पिछले गवर्नरों की सूची - आरबीआई - Reserve Bank of India
पिछले गवर्नरों की सूची
डॉ. मनमोहन सिंह
- सितंबर 16, 1982 - जनवरी 14, 1985
अकादमिक और प्रशासक डॉ मनमोहन सिंह ने गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले वित्त सचिव और योजना आयोग के सदस्य सचिव के रूप में भी कार्य किया था।
उनके कार्यकाल के दौरान बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित व्यापक विधायी सुधार किए गए और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में एक नया अध्याय जोड़ा गया और शहरी बैंक विभाग स्थापित किया गया।
बैंक में अपने कार्यकाल के बाद, उन्होंने वित्त मंत्री नियुक्त होने से पहले विभिन्न पदों पर सेवा की। वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल इस तथ्य के लिए उल्लेखनीय था कि उन्होंने भारत में उदारीकरण और व्यापक सुधारों की शुरुआत की।
डॉ. आई.जी. पटेल
- दिसंबर 1, 1977 - सितंबर 15, 1982
अर्थशास्त्री और प्रशासक डॉ आई जी पटेल, वित्त मंत्रालय और उसके बाद यूएनडीपी में सचिव के रूप में सेवा देने के बाद रिजर्व बैंक में गवर्नर के रूप में आए।
उनके कार्यकाल में उच्च मूल्यवर्ग के नोटों के विमुद्रीकरण के साथ-साथ भारत सरकार की ओर से बैंक के संचालन में "सोने की नीलामी" हुई। इस दौरान छह निजी क्षेत्र के बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, प्राथमिकता क्षेत्र में ऋण के लक्ष्य प्रारंभ किए गए, और डिपॉजिट इंश्योरेंस और क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन का विलय किया गया, और बैंक में एक विभागीय पुनर्गठन किया गया। भुगतान संतुलन कठिनाइयों के मद्देनजर उन्होंने 1981 में आईएमएफ की विस्तारित निधि सुविधा (फ़ंड फ़ैसिलिटी) का लाभ उठाने में सक्रिय भूमिका निभाई। यह आईएमएफ के इतिहास में उस समय की सबसे बड़ी व्यवस्था थी।
श्री एम. नरसिंहम्
- मई 2, 1977 - नवंबर 30, 1977
एम नरसिम्हम रिजर्व बैंक कैडर से नियुक्त होने वाले प्रथम और अब तक के एकमात्र गवर्नर हुए। वे बैंक में आर्थिक विभाग में अनुसंधान अधिकारी के रूप में भर्ती हुए थे। बाद में उन्होंने सरकार में नौकरी की और गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले आर्थिक कार्य विभाग के अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्य किया।
उनका कार्यकाल सात महीने की अल्पावधि का था। बाद में उन्होंने विश्व बैंक में भारत के लिए कार्यपालक निदेशक के रूप में और उसके बाद आईएमएफ में कार्य किया जिसके बाद उन्होंने वित्त मंत्रालय में सचिव के रूप में कार्य किया। वह वित्तीय प्रणाली समिति, 1991 और बैंकिंग क्षेत्र सुधार समिति, 1998 के अध्यक्ष थे।
श्री के.आर. पुरी
- अगस्त 20, 1975 - मई 2, 1977
के आर पुरी ने गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के रूप में कार्य किया था।
उनके कार्यकाल के दौरान, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई थी; एशियाई समाशोधन संघ ने कार्य शुरू किया; बीस सूत्री आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की गई और कार्यान्वयन हुआ और एक नई मुद्रा आपूर्ति श्रृंखला शुरू की गई।
श्री एन.सी. सेन गुप्ता
- मई 19, 1975 - अगस्त 19, 1975
के सी पुरी के पद संभालने तक एन सी सेन गुप्ता को तीन महीने के लिए गवर्नर नियुक्त किया गया था।
राज्यपाल के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले, वह वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग के सचिव के रूप में काम कर रहे थे।
श्री एस. जगन्नाथन
- जून 16, 1970 - मई 19, 1975
एस जगन्नाथन भारतीय सिविल सेवा के सदस्य थे। गवर्नर के रूप में नियुक्त किए जाने से पहले उन्होंने केंद्र सरकार में और तत्पश्चात विश्व बैंक में भारत के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया था। तेल के झटके के बाद देश में अभूतपूर्व मुद्रास्फीति के मद्देनजर एक अति सक्रिय मौद्रिक नीति, राष्ट्रीयकरण के महत्वपूर्ण उद्देश्यों के रूप में बैंकिंग कार्यालयों का उत्तरोत्तर विस्तार; क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना, राज्य स्तरीय बैंकर्स समितियों की स्थापना और फ्लोटिंग रेट्स व्यवस्था में बदलाव उनके कार्यकाल की प्रमुख बातें थी। आईएमएफ में भारतीय कार्यपालक निदेशक का पद ग्रहण करने के लिए उन्होंने गवर्नर का पद छोड़ दिया। |
श्री बी.एन. आडारकर
- मई 4, 1970 - जून 15, 1970
एस जगन्नाथन के गवर्नर के रूप में कार्यभार ग्रहण करने तक बी एन आदरकर ने गवर्नर का पद संभाला।
वे एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे और उन्होंने भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार के पद पर कई वर्षों तक कार्य किया तथा बैंक के उप-गवर्नर के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
उन्होंने आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक के रूप में भी कार्य किया और उप गवर्नर के रूप में, उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंक मैनेजमेंट की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई।
श्री लक्ष्मीकांत झा
- जुलाई 1, 1967 - मई 3, 1970
भारतीय सिविल सेवा के सदस्य एल के झा ने गवर्नर के रूप में नियुक्ति से पहले प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में कार्य किया। उनके कार्यकाल के दौरान, 1968 में एक प्रयोग के रूप में वाणिज्यिक बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण शुरू किया गया था, जिसके अंतर्गत एक राष्ट्रीय ऋण परिषद (क्रेडिट काउंसिल) की स्थापना की गई थी। इसके तुरंत बाद, 1969 में 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, एक ऐसा कदम, जिसे रिज़र्व बैंक का समर्थन नहीं था। अन्य घटनाक्रमों में, स्वर्ण नियंत्रण सांविधिक आधार पर लाया गया; जमा बीमा को सिद्धांतत: सहकारी बैंकों तक विस्तार दिया गया; ऋण वितरण सुगम बनाने के लिए अग्रणी (लीड) बैंक योजना की शुरुआत, और कृषि क्रेडिट बोर्ड की स्थापना थी। गवर्नर के रूप में कार्यकाल पूरा होने से पहले एल के झा को मई 1970 में संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था। |
श्री पी.सी. भट्टाचार्य
- मार्च 1, 1962 - जून 30, 1967
इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट सर्विस, के सदस्य पीसी भट्टाचार्य ने गवर्नर के रूप में नियुक्त होने से पहले वित्त मंत्रालय में सचिव व इसके बाद भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दीं। उनके कार्यकाल में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (1964), और कृषि पुनर्वित्त निगम (1963) और भारतीय यूनिट ट्रस्ट (1964) की स्थापना हुई। 1966 में ऋण विनियम (क्रेडिट रेगुलेशन) के एक साधन के रूप में ऋण प्राधिकार योजना, 1966 में रुपये के अवमूल्यन के साथ आयात उदारीकरण और निर्यात सब्सिडी को खत्म करने सहित कई उपायों के पैकेज की शुरुआत इनके कार्यकाल की अन्य प्रमुख बातें थीं। |
श्री एच.वी.आर. अय्यंगार
- मार्च 1, 1957 - फ़रवरी 28, 1962
भारतीय सिविल सेवा के एच वी आर आयंगर ने रिज़र्व बैंक के गवर्नर के रूप में नियुक्त होने से पहले अल्प अवधि के लिए भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष के रूप में सेवा की थी।
उनके कार्यकाल में भारत ने पहले की प्रथा छोड़ दशमलव सिक्का प्रणाली अपनाई। इस अवधि में बैंकिंग उद्योग को मजबूत करने के सचेत प्रयास हुए। सितंबर 1960 में बैंकों के समामेलन और लाइसेंस समाप्त करने का अधिकार बैंक को मिला। पुनर्वित्त की अवधारणा के प्रयोग से बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग को मध्यम अवधि के ऋणों को प्रोत्साहित किया, जिससे आगे चलकर उद्योग पुनर्वित्त निगम लिमिटेड की स्थापना हुई। बैंक जमाराशियों के लिए जमा बीमा की शुरुआत 1962 में हुई, और इस प्रकार भारत जमाराशि बीमा के क्षेत्र में प्रयोग करने वाले शुरुआती देशों में से एक हुआ। मौद्रिक नीति के क्षेत्र में, चर आरक्षित नकदी निधि अनुपात और चयनात्मक ऋण नियंत्रण का प्रयोग भी पहली बार किया गया।
* सर जेम्स टेलर के निधन के बाद श्री सी.डी. देशमुख ने 22 फरवरी, 1943 से 10 अगस्त, 1943 तक भारत सरकार, विधायी विभाग, नई दिल्ली द्वारा जारी किये गये अध्यादेश के तहत, गवर्नर की शक्तियों का प्रयोग तथा कार्यों का निर्वाह किया।