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वित्तीय समावेशन - चुनौतियाँ और अवसर - डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 9 दिसंबर 2009 को बैंकर्स क्लब, कोलकता में की गई टिप्पणी

डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक

उद्बोधन दिया

खुशियों के इस शहर कोलकाता में होना ही हमेशा एक आनन्द विभोर करनेवाला अनुभव रहा है। क्रिसमस-पूर्व मौसम में यहाँ होने का एक विशेष आनन्द है और व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए यह घर की याद आनेवाली एक स्मृति है। आज शाम को यहाँ पर भाषण देने हेतु मुझे आमंत्रित करने के लिए बैंकर क्लब को मेरी ओर से विशेष धन्यवाद। मुझे इस क्लब में पिछले साल हुई हमारी मुलाकात याद आ रही है जब हम अपने समय के सबसे गहरे वित्तीय संकट में थे और हम सब अपने कल के भविष्य को जानने के लिए उत्सुक और अनिश्चित थे। मेरा मानना है कि सबसे बुरा समय हमारे पीछे लगा हुआ है। दुनिया भर में और यहाँ भारत में भी ध्यान संकट प्रबंध से हटकर सुधारात्मक प्रबंध पर जा रहा है। जैसाकि होता है, हम भी करीब आधे बिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की दीर्घावधि चुनौतियों का सामना करने की ओर लौट रहे हैं। उस विशाल कार्य को पूरा करने के लिए हमें बहुत से काम करने होंगे। उनमें से एक वित्तीय समावेशन है। आज शाम मैं अपनी बात वित्तीय समावेशन की चुनौतियों और अवसरों पर केंद्रित करना चाहूंगा।

वित्तीय समावेशन - हजारों फूल खिले

2. यदि आप मुझे अनुमति दें तो मैं अपनी बात जीवन की कुछ झांकियों के साथ शुरू करना चाहूंगा। ग्रामीण महाराष्ट्र में, जहां लोग देश की किसी जगह के समान ही पानी, सफाई, बिजली और परिवहन की दैनिक चुनौतियों का सामना करते हैं। बहुत सी महिलाओं ने उद्यमी बनकर अपना और अपने परिवारों का जीवन सुधारा है यह सब इसलिए क्योंकि वे सब एक बैंक ऋण ले सकीं।

  • अरुणा गायकवाड़ को ही ले लीजिए। अरुणा एक खेतिहर मजदूर है जिसने अपनी अधिक उपज स्थानीय बाजार में बेचनी शुरू की। आपूर्ति और मांग के नियमों के एक चतुर पर्यवेक्षक की भांति जब फल और सब्जियों के मूल्य तय करने की बात आई तो उसे जल्द ही कारोबार में इजाफा दिखा। अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए उसे पैसे उधार लेने की जरूरत थी ताकि वह अपनी सब्जी की दूकान खड़ी कर सके। इस ऋण ने सब्जी बेचने के तेजी से बढ़ रहे व्यापार की स्थापना करने में उसकी मदद की और उसे दूसरे लोगों के खेतों में कमरतोड़ काम करने से छुटकारा दिलाया। उसके रोज़ कमाने और रोज़ खानेवाले पिछले जीवन ने सच्चाई का एक नया रास्ता दिखाया जिसमें बैंक में बचत करना और खातों की जांच करना और अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जरूरी ऋण भी शामिल है - ऐसी अच्छी किस्मत तो उसे खुद भी कभी नहीं मिली।

  • और एक लक्ष्मी शेलार है जो 17 वर्ष की अल्पायु में विधवा हो गई थी। लक्ष्मी ने एक स्थानीय स्वयं सहायता समूह बनाने में मदद की। उसने बैठकों में खुलकर बात की और समूह की अन्य महिलाओं को अपने हाथों में अपना भविष्य लेने के लिए प्रेरित किया। इस बीच, वह उनके लिए बैंकिंग सेवाएं लाई और शाम को उसने साक्षरता कक्षाएं चलाईं। लक्ष्मी के स्वयं सहायता समूह की सभी 177 महिलाओं ने उधार लिया और अपने कर्ज चुका भी दिए।

3. देश भर की लाखों महिलाओं में से अरुणा और लक्ष्मी तो सिर्फ दो महिलाएं हैं जिन्होंने यह दिखा दिया है कि यदि ग्रामीण महिलाओं को मूलभूत वित्तीय सेवाएं मिलें तो क्या कुछ हो सकता है। यही सब तो वित्तीय समावेशन है - लोगों को एक अवसर प्रदान करना ताकि वे अपना और अपने बच्चों का जीवन बेहतर बना सकें। अगर एक मौका दिया गया तो वह आवेग सामुदायिक स्तर पर जीवन की गुणवत्ता में निरंतर सुधार में योगदान दे सकते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर वृद्धि बनाए रखने तथा गरीबी कम करने में योगदान दे सकते हैं।

4. लेकिन पिरामिड के तल में रखे सौभाग्य को मुक्त करने में भारी बाधाएं हैं। उनमें से मुख्य है : वित्तीय वंचन। यह कई बाधाओं का एक संगम है : अन्य बाधाओं के अलावा, पहुंच की कमी, भौतिक और सामाजिक बुनियादी सुविधाओं का अभाव, समझ और ज्ञान का अभाव, प्रौद्योगिकी की कमी; समर्थन का अभाव, विश्वास की कमी है। संक्षेप में, इन बाधाओं पर काबू पाना ही वित्तीय समावेशन की चुनौती है।

वित्तीय समावेशन क्यों महत्वपूर्ण है?

5. वित्तीय समावेशन क्यों महत्वपूर्ण है? यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि समान वृद्धि बनाए रखने के लिए यह केवल एक जरूरी शर्त है। व्यापक आधार वाले वित्तीय समावेशन के बिना एक कृषि अर्थव्यवस्था से औद्योगिकोत्तर आधुनिक समाज में बदलने के उदाहरण यदि कोई हों भी तो बहुत कम हैं। वित्तीय सेवाओं तक आसान पहुंच वाले लोगों के रूप में हम सब व्यक्तिगत अनुभव से जानते हैं कि वित्तीय पहुंच आर्थिक अवसर के साथ जबर्दस्त तरीके से गुंथी हुई है। इस तरह की पहुंच, खासकर गरीब के लिए शक्तिशाली है क्योंकि यह उन्हें बचत इकट्ठी करने, निवेश करने और ऋण लेने के अवसर प्रदान करती है। अहम बात यह है कि वित्तीय सेवाओं तक पहुंच भी गरीब को अपनी आय के आघातों के खिलाफ स्वयं को बीमित रखने में मदद करता है और उन्हें परिवार में बीमारी, मौत या नौकरी जाने जैसी आपात स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करता है। कहना अनावश्यक है कि वित्तीय समावेशन अति ब्याज वसूलनेवाले उधारदाताओं के चंगुल से गरीब की रक्षा करता है।

6. वित्तीय समावेशन का एक अन्य लाभ है जिसे हमें अभी भी पूरी तरह से बढ़ाना है। वित्तीय समावेशन सरकारों को सामाजिक सुरक्षा अंतरणों, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (नरेगा) की मजदूरियों को ‘इलेक्ट्रॉनिक लाभ अंतरण’ (ईबीटी) पद्धति के माध्यम से हिताधिकारियों के बैंक खातों में डालने जैसे भुगतान करना संभव बनाएगा। इससे धन के रिसाव सहित लेन-देन की लागतें घटेंगी। देश के ऐसे भागों में जहां इस प्रकार के ईबीटी पहले ही शुरू हो चुके हैं, इसके परिणाम बड़े ही प्रभावशाली हैं तथा अदाकर्ताओं और प्राप्तकर्ताओं दोनों के ही अनुभव अत्यंत संतोषप्रद हैं।

7. सामूहिक स्तर पर भी असंख्य लाभ हैं। सबसे पहला और स्पष्ट लाभ यह है कि वित्तीय समावेशन गरीबों की बचत को औपचारिक वित्तीय मध्यस्थता प्रणाली में लाने और उन्हें निवेश की दिशा में प्रवाहित करने का एक मार्ग प्रदान करता है। दूसरा, कम लागतवाली जमाराशियों की भारी संख्या बैंकों को भारी जमाराशियों पर अपनी निभर्रता घटाने का एक अवसर देगी तथा उन्हें चलनिधि जोखिमों और आस्ति-देयता विसंगति दोनों का ही बेहतर प्रबंध करने में सहायता प्रदान करेगी।

वित्तीय वंचन - एक बड़ी तस्वीर

8. वित्तीय समावेशन का यह प्रयास कोई नया प्रयास नहीं है; सरकार और रिज़र्व बैंक दोनों ही पचास के दशक में ग्रामीण सहकारी ढांचे के निर्माण, साठ के दशक में बैंकों के साथ सामाजिक संविदा और सत्तर एवं अस्सी के दशक में बैंक शाखाओं के नेटवर्क के विस्तार के माध्यम से पिछले कई दशकों से इस लक्ष्य को पाने का प्रयास करते रहे हैं। इन प्रयासों ने पूरे देश में शाखाओं के एक नेटवर्क के अर्थ में फल दिया है।

9. हालांकि वित्तीय वंचन की मात्रा चौंकाने वाली है। देश की छ: लाख आबादी में से मात्र तीस हजार के पास ही एक वाणिज्य बैंक शाखा उपलब्ध है। पूरे देश में आबादी के मात्र लगभग 40 प्रतिशत के पास ही बैंक खाते हैं और देश के पूर्व-उत्तर क्षेत्र में यह अनुपात तो और भी कम है। किसी भी प्रकार की जीवन बीमा सुरक्षा रखने वाले लोगों का अनुपात न्यूनतम रूप में दस प्रतिशत है और गैर-जीवन बीमा रखने वालों का अनुपात तो 0.6 प्रतिशत है जोकि और भी कम है। डेबिट कार्ड रखनेवालों की संख्या मात्र 13 प्रतिशत और क्रेडिट कार्ड रखनेवालों की संख्या बहुत मामूली अर्थात मात्र 2 प्रतिशत है।

10. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण डेटा से पता चलता है कि 2003 में, देश में 89.3 मिलियन किसान परिवारों में से 51 प्रतिशत ने संस्थागत या गैर-संस्थागत स्रोतों में से किसी से भी ऋण नहीं प्राप्त किया।

11. ये आकड़े आँखें खोलने वाले हैं लेकिन ये वित्तीय वंचन की सही तस्वीर पेश नहीं करते। यहां तक कि जहां बैंक खाते खोलने का दावा किया गया है वहां सत्यापन ने दर्शाया है कि ये खाते निक्रिय हैं। केवल कुछ ही में बैंकिंग लेनदेन हुआ है और उससे भी कम खातों में किसी भी तरह का क्रेडिट हुआ है और इस प्रकार पूरे देश के लाखों लोगों को अपनी आय अर्जित करने की क्षमता और उद्यमशीलता प्रतिभा को दिखाने के अवसर से वंचित किया गया है और उन्हें दरकिनार करके गरीबी का मज़ाक उड़ाया गया है।

12. लेकिन इस कहानी का एक उज्जवल पक्ष भी है। उस उदाहरण को याद करें जो वे व्यापार रणनीति पाठ्यक्रमों में देते हैं। एक जूता कंपनी के कारोबारी अधिकारी को एक बड़े विकासशील देश में वहाँ की बाजार क्षमता के आकलन के लिए भेजा गया था। वहां जाकर उसने क्या देखा कि लाखों लोग बिना जूते के ही जा रहे हैं। वह वापस आया और प्रबंधन को उसने रिपोर्ट दी कि वहाँ व्यापार की कोई संभावनाएं नहीं हैं क्योंकि वहां कोई जूता ही नहीं पहनता। कुछ महीने बाद, एक प्रतिद्वंद्वी कंपनी का रणनीतिकार वहां गया और उसने वही चित्र देखा। वह वापस आया और उसने अपने प्रबंधन को सूचना दी कि उस देश में व्यापार की अपार संभावना हैं क्योंकि वहां वे बहुत जूते बेच सकते हैं। अंतत:, यह एक मानसिकता का सवाल है।

13. बैंकों को यह तस्वीर दूसरे व्यापारिक रणनीतिकार की तरह देखनी होगी। उन्हें पिरामिड के तल में अवसर देखने होंगे और एक बड़े पैमाने पर वित्तीय समावेशन में जाना होगा।

भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रयास

14. अब मैं वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा किए गए प्रयासों की संक्षिप्त जानकारी देना चाहूँगा। वित्तीय समावेशन के प्रति हमारा दृष्टिकोण बैंकिंग प्रणाली के साथ ‘लोगों को जोड़ना’ है न कि बस खाते खोलना। इसमें लोगों  की छोटी ऋण ज़रूरतों को पूरा करना, उनकी पहुंच भुगतान प्रणालियों तक पहुंचाना और प्रेषण सुविधाएं उपलब्ध कराना शामिल है। इससे कुछ उल्लेखनीय प्रगति हुई है:

(i) नो-फ्रिल खाते : नवंबर 2005 में, रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा कि वे शून्य या न्यूनतम शेष राशि और न्यूनतम प्रभार के साथ एक बुनियादी बैंकिंग नो-फ्रिल खाते प्रस्तावित करें ताकि ऐसे खातों की कम से आउटरीच निम्न आय समूहों तक बढ़ाई जा सके।

(ii) आसान ऋण सुविधा : बैंकों को कहा गया कि वे 25,000 रुपए तक की सुविधा वाला एक सामान्य प्रयोजन क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) जारी करें। हालांकि, मार्च 2009 के अंत तक बैंकों द्वारा जारी किए गए जीसीसी कार्डों की कुल संख्या केवल 0.15 मिलियन थी।

(iii) सरल के वाय सी मानदंड : यह सुनिश्चित करने के लिए कि शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के निम्न आय समूहों वाले लोगों को बैंक खाते खोलने में कठिनाइयों का सामना न करना पड़े, खाते खोलने के लिए ‘अपने ग्राहक को जानिए’ (केवायसी) प्रक्रिया को उन खातों के लिए सरलीकृत किया गया जिनकी शेष राशि एक साल में रु..50,000 से अधिक नहीं और जमा (क्रेडिट) रु..1,00,000 से अधिक नहीं हो।

  • बॉयोमीट्रिक पहचान के साथ बैंक खाते खोलने के लिए स्मार्ट कार्ड। ये अपने दरवाजे के पास बैंकिंग सेवाएं पाने में ग्राहकों की मदद करते हैं।

  • बैंकिंग लेनदेन के लिए दस्ती चल (मोबाइल) इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जोड़ना (लिंक)। अक्तूबर 2008 में, रिजर्व बैंक ने प्रौद्योगिकी, सुरक्षा मानकों, और उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर बैंकों को सलाह दी।

(v) बैंकों के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक लाभ हस्तांतरण (ईबीटी): रिजर्व बैंक राज्य सरकारों के साथ परामर्श कर रहा है ताकि उन्हें बैंकों द्वारा किए जानेवाले इलेक्ट्रॉनिक लाभ हस्तांतरण (ईबीटी) के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

(vi) 100 प्रतिशत वित्तीय समावेशन अभियान : रिजर्व बैंक ने एक वित्तीय समावेशन अभियान शुरू किया है जिसका लक्ष्य प्रत्येक राज्य में एक जिले में 100 फीसदी वित्तीय समावेशन लाना है। प्राप्त अनुभव के आलोक में यह कवरेज अन्य क्षेत्रों / जिलों तक बढ़ा दिया गया है। हमने बैंकों द्वारा रिपोर्ट किए गए 100 प्रतिशत वित्तीय समावेशन की गुणवत्ता का एक बाहरी मूल्यांकन किया। उस आधार पर, जनवरी 2009 में हमने बैंकों को सलाह दी है कि : (i) विभिन्न चैनलों के माध्यम से नो-फ्रिल खाता धारकों के स्थान के नजदीक बैंकिंग सेवाओं का प्रावधान सुनिश्चित करें ; (ii) नो-फ्रिल खातों के साथ जीसीसी / छोटे ओवरड्राफ्ट उपलब्ध कराए जाएं ताकि सक्रिय रूप से खातों को चलाने के लिए खाता धारकों को प्रोत्साहित किया जा सके; (iii) नो-फ्रिल खाता धारकों को दी जानेवाली सुविधाओं के बारे में जागरूकता अभियान चलाया जाए; (iv) 100 प्रतिशत वित्तीय रूप से समावेशित घोषित जिलों में कवरेज की सीमा की समीक्षा की जाए और (v) उपलब्ध तकनीक समर्थित वित्तीय समावेशन सोल्यूशनों के संबंध में कुशलतापूर्वक लीवरेज प्रदान किया जाए।

कारोबारी संवाददाता मॉडल

15. शायद रिजर्व बैंक की सबसे महत्वपूर्ण पहल कारोबारी संवाददाता(बीसी) मॉडल रही है। यह कारोबारी संवाददाता मॉडल गरीब लोगों और सुव्यवस्थित वित्तीय प्रणाली के बीच एक निकट संबंध सुनिश्चित करती है। यह देखते हुए 2006 में, हमने बैंकों को गैर सरकारी संगठनों, माइक्रोफाइनांस संस्थाओं, सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारियों, भूतपूर्व सैनिकों, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों, धारा 25 वाली कंपनियों और अन्य नागरिक समिति संगठनों की सेवाओं का कारोबारी संवाददाता के रूप में वित्तीय और बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने में उपयोग करने की अनुमति दी।

16. हालांकि यह कारोबारी संवाददाता(बीसी) मॉडल चल पड़ा है लेकिन इसकी क्षमता में सुधार करने के लिए इसे फाइन ट्यून करने और निगरानी करने की जरूरत है जिसमें कारोबारी संवाददाताओं का बेहतर प्रशिक्षण भी शामिल है। हाल ही में, हमने बैंकों को व्यक्तिगत किराना / चिकित्सा / उचित मूल्य की दुकान मालिकों, अपना पीसीओ चलानेवालों (ऑपरेटरों), लघु बचत योजनाओं और बीमा कंपनियों के एजेंटों, पेट्रोल पंप मालिकों, सेवानिवृत्त शिक्षकों और बैंकों से जुड़े स्वयं सहायता समूहों को कारोबारी संवाददाता के रूप में नियुक्त करने के लिए अनुमति देकर इस कारोबारी संवाददातामॉडल का दायरा और बढ़ा दिया है। कारोबारी संवाददाता मॉडल की व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को पारदर्शी तरीके से ग्राहकों से उचित सेवा शुल्क लेने की भी अनुमति दी गई है। आगे चलकर रिजर्व बैंक का यह प्रयास होगा कि केवल उन संस्थाओं की एक नकारात्मक सूची के साथ जो कारोबारी संवाददाताके रूप में नियुक्त होने की पात्र नहीं होंगी, बैंकों को कारोबारी संवाददाता नियुक्त करने की पूरी छूट दे।

बैंक शाखा और एटीएम विस्तार उदार बनाया गया

17. पिछले वर्ष, रिजर्व बैंक ने एटीएम के स्थान हेतु पहले से प्राधिकार प्राप्त करने की अनिवार्यता से पूरी तरह छूट दे दी। अक्टूबर 2009 की नीतिगत समीक्षा में रिजर्व बैंक ने 50,000 से कम आबादी वाले गांवों और शहरों में शाखा खोलने की स्वतंत्रता देकर एक और बड़ा कदम उठाया। अब देशी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) 50,000 से कम आबादी वाले कस्बों और गांवों में शाखाएं खोलने के लिए स्वतंत्र हैं और यह उनका दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि कम से कम एक तिहाई यह शाखा विस्तार अल्प बैंक सुविधायुक्त राज्यों के अल्प बैंक सुविधायुक्त जिलों में हो। बैंकों द्वारा बड़े शहर में शाखाएं खोलने के (टियर 1 और टियर 2 केंद्रों) प्रस्ताव पर रिजर्व बैंक द्वारा किए जानेवाले विचार के मानदंडों में से यह एक मानदंड होगा।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में बैंकों विस्तार

18. पूर्वोत्तर में बैंकिंग पहुंच सुधारने के लिए रिजर्व बैंक ने राज्य सरकारों और बैंकों से कहा कि वे उन केंद्रों की पहचान करें जहां संपूर्ण शाखाओं या उन शाखाओं की स्थापना करने की आवश्यकता है जो विदेशी मुद्रा सुविधाएं देती हैं, सरकारी व्यवसाय संभालती हैं या करेंसी आवश्यकताएं पूरी करती हैं। हमने पूंजी और पांच साल के लिए शाखा चलाने के खर्च की पेशकश भी की है बशर्ते संबंधित राज्य सरकार परिसर और सुरक्षा की उचित व्यवस्था करने को तैयार हो। मेघालय इस ब्लॉक से पहला राज्य रहा है और बोली के बाद प्रक्रिया के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के तीन बैंकों को आठ केंद्र आबंटित किये गये हैं। रिजर्व बैंक पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के साथ इसी तरह की व्यवस्था कायम करने पर काम कर रहा है।

वित्तीय साक्षरता परियोजना

19. मैं रिजर्व बैंक के वित्तीय साक्षरता अभियान पर कुछ शब्द कहना चाहता हूँ। वित्तीय साक्षरता वित्तीय समावेशन की ओर बढ़ने की दिशा में है एक सीढ़ी है। हालाँकि,, जैसे-जैसे वित्तीय बाजार सूचना विषमता की गंभीर समस्याओं के साथ दिनोंदिन जटिल होते जा रहे हैं, वित्तीय साक्षरता की जरूरत और भी ज्यादा हो गयी है। रिजर्व बैंक ने केंद्रीय बैंक और आम बैंकिंग अवधारणाओं के बारे में विभिन्न लक्षित समूहों को जानकारी के प्रसार के उद्देश्य से एक वित्तीय साक्षरता परियोजना शुरू कर दी है। हमारी वेबसाइट 13 भाषाओं में भी उपलब्ध है।

20. हमारा ‘वित्तीय शिक्षा’ वेबसाइट लिंक सभी उम्र के बच्चों के लिए बैंकिंग, वित्त और केंद्रीय बैंकिंग की बुनियादी बातें बताता है। एक हास्य पुस्तक फार्मेट में सीखना मज़ेदार और दिलचस्प बनाने के लक्ष्य के साथ हम बैंकिंग, वित्त और केंद्रीय बैंकिंग की जटिलताओं को सरल बनाते हैं।

वित्तीय साक्षरता और ऋण विषयक परामर्श

21. हमने प्रत्येक राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक बैंक को सूचित किया है कि है वे प्रायोगिक आधार पर किसी एक जिले में एक वित्तीय साक्षरता एवं परामर्श केद्र स्थापित करें और उससे प्राप्त अनुभव के आधार पर यह सुविधा यथासमय अन्य जिलों में लागू करें। अब तक देश के विभिन्न राज्यों में 154 ऋण (क्रेडिट) परामर्श केद्र स्थापित किए जा चुके हैं। उम्मीद है कि ये केंद्र अपने मूल बैंक के साथ एक निकट रिश्ता रखते हुए ग्रामीण और शहरी इलाकों में लोगों को विभिन्न वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के बारे में मुफ्त वित्तीय शिक्षा उपलब्ध कराएंगे।

स्कूल और कालेजों में वित्तीय पाठ्यक्रम

22. रिजर्व बैंक वित्तीय साक्षरता पाठ्यक्रम को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए देश भर में राज्य सरकारों के साथ सहयोग करके वित्तीय साक्षरता अभियान को आगे बढ़ा रहा है। हमने कर्नाटक में एक प्रारंभिक (पायलट) कार्यक्रम शुरू किया है। हमने बैंकिंग,वैयक्तिक वित्त के साथ-साथ रिजर्व बैंक पर राज्य सरकार को सामग्री दी। कर्नाटक सरकार ने इसे अपनाया है और इसका अनुवाद कराया है तथा हाई स्कूल के लिए पाठ्यक्रम में इसकी काफी सामग्री शामिल कर ली है वर्गों और जून 2010 से शुरू होनेवाले अगले अकादमिक वर्ष में इसके प्रारंभ हो जाने की उम्मीद है। इस अनुभव के आधार पर हम पूरे देश में इस पहल को मुख्यधारा में लाना चाहते हैं।

वित्तीय समावेशन - चुनौतियां और अवसर

23. अब मैं वित्तीय समावेशन की चुनौतियों और अवसरों की संभावनाओं के सामन्टा आता हूँ। इसमें हमें स्वयं से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि अपनी ग्रामीण नीति पर जोर के बावजूद इतने सारे बैंक सुविधा प्राप्त करने योग्य लोगों को बैंकिंग सुविधा क्यों नहीं है? मांग और आपूर्ति दोनों ही पक्षों के कारकों से उत्पन्न होने वाली सेवाओं तक पहुँच के मार्ग में अवरोध हैं।

24. मांग की ओर से बड़ी बाधाएं हैं वित्तीय सेवाओं और उत्पादों के बारे में जागरूकता की कमी, सीमित साक्षरता विशेष रूप से जनता की वित्तीय साक्षरता और सामाजिक बहिष्कार। बहुत से वित्तीय सामान्य उत्पाद गरीबों के लिए अनुपयुक्त हैं और उनकी जरूरतों के लिए उपयुक्त उत्पाद डिजाइन करने के भी काफी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। ग्राहकों के प्रति बैंकों का बेगानों जैसा रवैया और दूसरे की भावनाएं न समझने का दृष्टिकोण भी वित्तीय सेवाओं की मांग को घटाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उस पर भी भारी भरकम और अक्सर अपारदर्शी फीस तथा वित्तीय उत्पादों से जुड़ी शर्तें भी मांग को कम कर देती हैं।

25. आपूर्ति पक्ष की ओर से मुख्य बाधा लेनदेन की लागत है जिसे कि बैंकर अनुभव करते हैं। क्योंकि वर्तमान मात्रा कम है,अत: बैंकों पाते हैं कि वित्तीय सेवाएं देना लागत प्रभावी नहीं है। इसके अलावा, संप्रेषण की कमी, बुनियादी सुविधाओं की कमी, भाषागत  अवरोध और कम साक्षरता का स्तर यह सब सेवाएं प्रदान करने की कीमत और बढ़ा देता है और इस वजह से बैंकर आपूर्ति पक्ष की ओर से पहल करन से बचते हैं। के दो

26. कुछ एक सप्ताह पहले, बोस्टन परामर्श समूह के सहयोग से रिज़र्व बैंक ने हमारे कृषि बैंकिंग महाविद्याालय, पुणे में वित्तीय समावेशन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया था। इस कार्यशाला का सीधा उद्देश्य इस कार्यक्षेत्र में सक्रिय प्रबंधकों से वित्तीय समावेशन के अवसरों और चुनौतियों के बारे में सुनना था। तदनुसार, हमने इस कार्यशाला में बैंक शाखा प्रबंधकों जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के शाखा प्रबंधक भी शामिल हैं, और माइक्रोफाइनांस संस्थाओं तथा कुछ गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया। इसमें सरकारी और निजी क्षेत्र के कुछ बड़े बैंकों के अध्यक्ष भी उपस्थित थे।

27. मुझे कहना पड़ेगा कि कार्यशाला में प्रतिभागियों को सुनना एक अत्यंत लाभकारी अनुभव था। एक संस्था के रूप में रिज़र्व बैंक और व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए उस कार्यशाला से फायदे की सबसे बड़ी बात यह रही कि इससे पता चला कि वहाँ वित्तीय समावेशन के मार्ग में समस्याएं हैं लेकिन ऐसी नहीं कि दूर न की जा सकें। अगर रिजर्व बैंक और वाणिज्यिक बैंक अपना मन और उससे अधिक महत्वपूर्ण अपने दिल एक साथ मिला लें तो इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। 

28. इस कार्यशाला में हमने जो सुना उसके अनुसार तीन बड़ी चुनौतियों हैं: (i) लागत, (ii) दमदार प्रौद्योगिकी की कमी और (iii) जानकारी का अभाव। इन चुनौतियों में से कुछ स्पष्ट रूप से अतिरंजित हैं और कुछ को आसानी से दूर किया जा सकता है।

29. वास्तव में, लागत ही मुख्य बात है। यह कोई मामला नहीं है कि देश के 500,000 से भी अधिक गांवों को ईंट और गारे वाली शाखा के माध्यम से कवर किया जा सके। यह स्पष्ट रूप से एक ‘बैंकिंग’ योग्य प्रस्ताव नहीं है। हमें वित्तीय सेवाएं देने के लिए कम लागत वाले व्यवसाय संवाददाता मॉडल और उत्तोलन तकनीक के माध्यम से जाना होगा।

30. रिजर्व बैंक ने बैंकों को आई टी - स्मार्ट कार्ड / मोबाइल प्रौद्योगिकी समर्थित वित्तीय समावेशन का उपयोग करने को लीवरेज़िंग देकर प्रोत्साहित किया है। बैंकों के कारोबारी संवाददातादूरदराज के गांवों तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के लिए और विशेष रूप से एनआरईजीए के वेतन और सामाजिक सुरक्षा भुगतान के इलेक्ट्रॉनिक लाभ अंतरण हेतु बड़े पैमाने पर दस्ती उपकरणों/मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश में यह बहुत सफल रहा है और हाल ही में उड़ीसा में एक राज्य व्यापी परियोजना है प्रारंभ की गयी है। इसके अलावा, देश के अधिकांश राज्यों में प्रायोगिक परियोजनाएं विचाराधीन हैं।

31. चूंकि देश में गांव से गांव के बीच सुदृढ़ इलेक्ट्रॉनिक विप्रेषण प्रणाली इस समय उपलब्ध नहीं है अत:, कारोबारी संवाददातामाध्यम के ज़रिये वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक लाभ अंतरण (ईबीटी) में शामिल उन विभिन्न बैंकों की प्रणालियों को जोड़ने के लिए उपयुक्त बुनियादी ढांचे के निर्माण द्वारा इसे लागू किया जा सकता है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम / बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास अनुसंधान संस्थान में इस प्रयोजन के लिए राष्ट्रीय वित्तीय स्विच (एनएफएस) के समान ही रखा गया एक मजबूत स्विच एक लंबे समय से महसूस की जा रही देश के लिए एक राष्ट्रव्यापी विप्रेषण प्रणाली की आवश्यकता को पूरा कर सकता है व्यवस्था। अत: यह विप्रेषण प्रणाली को और अधिक कुशल तथा अधिक आकर्षक बनायेगा।

32. मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि आगे चलकर मात्रा बढ़ाकर लागत कम करने के ढेर सारे मौके हैं। मैं इसे थोड़ा विस्तार से बताना चाहूंगा। सबसे पहली बात जनसांख्यिकीय प्रोफाइल है - 15 से 64 आयु वर्ग की श्रम शक्ति बढ़ने जा रही है। जैसे-जैसे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इन लोगों की कमाई शुरू होगी, बैंकों के लिए उनकी आय जमा का एक बड़ा और बढ़ता स्रोत बनेगी। देश के विशाल भीतरी भाग में अपनी उपस्थिति स्थापित करने के वक्र से जो बैंक आगे रहेंगे उन्हें इस संभावित विशाल अवसर का लाभ उठाने में पहले आगे बढ़ने वाले का लाभ मिलेगा। दूसरी बात, वहाँ पर विप्रेषण हासिल करने का मौका है। हालांकि, ऐसे कोई पक्के आंकड़े नहीं हैं। मुझे बताया गया है कि आज देश भर में हजारों करोड़ रुपए के विप्रेषण होते हैं जो मुख्य रूप से प्रवासी मजदूरों से होते हैं और यह नब्बे प्रतिशत से अधिक अनौपचारिक माध्यमों से होते हैं। अगर बैंक इसका आधा भी हथिया लें तो वे न केवल विप्रेषण करने वाले मज़दूरों की लागत कम कर सकेंगे बल्कि आने वाले ढेर सारे पैसे का भी उन्हें स्थायी फायदा होगा।

33. तीसरा, ईबीटी, इलेक्ट्रॉनिक लाभ अंतरण एक और बड़ा मौका है। मैं ऐसा मानता हूँ कि बैंक अज्ञात डर से इसको आगे बढ़ाने से हिचकते हैं : वे विश्वास ही नहीं है कि यह कारोबार लागत प्रभावी हो सकता है। बैंक इन संभावनाओं को स्पष्ट रूप से समझ रहे हैं। यदि वास्तव में, सभी या यहां तक कि ग्रामीण लोगों के लिए होनेवाले अधिकांश सरकारी भुगतान ईबीटी मोड के माध्यम से होने लगते हैं तो यह बैंकों को फिर से एक बड़ा अस्थायी धन दे सकते हैं और इसे एक आकर्षक कारोबार प्रस्ताव बना सकते हैं। अब तक ईबीटी के संबंध में बैंकों और राज्य सरकारों के बीच लागत की साझेदारी की बात रही है। जैसे ही ईबीटी विधा का विस्तार हो जाता है और यह सार्वभौमिक हो जाती है, बैंक पाएंगे कि यह एक व्यावहारिक कारोबार मॉडल है, जिसमें कोई सेवा शुल्क भी नहीं है।

34. यहाँ सर्वथा भिन्न पहचान संख्या (यूआईडी) की क्षमता को स्वीकार करना भी प्रासंगिक है जिस पर नंदन नीलेकनी और उनक ा टीम काम कर रही है। यह यूआईडी गरीब लोगों के लिए बैंकों के केवायसी मानदंडों को पूरा करने में अपनी पहचान स्थापित करने में मददगार एक शक्तिशाली साधन होगा। मुझे विश्वास है कि यह बैंकों और संभावित ग्राहकों दोनों के लिए नकद और गैर-नकद लेनदेन की लागतें कम करने जा रहा है। यह यूआईडी गरीबों के लाभ के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का एक और शक्तिशाली उदाहरण है।

35. रिजर्व बैंक ने वित्तीय समावेशन के बैंक-निर्देशित मॉडल के प्रति एक प्रतिबद्धता व्यक्त की है और यह सूचना के प्रसार, सबसे अच्छी प्रथाओं की साझेदारी और विनियामक प्रोत्साहन के माध्यम से भी वित्तीय समावेशन की दिशा में उनके द्वारा किए जाने वाले प्रयासों का समर्थन करेगा। फिर भी मैं कहना चाहता हूँ कि बैंक प्रणित मॉडल के प्रति हमारी प्रतिबद्धता बंधनकारी नहीं है। वित्तीय समावेशन के अन्य मॉडल भी हैं जिन पर दुनिया में कहीं और भी प्रयोग चल रहे हैं। यदि बैंक आगे नहीं आते हैं और वित्तीय समावेशन के इस अवसर का फायदा उठाने में विफल रहते हैं, रिजर्व बैंक वित्तीय समावेशन के अन्य मॉडलों की खोज में संकोच नहीं करेगा।

36. अब माइक्रोफाइनांस संस्थानों (एमएफआई) के बारे में भी एक चर्चा हो जाए। कई बैंकों ने माइक्रोफाइनांस संस्थाओं के साथ भागीदारी की है जो जनसंख्या के अपेक्षाकृत उच्च जोखिम घटकों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। माइक्रोफाइनांस ने औपचारिक वित्तीय क्षेत्र द्वारा पीछे छोड़ दिये लोगों के संपूर्ण क्षेत्र को वित्त तक पहुँच प्रदान की है - और माइक्रो वित्त ने दिखा दिया है कि कैसे इन निम्न आय समूहों की श्रेणियां वास्तव में एक बैंकिंग योग्य ग्राहक हैं। लेकिन कीमत एक मुद्दा बना हुआ है। 24-30 प्रतिशत पर ब्याज दरें लेता है बहुत अधिक लगती हैं। हो सकता है अनौपचारिक क्षेत्र की तुलना में ये दरें शायद कम हों लेकिन सवाल यह है कि क्या ये दरें सस्ती हैं। आदर्श रूप में, प्रभारित किया गया ब्याज निधियों की लागत, लेनदेन लागत, जोखिम लागत और एक निश्चित मार्जिन के अनुरूप होना चाहिए और किसी भी तरह उससे बाहर नहीं होना चाहिए और हर हाल में इसके निर्धारण में पारदर्शिता और इसे लागू करने में निष्पक्षता होनी जरूरी है।

भावी पथ

37. आगे चलकर रिजर्व बैंक तीन लक्ष्यों को आगे बढ़ाएगा। सबसे पहले, प्रत्येक जिले में अग्रणी बैंक को यह सुनिश्चित करने के लिए एक योजना (रोडमैप)बनाने के लिए कहा गया है कि मार्च 2011 तक 2,000 से अधिक की आबादी वाले सभी गांवों को एक बैंकिंग केंद्र के माध्यम से वित्तीय सेवाओं तक पहुंच मिले, जरूरी नहीं है कि इसके लिए एक बैंक शाखा हो। थोड़ा हटकर मैं आपको यह भी बता दूं कि कई उपभोक्ता वस्तु कंपनियों ने विशिष्ट रणनीतियों का अनावरण किया है जिनका लक्ष्य माइक्रो बाजार के रूप में 5,000 से कम आबादी वाले गांव हैं। मुझे लगता है कि बैंकरों के रूप में आप भी उनके बाजारों में अपने ग्राहकों को सेवाएं दे सकते हैं।दूसरी बात यह है कि सभी वाणिज्यिक बैंकों, सरकारी क्षेत्र के बैंकों, निजी बैंकों और विदेशी बैंकों से कहा जाने वाला है कि वे मार्च 2010 तक अपने विशिष्ट बोर्ड की मंजूरी के साथ वित्तीय समावेशन करने के लिए एक योजना लेकर आगे आएं। ये योजनाएं अगले तीन साल में लागू आरंभ की जाएंगी। पर रिजर्व बैंक में हमने जानबूझकर बैंकों पर एक समान मॉडल लागू करने से परहेज किया है क्योंकि हम चाहते थे कि प्रत्येक बैंक अपनी रणनीति और तुलनात्मक लाभ के अनुरूप अपने-अपने व्यापार मॉडल बनाए। आशा है कि इससे बेहतर स्वामित्व सुनिश्चित होगा। रिजर्व बैंक इस संबंध में भारतीय बैंक संघ से सलाह कर रहा है। तीसरी बात, पुणे में हुई कार्यशाला में अग्रिम पंक्ति के प्रबंधकों से हमें पता चला कि बैंकों के शीर्ष प्रबंधन वित्तीय समावेशन के प्रयासों पर जोर नहीं देते हैं और शाबासी भी बहुत कम मिलती है। इसका उपाय यह है कि हम सभी बैंकों से कहने जा रहे हैं कि वे अपने क्षेत्र (फील्ड) कर्मचारी के कार्य 5निष्पादन मूल्यांकन में वित्तीय समावेशन से संबंधित मानदंड शामिल करें।

38. रिजर्व बैंक द्विमार्गी संप्रेषण का आदर करता है। सुनकर के हम लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को जानते हैं। यह हमें और अधिक संवेदनशील, नवोन्मषी और उत्तरदायी बनन्टा के लिए प्रेरित करता है। हमारे प्लेटिनम जुबली वर्ष में हमारी पहलों में से एक पहल है - वित्तीय शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के साथ दूरदराज के गांवों तक पहुँचना - अर्थव्यवस्था के बारे में जागरूकता का प्रसार करना, रोजमर्रा के जीवन में रिजर्व बैंक द्वारा अदा की जानेवाली भूमिका पर जोर और बैंकों द्वारा दी जानेवाली वित्तीय सेवाओं और बैंकिंग सेवाओं के उपयोग के लाभों की आम आदमी को जानकारी प्रदान करना है। यह आउटरीच कार्यक्रम कम आय समूहों को वित्तीय सेवाओं की मांग के लिए शिक्षित करने और गरीब की जरूरत के अनुसार वित्तीय सेवाओं की आपूर्ति करने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने का एक साथ किया जानेवाला प्रयास है। मुझे कहना पड़ेगा कि इस आउटरीच कार्यक्रम से आज की तारीख तक के अनुभव अत्यंत फायदेमंद और उद्देश्य पूरा करने वाले रहे हैं। मैं वाणिज्यिक बैंकों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ जो इस आउटरीच कार्यक्रम में हमारे साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।

39. पिछले हफ्ते मैंने इस आउटरीच कार्यक्रम के एक भाग के रूप में उड़ीसा के जलंगा गांव का दौरा किया। मैं सहायता समूहों से बहुत प्रभावित हुआ - आम तौर पर ये समूह महिलाओं के होते हैं जो साथ मिलकर अपना समूह बनाती हैं, अपनी बचतें इकट्ठी करती हैं और अपने सदस्यों को ऋण देती हैं। इन समूहों ने उन्हें वित्तीय आजादी देकर और इस प्रकार हौसला बढ़ाकर महिलाओं का सशक्तीकरण किया है। मात्र एक आशा से कहीं अधिक, इन महिलाओं के पास एक कल्पनात्मक दृष्टिकोण है कि वे थोड़े से भी अवसर का लाभ उठाकर और कठिन मेहनत करके इसे वास्तविकता में बदल सकती हैं।

निष्कर्ष

40. अब मैं पुरानी बातों को बार-बार कहे जाने की कीमत पर भी अपनी बात दुहराते हुए निष्कर्ष पर आना चाहूंगा कि गरीब से की जानेवाली बैंकिंग वास्तव में एक दमदार सौदा/प्रस्ताव हो सकता है। वित्तीय समावेशन गरीबों, बैंकों और देश सभी के लिए एक फायदे (विन-विन) की बात है। बढ़ती आय और जागरूकता के स्तर में सुधार से गरीबों की आकांक्षाएं भी बढ़ रही हैं। यदि हम इन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सिर्फ कल्पना की गरीबी के कारण आगे नहीं आते तो हमें माफ नहीं किया जाएगा। अब यह बैंकों के लिए है कि क्या वे एक भारी दायित्व के बोझ को एक रोमांचक अवसर के रूप में बदलना चाहते हैं और वित्तीय समावेशन की दिशा में आक्रामक रूप से आगे बढ़ते हैं।

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