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उद्घाटन संबोधन : तीसरा वार्षिक सांख्यिकी दिवस सम्मेलन * - डी. सुब्बाराव

डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक

उद्बोधन दिया

उद्घाटन संबोधन : तीसरा वार्षिक सांख्यिकी दिवस सम्मेलन*
डी. सुब्बाराव

रिज़र्व बैंक के इस तीसरे वार्षिक सांख्यिकी दिवस सम्मेलन के उद्घाटन के लिए आज यहां आने पर मुझे खुशी हो रही है। अब यह हमारे लिए एक परम्परा बन गई है कि हम सांख्यिकी दिवस को स्व. प्रोफेसर पी.सी. महालनोबिस को श्रद्धांजलि अर्पित करने और भारत में सांख्यिकी के विकास में उनके विशाल योगदान, शैक्षिक शाखा एवं जन नीति के साधन, दोनों के रूप में मनायें। विकास आयोजना का महालनोबिस मॉडल भारत के विकास इतिहास का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया, क्योंकि यह सांख्यिकीय आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित था। आज प्रयुक्त होने वाली बड़े पैमाने की नमूना सर्वेक्षण तकनीक की नींव प्रो. महालनोबिस द्वारा किये गये अग्रणी कार्य पर टिकी है। इस सांख्यिकी दिवस पर प्रो. महालनोबिस को याद करते हुए रिज़र्व बैंक को खुशी की अनुभूति है।

2. इस वर्ष का सांख्यिकी दिवस दूसरे कारण से महत्वपूर्ण है। यह सीखने के कई कार्यक्रमों का एक हिस्सा है जिनकी हम वर्ष 2009-10 के दौरान रिज़र्व बैंक की प्लैटिनम जुबिली मनाने के लिए योजना बना रहे हैं। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सांख्यिकीय विश्लेषण की हमारी समझ को सुधारने और इस क्षेत्र की बेहतरीन पद्धतियों को जानने से रिज़र्व बैंक को अपने अधिदेश को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

3. यह हमारे लिए गर्व की बात है कि इस वर्ष के सांख्यिकी दिवस पर प्रो. टी.एन. श्रीनिवासन जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति हमारे बीच उपस्थित हैं। प्रो. श्रीनिवासन वर्तमान में याले में सैमुअल सी. पार्क जूनियर में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं, उनका शैक्षणिक रिकॉर्ड अति उत्तम रहा है और वे व्यापार एवं विकास के क्षेत्र में विश्व के प्रमुख विशेषज्ञों में से एक माने जाते हैं। उनके कार्य का बड़ा हिस्सा सांख्यिकीय विश्लेषण से संबंधित रहा है। इस सम्मेलन के दौरान हमें उनकी विद्वता और विश्लेषणात्मक अन्तर्दृष्टि से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

4. मैं इस अवसर पर हमारे तीन विशिष्ट अतिथियों के प्रति भी आभार प्रकट करना चाहूंगा। प्रो. जे.के. घोष वर्तमान में परदू विश्वविद्यालय में सांख्यिकी के प्रोफेसर हैं, वे भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के पूर्व निदेशक हैं। वे बेयसिन सांख्यिकी के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञ हैं। भारतीय सांख्यिकीय संस्थान के प्रो. अरिजित चौधुरी सर्वेक्षण के प्रमुख विशेषज्ञों में से एक हैं। प्रो. चौधुरी ने बहु-स्तरीय नमूना चयन, जटिल सर्वेक्षण की अभिकल्पना, यादृच्छिकीकृत प्रतिक्रिया सर्वेक्षण और छोटे क्षेत्र के आकलन के क्षेत्र में सर्वेक्षण कार्यपद्धतियों को आगे बढ़ाया है। अंत में फेडरल रिज़र्व बैंक, न्यूयार्क के सहायक उपाध्यक्ष प्रतिष्ठित, डॉ. विलबर्ट वान डेर क्लाऊ हमारे बीच उपस्थित हैं। डॉ. क्लाऊ फेडरल रिज़र्व बैंक में मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं से संबंधित परियोजना टीम के प्रमुख हैं, यह विषय अत्यधिक रुचि का क्षेत्र है और मैं यहां यह बताना चाहूंगा कि यह दुनियाभर के केद्रीय बैंकों के लिए जटिल चुनौती है।

5. इस वार्षिक सम्मेलन में आप सभी का एक बार फिर से हार्दिक स्वागत करता है।

तीन चुनौतियां

6. रिज़र्व बैंक में हम जो कार्य करते हैं उसमें से अधिकांश का केंद्रबिन्दु सांख्यिकी और सांख्यिकीय विश्लेषण है। कई निर्णय जो हमें लेने होते हैं और कई विचार जो हमें बनाने होते हैं, वे आंकड़ों के विश्लेषण और व्याख्या पर आधारित होते हैं। यह बिलकुल स्पष्ट है कि हम प्राय: अपूर्ण, असंगत या असामयिक आंकड़ों से जूझते हैं। सभी प्रेरक सीखें बौद्धिक अनुक्रम के साथ प्रगति की तरह है - आंकड़ों से जानकारी, जानकारी से ज्ञान और ज्ञान से बुद्धिमानी आती है। अत: हमारे नीतिगत निर्णयों की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता निर्णायक रूप से आंकड़ों की गुणवत्ता और विश्लेषण एवं व्याख्या की प्रभावोत्पादकता पर निर्भर करती है। अत: भारतीय रिज़र्व बैंक जैसी जन नीति बनाने वाली संस्थाओं के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे सांख्यिकी और सांख्यिकीय विश्लेषण पर ध्यान केद्रित करें। इस कार्य पर विशेष ध्यान देने के लिए मैं सांख्यिकीय विश्लेषण और व्याख्या के क्षेत्र में तीन चुनौतियों पर विशेष बल देना चाहूंगा जिनका इस सम्मेलन में समाधान ढूंढा जा सकता है।

7. पहली, आधिकारिक आंकड़ों और आंकड़ा विश्लेषण में क्या अंतराल हैं और उसे हम कैसे भर सकते हैं? भारत और विदेश, दोनों जगह विभिन्न सरकारी एजेंसियां जो आंकड़े एकत्रित करती हैं उनकी गुणवत्ता विवेचनात्मक रूप से प्रतिक्रियाओं की संपूर्णता और शुद्धता पर निर्भर करती है। अत्यधिक अप्रतिक्रियाएं और प्रतिक्रियाओं का समय-परिवर्ती पैटर्न भ्रामक सूचनाएं प्रदान कर सकता है और इससे उप-इष्टतम नीतिगत प्रतिक्रियाएं होती हैं। लेकिन विश्वसनीय और पूर्ण आंकड़े हम कैसे प्राप्त करें और वह भी सही समय पर? उदारीकृत आर्थिक माहौल में सरकारी आदेश या विनियामक निर्धारण के द्वारा आंकड़ों की प्रस्तुति या सर्वेक्षणों की प्रतिक्रिया पाने के लिए अधिदेश देना संभव नहीं है। साथ ही वैश्वीकरण से माल, सेवाएं और पूंजी के सीमापारीय प्रवाह के बारे में विश्वसनीय और समय पर जानकारी प्राप्त करना धीरे-धीरे मुश्किल हो रहा है। अत: पहली चुनौती यह है कि व्यापक, सुसंगत और समय पर आंकड़े प्राप्त करना सुनिश्चित करने के लिए सरकारी आंकड़े रखने वाली एजेंसियों को क्या कदम उठाने की जरूरत है?

8. दूसरी, हमारी सरकारी सांख्यिकीय एजेंसियों ने आंकड़ों के संग्रहण और प्रसार में सुधार करने के लिए कई कदम उठाए हैं। फिर भी उनमें उल्लेखनीय सुधार की गुंजाइश है, उदाहरण के लिए डब्ल्यूपीआइ या आइआइपी की संरचना, जिनमें शामिल चीजें लक्षित जनसंख्या के अधिक प्रतिनिधित्व वाली हों। विनियमन, उदरीकरण और प्रतिस्पर्धी ताकतों के सामने अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तनों की तीव्र गति के कारण यह महत्वपूर्ण है कि विभिन्न सूचकांक जैसे डब्ल्यूपीआइ या आइआइपी, जो अर्थव्यवस्था में अंतर्निहित घटनाक्रमों को इंगित का प्रयास करते हैं, के बारे में नीति निर्माताओं को समय पर सूचना प्रदान करने के लिए सतत आधार पर इनको परिष्कृत और अद्यतन किया जाये।

9. तीसरी, अधिक खुली अर्थव्यवस्थाओं और सम्प्रेषण में सुधारों के संदर्भ में बाजार गतिकी आंकड़े प्रकाशित करने और सूचना प्रसार के मामले में संवेदनशील हो गई हैं। हम सभी यह जानते हैं कि बाजार सहभागी प्राय: सूचनाओं का किस प्रकार से गलत अर्थ लगाते हैं जिससे बाजारों में काफी उतार-चढ़ाव आ जाते हैं। हम आंकड़ों के मानकों और साथ ही हमारी सांख्यिकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान केद्रित कर संभावनाओं और अवबोधनों के बेहतर प्रबंधन में सहायता प्रदान कर सकते हैं। यह तीसरी चुनौती है।

10. मुझे पूरी उम्मीद है कि उपर्युक्त चुनौतियों का हम कैसे मुकाबला कर सकते हैं, के बारे में इस सम्मेलन में कुछ विशिष्ट विचार उभर कर सामने आयेंगे।

रिज़र्व बैंक द्वारा किये गये सांख्यिकीय सर्वेक्षण

11. चूंकि यह सेमिनार सांख्यिकीय सर्वेक्षणों पर अधिक केद्रित है, अत: रिज़र्व बैंक द्वारा किये गये सर्वेक्षणों पर संक्षिप्त में टिप्पणी करना चाहूंगा। हम नियमित आवधिक सर्वेक्षण और साथ ही जरूरत-आधारित तदर्थ सर्वेक्षण करते हैं। बाह्य क्षेत्र के हमारे सर्वेक्षणों में विदेशी देयताएं एवं आस्तियां, साफ्टवेयर निर्यात और अनिवासी जमाराशियां आदि शामिल होती हैं। बैंकिंग क्षेत्र के सर्वेक्षण में ऋण एवं जमाराशियों का वितरण, जमाराशियों की संरचना और स्वामित्व, अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग सांख्यिकी, आदि शामिल होते हैं। कॉरपोरेट क्षेत्र में 1951-52 से जारी निजी कॉरपोरेट कारोबार क्षेत्र के कार्यनिष्पादन के सर्वेक्षण में विश्लेषकों की काफी रुचि रही है।

12. रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति प्रतिपादन में सहायता के लिए कई नये सर्वेक्षण भी शुरू किये हैं। इनमें औद्योगिक परिदृश्य सर्वेक्षण, परिवारों के लिए मुद्रास्फीति संभावनाओं का सर्वेक्षण, इन्वेंटरी, आदेश बहियों और क्षमता के उपयोग के बारे में सर्वेक्षण तथा पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण शामिल हैं।

13. हम आवास के बारे में सर्वेक्षण पर भी काम कर रहे हैं। इस संबंध में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रत्येक राज्य/शहर से भवन परमिट और आवास गुणांक की विश्वनीय मैट्रिक्स एकत्रित करना है। इन नये सर्वेक्षणों का विशेष महत्व यह है कि वे प्रमुख पात्रों से जानकारी शामिल करते हैं, वे भविष्य-दृष्टा होते हैं और परिणाम तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं। ऐसे सर्वेक्षणों के परिणाम प्रागमी बृहत्-नीतियों के निर्धारण के लिए उपयोगी एवं सामयिक निविष्टियां प्रदान करते हैं।

रिज़र्व बैंक के कार्य में सांख्यिकी

14. रिज़र्व बैंक में अपने कौशल को बढ़ाने और अपने डेटाबेस को सुधारने का सतत प्रयास रहता है। हमने कुछ संतोषजनक प्रगति हासिल की है, लेकिन अभी भी निरुत्साह करने वाली चुनौतियां हैं। मैं पाँच ऐसी समस्याओं का उदाहरण देता हूं जो आंकड़ा विश्लेषण के क्षेत्र में हमारे सामने आती हैं।

(i) आंकड़ा संशोधन

15. अर्थव्यवस्था का मापन एक जटिल कार्य रहा है और आंकड़ों की अनिश्चितता जीवन का हिस्सा है। आंकड़ों में संशोधन सांख्यिकीय संकलन और प्रसार का तर्कसंगत हिस्सा है। हालांकि भारत में आंकड़ों में संशोधन और आंकड़ों के संशोधन में प्रणालीगत पूर्वाग्रह अधिक बार और मामूली बात है। अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं को अनिश्चित भविष्य से संघर्ष करना पड़ता है। भारत में हमें अनिश्चित भूतकाल से भी संघर्ष करना पड़ता है। यह अनिश्चितता सभी आर्थिक नीतियों, विशेषकर मौद्रिक नीति के लिए चुनौती बन जाती है जिसमें हमें पीछे देखकर आगे चलना होता है। हमारी जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति का संचरण संरचनागत कारकों से अवरुद्ध होता है और यह अतिसंवेदनशीलता अनिश्चित सूचना संदर्भ से और बढ़ जाती है। मौद्रिक नीति का संचालन अधिक निश्चित आंकड़ों और कम संशोधनों से बेहतर ढंग से होगा। उसे हमें कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?

(ii) मुद्रास्फीति की माप

16. भारत में हमारी मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य मूल्य स्थिरता है जिसे न्यून और स्थिर मुद्रास्फीति के रूप में निरूपित किया जाता है। हमारे बहु उद्देश्यों के संदर्भ में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण 2006-08 की अवधि के दौरान रिज़र्व बैंक की प्राथमिक चिंता के रूप में उभरा- प्रारंभ में घरेलू मांग के दबाव के संदर्भ में, जो 2008 में विश्वभर में प्रवृत्त आपूर्ति आघातों से बढ़ गया। राजकोषीय और अन्य आपूर्ति पक्ष के उपायों के सहयोजन में पहले से अधिकृत मौद्रिक उपायों ने मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को नियंत्रण में रखने में सहायता की। चूंकि 2008-09 की दूसरी छमाही में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति द्वारा मापे गये घरेलू स्फीतिकारी दबाव, अंतरराष्ट्रीय तेल और अन्य पण्य मूल्यों में तेजी से सुधार से कम हुआ। शीर्ष डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति में तेजी से कमी के संदर्भ में नीतिगत दर और समग्र घरेलू ब्याज दर संरचना में कमी की मांग की गई है। जहां नीतिगत दरें असल में कम रही हैं, बैंकों की जमा और उधार दरें भी कम हुई हैं हालांकि उतनी कम नहीं हुई, वहीं इस बात को मानने की जरूरत है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) मुद्रास्फीति के वैकल्पिक उपाय ऊपरी स्तरों पर बने रहे। उदाहरण के लिए, वर्तमान में डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति ऋणात्मक क्षेत्र में है - एक ऐसा संकेत जिसका यह गलत अर्थ लगाया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था अपस्फीति में है, जबकि कुल मांग में कोई कमी नहीं हुई है, वहीं चार सीपीआइ से मुद्रास्फीति की दरें 9-10 प्रतिशत के बीच में हैं।

17. भारत में आर्थिक संरचना की विषमता और उपभोक्ता समूह में बड़े अंतरों के कारण हमारे पास थोक मूल्य सूचकांक के अलावा चार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक हैं। अपेक्षाकृत कम आय स्तरों के कारण उपभोक्ता समूह में खाद्य मदों का काफी बड़ा हिस्सा है और यह डब्ल्यूपीआइ सूचकांक (27 प्रतिशत) की तुलना में सीपीआइ सूचकांकों (46-70 प्रतिशत) में उनके भारांकों से यह पता चलता है।  डब्ल्यूपीआइ में ईंंधन समूह का भारांक 14 प्रतिशत है लेकिन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 6-8 प्रतिशत के बीच में ही है। धातुओं एवं उत्पादों जैसे पण्यों का डब्ल्यूपीआइ में उल्लेखनीय भारांक (8 प्रतिशत) है, लेकिन उन्हें सीपीआइ में सीधे शामिल नहीं किया गया है। इस प्रकार, अपसारी मूल्य उतार-चढ़ावों के साथ विभिन्न सूचकांकों में शामिल मदों के भारांकों में भिन्नता, विभिन्न मुद्रास्फीति उपायों के बीच न केवल दरार उत्पन्न करती है बल्कि उन्हें अलग दिशाओं में भी धकेलती है।

18. वैकल्पिक मुद्रास्फीति उपायों में ऐसे अपसरण भारत में मौद्रिक नीति के संचालन को जटिल बनाते हैं। तद्नुसार, रिज़र्व बैंक अंतर्निहित स्फीतिकारी दबावों को निर्धारित करने के लिए मुद्रास्फीति के सभी उपायों, समग्र और खंडित घटकों, दोनों को अन्य आर्थिक और वित्तीय संकेतकों के संयोजन में देखता है।

19. इस संदर्भ में सरकार द्वारा विचारित नये मूल्य सूचकांक - सीपीआइ (शहरी) और सीपीआइ (ग्रामीण) सहायक होंगे। इसके अलावा, हाल के अधिक आधार और बढ़े हुए क्षेत्र वाला डब्ल्यूपीआइ, जिसमें सेवा क्षेत्र भी शामिल है, उत्पादक मूल्य सूचकांक (पीपीआइ) के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है। रिज़र्व बैंक लगातार विभिन्न मूल्य सूचकांकों के परिष्करण में लगा हुआ है और स्फीतिकारी स्थितियों को मापने में और सुधार लाने के लिए सरकार को आवश्यक सहायता प्रदान करता रहेगा।

(iii) व्यवसाय चक्र के लिए प्रमुख संकेतकों के बारे में जानकारी

20. मौद्रिक नीति के संप्रेषण, जिसके बारे में मैंने पहले बताया है, में सुपरिचित विलम्ब के कारण मौद्रिक नीति का प्रगामी होना आश्यक है। आर्थिक कार्यकलापों और स्फीतिकारी स्थितियों के संभावित विकास के बारे में समय पर और विश्वसनीय जानकारी तथा संचारण विलम्ब में सतत निर्धारण महत्वपूर्ण हैं। जहां ये मुद्दे सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रासंगिक हैं, वहीं ये भारत जैसी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई), जिनका तेजी से संरचनागत रूपांतरण हो रहा है, के अधिक उपयुक्त हैं। संरचनागत रूपांतरण के तीव्र गति के मद्देनजर संचारण विलम्ब सतत परिवर्तन के अधीन हैं। इसी प्रकार, मौद्रिक नीति आवेगों की प्रतिक्रिया में प्रमुख चरों जैसे निवेश, उत्पादन और मुद्रास्फीति की महत्ता समय के साथ बदलने की संभावना है। भारत जैसी उभरती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में संचारण प्रणाली में इन विशिष्ट अतिरिक्त जटिलाताओं के मद्देनजर आर्थिक कार्यकलापों के सुदृढ़ अग्रणी संकेतक तैयार करने आवश्यक हैं।

21. रिज़र्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अग्रणी आर्थिक संकेतक तैयार करने के लिए विशेषज्ञ सलाह हेतु वर्ष 2001 में एक कार्यदल और 2006 में तकनीकी परामर्शी समूह गठित किये थे। अब हम मौद्रिक नीति के प्रतिपादन के लिए निविष्टि के रूप में नियमित आधार पर संमिश्र अग्रणी संकेतक (सीएलआई) का संकलन कर रहे हैं। आर्थिक और वित्तीय स्थितियां बहुत ही कम अवधि में तेजी से बदल सकती हैं जिनका संकेत चालू वैश्विक वित्तीय संकट से मिलता है। अत: हमें अग्रणी संकेतकों के माध्यम से चक्रीय स्थितियों के निर्धारण के लिए नये सिरे से ध्यान केद्रित करने की जरूरत है जिसमें बृहत्-आर्थिक संबद्धता समय श्रृंखला और मौसमी समायोजन पर समर्थनकारी खोज, व्यवसाय चक्र विश्लेषण, अल्पकालिक व्यवसाय संकेतक, संवेदनशीलता विश्लेषण तथा संपदा क्षेत्र पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए वित्तीय और गैर-वित्तीय कंपनियों के तिमाही परिणामों का विस्तृत विश्लेषण शामिल हैं। विगत कुछ वर्षों में रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किये गये सर्वेक्षणों का निष्कर्ष बहुत सहायक रहा है और इनको जरूरत के अनुसार और विस्तारित/मजबूत किया जायेगा।

(iv) वित्तीय सुदृढ़ता संकेतक

22. वैश्विक वित्तीय संकट ने वित्तीय स्थिरता को सुस्पष्ट चर के रूप में लक्ष्य बनाने के महत्व को केद्र में ला दिया है। यहां तक नीति निर्माता और विनियामक वित्तीय स्थिरता की सूक्ष्म परिभाषा और मात्रात्मक संकेतकों से अभी जूझ रहे हैं, लेकिन वित्तीय स्थिरता के लक्षणों के बारे में उचित स्पष्टता है। वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी अव्यक्त रूप से केद्रीय बैंक की है।

23. वित्तीय स्थिरता पर निगरानी के लिए अनेक साधनों में से एक दबाव परीक्षण है - एक ऐसा पद जिसका अब व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा है लेकिन इसे अलग-अलग रूप में समझा जाता है। अमेरिका ने प्रत्याशाओं के प्रकार और बढ़ते बाजार विश्वास के रूप में अपने दबाव परीक्षण के बहुत ही सकारात्मक परिणाम हाल में प्रकाशित किये हैं। यूरोप भी दबाव परीक्षण कर रहा है। वित्तीय क्षेत्र के मूल्यांकन से संबंधित समिति (सीएफएसए) द्वारा किये गये स्व-निर्धारण के हिस्से के रूप में हमने भी बैंकिंग क्षेत्र के लिए दबाब परीक्षण किये थे जिससे यह पता चला है कि हमारे बैंक सुरक्षित, सुदृढ़ और सावधानी से कार्य कर रहे हैं।

24. सीएफएसए द्वारा किया गया दबाव परीक्षण एक अच्छी शुरुआत है लेकिन प्रारंभिक स्थिति में है। दबाव परीक्षण के लिए हमें अपने डेटाबेस और हमारी विश्लेषणात्मक क्षमताओं, दोनों को परिष्कृत करने की जरूरत है। आंकड़े और विश्लेषण के मामले में रिज़र्व बैंक के लिए यह एक और चुनौती है।

(v) रोजगार संबंधी आंकड़े

25. अंत में, मैं एक बड़े मुद्दे पर आ गया हूं। विश्वभर में रोजगार में प्रवृत्तियां मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया निर्धारित करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण निविष्टियों में से एक हैं। दुर्भाग्यवश, हमारे पास रोजगार से संबंधित देश भर के विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। फैक्टरी क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण से उपलब्ध हैं लेकिन ये काफी विलम्ब से मिलते हैं इसलिए मौद्रिक नीति के उद्देश्य से ये वास्तव में बेकार हैं। कृषि क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े भी कम आवृत्ति और काफी विलम्ब से उपलब्ध होते हैं। कुछ अर्थव्यवस्थाओं में गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े मिलते हैं लेकिन भारत में संगठित क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े, जो रोजगार कार्यालयों से प्राप्त होते हैं, कार्यबल के बहुत ही छोटे हिस्से को शामिल करते हैं। इस पृष्ठभूमि में, पर रोजगार की स्थितियों के बारे में समय पर और सही जानकारी अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी गतिकी के संबंध में हमारी समझ को बढ़ायेगी और इससे मौद्रिक नीति के संचालन में सुधार होगा।

निष्कर्ष

26. मुझे लगता है कि मैंने व्यापक क्षेत्र को शामिल किया है। भले ही कुछ असंबद्ध हो, मैंने रिज़र्व बैंक द्वारा अपने दैनिक कार्य में आंकड़ों के संग्रहण, विश्लेषण, व्याख्या, उपयोग और प्रसार के क्षेत्र में सामने आ रही चुनौतियां आपके समक्ष रखने का प्रयास किया है। मुझे पता है कि इस एक दिवसीय संगोष्ठी में इन सभी प्रश्नों के निर्णायक जवाब नहीं ढूंढ जा सकते, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी विशेषज्ञता और अंतर्दृष्टि से समाधानों के नजदीक तक पहुंच जा सकेगा।

27. इस संगोष्ठी की सफलता के लिए शुभकामनाएं।


*भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी. सुब्बाराव द्वारा 2 जुलाई 2009 को मुंबई में रिज़र्व बैंक के तीसरे वार्षिक सांख्यिकी दिवस सम्मेलन में दिया गया उद्घाटन संबोधन।

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