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समस्याग्रस्त ऋण का प्रबंधन तथा एमएसएमई का वित्तपोषण -आर गांधी

श्री आर. गांधी, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक

उद्बोधन दिया

मुझे खुशी है कि जिस विषय पर मैं आपसे बात करने जा रहा हूँ वह समकालीन है और अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक दोनों ने ही आर्थिक विकास के लिए एसएमई क्षेत्र के योगदान, उसकी क्षमता तथा इस विशाल देश की जनता के लिए रोजगार तथा आय के स्रोत के रूप में एसएमई क्षेत्र के महत्व को स्वीकार किया है।

भारत सरकार द्वारा हाल ही में की गई “मेक इन इंडिया” की घोषणा मूलरूप से इसी विश्वास पर आधारित है। अतः एसएमई के वित्तपोषण के संबंध में तौर-तरीके, पद्धति, सावधानियां तथा अनुवर्ती कार्रवाई पर विस्तृत चर्चा और विचार विमर्श संगत और समयानुकूल है। मैं इस संदर्भ में क्रिसिल और अन्य संस्थाओं के प्रयासों की सराहना करता हूँ। मैं जानता हूँ कि इस कार्यशाला में आपने एसएमई ऋण के जीवनचक्र प्रबंधन, ऋण मूल्यांकन करने के लिए ऋण अंक देना, एसएमई ऋण तथा समस्याग्रस्त एसएमई ऋण की निगरानी के लिए प्रणाली तैयार करने सहित ऋणनीतियां तथा साधन, पूर्व चेतावनी आदि विषयों पर चर्चा की है। मुझे यकीन है कि इन चर्चाओं से आपको अवश्य ही लाभ हुआ है। समस्याग्रस्त ऋण प्रबंधन पर मैं और अधिक बोलना चाहता हूँ, क्योंकि वर्तमान में बैंकिंग क्षेत्र के लिए यह एक गंभीर समस्या है।

आस्ति गुणवत्ता

2. बैंकों की वित्तीय स्थिति का आकलन करने के लिए आस्ति गुणवत्ता महत्वपूर्ण मानदंड है। पिछले बीस साल से भारतीय बैंकों का सकल अनर्जक आस्ति अनुपात तथा निवल अनर्जक आस्ति अनुपात कई कारणों से, विशेषतः बैंकों द्वारा अपनाई गई ऋण जोखिम प्रबंधन प्रणाली में निरंतर सुधार किए जाने के कारण गिर रहा है। सकल एनपीए मार्च 1997 के 15.70 प्रतिशत से घट कर मार्च 2011 में 2.35 प्रतिशत हो गया है। तथापि, हाल ही के वर्षों में बैंकिंग प्रणाली की आस्ति गुणवत्ता में बुरी तरह गिरावट आई है। सकल एनपीए अनुपात के रूप में दर्शाया गया एनपीए मार्च 2014 में 4.11 प्रतिशत रहा। इस अवधि के दौरान सकल अग्रिमों के प्रतिशत के रूप में ‘पुनर्रचित किंतु मानक ऋण” (अस्थायी समस्या वाले खातों की सहायता करने तथा अनिवार्य सरकारी नीतियों के अनुसार बैंकों को दी गयी विनियामक व्यवस्था के अनुसार पुनर्रचित ) मार्च 2008 के 1.14 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2014 को 5.87 प्रतिशत बढ गया है। मार्च से सितंबर 2014 के दौरान आस्ति गुणवत्ता में और अधिक ह्रास हुआ और जीएनपीए अनुपात तथा पुनर्रचित अग्रिम अनुपात क्रमश: सितंबर 2014 के अंत में 4.54 प्रतिशत तथा 6.13 प्रतिशत रहा। इस प्रकार समग्र दबावग्रस्त अग्रिम (एनपीए + पुनर्रचित अग्रिम) बहुत अधिक हैं तथा हाल ही की अवधि में इसमें काफी वृद्धि हुई है, जिसकी बैंकिंग प्रणाली के लिए सितंबर 2014 के अंत में गणना 10.67 प्रतिशत की गई है। मूल्य के रूप में सितंबर 2014 के अंत में सकल एनपीए 2.798 बिलियन तथा पुनर्रचित मानक अग्रिम रु 3.780 बिलियन, कुल दबावग्रस्त अग्रिमों की राशि रु. 6.578 बिलियन है।

दबावग्रस्त क्षेत्र

3. विभिन्न उप क्षेत्रों में दबाव के स्तरों के आधार पर यह देखा गया है कि (i) आधारभूत संरचना (ii) लौह और इस्पात (iii) वस्त्र (iv) खनन (कोयले सहित) तथा (iv) विमानन सेवाओं में काफी उच्च स्तर का दबाव है तथा इन उप क्षेत्रों / सेगमेंट को वर्तमान परिस्थिति में दबावग्रस्त क्षेत्र कहा जा सकता है।

मैक्रो–स्ट्रेस टेस्ट

4. समष्टि आर्थिक आघातों के प्रति बैंकों के लचीलेपन को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक मैक्रो–स्ट्रेस टेस्ट करता है। दिसंबर 2014 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में इस विश्लेषण के प्रस्तुत परिणाम यह बताते है कि आधार रेखा परिदृश्य के अंतर्गत मार्च 2016 के अंत में जीएनपीए अनुपात कुल अग्रिमों का लगभग 4.0 प्रतिशत होना अपेक्षित है। तथापि, यदि मैक्रो इकोनोमिक परिस्थितियों में गिरावट होती है तो, मार्च 2016 तक गंभीर दबाव के कारण जीएनपीए अनुपात 6.3 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

आस्ति गुणवत्ता में गिरावट के संवाहक

5. सैद्धांतिक तौर से कहें, तो ऐसे बहुत से कारक हो सकते हैं जो एक अच्छे ऋण को समस्याग्रस्त ऋण में तब्दील कर सकते हैं। बाहरी कारणों में से कुछ हैं, आर्थिक मंदी, अन्य देशों में भुगतान न होना, आदानों/ ऊर्जा की कमी, मूल्यों में वृद्धि, दुर्घटनाएं/प्राकृतिक आपदाएं तथा उत्पाद शुल्क / आयात शुल्क संबंधी सरकार की नीतियों में परिवर्तन, प्रदूषण नियंत्रण मानदंड, उधारदाताओं द्वारा ऋणों के संवितरण में विलंब आदि। ऋण खातों के समस्याग्रस्त ऋण बनने के आंतरिक कारणों में विस्तार/विविधीकरण/आधुनिकीकरण/ नई परियोजनाएं लगाने, सहयोगी संस्थाओं की मदद/विकास के लिए निधियों का अन्यत्र प्रयोग, परियोजना के कार्यान्वयन के चरण में समय/लागत का बढ़ जाना, कारोबारी विफलताएं (उत्पाद, विपणन आदि.), अकुशल प्रबंधन, तनावपूर्ण श्रम संबंध, अनुचित प्रौद्योगिकी / तकनीकी समस्याएँ तथा उत्पाद का अप्रचलित हो जाना, आदि हो सकते हैं।

6. भारतीय बैंकों की आस्ति गुणवत्ता में मौजूदा गिरावट के लिए मुख्य रूप से घरेलू और वैश्विक आर्थिक मंदी, वैधानिक और अन्य मंजूरी में देरी, खासकर कार्यान्वयन के अधीन परियोजनाओं के लिए, सुधार के दौरान (2003-08) तुलनात्मक रूप से आक्रामक उधार प्रथाएं जैसा कि उच्च कॉर्पोरेट लीवरेज से प्रकट हुआ है, जोखिम संकेद्रण, विशेष रूप से बड़ी ग्रीनफील्ड परियोजनाओं के प्रति, और बैंकों की जोखिम प्रबंधन प्रणालियों में रही शिथिलता आदि को अवश्य ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

एनपीए प्रबंधन

7. एनपीए प्रबंधन के लिए उत्पादक आस्तियों के प्रबंधन तथा प्रभावी कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुनिश्चित करने के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। एनपीए प्रबंधन की शुरूआत गुणवत्तापूर्ण अग्रिम पोर्टफोलियो के संचालन से अर्जित होने वाले लाभों की वसूली से होती है, और उधार दिए जाने में निहित जोखिमों की बेहतर समझ को प्रतिपादित करती है। निदेशक मंडल को एनपीए प्रबंधन की रणनीति तैयार करते समय विनियामक मानकों, कारोबारी माहौल, आस्ति प्रोफ़ाइल, उपलब्ध संसाधनों आदि को ध्यान में लेना चाहिए। बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों और प्रकियाओं में कार्यान्वयन पर निगरानी रखने की रणनीति परिलक्षित होनी चाहिए।

8. सुदृढ एनपीए प्रबंधन के आवश्यक घटक हैं:

  1. विवेकपूर्ण हामीदारी के माध्यम से एनपीए की रोकथाम

  2. प्रभावी शीघ्र चेतावनी प्रणाली

  3. गिरावट से बचने के लिए त्वरित और प्रभावी उपचारात्मक उपाय

  4. गिरावट के उपरांत तेजी से समाधान

9. मानक आस्तियों के एनपीए श्रेणी में खिसकाव को रोकने तथा नकद वसूली, उन्नयन, समझौता, विधिक माध्यमों आदि के द्वारा एनपीए में कमी लाए जाने हेतु एक बहुमुखी रणनीति की आवश्यकता है।

पुनर्गठन

10. सामान्यतया, दबावग्रस्त ऋण खातों में वसूली के संदर्भ में समाधान हो जाने की संभावना ज्यादा होती है, यदि कंपनी संचालन में हो। इसको प्रभावशाली बनाने के लिए एक ऐसी प्रणाली होनी चाहिए जो प्रारंभिक चरण में ही खातों में कमजोरी को पहचान सके। बैंकों को एक 'शीघ्र चेतावनी' प्रणाली लागू करनी चाहिए जो कमजोरी का प्रथम संकेत दर्शाने वाले खातों के संबंध में शुरुआती चेतावनी संकेतों को पकड़ सके। इससे बैंकों को निवारक उपाय करने तथा खाते को एनपीए के रूप में परिवर्तित होने से रोकने में मदद मिलेगी। बैंक अर्थक्षम संस्थाओं के खातों की पुनर्रचना/पुनर्निधारण कर सकते हैं तथा संस्था के सम्मुख आ रही अस्थायी समस्याओं से निजात दिलाने में उसे मदद कर सकते हैं।

11. जैसे ही एक कमजोर खाते की पहचान हो जाती है, बैंकों को विभिन्न निवारक उपायों पर विचार करना चाहिए। निवारक उपायों में से एक उपाय पुनर्रचना भी है। कई बार उधारकर्ता अपने श्रेष्ठतम प्रयासों और इरादों के बावजूद भी अपने नियंत्रण से बाहर के कारणों तथा कुछ आंतरिक कारणों के चलते भी स्वयं को वित्तीय कठिनाईयों में पाते हैं। अर्थक्षम इकाईयों के पुनरुद्धार और बैंकों द्वारा उधार दी गई रकम की सुरक्षा के लिए, उचित मामलों में पुनर्रचना के माध्यम से समय पर सहायता दिए जाने की जरूरत है। पुनर्रचना का उद्देश्य कुछ बाह्य तथा आंतरिक कारणों से प्रभावित होने वाले अर्थक्षम इकाईयों के मूल्यों को क्षरण से बचाना और लेनदारों और अन्य हितधारकों के लिए घाटे को कम से कम करना है। हम पहले ही अलग-अलग बैंकों द्वारा संघीय अग्रिमों और एकल पुनर्रचना के लिए कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना क्रियाविधि पर अलग से विस्तृत विनियामक निर्देश दे चुके हैं।

12. कार्पोरेट ऋण पुनर्रचना ढांचे का उद्देश्य सभी संबंधित पक्षों के फायदे के लिए बीआईएफआर, डीआरटी और अन्य विधिक कार्यवाही के दायरे के बाहर समस्याओं का सामना करने वाली अर्थक्षम इकाइयों के कार्पोरेट ऋण की पुनर्रचना के लिए सामयिक एवं पारदर्शी प्रणाली सुनिश्चित करना है। विशेष तौर पर, ढांचे का उदेश्य ऐसे अर्थक्षम कार्पोरेट को संरक्षण देना है, जो कतिपय आंतरिक और बाह्य कारकों से प्रभावित होते हैं, और एक व्यवस्थित और समन्वित पुनर्रचना कार्यक्रम के माध्यम से लेनदारों और अन्य शेयर धारकों को होने वाले नुकसान को कम करना है। सीडीआर प्रणाली उन उधारकर्ताओं के अग्रिमों की पुनर्रचना को सुविधाजनक बनाने के लिए समन्वित तरीके से परिकल्पित की गई है, जिन्होंने एक से अधिक बैंक / वित्तीय संस्थाओं से ऋण सुविधाएं ले रखी हैं।

संकटग्रस्त आस्तियों के पुनरुद्धार का ढांचा

13. भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2014 के प्रारम्भ में अर्थव्यवस्था में संकटग्रस्त आस्तियों के पुनरुद्धार के ढांचे को जारी किया है। ढांचे में सुधारात्मक कार्य योजना की रूपरेखा दी गई है, जिससे समस्या वाले मामलों की प्रारम्भ में ही पहचान करने, अर्थक्षम माने जाने वाले खातों की समय पर पुनर्रचना करने और अव्यवहार्य खातों की वसूली अथवा बिक्री के लिए बैंकों द्वारा शीघ्र कदम उठाने में सहायता मिलेगी। ढांचे की मुख्य विशेषताएँ निम्नानुसार हैः

i. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बड़े ऋणों से संबंधित सूचनाओं की सेंट्रल रिपोजीटरी (सीआरआईएलसी) की स्थापना की गई, जो 50 मिलियन रुपये और उससे अधिक के समग्र एक्सपोजर (निधि आधारित + गैर-निधि आधारित) वाले उधारकर्ताओं के संबंध में रिपोर्टिंग संस्थाओं के साथ ऋण सूचना संग्रहण करने, एकत्र करने और प्रसारित करने के लिए स्थापित की गई है।

ii. 1,000 मिलियन रुपये और उससे अधिक के एक्सपोजर के समाधान के लिए किसी योजना से सहमत होने के लिए समय सीमा के साथ उधारदाता समिति का प्रारंभिक गठन (संयुक्त उधारदाता मंच) के लिए अनिवार्य होगा। सुधारात्मक कार्य योजना में निम्नलिखित में से कोई एक शामिल हो सकता है।

  1. परिशोधन
  2. पुनर्रचना
  3. वसूली

iii. समय पर सुधारात्मक कार्य करने के लिए उधारदाताओं के लिए प्रोत्साहन और हतोत्साहन संरचना

iv. किसी योजना के लिए सामूहिक रूप से और शीघ्रता से सहमत होने के लिए उधारदाताओं को प्रोत्साहन: यदि कोई समाधान योजना चल रही हो, तो संकटग्रस्त आस्तिओं को बेहतर विनियामक ट्रीटमेंट, कोई सहमति न होने की दशा में बढ़ा हुआ प्रावधानीकरण।

v. वर्तमान पुनर्रचना प्रक्रिया मे सुधार: प्रवर्तकों और ऋणदाताओं के बीच अर्थक्षम योजनाओं और नुकसान के उचित बंटवारे पर जोर देते हुए बड़े मूल्य वाली पुनर्रचना के लिए स्वतंत्र मूल्यांकन को अनिवार्य बनाना।

vi. ऐसे उधारकर्ताओं के लिए भविष्य में ऋण अधिक महंगा हो, जो समाधान में उधारदाताओं के साथ सहयोग नहीं करते।

अर्थक्षम परन्तु संकटग्रस्त खातों को सहायता

14. बैंकों द्वारा पूरे प्रयास के बावजूद, चूक हो जाती है। यदि एक बार कोई खाता एनपीए श्रेणी में चला जाता है, तो ध्यान उन्नयन की ओर दिया जाना चाहिए। इस अवस्था में यह समझना महत्वपूर्ण है कि रिज़र्व बैंक ने ऐसे उधारकर्ताओं को आवश्यकता के आधार पर अतिरिक्त वित्त देने से बैंकों पर रोक नहीं लगायी है, जिनके खाते एनपीए के रूप में वर्गीकृत हैं। इसके विपरीत, रिजर्व बैंक के विद्यमान दिशानिर्देश ऐसी स्थिति की कल्पना करते हैं, जहां उधारकर्ता को पुनरुज्जीवित / पुनर्वास के लिए, और आस्ति के अधिक मूल्य के संरक्षण के लिए बैंकों को संकटग्रस्त उधारकर्ताओं को अतिरिक्त वित्त मंजूर करने की आवश्यकता है। किसी खाते के एनपीए के रूप में वर्गीकृत होने मात्र से अर्थक्षम ऋण खातों से सहायता वापस लेने की आवश्यकता नहीं है। तथापि, संकटग्रस्त खातों को सहायता देने पर विचार करते समय, बैंकों को एक ओर इरादतन चूककर्ता/ असहयोगी/ विवेकहीन उधारकर्ताओं और दूसरी ओर अपने नियंत्रण के बाहर की परिस्थितियों के कारण अपने ऋण दायित्व में चूक करने वाले उधारकर्ताओं के बीच समुचित भेद करना चाहिए।

एनपीए की बिक्री

15. ऊपर उल्लिखित उपायों के विफल होने की स्थिति में बैंक ऋण वसूली प्राधिकरण में वाद दाखिल कर सकते हैं अथवा वित्तीय आस्तिओं का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम 2002 के प्रावधानों को लागू कर सकते हैं।

बैंक अपनी अनर्जक आस्‍तियों को आस्‍ति पुनर्निमाण कंपनियों को बेच सकते हैंI भारतीय रिज़र्व बैंक ने अभी तक 14 आस्‍ति पुनर्निमाण कंपनियों को पंजीकरण प्रमाण पत्र (सीओआर) प्रदान किया हैI आस्‍ति पुनर्निमाण कंपनियों के साथ ही बैंक, अन्‍य बैंक, गैर बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियों या अन्‍य वित्‍तीय संस्‍थाओं को भी अनर्जक आस्‍तियां बेचने की संभावना तलाश कर सकते हैं, जो अनर्जक आस्‍तियों को दक्षतापूर्वक हल करने के लिए अपेक्षित कौशल रखते हों I दबावग्रस्‍त आस्‍तियों के लिए बाजा़र प्रारंभ करने की सुविधा के लिए फरवरी 2014 में दबावग्रस्‍त खातों की बिक्री से संबंधित विनियमों को संशोधित किया गयाI

वसूली चैनल

16. विभिन्‍न सुधारात्‍मक उपायों के बावजूद यदि उधारकर्ता के व्‍यापार के अलाभकारी स्‍वरूप के कारण उन्‍न्‍यन संभव नहीं हो रहा है तो बैंकों को उनके पास उपलब्‍ध किसी भी वसूली वि‍कल्‍प के माध्‍यम से ऋण की वसूली हेतु कदम उठाने चाहिएI विभिन्‍न उपायों में से, 2013- 14 के दौरान वसूल की गई अनर्जक आस्‍तियों में 80 % वित्‍तीय आस्‍तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम 2002 के तहत वसूली की गई हैI इस प्रकार वित्‍तीय आस्‍तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, अनर्जक आस्‍तियों की वसूली का सबसे महत्‍वपूर्ण माध्‍यम हैI

विभिन्‍न वसूली चैनलों के माध्‍यम से वसूल की गई अनुसूचित वाणिज्‍यिक बैंकों की अनर्जक आस्‍तियां
(राशि बिलियन में)
वर्ष सं ब्‍योरे वसूली चैनल
लोक अदालत डीआरटी सरफेसी अधिनियम कुल
2012-2013 1 संदर्भित मामलों की संख्‍या 8,40,691 13,408 1,90,537 10,44,636
2 शामिल राशि 66 310 681 1,058
3 वसूल की गई राशि 4 44 185 232
4 2 के प्रतिशत के रूप में 3 6.1 14.1 27.1 21.9
2013-2014 1 संदर्भित मामलों की संख्‍या 16,36,957 28,258 1,94,707 18,59,922
2 शामिल राशि 232 553 946 1,731
3 वसूल की गई राशि 14 53 244 311
4 2 के प्रतिशत के रूप में 3 6.2 9.5 25.8 18
नोटः 1. निर्धारित वर्ष के दौरान वसूली गई राशि, जो निर्धारित वर्ष के दौरान और पिछले  वर्षों के दौरान संदर्भित मामलों के संदर्भ में हो सकती हैI
2. डीआरटीः ऋण वसूली न्‍यायाधिकरण

17. तथापि, डीआरटी/न्‍यायालयों में बढ़ते मुकदमों की संख्‍या और सीमित बुनियादी सुविधाओं के मद्देनज़र मौजूदा विधिक प्रणाली इस बृहद् कार्य से निपटने के लिए असमर्थ हैI साथ ही, डीआरटी और सरफेसी से संबंधित कई मुद्दे हैं जिन्‍हें सुदृढ़ करने की आवश्‍यकता है ताकि इन चैनलों को सक्षम और प्रभावी बनाया जा सकेI विभिन्‍न स्‍तरों पर उनकी जांच की जा रही हैI

18. बैंक वर्तमान मूल्‍य अवधि में अपनी वसूली का अनुकूलन करने के लिए उधारकर्ताओं से समझौता निपटान /एकबारगी निपटान पर भी विचार करेंI

एमएसएमई वित्‍तपोषण

19. चूंकि यह कार्यशाला सूक्ष्‍म और लघु उद्योग वित्‍तपोषण के संबंध में विशेषतः चर्चा करने के संबंध में है, अत: मैं इस मामले मेंकुछ विचार साझा करता हूँI

20. जैसा कि मैंने शुरुआत में उल्‍लेख किया है, सूक्ष्‍म लघु और मध्‍यम उद्यम (एमएसएमई) आर्थिक विकास में, विशेष रूप से विकासशील देशों में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं I एमएसएमई क्षेत्र की ओर अंतरराष्‍ट्रीय समाज का ध्‍यान बढ़ रहा हैI यह मुख्‍यत: हाल ही में आये वित्‍तीय संकट के बाद बहाली प्रक्रिया के दौरान रोज़गार सृजन के चलते है, और एमएसएमई में इस प्रकार की काफी संभावनाएं हैंI

21. अभी तक, वित्‍त तक पहुंच का अभाव उनके विकास की एक मुख्य बाधा थीI यद्यपि राज्‍यों और वैयक्‍तिक व्‍यवसाय के बीच स्‍थिति में अंतर हो सकता हैI लघु और मध्‍यम उद्यम के वित्‍तपोषण के अंतर के कुछ निश्‍चित सर्वमान्‍य कारण हैंI इसमें सूचना विषमता, उच्‍च जोखिम, बडी लेनदेन लागतें और पर्याप्‍त संपार्श्‍विक का अभाव शामिल हैंI देश में मौजूद संस्‍थागत कारणों से ये कारक बढ़ सकते हैंI अंत में, "मांग पक्ष" की ओर से भी कई मुद्दें हैं जिनपर ध्‍यान दिया जाना अपेक्षित हैI

22. सूक्ष्‍म लघु और मध्‍यम उद्यम वित्‍तपोषण के अंतर को बनाए रखने में निम्‍नलिखित तीन तत्‍व महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं - खराब गुणवत्ता वाली परियोजनाओं द्वारा धन की मांग, सूक्ष्‍म लघु और मध्‍यम उद्यमों द्वारा निधीयन के उपलब्‍ध संसाधनों का सबसे अच्‍छा उपयोग करने में असमर्थता, इक्‍विटी वित्‍तपोषण की ओर सूक्ष्‍म लघु और मध्‍यम उद्यमों का नकारात्‍मक रवैयाI

23. दुर्भाग्यवश, एसएमई वित्तपोषण में कमी के बारे में कोई प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं है। एसएमई क्षेत्र के भीतर असंगठित भाग इतना बड़ा है और परिभाषा के अनुसार उसके बारे में कोई अधिकृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी, विभिन्न डेटा-स्रोतों और अध्ययनों से ये संकेत मिले हैं कि ज़्यादातर छोटी फ़र्में आंतरिक वित्तपोषण और असंगठित स्रोतों पर ही निर्भर करती हैं।

24. आईएफसी तथा मैक्किन्सी एंड कंपनी द्वारा किए गए अध्ययन में बताया गया है कि उभरते हुए बाज़ारों में लगभग 365-445 मिलियन माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यम हैं, जिनमें से 25-30 मिलियन संगठित एसएमई है और 55-70 मिलियन संगठित माइक्रो उद्यम हैं। शेष (285-345 मिलियन) असंगठित उद्यम है। उक्त अध्ययन के अनुसार अत्यंत आवश्यकता होने के बावजूद उभरते हुए बाज़ारों के संगठित एसएमई में से लगभग 45 से 55 प्रतिशत (11-17 मिलियन) एसएमई की संगठित संस्थागत ऋणों या ओवरड्राफ्ट तक पहुँच ही नहीं है। माइक्रो और संगठित उद्यमों का विचार करें तो यह अंतराल बहुत ही बड़ा है; उभरते हुए बाज़ारों में सभी एमएसएमई का 65-72 प्रतिशत भाग (240-315 मिलियन) की ऋण तक पहुँच कम है। विभिन्न क्षेत्रों के बीच वित्तीय गैप का आकार भिन्न भिन्न है, तथा एशिया और अफ्रीका में यह विशेष रूप से भयावह है। भारत में एसएमई के बारे में कुछ अध्ययनों में यह रिपोर्ट किया गया है कि उनकी वित्तीय आवश्यकताओं का 93 प्रतिशत भाग आंतरिक और असंगठित स्रोतों द्वारा पूरा किया जाता है।

25. एसएमई वित्तपोषण के सर्वोत्तम व्यवहार को बढ़ाने की दृष्टि से जी-20 एसएमई वित्तपोषण उप-समूह ने विभिन्न एसएमई वित्तपोषण मॉडलों के साथ वैश्विक एसएमई स्टॉकटेकिंग एक्सरसाइज की। इसमें (i) विधिक और विनियामक ढांचा (ii) वित्तीय सूचना इन्फ्रास्ट्रक्चर (iii) लोक सहायता योजनाएं तथा (iv) निजी क्षेत्र की पहल सहित मध्यवर्तन की विस्तृत श्रेणियों के 164 एसएमई वित्तीयन मॉडलों का संग्रहण किया। इस स्टॉक-टेकिंग एक्सरसाइज ने दुनिया के विभिन्न भागों में एसएमई को किफायती तरीके से वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विशिष्ट कारोबारी मॉडलों में वृद्धि की पुष्टि की है। सामुदायिक बैंकों सहित माइक्रो-वित्त अपस्केलिंग से लेकर बैंक – डाउनस्केलिंग तक इन मॉडलों में कुछ सामान्य विशेषताएं हैं : ये प्रौद्योगिकी के उपयोग तथा /अथवा किफायती ग्राहक – संबंध मॉडल को अपनाकर सेवा की लागत घटाते हैं; ये कमाई गई आय को बढ़ाने की दृष्टि से बचत, लेनदेन और ऋण उत्पादों के प्रस्तावों को एक साथ मिला देते हैं; ये जोखिम/ प्रतिफल संतुलन को अधिकतम करने के लिए विकसित जोखिम प्रबंधन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं; तथा ये छोटे और/ या मध्यम उद्यम क्षेत्र में अत्यधिक फोकस करते हैं ताकि इन क्षेत्रों में श्रेष्ठ कार्यनिष्पादन क्षमताओं की सहायता की जा सके।

26. अतएव, मुख्य चुनौती बैंकों की एसएमई के लिए ऋण सुविधाएं देने में सहायता करने की है। असंगठित एसएमई तक पहुँचना उससे भी बड़ी चुनौती होगी। यह एसएमई की अंतर्भूत कमजोरियों, सुपुर्दगी मॉडलों में त्रुटियों और सबसे महत्वपूर्ण, वित्तीय सेवाओं के लिए उचित माहौल में व्याप्त कमियों, अर्थात लेखांकन और लेखापरीक्षा मानक, ऋण रेपोर्टिंग प्रणालियां, तथा संपार्श्विक और दिवालियापन व्यवस्थाओं को शामिल करने वाले वित्तीय इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण है।

कुछ अन्य विचार

27. इस कार्यशाला में एसएमई की ऋण आवश्यकताओं का मूल्यांकन कैसे करें, संबंधों की निगरानी कैसे करें और इसके लिए आप कौनसी नई तकनीकें अपना सकते हैं, आदि पर आपने विस्तृत चर्चा की है। मैं आपको इससे परे जाकर कुछ विचार देना चाहता हूँ।

i) असंगठित कारोबारों तक पहुँच माइक्रो – वित्त विधि के द्वारा ही बनानी होगी। ये सब लेखा-संबंधों के साथ ही प्रारंभ होना चाहिए। पीएमजेडीवाय जैसे वित्तीय समावेशन कार्यक्रमों कार्यक्रमों के द्वारा बैंकों को एमएसएमई के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण सूचना मिलेगी, चाहे वह नियमित हो या अनियमित भाग में हो। बैंकों को इन प्राप्त आंकड़ों और सूचनाओं को उचित वितीयन अवसरों के लिए संभाव्य एमएसएमई की पहचान करने के लिए उपयोग करना चाहिए।

ii) बैंकों के लिए एमएसएमई के लिए सरल और मौलिक उत्पाद विकसित करना भी आवश्यक है। मेरा दृढ विश्वास है कि इस पहलू पर आरंभिक स्तर पर ही बल दिया जाना चाहिए। बैंकों के केंद्रीय/ प्रधान कार्यालयों द्वारा दिए गए प्रमुख मानदंडों पर आधारित उत्पादों की वास्तविक पैकेजिंग और सेवाएं जमीनी धरातल के समीप होनी चाहिए। ऐसे पैकेजिंग के महत्वपूर्ण तत्वों में जोखिम साझा करने की सुविधा शामिल होनी चाहिए।

iii) बैंकों को वित्त-प्रदाता बनने से ज्यादा बड़ी भूमिका निभानी होगी। एमएसएमई के पास अक्सर प्रबंध-कुशलता, साधन, शासन प्रणाली और वित्तीय आयोजना विशेषज्ञता का अभाव होता है। ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थाओं (आरएसईटीआई) जैसी संस्थाओं का लाभ उठाने के लिए बैंकों को इन उद्यमियों की सहायता करनी होगी, ताकि इन कमियों को पूरा किया जा सके।

iv) इस क्षेत्र के विकास में बाधक एक अन्य मुख्य कमजोरी है एमएसएमई द्वारा अच्छे अभिलेख प्रबंधन का अभाव। अक्सर इसका परिणाम खराब क्रेडिट रेटिंग और एमएसएमई को जोखिम पूर्ण कारोबार समझा जाना होता है। घाना जैसे कुछ देशों में “समूह परिकलन (क्लाउड कंप्यूटिंग) के उपयोग जैसे कुछ अभिनव समाधानों का सफलतापूर्वक प्रयास किया गया। संभवतः इसका अध्ययन करके इसे भारतीय परिवेश में अपनाया जा सकता है।

28. इन उपायों के साथ ही एमएसई उधार देने के लिए सहायक वातावरण में बढ़ोतरी करना भी आवश्यक है, जैसे सुधारित क्रेडिट ब्यूरो और संपार्श्विक तथा दिवालियापन प्रशासन। प्रभावी एसएमई वित्तपोषण मॉडेलों की सफलता के लिए यह अनिवार्य है कि वित्तीय क्षेत्र के लिए उचित सहायक वातावरण निर्माण किया जाए। विशेषतः वित्तीय आसूचना और संपार्श्विक प्रवर्तन की क्षमता को अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के रूप में देखा जाता है। इस क्षेत्रों की कमजोरियों के कारण विकासशील बाज़ारों में वित्तीय सेवाओं की अधिक आक्रमक संवृद्धि बाधित होती है।

29. हम इन अपेक्षाओं से वाकिफ हैं, और हमने इस दिशा में कुछ उपाय भी किए है। आदित्य पुरी समिति की सिफारिशों पर आधारित हमारे हाल ही के दिशानिर्देशों में यह विचार किया गया है कि अब एक साथ सभी क्रेडिट ब्यूरो में साख सूचना प्रवाहित होगी और इसलिए वित्तीय संस्थाएं किसी संभाव्य उधारकर्ता के बारे में एक साथ समग्र रूप से विचार सकते हैं। जहाँ तक संपार्श्विक पंजीकरण का प्रश्न है, इस दिशा में उपाय शुरू किए गए हैं। संपत्ति पर प्रतिभूति हितों की रजिस्ट्री करने के लिए प्रतिभूतिकरण, आस्ति पुनर्रचना तथा भारत के प्रतिभूति हितों की केंद्रीकृत रजिस्ट्री (CERSAI) सामने आई है। रजिस्ट्री के अन्य प्रकारों तथा रजिस्ट्रियों को आपस में जोड़ने पर भी चर्चा की जा रही है। जहाँ तक दिवालियापन का सवाल है, विशेषत: एमएसएमई का, दिवालियापन संरचना पर एक समिति कार्यरत है, जैसा कि पिछले बजट में घोषित किया गया है।

30. लोक सहायता योजनाएं (निधिकृत सुविधाएं, गारंटीकृत योजनाएं तथा राज्य बैंक) संग्रहित मॉडलों में से अधिकांश का प्रतिनिधित्व करती हैं। भारत मे भी ये रणनीतियाँ अपनाई गई है। बैंकों के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के रूप में सीजीटीएसएमई, एमएसएमई उधार देना आदि उपाय इस विचार के अनुरूप हैं।

31. यद्यपि एमएसएमई वित्तीयन और माइक्रो – वित्तीयन मॉडलों ने वांछित परिणाम देना शुरू कर दिया है, फिर भी इक्विटी वित्तपोषण अब भी एक चुनौती है। विकासशील दुनिया में बैंकिंग और उधारदात्री सेवाएं एसएमई वित्तपोषण के बड़े भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, विशेषतः छोटी फर्मों के लिए, अत: इक्विटी वित्तपोषण पूरक वित्तीय उत्पाद को विकसित करने का अवसर प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष :

32. अंत में, मैं इस बात पर बल देना चाहता हूँ कि वित्त तक पहुँच बढ़ाना केवल तभी सफल हो पाएगा, जब गुणात्मक पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाएगा। इस उद्देश्य के लिए वितीयन के सिद्धांतों का ज़िम्मेदारी से पालन करना होगा तथा अभिनव वित्तीय समावेशन के लिए जी-20 सिद्धान्तों का पालन करना होगा। यह भी नोट किया जाना चाहिए कि यद्यपि एमएसएमई संवृद्धि के लिए वित्त तक पहुँच अत्यंत महत्वपूर्ण है, किंतु वित्तीय स्थिरता की कीमत पर वित्त तक पहुँच हासिल नहीं की जानी चाहिए। एमएसएमई के वित्तपोषण का प्रस्ताव करते समय उचित विवेकपूर्ण उपाय किए जाने आवश्यक है, ताकि अत्यधिक ऋण के कारण उत्पन्न संभाव्य खतरों से बचा जा सके।


1 क्रिसिल द्वारा “क्रेडिट रिस्क एण्ड प्रोब्लेम लोन मैनेज़मेंट“ पर गोवा में आयोजित कार्यशाला के समापन पर श्री आर गांधी, उप गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 30 जनवरी 2015 को दिया गया भाषण। श्री ए.के.चौधरी तथा श्री बी. नेताजी ने इसके लिए सहायता की, जिसके लिए आभार व्यक्त किया जाता है।

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