्त 2022 बुलेटिन से संबंधित प्रेस प्रकाशनी में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि "सरकार द्वारा अपनाए गए निजीकरण हेतु क्रमिक दृष्टिकोण, यह सुनिश्चित कर सकता है कि वित्तीय समावेशन के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक शून्यता उत्पन्न न हो।

iii) लेख के अंतिम पैराग्राफ में अन्य बातों के साथ-साथ उल्लेख किया गया है कि:

- “ यदि पारंपरिक दृष्टिकोण से निजीकरण सभी बीमारियों का रामबाण है, तो आर्थिक सोच ने यह स्वीकार करने के लिए एक लंबा सफर तय किया है कि इसे पाने के लिए अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है”;

- “पीएसबी के हालिया बड़े विलय के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का समेकन हुआ है, जिससे मजबूत, अधिक सुदृढ़ और प्रतिस्पर्धी बैंकों का निर्माण हुआ है”;

- “इन बैंकों के निजीकरण का बृहद (बिग बैंग) दृष्टिकोण, लाभ से ज्यादा नुकसान कर सकता है। सरकार पहले ही दो बैंकों के निजीकरण के अपने इरादे की घोषणा कर चुकी है। इस तरह के एक क्रमिक दृष्टिकोण से यह सुनिश्चित होगा कि बड़े पैमाने पर निजीकरण, वित्तीय समावेशन और मौद्रिक संचारण के महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने में एक शून्यता उत्पन्न नहीं करता है।”

इस प्रकार, शोधकर्ताओं का विचार है कि बिग बैंग दृष्टिकोण के बजाय, सरकार द्वारा घोषित क्रमिक दृष्टिकोण से बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।

(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/732

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: जनवरी 31, 2023

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