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साख सूचना साझा करने के लिए नई नीतिगत पहल - आर गांधी

श्री आर. गांधी, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक

उद्बोधन दिया

श्री एम.वी.नायर, अध्यक्ष, सिबिल; सुश्री अरुंधती भट्टाचार्य, अध्यक्ष, एसबीआई; श्री टी.एम.भसीन, अध्यक्ष, आईबीए; श्री अरुण ठुकराल प्रबंध निदेशक, सिबिल; सम्मेलन के प्रतिनिधियों; देवियों और सज्जनों! मुझे आज सातवें वार्षिक सिबिल ट्रांस यूनियन साख सूचना सम्मेलन में मुख्य भाषण करते हुए प्रसन्नता हो रही है।

पृष्ठभूमि

2. रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में साख सूचना ब्यूरो स्थापित करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए वर्ष 1999 में गठित कार्यदल (अध्यक्ष: एन.एच.सिद्दीकी), जिसका एक सदस्य होने का सौभाग्य मुझे भी था, की सिफारिशों के परिणामस्वरूप साख सूचना कंपनियों (सीआईसी) की स्थापना की गई थी। सिबिल ऐसी पहली कंपनी थी। साख सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम (सीआईसीआरए) 2005 से लागू किया गया।

3. वर्ष 2013 की शुरुआत तक भारत में साख सूचना उद्योग में सिबिल के परिचालन के दस वर्ष से ज्यादा तथा अन्य तीन साख सूचना कंपनियों के परिचालन के तीन वर्ष से ज्यादा समय हो चुका है। तथापि, साख सूचना साझा करने के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। जहां परिवर्तन को आवश्यक माना गया, ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों में साख सूचना की गहराई और विस्तार, सभी सीआईसी के बीच रिपोर्टिंग फॉर्मेट को सुसंगत बनाना, भुगतान के इतिहास के आधार पर खातों के वर्गीकरण और नामावलियों को तर्कसंगत बनाना तथा सीआईसी और ऋण संस्थाओं के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना शामिल है। इस पृष्ठभूमि में भारतीय रिज़र्व बैंक ने श्रीसीआईसी द्वारा प्रयुक्त रिपोर्टिंग फॉर्मेट तथा अन्य संबंधित मसलों की जांच करने के लिए आदित्य पुरी, प्रबंध निदेशक, एचडीएफसी बैंक की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने 31 जनवरी 2014 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

हाल ही की नीतिगत पहलें

4. अदित्य पूरी समिति की सिफारिशों के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक के अनेक नीतिगत अनुदेश जारी किए हैं।

क) दिनांक 27 जून 2014 को जारी दिशानिर्देशों के द्वारा किए गए प्रमुख नीतिगत परिवर्तन निम्नानुसार हैं:

  1. सभी ऋण संस्थाओं द्वारा कॉर्पोरेट, ग्राहक और एमएफआई डेटा रिपोर्ट करने के लिए डेटा फॉर्मेटों को मानकीकृत किया गया है, और इसप्रकार ऋण संस्थाओं द्वारा शाख सूचना कंपनियों को डेटा प्रस्तुत करने के प्रक्रिया को सरल बनाया गया है।

  2. डेटा फॉर्मेटों की समीक्षा / सुधार के लिए एक निरंतर प्रणाली को संस्थापित करने के लिए एक तकनीकी कार्यदल का गठन किया गया हैं, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के बैंकों, साख सूचना कंपनियों, एनबीएफसी, एचएफसी, आईबीए और एमएफआईएन के प्रतिनिधि शामिल हैं, तथा

  3. ऋण संस्थाओं और साखसूचना कंपनियों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने और ग्राहकों की शिकायतों का निवारण करने के दृष्टि से ऋण संस्थाओं और सीआईसी के लिए कुछ सर्वोत्तम व्यवहार निर्धारित किए गए हैं।

ख) इसके अतिरिक्त, बैंकों और अखिल भारतीय अधिसूचित वित्तीय संस्थाओं को अनुदेश दिए गए हैं कि वे सीआईसी को 31 दिसंबर 2014 को समाप्त अवधि के लिए इरादतन चूककर्ताओं (रु. 25 लाख और उससे अधिक) के बाद दायर न किए गए खाते तथा चूककर्ताओं (रु.1 करोड़ और उससे अधिक) के संबंध में सूचना की रिपोर्ट करें। सीआईसी इस सूचना को सभी हितधारकों के बीच प्रसारित करेगी।

ग) सीआईसीआरए की धारा 15 के अनुसार प्रत्येक ऋण संस्था को कम से कम एक सीआईसी का सदस्य होना चाहिए। चूंकि चार सीआईसी कार्यरत है, इसलिए उनके अभिलेख में इसके परिणामस्वरूप डेटा उपलब्ध होगा। अभी तक, जब किसी उधारकर्ता या संभावित उधारकर्ता के बारे में किसी एक सीआईसी से पूछा जाता है, तब सीआईसी के पास केवल वही सूचना उपलब्ध होती है, जो उसके स्वयं के सदस्यों द्वारा उसे उपलब्ध कराई गई है। उधारकर्ता ने जिस ऋण संस्था से ऋण लिया है, वह यदि उस विशिष्ट सीआईसी का सदस्य नहीं है, तो साख सूचना में ऐसी जानकारी शामिल ही नहीं होती है। इस समस्या को कम करने की दृष्टि से 15 जनवरी 2015 को सभी ऋण संस्थाओं को ये निदेश दिए गए हैं कि वे सभी साख सूचना कंपनियों के सदस्य बनें तथा उन्हें अपना वर्तमान और ऐतहासिक डेटा प्रस्तुत करें। सीआईसी और ऋण संस्थाओं को यह भी निदेश दिए गए हैं कि वे एकत्र की गई ऋण सूचना को बनाए रखें तथा मासिक अथवा ऐसे छोटे अंतरालों पर इसे अद्यतन करें, जो उनके बीच परस्पर सहमति से तय हुआ हो। ऋण संस्थाओं को एक/दो ब्यूरो की सदस्यता से सभी ब्यूरो की सदस्यता में परिवर्तन करने में सहायता करने के लिए सीआईसी द्वारा ऋण संस्थाओं को सदस्य बनाने के लिए ली जाने वाली एकबारगी सदस्यता फीस प्रत्येक के लिए रु. 10,000/- से अधिक नहीं होगी। सीआईसी द्वारा ऋण संस्थाओं से ली जाने वाली वार्षिक फीस प्रत्येक के लिए रु. 5000/- से अधिक नहीं होगी।

कार्य प्रगति पर है

5. यद्यपि, हमने आदित्य पूरी समिति की सिफारिशों में से अधिकांश को लागू कर दिया है। फिर भी, मैं ऐसी कुछ सिफारिशों का उल्लेख करना चाहूँगा, जिनकी आरबीआई द्वारा अब भी जाँच की जा रही है :

  1. सभी सीआईसीज के साथ परामर्श करके यूएसए में उपलब्ध ट्रि-ब्यूरो रिपोर्ट की तर्ज पर एक सामान्य ऋण सूचना रिपोर्ट की शुरुआत करना, जो देश में विद्यमान इन्फ्रास्ट्रक्चर के अनुरूप विशिष्ट रूप से निर्मित हो।
  2. ऋण संस्थाओं से ऋण सूचना एकत्र करने के लिए सीआईसी के डेटा फॉर्मेट में वाणिज्यिक पत्र से संबंधित सूचना को शामिल करना।

  3. ग्राहकों के डेरिवेटिव, उदा. ऋण संस्थाओं द्वारा अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजरों संबंधित सूचना को वाणिज्यिक डेटा फॉर्मेट में रिपोर्ट करना।

  4. ऋण सूचना रिपोर्टों की कीमत संबंधी पहलुओं की जाँच करना तथा प्रत्येक सीआईसी द्वारा प्रत्येक संस्था के प्रत्येक ग्राहक को बिना किसी लागत के वार्षिक आधार पर मूलभूत स्तर की उपभोक्ता सीआईआर उपलब्ध करना।

  5. बैंकिंग लोकपाल योजना का दायरा बढ़ाने के साथ ही सीआईसी के लिए एक त्वरित और सस्ती प्रणाली उपलब्ध कराना।

  6. एनबीएफसी, यूसीबी, आरआरबी, एसएफसी भी सभी सीआईसी को इरादतन चूककर्ताओं पर डेटा रिपोर्ट करेंगे।

ऋण सूचना प्राप्त करने के लाभ

6. वैश्विक वित्तीय विकास रिपोर्ट1 में अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया है कि 'ऋण सूचना तक निष्पक्ष और पारदर्शी पहुँच ग्राहक को अपने ऋण-इतिहास को प्रतिष्ठात्मक संपार्श्विक के रूप में प्रयोग करने कि अनुमति देती है, ऋण बाजार में प्रतीस्पर्धा को मजबूत करती है तथा वित्त तक पहुँच को बढ़ाती है। इस संदेर्भ में, मैं प्रणाली के विभिन्न हितधारकों के लिए ऋण-सूचना के मुख्य फायदों को रेखांकित करना चाहता हूँ:

  1. ग्राहक - ऋण सूचना ग्राहकों को अपने ऋण इतिहास के आधार पर ऋण-उत्पाद प्राप्त करने में सहायता करती है तथा उन्हें ऋण अनुशासन बनाए रखने और समय पर ऋण कि चुकौती करने के लिए प्रोत्साहन देती है। ऋण बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, क्योंकि उधारकर्ताओं के बारे में सकारात्मक सूचना भी अन्य ऋणदाताओं को उपलब्ध हो जाती है, जिससे काबिल और बेहतर उधारकर्ताओं को आसान शर्तों और कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त होने का लाभ मिलता है।

  2. ऋण संस्थाएं – सूचना साझा करने से उधारकर्ताओं की छानबीन करने और ऋण जोखिम की निगरानी में सहायता मिलती है। इससे दलाली / मध्यस्थी की लागत कम होती है और ऋण संस्थाओं को ऋणों का मूल्य और लक्ष्य निर्धारित करने तथा प्रभावी रूप से निगरानी करने में सहायता मिलती है। इससे वास्तविक, पारदर्शी और न्यायपूर्ण जोखिम-आधारित उधार देने में सुविधा होती है। सीआईसी की सूचना का लाभ उठाकर उधारकर्ता अपने ग्राहक संबंधों की समग्र रूप से समीक्षा कर सकते हैं। वर्तमान में ऋणदाताओं द्वारा अपने पोर्टफोलियो की गुणवत्ता सुधारने, एनपीए को नियंत्रित रखने तथा लाभप्रदत्ता बढ़ाने के लिए सीआईसी द्वारा प्रस्तावित विभिन्न उत्पादों, उदा. ऋण सूचना रिपोर्ट, ऋण अंक, निगरानी सूचियां, सतर्कता और सक्रियता, पोर्टफोलियो समीक्षा का अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है। इन समाधानों के कारण जोखिम कम होता है और ग्राहक संबंधों के प्रत्येक चरण – अधिग्रहण, संविभाग प्रबंधन, उगाही और वसूली में अधिकतम निष्पादन संभव होता है।

  3. अर्थव्यवस्था- जोखिम आधारिक मूल्यन वातावरण में ऋण प्रक्रिया की पारदर्शिता और सुदृढ़ता में सुधार आएगा। अच्छे ऋण- इतिहास वाले ग्राहकों को उनके अनुशासन का ईनाम मिलेगा, जबकि दोषी उधारकर्ताओं को कम-जोखिम वाले उपभोक्ताओं वाली छूट नहीं मिलेगी। ऋण सूचना शेयरिंग बढ़ने के साथ ही चूक दरों और औसत ब्याज दरों के घटने के कारण उधार भी मिलेगा। अनुसंधान ने यह दर्शाया है कि ऋण सूचना साझा करने परिणामस्वरूप ऋण बाजार गहन होता है। उधारकर्ताओं को अच्छा क्रेडिट रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन मिलता है, जिससे एनपीए कम होता है, ऋण पोर्टफोलियो की गुणवत्ता बढ़ती है, और इसके परिणामस्वरूप ऋण संस्थाओं द्वारा उधार देने में भी वृद्धि होती है।

  4. बैंक पर्यवेक्षक – सीआईसी से ऋण सूचना प्राप्त करके पर्यवेक्षक प्रणालीगत जोखिम की निगरानी अधिक प्रभावी रूप से कर सकते हैं, विशेषतः आपस में अच्छी तरह जुड़ी हुई और प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थाओं द्वारा कतिपय संवेदनशील क्षेत्रों को अधिक एक्सपोजर की निगरानी।

7. “ऋण सूचना “ का दायरा वास्तव में बहुत व्यापक है; भारत में सीआईसी जो सूचना वास्तव में संग्रहीत और प्रसारित कर रही हैं, उससे बहुत बड़ा। मैं इस क्षेत्र में की गई कुछ पहलों का वर्णन करना चाहूँगा। ये पहलें सीआईसी से इतर अन्य संस्थाओं ने की है।

बड़े ऋणों से संबंधित सूचना का केंद्रीय निधान (CRILC)

8. पहला है सीआरआईसीएल। पिछले साल रिजर्व बैंक ने बैंकों, प्रणाली की दृष्टि से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफआई-एसआई) तथा एनबीएफसी – फ़ैक्टर्स के बड़े उधारों (50 मिलियन रुपये तथा उससे अधिक) के लिए सीआरआईसीएल की स्थापना की है। सीआरआईसीएल के सुस्पष्ट उद्देश्यों में सुधारित ऋण जोखिम मूल्यांकन के सूचना-असंतुलन को कम करना तथा वसूली प्रबंधन को सुधारना शामिल है। यद्यपि, सीआरआईएलसी की स्थापना मूलतः बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं को उनके ऋण-प्रशासन को सुधारने में सहायता देने के लिए की गई है, किंतु इससे यह भी अपेक्षित है कि जोखिम संकेंद्रण के निर्माण तथा आस्ति गुणवत्ता संबंधी उभरती हुई अस्थिरता के संबंध में पर्यवेक्षी जोखिम के मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण इन्पुट उपलब्ध कराए।

9. यहाँ मैं स्पष्ट बात कहना चाहूँगा। आदर्श रूप में, सीआरआईसीएल का विचार और निर्माण सीआईसीज द्वारा किया जाना चाहिए था। यह तथ्य कि हमें विनियामक के रूप में यह कदम उठाना पड़ा, यह दर्शाता है कि ऋण सूचना उद्योग के अभी काफी विकास करने की जरूरत है। यह भी शर्म की बात है कि हमारी ऋण संस्थाएं सीआईसी के माध्यम से स्वेच्छा से ऋण सूचना अपने बीच साझा नहीं करती है, जबकि वे सभी अपने वर्तमान या संभावित घटकों के बारे में सीआईसी से ऋण सूचना प्राप्त करना चाहते हैं। मैं सीआईसीज को स्वयं ऐसे निधानों का निर्माण और प्रबंध करते देखना चाहता हूँ।

प्रतिभूतिकरण आस्ति पुनर्रचना और – भारत के
प्रतिभूति हित की केंद्रीय रजिस्ट्री (सरसाई)

10. एक अन्य संबंधित गतिविधि है सरसाई। वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना से संबंधित लेनदेन तथा सरफेसी अधिनियम में परिभाषित किए गए अनुसार बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिए गए किसी भी ऋण या अग्रिमों की जमानत के लिए हक विलेख बंधक रखने से संबंधित लेनदेनों को केंद्रीय रजिस्ट्री में पंजीकृत करना होगा। सभी एनबीएफसी को भी सूचित किया गया है कि अपने पक्ष में निर्मित सभी न्यायसंगत (equitable) बंधकों के रिकॉर्ड सेंट्रल रजिस्ट्री में दर्ज और पंजीकृत करें। फैक्टरिंग एक्ट, 2011 के अधीन प्रत्येक फ़ैक्टर का यह दायित्व है कि वह अपने पक्ष में प्रत्येक प्राप्य विक्रम-पत्र के लेनदेन का ब्योरा सेंट्रल रजिस्ट्री में दर्ज कराए।

11. वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (केंद्रीय रजिस्ट्री) नियमावली, 2011 के अंतर्गत निर्धारित फीस का भुगतान करके सेंट्रल रजिस्ट्री में दर्ज अभिलेखों को कोई भी ऋणदाता अथवा संपत्ति का लेनदेन करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति देख सकता है।

12. ऐसे अभिलेखों की उपलब्धता के कारण एक ही संपत्ति की जमानत पर अनेक ऋण देने संबंधी धोखाधड़ी तथा संपत्ति पर जमानती हितों का प्रकटीकरण किए बिना संपत्ति की कपटपूर्ण बिक्री पर रोक लगेगी। हालांकि सेंट्रल रजिस्ट्री संपत्ति की ऋणग्रस्तता की स्थिति पर ध्यान देगी, फिलहाल सेंट्रल रजिस्ट्री संपत्ति के स्वत्व की वास्तविकता की जाँच नहीं कर सकती है। चूंकि भूमि राज्यों का विषय है, जो संबंधित राज्य के कानून द्वारा शासित होता है, अतः सेंट्रल रजिस्ट्री के लिए यह आवश्यक है कि वह विभिन्न राज्यों की रजिस्ट्रियों के साथ सूचना साझा करने की व्यवस्था करे। संपत्ति के अस्तित्व और हक की वास्तविकता संबंधी जानकारी उपलब्ध करने के कारण यह सेंट्रल रजिस्ट्री, राज्य सरकारों तथा ऋणदाताओं के लिए उपयोगी होगी।

ऋण सूचना साझा करने में आने वाली चुनौतियां

13. डेटा की गुणवत्ता : किसी भी क्रेडिट ब्यूरो की कुशलता और प्रभावकारिता उसके डेटाबेस में एकत्र किए गए डेटा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। हमने ब्यूरो को समय पर, सटीक और बिना चूक के डेटा प्रस्तुत करने के संबंध में बार-बार परिपत्र जारी किए है। फिर भी, यह पाया गया है कि सदस्य ऋण संस्थाओं द्वारा सीआईसी को प्रस्तुत डेटा नियमित या सटीक नहीं होता है। ब्यूरो को बेकार मूल्य, गलत डेटा और अपूर्ण आइडेंटिफायर फील्ड सूचना प्रस्तुत किए जाने के अनेक उदाहरण सामने आए हैं। ऋण संस्थाओं के लिए सीआईसी से प्रस्तुत डेटा की गुणवत्ता और समयबद्धता सुनिश्चित करना जरूरी हो गया है।

14. उपभोक्ता शिक्षा और जागरूकता : उपभोक्ताओं के लिए वित्तीय अनुशासन बनाए रखने और अपने ऋण के ईएमआई और क्रेडिट कार्ड की देयताएं नियमित रूप से भरने के महत्व को समझना बहुत जरूरी है। इस संबंध में सीआईसी को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। ऋणों की चुकौती में चूक होने के कारण क्रेडिट स्कोर कम होगा और उन्हें नए ऋण नकारे जा सकते हैं, इसके बारे में व्यक्तियों,एसएमई और एमएफआई उधारकर्ताओं की जागरूकता बढ़ने के परिणामस्वरूप ऋण अनुशासन बेहतर होगा और बैंकों की आस्ति-गुणवत्ता में गिरावट पर रोक लगेगी। मुझे मालूम है कि उपभोक्ताओं के बीच ऋण सूचना से संबंधित धारणाओं के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सिबिल और सीआईसी अनेक उपभोक्ता शिक्षा कार्यक्रमों पर काम कर रहे हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि बैंकों और अन्य ऋण संस्थाओं के उपभोक्ता शिक्षा कक्षों में सीआईसी भी भागीदार बन रहे हैं। ये भागीदारी अनेक भौगोलिक क्षेत्रों के उपभोक्ताओं तक पहुँचने और उन्हें अच्छे ऋण अनुशासन की अनिवार्यता के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए अत्यंत प्रभावी होगी। मैं सीआईसी से यह अनुरोध करना चाहूँगा कि ऐसे जागरूकता अभियानों को नई पीढ़ी पर विशेष रूप से फोकस करने की जरूरत है – इससे पहले कि वे किसी ऋण-संबंध में प्रवेश करें, उन्हें ऋण-इतिहास के दूरगामी प्रभावों और परिणामों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। भावी पीढ़ी में एक ऋण संस्कृति विकसित करने की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय उत्पाद है शिक्षा ऋण। 31 मार्च 2014 को (रु. 4 लाख से कम के ऋणों के लिए) 7.54% से अधिक एनपीए प्रतिशतता को देखते हुए यह स्पष्ट है कि उधारकर्ता चुकौती न करने के उनके ट्रैक-रिकॉर्ड के परिणामों से अनजान हैं। क्या सीआईसी और बैंक ऋण समुपदेशन और ऋण-संस्कृति विकसित करने के लिए ’कैच देय यंग’ की नीति पर विचार करेंगे? क्या सीआईसीज विद्यार्थी उधारकर्ताओं को बिना किसी प्रभार के एक आवधिक ऋण रिपोर्ट उपलब्ध करा सकते हैं?

15. विवाद सुलझाने के लिए एक त्वरित और पारदर्शी प्रणाली: रिजर्व बैंक त्वरित और पारदर्शी विवाद निपटान प्रणाली के द्वारा अच्छी ग्राहक सेवा पर बल देता रहा है। हाल ही में हमें ग्राहकों से उनकी ऋण सूचना रिपोर्टों के बारे में काफी विवाद प्राप्त हुए हैं। मैं सिबिल और अन्य सीआईसी से अनुरोध करूँगा कि वे ग्राहकों के विवादों के शीघ्र निपटान के लिए प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों में निवेश करें। इन विवादों का एक अन्य पहलू वस्तुतः बैंकों से संबंधित है। ये विवाद सदस्य बैंकों द्वारा डेटा अपडेशन न किए जाने / अथवा गलत डेटा प्रस्तुत करने के बारे में है। ऐसे कई मामलों में बैंकों पर नियमित रूप से अनुवर्ती कार्रवाई करने के बावजूद सीआईसी बैंकों से समय पर प्रतिसाद नहीं पा सके हैं। अतः मैं ऋण संस्थाओं को स्मरण दिलाना चाहता हूँ कि वे अपने यहाँ भी ग्राहक शिकायत निवारण के लिए एक उचित प्रणाली स्थापित करें।

16. एमएसएमई उधारकर्ताओं सहित कॉर्पोरटेस पर डेटा की रिपोर्टिंग: हालांकि उपभोक्ता वर्ग, अर्थात खुदरा उधारकर्ताओं के संबंध में सीआईसीज के पास काफी डेटाबेस है, फिर भी उन्होंने एमएसएमई उधारकर्ताओं सहित कॉर्पोरटेस की काफी उपेक्षा की है। मैं पहले ही बता चुका हूँ कि 27 जून 2014 के हमारे दिशार्निर्देशों के द्वारा हमने सीआईसी को सूचित किया है कि वे इस सेगमेंट) के बारे में भी ऋण डेटा का संग्रहण करें और उसे उपलब्ध कराएं, किंतु इस संबंध में प्रक्रिया काफी धीमी है। फिर भी, मुझे खुशी है कि सिबिल ने इस दिशा में कुछ प्रगति की है। मैं समझता हूँ कि आज सिबिल के पास कॉर्पोरेट्स के बारे में 20 मिलियन रिकॉर्ड हैं। मैं विभिन्न ऋणदात्री संस्थाओं से अनुरोध करूँगा कि वे अपने कॉर्पोरेट उधारकर्ताओं के बारे में सीआईसी को डेटा प्रस्तुत करें तथा वाणिज्यिक उधारों की प्रोफ़ाइल में परिवर्तनों से संबंधित जोखिम कम करने के लिए सीआईसी द्वारा वर्तमान में प्रस्तावित कमर्शियल ट्रिगर्स जैसे विभिन्न समाधानों का उपयोग करें।

17. सूचना के असंतुलन को दूर करना: सामान्यतः एमएसएमई ईकाइयां और उनमें विशेषतः माइक्रो ईकाइयों के पास ऋण रिपोर्टिंग प्रक्रिया और उसके परिणामों के बारे में पर्याप्त सूचना नहीं होती। यह जरूरी है कि ऋणदाता संगठन माइक्रो उधारकर्ताओं के लिए एक संगठित (structured) उधार-पूर्व समुपदेशन सत्रों का आयोजन करें, जिसमें उन्हें चुकौती न करने और चूक करने के दीर्घावधि/दूरगामी परिणामों के बारे में शिक्षित किया जाए। फिलहाल समुपदेशन केवल तभी किया जाता है जब खाता एनपीए हो या एनपीए बनने के नजदीक हो। इसे ऋण मंजूरी के समय किया जाना चाहिए। इससे उधारकर्ता को यह समीक्षा करने का अवसर भी मिलेगा कि उधार मांगी गई राशि उसकी चुकौती करने की क्षमता से ज्यादा तो नहीं है। 90 प्रतिशत माइक्रो इकाईयों की संगठित ऋण तक पहुँच ही नहीं है। वे अपने कर्जों के लिए भांति-भांति के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं। इसमें एमएफआई, एनबीएफसी, पीएसी, साहूकार (पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों) आदि शामिल हैं। क्या ऋण सूचना कंपनियां इतनी उन्नत हो सकती हैं कि इस ऋण इतिहास को भी अपनी ऋण रिपोर्टिंग कि परिधि में शामिल करें?

आगे के इरादे

18. ईज ऑफ डुइंग बिज़नेस रैंक2 में ऋण सूचना की गहनता के संबंध में भारत का स्थान वर्ष 2014 के 140वें स्थान से 2 पायदान गिरकर वर्ष 2015 में 142वें स्थान पर रहा, फिर भी कुल 8 अंकों में से 7 अंक प्राप्त करके हमने अच्छा प्रदर्शन किया। हमारी खुदरा/जनोपयोगी सेवा कंपनियों द्वारा सीआईसीज को डेटा वितरित नहीं करने के कारण हमें कम अंक मिले।

19. सीआईसी के डेटाबेस में इलेक्ट्रिक और टेलीकॉम डेटा शामिल करने के संभावित लाभ निम्नानुसार हैं:

  1. टेलीकॉम कंपनियों और विद्युत जनोपयोगी सेवाओं से प्राप्त वास्तविक डेटा से ग्रामीण, पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों के उन छोटे और मध्यम उधारकर्ताओं की उधार पात्रता का मूल्यांकन करने में सहायता मिलेगी जिनकी फिलहाल बैंकिंग उधार तक पहुँच नहीं है, और इस प्रकार भारत में बैंकिंग की पैठ बढ़ाने में सहायता मिलेगी।

  2. वैकल्पिक डेटा विश्लेषणात्मक मॉडेल का कार्यनिष्पादन भी सुधरता है, जिससे उपभोक्ताओं की अतिशय ऋणग्रस्तता के विरुद्ध उपाय के रूप में ऋणदाताओं को उनकी “चुकाने की क्षमता” का बेहतर पूर्वनुमान लगाने में सहायता मिलती है।

  3. वैश्विक रूप से जहाँ विद्युत जनोपयोगी सेवाएं और टेलीकॉम कंपनियां ऋण ब्यूरो को भुगतान के रिकॉर्ड रिपोर्ट करती हैं, वहाँ उपभोक्ताओं का अपने बिलों के संबंध में बेहतर भुगतान रिकॉर्ड दिखाई दिया है।

  4. वित्तीय संस्थाओं द्वारा “अपने ग्राहक को जानिए" सत्यापन के प्रयोजन से व्यक्तियों के संबंध में सीआईसी के डेटाबेस को अधिक विस्तृत और गहन बनाने में सहायता मिलेगी।

20. एफआईसीसीआई, बीसीजी और आईबीए ने डिजिटल बैंकिंग3 पर अपने पर्चे में अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा है कि सूचना ब्यूरो के रिकॉर्ड में आवधिक जनोपयोगी सेवाएं (बिजली, टेलिकॉम) बिल भुगतान तथा आवधिक बीमा प्रीमियम भुगतान की सूचना की शुरुआत करने से ब्यूरो का कवरेज वर्तमान 20 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 70 प्रतिशत हो जाएगा। इससे कम क्षमता वाले / कम उधार चाहने वाले उधारकर्ता, जो ज़्यादातर स्वरोजगार वाले या असंगठित क्षेत्र के हैं, की ऋण-पात्रता में बढ़ोतरी होगी। रिजर्व बैंक ने भारत में वास्तविक डेटा-शेयरिंग की शुरुआत की है, जिससे एक उत्पाद में ग्राहक के अच्छे चुकौती व्यवहार का उपयोग अन्य क्षेत्र में ग्राहक के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने के लिए किया जा सकेगा। अतः टेलीकॉम / यूटिलिटी का वास्तविक डेटा जनसंख्या के ऐसे भाग की ऋण-पात्रता के बारे में निर्णय लेने में सहायक होगा, जिनकी बैंक-उधारों तक पहुँच ही नहीं है।

21. छोटे कारोबारों और निम्न आय वाले परिवारों के लिए व्यापक वित्तीय सेवाओं पर समिति (अध्यक्ष: डॉ. नचिकेत मोर) ने यह सिफारिश की है कि टेलीकॉम कंपनियों, बिजली सेवाओं और ऋण सूचना कंपनियों के बीच डेटा-शेयरिंग की संरचना विकसित करने हेतु रिजर्व बैंक को विभिन्न हितधारकों, उदा. ट्राई, सीईआरसी और सीईसी को शामिल करते हुए एक कार्यदल का गठन करना चाहिए। इस प्रयोजन से उचित कानूनी और विनियामक परिवर्तन करने के लिए साख सूचना कंपनियों, बिजली और टेलीकॉम क्षेत्रों को शामिल करने वाले बुनियादी अधिनियमों, नियमों और विनियमों की जाँच की जानी चाहिए। हम विभिन्न हितधरकों के साथ परामर्श करके वैकल्पिक डेटा स्रोतों, उदा. उपभोक्ताओं के बिजली और टेलीकॉम डेटा को साख सूचना की परिधि में शामिल करने की संभाव्यता / व्यवहार्यता की जाँच कर रहे हैं।

22. ध्यान देने योग्य एक अन्य क्षेत्र है- सीआईसी के डेटाबेस में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) और संयुक्त देयता समूह (जेएलजी) के सदस्य स्तर का डेटा एकत्र करना। आदित्य पुरी समिति ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए एसएचजी के वैयक्तिक उधारकर्ताओं के स्तर पर सूचना एकत्रित करने में आने वाली व्यावहारिक समस्याओं पर विचार किया है, क्योंकि एसएचजी बैंक लिंकेज प्रोग्राम के अंतर्गत बैंकों द्वारा दिए गए ऋण उसके सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से न देकर सीधे एसएचजी को दिए गए हैं। सदस्यों के स्तर पर ऋण निधियों का विवरण केवल एसएचजी के भीतर (एसएचजी द्वारा आंतरिक रूप से) किया जाता है। तथा उससे संबंधित मात्रा/स्वरूप समूह द्वारा समय-समय पर तय किया जाता है। समूह को प्रदत्त यह वित्तीय लचीलापन एसएचजी संरचना की अंतर्निहित विशेषता है। तथापि, समिति ने इस बात पर बल दिया है कि अलग-अलग सदस्यों की चुकौती क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए उनके पिछले उधारों पर विचार करना आवश्यक है, अन्यथा इसके परिणाम से वे अत्यधिक ऋणग्रस्त हो सकते हैं और उनके ऋणों की चुकौती में चूक हो सकती है। अतः तह सिफारिश की गई है कि बैंकों से यह अपेक्षित होगा कि वे सीआईसी को रिपोर्ट किए जाने हेतु उचित समय, मसलन अठारह माह के भीतर एसएचजी से आवश्यक डेटा प्राप्त करें।

23. वर्तमान विनियामक ढांचे के अनुसार केवल एनबीएफसी –एमएफआई के लिए सीआईसी के साथ अपने ग्राहकों का डेटा साझा करना अनिवार्य है। एनजीओ-एमएफआई, जिसमें धारा 25 की कंपनियां, सोसायटियां ट्रस्ट आदि सूक्ष्म-वित्त के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी, अभी तक उनके लिए क्रेडिट ब्यूरो के साथ डेटा साझा करना अनिवार्य नहीं बनाया गया है, हालांकि कुछ एनजीओ – एमएफआई स्वेछता से इसमें भाग ले रहे हैं। कुछ अध्ययनों ने एसएचजी लिंकेज और एमएफआई ग्राहकों के बीच काफी परस्पर-व्याप्ति (overlap) दर्शाई है। इससे अत्यंत ऋण-ग्रस्तता / मृतक के नाम पर उधार, असंतुलित सूचना, नैतिक खतरों आदि की गंभीरता पता चलती है।

24. एक अन्य ऐसा संभावित क्षेत्र, जिसमें साख सूचना सहायता कर सकती है, वह है ऐसी कंपनियां जो आवधिक किराए के भुगतान पर ग्राहकों को ऑपरेटिंग लीज पर वाहन और उपकरणों की आपूर्ति करती हैं। वाहन लीज के मामले में लीजकर्ता को एक नियत मासिक लागत का भुगतान करना होता है और वह निर्धारित अवधि और माइलेज तक वाहन का उपयोग कर सकता है तथा करार के अंत में वाहन कंपनी को लौटना होता है। चूंकि अपने ग्राहकों को यह सुविधा देने वाली कंपनी ऐसा करार करने से लेकर लीज प्रचलन में रहने तक उस पर जोखिम उठाती है, उसके लिए लीजकर्ता की ऋण-पात्रता का मूल्यांकन करना आवश्यक है। वर्तमान में भारत में ऐसी वाहन लीजिंग कंपनियों को भारतीय रिजर्व बैंक अथवा किसी वित्तीय विनियामक द्वारा विनियमित नहीं किया जा रहा है। हम इस बात की जाँच करेंगे कि क्या साख सूचना विनियमावली, 2006 के अधीन ऐसी लीज़िंग कंपनियों को सीआईसी से / को सूचना प्राप्त करने और उपलब्ध कराने के प्रयोजन से विनिर्दिष्ट किया जा सकता है।

25. अंत में मैं यह कहना चाहूँगा कि साख सूचना कारोबार ने ऋण संस्थाओं द्वारा ऋण उठाने और ऋण जोखिम प्रबंधन को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चार साख सूचना कंपनियों पर यह देखने की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी डाली है कि साख सूचना में गुणात्मक सुधार हो। साख सूचना प्रणाली को सुरक्षित, कार्यकुशल, भरोसेमंद और ग्राहक के लिए उपयोगी बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय करेगा। मुझे अपने विचार आप लोगों के साथ बांटने का अवसर देने के लिए मैं सिबिल का एक बार फिर धन्यवाद करता हूं।

26. धन्यवाद।


* श्री आर.गांधी, उप गवर्नर द्वारा 3 मार्च 2015 को सातवें वार्षिक सिबिल ट्रांस यूनियन साख सूना सम्मेलन, होटल ड्राइडेंट में दिया गया प्रमुख भाषण। इसके लिए श्री राजेश जयकंठ द्वारा दिए गए सहयोग के लिए उनके प्रति आभार।

1 वैश्विक वित्तीय विकास रिपोर्ट 2014: वित्तीय समावेशन। वाशिंगटन डीसी: वर्ल्ड बैंक.

2 डुइंग बिज़नेस 2015, वर्ल्ड बैंक

3 डिजिटल बैंकिंग – अगले पाँच वर्षों में पहुँच, सेवा और उत्पादकता में असाधारण वृद्धि के लिए अक्सर, सितंबर 2014

 

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