बैंकर–उधारकर्ता परस्पर प्रभाव : सहक्रियाएं तथा चुनौतियाँ - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकर–उधारकर्ता परस्पर प्रभाव : सहक्रियाएं तथा चुनौतियाँ
श्री एस.एस. मूंदड़ा, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक
उद्बोधन दिया
बीसीएसबीआई के अध्यक्ष श्री ए सी महाजन; एसोचैम नैशनल काउंसिल फॉर बैंकिंग एंड फाइनेंस के अध्यक्ष श्री एम नरेंद्र; एपीएएस एलएलपी के प्रबंध निदेशक श्री अश्विन पारेख; मंच पर उपस्थित अन्य पदाधिकारीगण; बैंकिंग जगत के साथियों; एसोचैम के सदस्यगण; प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रतिनिधिगण; देवियो और सज्जनो ! सर्वप्रथम मैं इस मुद्दे पर चर्चा आयोजित करने के लिए एसोचैम को बधाई देता हूँ, जो बैंकिंग उद्योग के लिए बहुत ही प्रासंगिक और समसामयिक है। बढ़ते हुए एनपीए के मद्देनजर बैंकों को ऋणों तथा अग्रिमों के प्रबंधन में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियाँ उन सामान्य कठिनाइयों के बावजूद मौजूद हैं जो कि विनियामक तथा बैंक के स्वयं के प्रधान एवं नियंत्रण कार्यालयों द्वारा स्पष्ट रूप से बताई गई हैं। उचित ऋण संव्यवहार संहिता के साथ-साथ अधिनियम एवं कायदे-क़ानूनों की बढ़ती संख्या एक ऋणदाता के काम को अत्यंत चुनौतीपूर्ण बना देती है और उसकी संवीक्षा करनी भी जरूरी हो जाती है। इस पृष्ठभूमि में बैंकर-उधारकर्ता के “नफरत-मुहब्बत’ वाले रिश्ते का विश्लेषण करने की जरूरत है। ऐसा लग रहा है कि इस सत्र का उद्घाटन करने के लिए बैंकिंग पर्यवेक्षक को आमंत्रित करने और बैंकर तथा उधारकर्ता के बीच मध्यस्थता के एसोचैम के इस कल्पनात्मक विचार ने इन दोनों की नाराजगी मोल ले ली है! अगर गंभीरता से देखा जाए तो बैंकर–उधारकर्ता संबंध का एक निर्धारक पहलू विश्वास और समझ पर आधारित है। इनके संबंध न तो बहुत ही घनिष्ठ होने चाहिए और न ही तनावपूर्ण क्योंकि ऐसी किसी भी स्थिति में उसका इस क्षेत्र और पूरी अर्थव्यवस्था पर घातक परिणाम हो सकता है। बैंकिंग विनियम बैंकर–उधारकर्ता संबंध के आधारभूत नियम निर्धारित करते हैं, जबकि पर्यवेक्षणीय प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि यह संबंध सुदृढ़ बने रहें। एक कमर्शियल बैंकर तथा अब बैंकिंग पर्यवेक्षक के रूप में इस क्षेत्र में अपने व्यावहारिक अनुभव के आधार पर मैं उन व्यावहारिक प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालना चाहूँगा जिनकी अपेक्षा भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकर तथा उधारकर्ताओं से करता है। मैं कुछ विनियामकीय/पर्यवेक्षणीय चिंताओं को भी सामने रखूंगा जो इस समय मौजूद हैं और दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंधों से पैदा भी हो सकती हैं। बैंकर–उधारकर्ता संबंध : विश्वास और समझ पर आधारित 2. किसी भी संबंध में यह जरूरी होता है कि उससे जुड़े दोनों पक्ष अपने उत्तरदायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करें और तभी उनमें आपसी विश्वास और सम्मान बढ़ता है। यह बैंकर–उधारकर्ता संबंधों पर भी समान रूप से लागू होता है। एक प्रभावहीन बैंकर या एक लापरवाह उधारकर्ता एक ऐसी बीमारी है जिसे ऋण व्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर सकती। बैंकर–उधारकर्ता संबंध अनिवार्यत: परस्पर आधारित है क्योंकि दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। दोनों ही एक दूसरे से कुछ अपेक्षाएँ रखते हैं और जब इनमें से किसी एक के भी गलत या धोखादायक अभिप्राय के कारण ये अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं तो उनके संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं। हाल ही में यह देखने में आया है कि बैंकरों द्वारा उनके उधारकर्ताओं की न्यायिक लेखा परीक्षा में वृद्धि हुई है जो यह दर्शाता है कि उनका परस्पर विश्वास भंग होने लगा है। चूककर्ताओं के विरुद्ध दायर याचिकाओं तथा जानबूझकर की गई चूकों (ऋण चुकाने में सक्षम होने के बावजूद ऋण चुकाने में अनिच्छा) के मामलों में भी वृद्धि हुई है। बैंकर की ओर से सही समझदारी और समुचित सावधानी न बरतना या उधारकर्ता की आरंभ से ही बैंक को धोखा देने की छुपी नीयत इन समस्याओं के मूल में हो सकती है। तथापि, यह एकतरफा कारण नहीं है। कई मामलों में बैंकरों को भी उधारकर्ताओं की वास्तविक जरूरतों और समस्याओं के प्रति उदासीन तथा लापरवाह पाया गया है। ऐसा ज्यादातर उधारकर्ता के व्यवसाय की मूल जानकारी न होने के कारण होता है। पर कभी-कभी यह उन तत्वों की वजह से भी होता है जो उधारकर्ताओं के नियंत्रण से परे होते हैं। वस्तुत: बहुत अधिक या अत्यंत कम विश्वास और समुचित सावधानी दोनों ही अतिरेकी स्थितियां बैंकिंग व्यवसाय के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं। बैंकरों द्वारा उचित विनियामक पालन तथा उधारकर्ताओं द्वारा अपने लेन-देन में आदर्श आचार संहिता का पालन इन दोनों का मिश्रण ही शायद सबसे सही बीच का मार्ग हो सकता है। 3. बैंकर–उधारकर्ता संबंधों की व्यापक व्याख्या के बाद, मैं बैंकरों और उधारकर्ताओं से की जानेवाली अपेक्षाओं और उनका पालन न करने पर दोनों के बीच संबंधों के बिगड़ने पर प्रकाश डालना चाहूँगा । 4. बैंकरों से अपेक्षाएँ
5. उधारकर्ताओं से अपेक्षाएँ :
6. अब मैं संक्षेप में उन मुद्दों पर बात करना चाहूँगा जिनके बारे में बैंकिंग क्षेत्र के विनियामक/पर्यवेक्षक के रूप में हम असहज महसूस करते हैं। विनियामकीय / पर्यवेक्षणीय दृष्टिकोण 7. विश्व में बैंकिंग मानकों को लागू करने वाली इकाई के सदस्य के रूप में, हम विनियमन तथा पर्यवेक्षण की श्रेष्ठ वैश्विक प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यद्यपि, हमने राष्ट्र के हित में विवादित मुद्दों पर विवेकसम्मत निर्णय देना जारी रखा है, तथापि यह माना जाना चाहिए कि हमारे क्रियाकलाप जांच के दायरे में आते हैं। हमें पहले से ही बासल ।।। पूंजी मानकों पर विनियामक एकरूपता के लिए बीसीबीएस की एक समिति द्वारा समकक्ष समीक्षा के अंतर्गत रखा गया है तथा साल में आगे जाकर एक एफ़एसबी समीक्षा भी की जाएगी। ये गतिविधियाँ नियम बनाने तथा पर्यवेक्षणीय मूल्यांकनों में तर्कसंगत बने रहने के महत्व को दर्शाती हैं । विनियामक सहनशीलता का दायरा बढ़ाने के अवसर दिनों-दिन सीमित होते जा रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में, मैं कुछ मुद्दों पर प्रकाश डालना चाहूँगा जो बैंकों और उधारकर्ताओं के व्यवहार को समान रूप से बदलने में सहायक होंगे ।
ऋण खातों में दबाव की शुरुआत में ही पहचान करना 8. एक बहुत आम घटना जो बैंकर-उधारकर्ता संबंध को प्रभावित करती है वह है ऋण खातों में दबाव की पहचान करना। एक खाता प्रतिकूल व्यावसायिक माहौल, कतिपय अनपेक्षित राजनीतिक, कानूनी या न्यायिक उलटफेर जैसी वास्तविक कठिनाइयों के कारण अनर्जक हो सकता है। परियोजनाओं में अनुमति मिलने में हुए विलंब तथा अधिक लागत और समय की बर्बादी के कारण हुए विलंब से समस्याएँ आती हैं। इन समस्याओं का पूर्वानुमान लगाना बहुत ही सटीक व्यावसायिक आकलन करनेवाले या अत्यंत सक्षम ऋण मूल्यांकनकर्ता के लिए भी कठिन हो सकता है। ऐसे मामलों में पर्यवेक्षक या बैंकर की ओर से उधारकर्ता की मंशा पर सवाल उठाना उचित नहीं होगा। तथापि, ऐसे मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि बैंकर तथा उधारकर्ता प्रारम्भ में ही समस्या को पहचानें और नई इक्विटी लगाते हुए, नए कर्ज की मंजूरी देकर, नए प्रमोटरों को शामिल करते हुए खाते को पुनर्जीवित करने हेतु उपाय करें। समस्याग्रस्त खातों की पुनर्संरचना एक शुद्ध बैंकिंग उपाय है और अगर बैंकर के आकलन के अनुसार व्यवसाय पुनर्जीवित करने योग्य है और यदि उसका आर्थिक मूल्य है तो इसका उपयोग किया जाना चाहिए। आरंभिक रुग्णता के लक्षण दर्शाने वाले किसी भी प्रोजेक्ट में किसी भी प्रकार के विलंब से मूल्य में आगे और गिरावट आएगी, जिसे बैंकिंग प्रणाली/अर्थव्यवस्था वहन नहीं कर सकती। पथभ्रष्ट व्यवहार से निपटना 9. बैंकिंग में यह धारणा बनी हुई है कि सभी उधारकर्ता ईमानदारी दिखायेंगे और सामान्य आचार संहिता का पालन करेंगे। मुद्दा यह है कि नासमझ और असहयोगी उधारकर्ताओं, स्वैच्छिक चूककर्ताओं या धोखाधड़ीकर्ताओं से कैसे निपटा जाए? ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि पथभ्रष्ट उधारकर्ताओं पर तुरंत कानूनी कार्रवाई की जाए और जल्द से जल्द वसूली प्रक्रियाएं पूरी की जाएं। किसी भी स्त्रोत या नस्ल का एक अनर्जक खाता बैंकिंग प्रणाली में रुकावट पैदा करता है तथा मध्यस्थता की लागत बढ़ाता है, जिसका भार एक ईमानदार उधारकर्ता को सहन करना पड़ता है। बैंकिंग प्रणाली के लिए यह महत्वपूर्ण है कि देश में ऋण व्यवस्था की विश्वसनीयता और दक्षता सुनिश्चित करने हेतु जितना जल्द हो सके अनैतिक तत्वों को बाहर निकाल फेंका जाए। कई प्रयास पहले से ही जारी हैं, जिसमें से एक है केंद्रीय धोखाधड़ी रजिस्ट्री की स्थापना, जिससे बैंकों को धोखा देने में लिप्त पायी गई इकाइयों की सूचना त्वरित गति से साझा की जा सकेगी। रिज़र्व बैंक तथा आईबीए दोनों ने साथ मिलकर ऋण तथा अग्रिमों से संबन्धित धोखाधड़ियों सहित सभी प्रकार की धोखाधड़ियों से संबन्धित “सावधानी सूचना” को परिचालित करने की मुहिम शुरू कर दी है। जानबूझकर चूक करने वालों तथा धोखाधड़ी करने वालों को अलग-थलग करने के प्रयास करने होंगे तथा भविष्य में उन्हें वित्त लेने के लिए बैंकिंग प्रणाली का सहारा लेने से भी रोकना होगा। इसी प्रकार, प्रभावी सतर्कता प्रथाओं, तीव्र स्टाफ जवाबदेही उपायों तथा धोखाधड़ी मामलों में समय पर कानूनी कार्रवाई करते हुए बैंकिंग समुदाय में मौजूद पथभ्रष्ट लोगों पर लगाम लगाना भी जरूरी है। एक स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि जान-बूझकर अपराध करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा तथा लचर ऋण निगरानी या बिना सोचे–समझे दी गई ऋण मंजूरियों को बख्शा नहीं जाएगा । निष्कर्ष 10. मुझे विश्वास है कि रिज़र्व बैंक ही नहीं बल्कि एसोचेम जैसी औद्योगिक इकाई, यहाँ एकत्रित बैंकरों तथा उधारकर्ताओं की यह विशाल जनसभा वित्तीय क्षेत्र की मौजूदा मूल समस्याओं से भलीभाँति अवगत है। सही समय पर कड़े उपाय करने की आवश्यकता है। मुझे विश्वास है कि मैंने जिन मुद्दों को आज उठाया है उन पर इस सेमिनार में चर्चा की जाएगी और कुछ गहन आत्म-मंथन किया जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी में जो नवोन्मेष हुए हैं, उनकी सहायता से आसन्न डिफ़ाल्ट के शुरुआती लक्षण पहचानने के लिए बैंकों को और अधिक सख्त व्यवस्था लागू करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। मैं उधारकर्ताओं (निजी या कॉर्पोरेट) से भी आग्रह करूंगा कि वे अपनी मूल जिम्मेदारियाँ समझें, ऋणदाताओं के साथ सहयोग करें और सामान्य आचार संहिता तथा अनुशासन का पालन करें। कम से कम ऋण करारनामों का पालन तो किया जा ही सकता है। विधिक प्रावधानों का उपयोग बहुत अधिक और बार-बार नहीं किया जाना चाहिए, अपितु उनकी सहायता से बैंकों में ऋण अनुशासन को मजबूत करने और बेहतर उधारकर्ता संरक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऋणदाता–उधारकर्ता के बीच कोई भी संबंध केवल आपसी विश्वास और सहयोग पर ही चल सकता है, विश्वास भंग अंतत: या तो एक अपराध (दंड विधि के अंतर्गत) अथवा दीवानी अपराध हो सकता है, जिससे भारत में ऋण–प्रणाली निष्फल हो जाएगी। 11. मैं सभी का धन्यवाद करता हूँ कि आप लोगों ने मुझे यहाँ अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया। इस सम्मेलन की सफलता की कामना के साथ मैं आपसे विदा लेना चाहूंगा, धन्यवाद । 1 23 मार्च 2015 को नई दिल्ली में एसोचैम द्वारा आयोजित ‘बैंकर-उधारकर्ता –व्यवसाय बैठक’ के दौरान श्री एस एस मूँदड़ा, उप गवर्नर, भा.रि.बैं द्वारा दिया गया उद्घाटन भाषण। श्री आर. केसवन द्वारा दिए गए सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद । |