Edited Excerpts of the Governor’s Interview with Zee Business on September 02, 2022 - आरबीआय - Reserve Bank of India
Edited Excerpts of the Governor’s Interview with Zee Business on September 02, 2022
Shri Shaktikanta Das, Governor, Reserve Bank of India
delivered-on सप्टें 05, 2022
ज़ी बिजनेस आरबीआई ने कोविड-19 पेंडेमिक के समय देश के बैंकिंग सिस्टम और अर्थव्यवस्था को बड़े मुश्किल दौर से निकालने का काम किया है। ब्याज दरों में तेज कटौती करके, सिस्टम में लिक्विडिटी डालकर, जरूरत पड़ने पर मोराटोरियम देकर और साथ ही साथ लोंस की रिस्ट्रक्चरिंग को आसान करके, अर्थव्यवस्था को उस वक्त जिस बड़े सहारे की जरूरत थी, बैंकिंग सिस्टम को थी, वह काम किया। लेकिन आरबीआई का काम ऐसा है कि चुनौतियां कभी खत्म नहीं होती। अभी भी कुछ बड़ी और नई चुनौतियां हैं, दुनिया भर से भी, और हमारी अपनी भी। एक ओर महंगाई तेजी से बढ़ती जा रही है, ब्याज दरें बढ़ रही है और दूसरी तरफ मजबूत अर्थव्यवस्था में ग्रोथ बरकरार रखने की चुनौतियाँ है। आइए इसी खास मुद्दे पर आज हमारे साथ एक बेहद खास मेहमान, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकान्त दास साहब कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। सर, ज़ी बिजनेस पर आपका बहुत-बहुत स्वागत और सबसे पहले धन्यवाद समय देने के लिए। इस वक्त पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं और हमारी अर्थव्यवस्था बड़े चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रही है; और जो सबसे बड़ी समस्या और चर्चा का विषय है – महंगाई यानि की इन्फ़्लेशन। सर, क्या आपको लग रहा है कि हिंदुस्तान में इंफ्लेशन पीकआउट हो चुका है क्योंकि कहीं न कहीं, महंगाई के कम होने के संकेत दिख रहे हैं। क्या यह समझना ठीक है या जल्दबाजी? शक्तिकान्त दास आपको और सभी दर्शकों को नमस्कार। यह संयोग की बात कहिए या और कुछ कि अभी देश भर में हम हिंदी माह का पालन कर रहे हैं, और इस समय मैं हिंदी में आपके साथ संवाद कर रहा हूं। आपने मुझे जो मौका दिया, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं और यह जो हिंदी माह है इसके लिए मेरी तरफ से आपको और सारे दर्शकों को बहुत सारी शुभकामनाएं! जहां तक आप महंगाई और इंफ्लेशन की बात कर रहे हैं, यह एक वैश्विक परिस्थिति (ग्लोबल फेनोमेनन) बन गयी है। मैंने पहले भी कहा था कि अभी जो सिचुएशन है वह ग्लोबलाइजेशन ऑफ इंफ्लेशन है। आप किसी भी देश के हालिया आंकड़ों को देखें, चाहे वह यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका हो या यूके हो या जर्मनी हो, कई देशों में इंफ्लेशन अभी बहुत अधिक चल रहा है। यूएसए में थोड़ा सा नर्म हुआ है लेकिन यूरोपियन यूनियन में अभी भी काफी ज्यादा है और बहुत सारे देशों में भी इन्फ्लेशन ज्यादा ही है। जहां तक भारत का सवाल है, इंफ्लेशन इस समय, क्योंकि ये वैश्विक परिस्थितियों के कारण दिन- प्रतिदिन बदलता रहता है, हमारे आकलनों के अनुसार अप्रैल में 7.8 प्रतिशत शायद पीक लेवल था। उसके बाद इंफ्लेशन धीरे-धीरे कम हुआ और हो रहा है और हमारा प्रोजेक्शन भी वही था। जो पिछला डाटा आया है वो 6.7 प्रतिशत था और इस साल का हमने प्रोजेक्शन 6.7 प्रतिशत दिया है। हमारे असेसमेंट के अनुसार ये 6.7 प्रतिशत रहेगा इसके बाद इंफ्लेशन धीरे-धीरे कम होता जाएगा। लेकिन इसके साथ मैं यह भी कहना चाहता हूं कि यह एक स्मूथ राइड नहीं भी हो सकता है, बीच-बीच में थोड़ा बहुत बंप आ सकता है थोड़ा ऊपर जाएगा, फिर नीचे आएगा लेकिन उसकी दिशा नीचे की तरफ रहेगी और उसके कई कारण हैं। पहला, अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें अभी कम हो गए हैं। हमारा असेसमेंट पूरे साल के लिए 105 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल है लेकिन अभी ये 94-95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है। कमोडिटी प्राइसेस में काफी नरमी आयी है। फूड प्राइसेज में नरमी आयी है, लेकिन आईएमएफ का अनुमान है कि वैश्विक महंगाई (ग्लोबल इंफ्लेशन) इस साल बहुत अधिक रहेगा। विकसित देशों के लिए उनका पूर्वानुमान 6.6 प्रतिशत है और उभरती बाजार अर्थव्यवस्था, जिसमें इंडिया आता है, के लिए पूर्वानुमान 8.6-8.7 प्रतिशत के आसपास है। हमारा करेंट असेसमेंट है कि इंफ्लेशन भारत में पीक पर पहुंच चुका है और आगे जाकर इसे कम होना चाहिए। अगले वित्त वर्ष के पहले तिमाही में, हमारे अनुमान के अनुसार, इसे पांच प्रतिशत होना चाहिए लेकिन हमको बहुत सतर्क और सजग रहना होगा जिसमें किसी तरह की कंप्लेसेंसी की कोई जगह नहीं होगी। ज़ी बिजनेस सर, 1990 के बाद आप ऐसे पहले आरबीआई गवर्नर हैं जो अर्थशास्त्री नहीं हैं और शायद उस पल्स को ज्यादा अच्छे से पहचानते हैं। लोग आपको बड़े प्रोएक्टिव और प्रोग्रेसिव गवर्नर के तौर पर देखते हैं। आपने पहले जवाब में ही अच्छी बात कही कि इंफ्लेशन पीक होता हुआ दिख रहा है। अब जिस तरह से आप ने ब्याज दरें बढ़ाईं हैं, लगभग 2 प्रतिशत की ब्याज दरें बढ़ी है। क्या यह समझा जाए कि अब आरबीआई को और तेजी से ब्याज दरें बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी? शक्तिकान्त दास आगे जाकर हम ब्याज दर में क्या करेंगे वह तो मेरे लिए अभी कहना कठिन है। क्योंकि वह तो मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी, जो कि इसी महीने में 30 तारीख को मॉनेटरी पॉलिसी स्टेटमेंट रिलीज करेंगे, बता पाएंगे। लेकिन अभी जो स्थिति लग रही है, हमको लग रहा है कि हमारा जो पॉलिसी अभी तक रहा है वी आर ऑन द राइट ट्रेक। कुछ लोगों का ओपिनियन था कि आरबीआई शायद बिहाइंड दि कर्व हो गया है। हम सारी ओपिनियन को बहुत वैल्यू देते हैं। मैं आपके माध्यम से सारे दर्शकों को कहना चाहता हूं कि कोई बिहाइंड दि कर्व की बात नहीं है। वी आर वेल इन सिंक विद दि टाइम मतलब जो समय के अनुसार जरूरत है, हम कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। और हमारा अप्रैल से जो पॉलिसी रहा है, जिसमें एसडीएफ़ इंट्रोड्यूज करके 40 बेसिस प्वाइंट्स का बढ़ोतरी किया था, उसके बाद मई, जून और अगस्त में जो रेट हाइक किया; उसके आधार पर हमारा ये एसेसमेंट है कि वी आर ऑन द राइट ट्रेक। आगे जाकर इनकमिंग डाटा जैसे कि अनफोल्डिंग डेवलपमेंट, ग्लोबल डेवलपमेंट्स; कैसा हो रहा है, डोमेस्टिक सिचुएशन कैसा है उन सबका मूल्यांकन करके अगले एमपीसी के वक्त एक स्पष्ट तस्वीर दे सकते हैं। मैं इस सन्दर्भ में एक बात और कहना चाहता हूं कि जब आप रेट कट करते हैं तो आप बहुत स्पष्ट फॉरवर्ड गाइडेंस दे सकते हैं। जिस समय अर्थव्यवस्था पर कोविड का नेगेटिव प्रभाव था उसके पहले जब मंदी के दौर से गुजर रहा था हम उस वक्त फॉरवर्ड गाइडेंस देते थे – अभी अप्रोच यही रहेगा कि आगे जाकर कट करेंगे। लेकिन अभी जो अनिश्चितता की स्थिति है, दिन प्रतिदिन और हरेक सप्ताह परिस्थितियां बदल रही हैं इस माहौल में पॉलिसी रेट पर किसी तरह का फॉरवर्ड गाइडेंस देना बहुत मुश्किल है। वस्तुतः, फॉरवर्ड गाइडेंस देना सही भी नहीं होगा क्योंकि आगे जाकर परिस्थितियां बदल सकती हैं। ज़ी बिजनेस बिलकुल ठीक बात और आपकी तो हर रोज इस पर नजर रहती है आप हमेशा आंकड़ों को देखते हैं कि आगे किसी तरह की सिचुएशन बन रही है। लेकिन एक चीज जो मैं आपकी बात से समझ रहा हूँ वो यह है, इंफ्लेशन को लेकर तो आप कॉन्फिडेंट हैं कि पीक हो गया लेकिन ब्याज दरों को लेकर अभी भी आप यह स्पष्ट नहीं कह रहें हैं कि ब्याज दरें पीक हो गई हैं; यानि कि गुंजाइश अभी भी है। जिस तरह का इंफ्लेशन अभी है और शायद अगले 3 से 6 महीने इसे नीचे आने में लगे तो थोड़ी बहुत बढ़ोत्तरी की गुंजाइश तो है। शक्तिकान्त दास ये कंक्लूजन आपके ऊपर निर्भर करता है। आपने ये सवाल बहुत अच्छी तरह पूछा, लेकिन इसका जवाब मैं हाँ या ना कुछ कहना सही नहीं मानता। ज़ी बिजनेस ठीक बात है और एमपीसी है आपकी, और जाहिर सी बात है आप सारे मेंबर की राय लेकर और आप की एक खासियत मानी भी जाती है। मैं आपको बताऊं कि आपको ऐसा गवर्नर माना जाता है जो सबकी सुनते हैं और आप से हम बड़े खुलकर सवाल पूछ पाते हैं। नहीं तो आमतौर पर यह सुविधा ज्यादातर गवर्नर के साथ प्रेस को मिली नहीं है। इसी पर एक बात आपसे और पूछना चाहता हूं। आपके हाथ में दो बड़े काम हैं, हमेशा जो होते हैं, एक तरफ ग्रोथ है और एक तरफ महंगाई है। इस वक्त आपके लिए महंगाई बड़ी चिंता है लेकिन महंगाई को कम करने में ब्याज दरें बढ़ाने से थोड़ा बहुत असर शायद ग्रोथ पर भी पड़े। क्या आरबीआई इस वक्त ग्रोथ को थोड़ा नीचे लाने के लिए भी तैयार हैं; पहले महंगाई कम होनी चाहिए। शक्तिकान्त दास अपने अप्रैल स्टेटमेंट में हमने सिक्वेंस ऑफ प्रायरिटी के बारे में कहा था उसमें इंफ्लेशन हमारी पहली प्राथमिकता है। उसके बाद ग्रोथ आता है। और आप अगर आरबीआई एक्ट देखेंगे तो वह मॉनिटरी पॉलिसी का जहां पर प्रोविजन है आरबीआई एक्ट में साफ लिखा गया है कि इंफ्लेशन कंट्रोल, जिसे प्राइस स्टेबिलिटी भी कहते हैं, आरबीआई का प्राइम रिस्पांसिबिलिटी है, लेकिन कीपिंग इन माइंड दि ऑब्जेक्टिव आफ ग्रोथ। मतलब ग्रोथ को हमेशा ध्यान में रखना है जब भी हम इंफ्लेशन के लिए कोई कदम लेते हैं। हमारी कोशिश अभी भी यही रहेगी क्योंकि इकोनोमिक एक्टिविटी अभी काफी रिवाइव हो गया है और रिवाइव हो भी रहा है। हमारी कोशिश यही रहेगी कि इन द प्रोसेस, ग्रोथ सैक्रिफाइस कुछ होता है तो वह न्यूनतम हो, हम ग्रोथ के लिए भी काफी गंभीर हैं ज़ी बिजनेस तो आपको लगता है कि ग्रोथ में ज्यादा कमी नहीं आएगी। हल्का-फुल्का असर जो है, जो दुनिया भर में रिसेशन की बातें हो रही हैं, मंदी की बातें हो रही हैं। क्या उसके साथ हमारी इकोनॉमी मजबूत रह सकती है? या अगर ग्रोथ में कमी हुई तो उसके हमारे अपने लोकल कारण ज्यादा होंगे – जो आप ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं या फ़िर ग्लोबल कारण ज्यादा होंगे ? शक्तिकान्त दास अभी की जो स्थिति है उसमें ग्लोबल कारण ज्यादा है। चाहे वह इंफ्लेशन हो या ग्रोथ हो। क्योंकि ग्रोथ में ग्लोबल डिमांड कम हो रहा है और एक्सपोर्ट सेक्टर ग्रोथ में बहुत इंपॉरटेंट रोल प्ले करता है- एक्सपोर्ट - इंपोर्ट दोनों। ग्लोबल डिमांड में थोड़ा स्लोडाउन आया है और बाकी इकोनॉमीज़ में भी थोड़ा स्लोडाउन हो रहा है – ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ में स्लोडाउन हो रहा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि विकसित देश शायद मन्दी में चले जाएंगे, लेकिन यह आगे जाकर मालूम पड़ेगा। लेकिन स्लोडाउन इंटरनेशनली है तो उसका असर भारत के ऊपर तो ज़रूर पड़ेगा, क्योंकि जब हम ग्लोबलाइज्ड वर्ल्ड में रहते हैं और जब इंटरनेशनली ग्लोबल ग्रोथ बढ़ता है, तो हमारे लिए भी एक्सपोर्ट डिमांड बढ़ता है और हमारा डोमेस्टिक सेक्टर भी बहुत अच्छा करता है। इसीलिए ग्लोबल फ़ैक्टर्स का इम्पैक्ट इंफ्लेशन के ऊपर रहेगा और ग्रोथ के ऊपर भी रहेगा। जहां तक डोमेस्टिक फ़ैक्टर से ग्रोथ का सवाल है इस साल अग्रीकल्चर सेक्टर अभी बहुत अच्छा कर रहा है। रेनफ़ॉल गैप अभी कम होकर एक्सेस रेनफ़ॉल हो गया है, लेकिन हां कुछ क्षेत्रों में बारिश इतनी नहीं हुई, और नेट सोइंग एरिया का भी शॉर्टफ़ॉल अभी कम हो गया है। ये अभी 1.5 प्रतिशत के आस-पास है। एक जो चिंता का विषय था इस साल पैडी कल्टीवेशन में 10-15 रोज़ पहले उसमें शॉर्टफ़ॉल पिछले साल के हिसाब से 11-12 प्रतिशत तक था। लेकिन अभी की जो स्थिति है वह शॉर्टफ़ॉल 6 प्रतिशत के आस-पास है। एग्रीकल्चर सेक्टर अच्छा कर रहा है और बाकी सेक्टर्स जैसे कि इंडस्ट्री और सर्विसेज़ सेक्टर, उनका परफॉर्मेंस भी अच्छा रहा है, क्रेडिट ग्रोथ भी अच्छा है। इकोनॉमिक एक्टिविटी हमारे देश के अंदर रेसिलियंट है। लेकिन फर्स्ट क्वार्टर का जीडीपी नंबर, आरबीआई का असेसमेंट्स से कंपेयर करेंगे तो उसके हिसाब से कम है। हमारा असेसमेंट था कि 16.2 प्रतिशत आएगा और जो एक्चुअल नंबर आया है वह 13.5 प्रतिशत है। तो ऐसा क्यों हुआ, कहां-कहां हुआ उसका हम विस्तृत अध्ययन कर रहे हैं और दो तीन एरिया हमने आईडेंटिफाई किए हैं कि कहां पर ज्यादा फर्क आया है। लेकिन उसके बारे में मैं अभी कुछ डिटेल नहीं कहना चाहता क्योंकि उसके नंबर तो अभी दो रोज़ पहले आए हैं और आरबीआई का हमेशा प्रोसीज़र रहा है कि हम उसको बिल्कुल डिटेल और सही तरीके से इन्वेस्टिगेट कर लेंगे। फिर जो बोलना है अगले मॉनिटरी पॉलिसी में हम इसके बारे में बताएंगे। फर्स्ट क्वार्टर का ग्रोथ हमारे एसेसमेंट के साथ कंपेयर करेंगे तो कम हुआ है, लेकिन इकोनॉमिक एक्टिविटी चाहे हाई फ्रिकवेंसी इंडिकेटर्स हो, रूरल डिमांड हो, अर्बन डिमांड के भी कई सारे कॉम्पोनेंट अभी तक काफी रेसिलिएन्ट चल रहा है। ज़ी बिजनेस सर, क्रेडिट ग्रोथ कम हो तो भी आपके लिए दिक्कत है और अगर जरूरत से ज्यादा हो तो भी शायद आप थोड़ी चिंता करते होंगे। इस वक्त क्रेडिट ग्रोथ जबरदस्त है बैंक्स आराम से लेंड कर रहे हैं और स्पेशली क्रेडिट ग्रोथ कॉरपोरेट के मुकाबले रिटेल में थोड़ी ज्यादा है। आरबीआई कंफर्टेबल है या थोड़ी चिंतित है या फिर नज़र बनाए हुए है ? शक्तिकान्त दास आपको पिछले साल का बेस देखना चाहिए। पिछले साल का जो क्रेडिट ग्रोथ था वह 5.30-6.00 प्रतिशत था, यह ग्रोथ उसके ऊपर हो रहा है। इसको हमें मन में रखना पड़ेगा, और आरबीआई का एप्रोच हमेशा यही रहा है कि हमारा जो सुपरविजन है और जो मार्केट सर्विलेंस है बैंकों के ऊपर हो, या फाइनेंशियल मार्केट्स के ऊपर हो और जो एसेसमेंट है हम उसको बहुत क्लोजली करते हैं। कौन से सेक्टर में ज्यादा क्रेडिट ग्रोथ हो रहा है उसको हम डिटेल एनालाइज करते हैं। सेक्टोरल लेवल पर जब ग्रोथ होता है उसमें यह होता है कि कुछ सारे इंस्टीट्यूशंस में, कुछ सारे बैंकों में बहुत ज्यादा होता है, कुछ सारे बैंकों में कम होता है। तो जहां पर अगर मान लीजिए रिटेल लेंडिंग हो या रियल इस्टेट लेंडिंग हो या किसी भी एक सेक्टर या सब-सेक्टर में अगर एक्सेसिव लेंडिंग हो रहा है, एक्सेसिव क्रेडिट ग्रोथ हो रहा है तो हम उसको एनालाइज करते हैं। क्यों हो रहा है और जहां- जहां जरूरत होता है, हम उस फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को चाहे वह एनबीएफसी हो या बैंक हो या स्मॉल फाइनेंस बैंक हो या को-ऑपरेटिव बैंक हो उनको हम कॉशन देते हैं कि आपका ग्रोथ बहुत ज्यादा हो रहा है सस्टेनेबल होगा या नहीं रहेगा; इसको आप एसेस करिए और हमको रिपोर्ट दीजिए। और जहां जरूरत होता है हम उनको भी यह कहते हैं कि आप रिव्यू करिए- इंटर्नली रिव्यू करिए। क्योंकि, एक सेक्टर में एक आइटम में आपका ज्यादा ग्रोथ हो रहा है तो एक तरह से रिस्क बिल्डअप हो रहा है। आरबीआई की तरफ से, हमारी यही कोशिश है रहती है कि रिस्क एसेसमेंट और रिस्क मैनेजमेंट दोनों होनी चाहिए। रिस्क एसेसमेंट, पहले वह जो बैंक है उनको करना चाहिए और रिस्क मैनेजमेंट भी उनको करना चाहिए। आरबीआई की तरफ से हम रिस्क एसेसमेंट करते हैं उनको कॉशन करते हैं। रिस्क मैनेजमेंट जो है उनको करना पड़ेगा। हम उनको बताते हैं कि रिस्क बिल्डअप हो रहा है इसको मैनेज करिए। ज़ी बिजनेस गवर्नर साहब! कुछ सवाल अपने कंज्यूमर्स के बिहाफ से पूछना चाहता हूं। एक तो यह कि बढ़ती हुई ब्याज दरों में ईएमआई तुरंत बढ़ जाती हैं। ब्याज की दरें लोन पर तुरंत बढ़ती हैं डिपॉज़िट पर ब्याज दरों के बढ़ने में थोड़ा सा वक्त लगता है। आपसे पहले भी सारे गवर्नर्स इस बात पर कोशिश करते आए हैं कि इन दोनों में गैप कम से कम हो। आपके क्या प्रयास हैं और यह बढ़ती हुई ब्याज दरों में जो उनकी ईएमआई का बोझ बढ़ने वाला है उसके लिए किस तरह से आम कंज्यूमर्स को तैयार रहना चाहिए? शक्तिकान्त दास एक्सटर्नल बेंचमार्किंग, जो हमने इंट्रोड्यूस किया है, में बैंक जो लोन देते हैं उसको किसी भी एक्सटर्नल बेंचमार्क जैसे- गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़ हो या ट्रेजरी बिल्स हो, के साथ लिंक करेंगे और उसके हिसाब से उनका लेंडिंग रेट निर्धारित होगा, जब एक्सटर्नल बेंचमार्क बढेगा तो लेंडिंग रेट बढेगा और बेंचमार्किंग रेट यदि घटेगा तो लेंडिंग रेट घटेगा। अभी क्या होता है कि हमेशा लेंडिंग रेट और डिपॉज़िट रेट में थोड़ा सा टाइम लैग रहता है हाल में आरबीआई का इस पर एक रिसर्च-पेपर भी पब्लिश हुआ है जिसमें यह दिखाया गया है कि एक्सटर्नल बेंचमार्क के कारण मॉनिटरी पॉलिसी का ट्रांसमिशन लेंडिंग रेट में बहुत जल्द हो रहा है, इस ट्रांसमिशन को डिपॉज़िट साइड में भी होना ज़रूरी है। जब हम रेट कम कर रहे थे डिपॉज़िट साइड में बहुत फास्ट ट्रांसमिशन हो रहा था। अभी जब हम रेट बढ़ा रहे हैं लैंडिंग साइड में अगर आप देखेंगे, रेट हाइक अभी भी पूरा प्रपोर्शनेट नहीं है। लेंडिंग रेट हाइक कम है क्योंकि वह आगे जाकर उसको धीरे-धीरे बढ़ाएंगे। डिपॉज़िट साइड में भी कई सारे बैंकों ने अपने डिपॉज़िट रेट्स बढ़ाए है। बहुत सारे बैंकों ने कुछ नए डिपॉज़िट स्कीम्स लांच किया हुआ है। यह जो गैप है वह कम होता जा रहा है। यही कारण है कि हमारा जो लिक्विडिटी मैनेजमेंट पॉलिसी रहा है, उसमें एक्सेस लिक्विडिटी को हम धीरे-धीरे पुल आउट कर रहे हैं। बैंकों का लोन डिमांड ज्यादा है, आरबीआई की तरफ से हम लिक्विडिटी पुल-आउट कर रहे हैं तो बैंकों के ऊपर यह प्रेशर हमेशा रहेगा कि उनको फंड रेज करना पड़ेगा तो आप फंड कहां से लाएंगे? उनको अपने आप डिपॉज़िट बढ़ाना पड़ेगा। और वह हो रहा है। बैंक कर रहे हैं। बस ये कहना चाहता हूं कि लेंडिंग रेट बढ़ रहे हैं। ऐसा नहीं कि हमने पालिसी रेट 50 बेसिस प्वाइंट से बढाया और लेंडिंग रेट भी तुरंत 50 प्वाइंट में बढ़ गया, ऐसा नहीं है। डिपॉज़िट रेट भी उसके हिसाब से अभी बढ़ रहे हैं और आगे जाकर और भी बढ़ेंगे। ज़ी बिजनेस एक और बढ़िया काम जो आरबीआई ने किया है उस पर मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। डिजिटल लेंडिंग ऐप पर बड़ा एक्शन आपने लिया है। उस पर गाइडलाइंस बनाई हैं। हम लोगों ने ज़ी बिजनेस पर दो साल पहले दो स्टिंग ऑपरेशंस किए थे- ‘ऑपरेशन हफ़्ता वसूली’। जब Moratorium आप ने लागू किया था तब ये छोटे लोन देने वाली कंपनियां लोगों को काफी परेशान कर रही थीं। उसके बाद हम चाइनीज कनेक्शन पर भी हमने काफी एक्शन लिया। आरबीआई ने उस पर बड़ा काम किया। काफी कुछ चीज़ें तो कंट्रोल में आ चुकी हैं, अभी भी थोड़ी बहुत चीज़ें हैं। लेंडिंग एप्स पर जो विदेशी कनेक्शन निकल कर आ रहे हैं, उस पर आरबीआई का क्या व्यू है और आप क्या करने जा रहे हैं? शक्तिकान्त दास डिजिटल लेंडिंग के बारे में तो हमने डायरेक्ट गाइडलाइंस इश्यू कर दिए हैं और हमें सेटिस्फेक्शन है कि जो फाइनेंशियल सेक्टर के प्लेयर्स हैं वे बाय एंड लार्ज खुश हैं कि गाइडलाइंस ठीक हैं। हमारी यह जो नई पॉलिसी आई है उसकी अंडर लाइन थीम - तीन प्रिंसिपल्स पर यह आधारित है पहला कि यह कंज़्यूमर-सेंट्रिक है। कंजूमर-सेंट्रिक क्यों है? क्योंकि अभी कंज़्यूमर जब भी डिजिटल लोन लेते हैं उनको पता रहेगा कि ऑल इंक्लूसिव, सारे कॉस्ट मिलाकर उनको एन्युअलाइज़्ड इंटरेस्ट रेट, ब्याज दर कितना है। पहले कस्टमर को ठीक से पता नहीं लगता था, हमने इसे कंज़्यूमर-सेंट्रिक किया। सेकेंड्ली, जो कलेक्शन मैथड होगा - उसके बारे में भी हमने बहुत सारे गाइडलाइंस इश्यू किए हैं और जो लॉ-एनफोर्समेंट एजेंसीज हैं हमने उनके साथ भी काफी इंटरेक्ट किया हैं। तो जो फर्स्ट प्रिंसिपल जिसके ऊपर यह नया डिजिटल लेंडिंग पॉलिसी आधारित है वह है कंजूमर सेंट्रिक पॉलिसी । दूसरा यह है कि, इट इज़ बेस्ड ऑन रिस्क एसेसमेंट एंड रिस्क मिटिगेशन क्योंकि यह जो लैंडिंग हो रहा है अगर वह अनरेगुलेटेड रह जाता है, तो फाइनेंशियल सिस्टम में बहुत सारे रिस्क बिल्ड उप हो कर बहुत बड़ा एक प्रॉब्लम क्रिएट कर सकते हैं जो बहुत चिंता का विषय बन सकते हैं। इसीलिए डिजिटल लेंडिंग में जो रिस्क बिल्डअप हो रहा है उसका हम रिस्क असेसमेंट करते हैं डिजिटल लेंडिंग केवल रेगुलेटेड इन्टिटीज ही कर सकते हैं। मान लीजिए एक रेगुलेटेड एंटीटीज़ एक डिजिटल लेंडर भी है मान लीजिए एक लोन सर्विस प्रोवाइडर या कोई सर्विस प्रोवाइडर आरबीआई रजिस्टर्ड एनबीएफसी की सर्विसेज यूटिलाइज कर रहे हैं, उनके ऊपर भी कई सारे कंट्रोल बैंक के द्वारा (थ्रू दी बैंक) लागू है। पहला पॉलिसी है कंज़्यूमर-सेंट्रिक पॉलिसी दूसरा है रिस्क असेसमेंट और रिस्क मिटिगेशन एंड रिस्क मिनिमाइजेशन और तीसरा है ट्रांसपेरेंसी। कौन लेंड कर रहा है, इंटरेस्ट रेट पालिसी कैसा है, पॉलिसी आने से पहले कभी कंज़्यूमर को पता नहीं था कि कौन लेंडिंग दे रहा है? किसके बैलेंस शीट से ये पैसा आ रहा है? उसको पता भी नहीं चलता था और उनको लोन ऑफर कर दे देते थे, या लोन ले जाते थे। तो इसलिए अभी ट्रांसपेरेंसी काफी ज्यादा है। हमारा यह मानना है कि ये पॉलिसी बहुत इफेक्टिव रहेगा लेकिन सुपरविजन साइड में हम इसको सुपरवाइज़ करते रहेंगे। इसमें कंज्यूमर अवेयरनेस भी बहुत जरूरी है। जहां पर कंप्लेंट आता है जैसे कि इल्लीगल मेथड ऑफ कलेक्शन के बारे में या कोई अनरजिस्टर्ड या इस तरह का कोई इंसिडेंट होता है कस्टमर तुरंत आरबीआई को कंप्लेंट करेंगे और इसके साथ-साथ लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी, लोकल पुलिस या कोई भी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी है उनके पास भी कंप्लेंट करना चाहिए। ज़ी बिजनेस जैसे-जैसे देश में डिजिटल बैंकिंग बढ़ रही है, पेमेंट्स का सिस्टम बदल रहा है- यूपीआई के थ्रू जा रहे हैं, खास कर के महिलाएं और बुजुर्ग अभी भी बड़े फ्रॉड्स का शिकार हो रहे हैं । साइबर फ्रॉड्स काफी बढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें समझ नहीं है फोन आता है कि आपके बैंक से बोल रहे हैं, या ये डिटेल्स चाहिए या किसी भी तरीके की इंफॉर्मेशन शेयर कर देते हैं। आपने काफी अवेयरनेस प्रोग्राम चलाएं हैं इससे काफी मदद मिली है, लोग जागरूक हो रहे हैं लेकिन अभी भी जिन लोगों के साथ फ्रॉड हो रहे हैं वह पूरी तरीके से रुकना अभी बाकी है और दूसरी बात फ्रॉड होने के बाद उन्हें जो तुरंत एक न्याय मिलना चाहिए, उन्हें जो हेल्प मिलनी चाहिए उसमें अभी भी काफी मुश्किलें हो रही हैं। आरबीआई इस दिशा में क्या बड़े काम करने जा रहा है? शक्तिकान्त दास फ्रॉड तो कई तरह के होते हैं - कभी आपके मोबाइल में आता है कि आपका लोन सैंक्शन हो गया है आप इसमें जो लिंक देते हैं उस पर क्लिक कर दीजिए या कभी-कभी बैंकों के नाम से। मान लीजिए आपका अकाउंट एक बैंक में है और एक मैसेज आता है कि सो एंड सो बैंक से हैं और आपका केवाईसी नहीं हुआ है तो आप यह क्लिक कर दीजिए आपके फोन के ऊपर क्लिक कर दीजिए या टच कर दीजिए और वह आपका केवाईसी वेरीफिकेशन कर देंगे। कई तरह का इंटेलिजेंट मेथड है जो ये फ़्राडस्टर्स अडाप्ट कर रहे हैं इसीलिए जैसा आपने कहा हम अवेयरनेस बहुत क्रियेट कर रहे हैं, और चाहे वह टेलीविजन माध्यम से हो, या एफएम चैनल, रेडियो चैनल के द्वारा हो, या प्रिंट-मीडिया के द्वारा या कोई वॉलेनटेरी ऑर्गनाइज़ेशंस या कंज़्यूमर असोसिएशंस हैं उनका सहयोग हम लेते हैं। तो अवेयरनेस तो हम क्रियेट कर रहे हैं। जहां तक रिसॉल्यूशन का सवाल है, जहां पर अफेक्ट हुआ है। पहले तो यह है कि बैंक काफी सारे वार्निंग मैसेज देते हैं कि बैंक की तरफ से ऐसा कोई मैसेज नहीं जाएगा कि आपका ओटीपी शेयर करिए या आपका पैन नंबर शेयर करिए। अगर इस टाइप का मैसेज आता है तो सेपेरेटली अपने बैंक के ब्रांच को कॉन्टैक्ट करना चाहिए। और अगर मान लीजिए कुछ इनसीडेंट ऐसा हो जाए तो तुरंत बैंक में कंप्लेंट कर देना चाहिए, उनका कॉल सेंटर है ऑनलाइन कंप्लेंट या वाइस मेल में थ्रू कॉल सेंटर कंप्लेंट दे सकते हैं और 30 दिन के अंदर अगर बैंक में रिसॉल्यूशन नहीं मिलता है तो जो अफेक्टेड है वो आरबीआई के लोकपाल यानी ओमबड्समैन के पास आ सकते हैं। हमारी कोशिश तो यही रही है कि ओमबड्समैन मेकैनिज़्म को यूटीलाइज्ड करेंगे लेकिन फर्स्ट रिसॉल्यूशन है वो बैंकों को करना पड़ेगा 30 दिन के अंदर। 30 दिन के अंदर अगर बैंक या जो लेंडिंग इन्स्टीट्यूशन है वहां रिसॉल्यूशन नहीं हुआ, आपका जो प्रॉब्लम या कंप्लेंट उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो उसके बाद आरबीआई के पास आ सकते हैं। ज़ी बिजनेस आप ने जब गवर्नर के पद पर कार्यभार संभाला हमारे रिज़र्व 400 बिलियन डॉलर के आसपास थे अब 600 बिलियन डॉलर के आसपास है। एक आरबीआई गवर्नर के तौर पर, जो ग्लोबल सिनेरियो देखते हैं अब हम शायद चौथे नंबर पर हैं दुनिया के सबसे बड़े रिज़र्व के मामले में। क्या आप कंफरटेबल हैं या आपको लगता है, ज्यादा है या और बढ़ने चाहिए? शक्तिकान्त दास हमारा जो स्ट्रॉन्ग फॉरेक्स रिज़र्व्स है हमारी अर्थव्यवस्था का एक सॉलिड बैकबोन है, इट्स अ स्ट्रॉन्ग बफ़र। करेंसी मार्केट या फाइनेंशियल मार्केट में इतना उथल–पुथल हो रहा है लेकिन हमारा जो स्ट्रांग रिज़र्व्स 600 बिलियन डॉलर के आस-पास है उसके कारण मार्केट हो या इंटरनेशनल इन्वेस्टर्स हों सबका कॉन्फिडेंस है कि आरबीआई का फॉरेक्स रिज़र्व्स स्ट्रॉन्ग है। किसी भी तरह का यदि क्राइसिस होगा, वि आर बेटर प्लेस्ड। तो हमने जो रिज़र्व बिल्ड किया, जो अपॉरच्यूनिटी था उसको हमने यूटीलाइज्ड किया। पिछले 3 साल में फॉरेक्स इन्फ्लो बहुत था और हमको अपॉरच्यूनिटी मिला और हमने फॉरेक्स रिज़र्व बिल्ड किया। क्योंकि जब इन्फ्लो होता है तो आउट्फ्लो भी होगा ये तो एक साइकिल है इसीलिए आउट्फ्लो जब- जब होगा तो उसके लिए हम को तैयार रहना चाहिए और इसीलिए हमने रिज़र्व क्रियेट किया था और इट इज़ ऐक्टिंग एज अ स्ट्रॉन्ग बफ़र। आज इंटरनेशनली इतना उथल- पुथल हो रहा है, ये हमारे सिस्टम के लिए एक सालिड सपोर्ट है। जहां तक फॉरेक्स रिज़र्व के लेवल का सवाल है इसके कई तरह की मेजरमेंट है कि कितने महीने का इंपोर्ट बिल कवर कर सकता है या जीडीपी का कितना प्रतिशत है। कई मेथड्स हैं लेकिन उसको आप अलग रखिए। लेकिन, अभी की जो स्थिति है हमारा फॉरेक्स रिज़र्व काफी स्ट्रॉन्ग हैं और उसी के कारण रूपी एक्सचेंज रेट में काफी स्टेबिलिटी हमने बनाये रखा है। ज़ी बिजनेस मैं अगला सवाल यही पूछने वाला था कि हमारा एक्सचेंज रेट 80 रुपये प्रति डॉलर है; क्या आरबीआई इस लेवल पर कंफर्टेबल है? क्योंकि कई लोग मानते हैं कि हमारी इकोनॉमी की जो ताकत है, जितना बढ़िया हम कर रहे हैं उसके मुकाबले हमारा रुपया बेहतर होना चाहिए। कुछ फायदे भी हैं कुछ नुकसान भी हैं, आरबीआई का क्या व्यू है? शक्तिकान्त दास भारतीय रुपये बेहतर होना चाहिए इसके दो मायने है, इंपोर्टर्स के लिए, वे चाहते हैं कि रूपी हमेशा स्ट्रांग बन कर रहे, एक्सपोर्टर्स चाहते हैं कि रूपी थोड़ा वीक हो जाए। उनका ज्यादा इनकम आ जाएगा। बेहतर रुपये का मतलब इस पर निर्भर करता है आप कहां से इसको देख रहे हैं। सेंट्रल बैंक प्वाइंट ऑफ़ व्यू से हमको ये इंश्योर करना पड़ेगा कि रूपी का जो एक्सचेंज रेट है चाहे स्ट्रांग हो रहा है या वीक हो रहा है दोनों दिशा में यह एक स्टेबल और ऑर्डरली मूवमेंट होना चाहिए। वोलाटाइल ज्यादा न हो, स्टेबिलिटी रहे और अगर रूपी का वैल्यू बढ़ रहा है या रूपी का वैल्यू कम हो रहा है तो वो ग्रैज्युली होनी चाहिए। वह ऑर्डरली मैनर में होना चाहिए। दो और प्वाइंट हमको देखना जरूरी है रूपी का; अगर आप अन्य मुद्राओं के साथ कंपेयर करेंगे तो बाकी सारे करेंसीज के साथ, एडवांस कंट्रीज की करेंसी, हार्ड करेंसी जिसे कहते हैं चाहे वह ग्रेट ब्रिटेन का पाउंड्स हो, आपका यूरो हो यूरोजोन का, उनके कंपेरिजन में रूपी डेप्रिसियेशन इतना नहीं हुआ है। सेकेंड प्वाइंट मैं कहना चाहता हूं कि रूपी का जो डेप्रिसियेशन अभी इतना हो रहा है उसका मेन कारण है कि डॉलर का अप्रिशिएट होना। उसके कारण रूपी डेप्रिसियेट हो रहा है। तीसरा कारण ये है कि रूपी स्ट्रॉन्ग रहा है उसका दो कॉम्पोनेंट है एक तो हमारा मजबूत रिज़र्व है दूसरा इंडिया का माइक्रो इकोनॉमिक्स फंडामेंटल्स काफी स्ट्रांग है, तो इसीलिए हमारा एक्सचेंज रेट है, वह इन 3 और 4 पॉइंट्स जो मैंने बताएं, को रिफ्लेक्ट करता है। ज़ी बिजनेस आपके कार्यकाल में बहुत सारे सरकारी बैंक पीसीए से बाहर आ चुके हैं और एनपीए की जो बड़ी समस्या थी वो काफी हद तक ठीक होती दिख रही है। सरकारी बैंक को पूंजी की भी जरूरत थी। आपका क्या एसेसमेंट है सरकारी बैंकों के कामकाज से? उनके एनपीए लेवल से आप संतुष्ट हैं? और ज्यादा पूंजी की उन्हें जरूरत नहीं ? शक्तिकान्त दास रेगुलेटर के तौर पर, हम प्राइवेट या पब्लिक बैंक को डिफरेंशिएट नहीं करते हैं हमारे लिए दोनों बराबर है। थ्रू आउट द पैनडेमिक, आरबीआई की तरफ से हम नियमित रूप से बैंकों को कहते रहे कि आप कैपिटल रेज़ करिए क्योंकि कोविड क्राइसिस के कारण जो स्थिति बन रही है उसके लिए आप कैपिटल बिल्ड-अप करिए। यह आपका बफ़र रहेगा। वह आगे जाकर आपको प्रोटेक्शन देगा। बहुत खुशी की बात है कि सारे बैंक, पब्लिक सेक्टर हो या प्राइवेट सेक्टर हो, ने मार्केट से पैसा उठाया और अपना कैपिटल बिल्ड-अप किया है। सिस्टम लेवल पर बैंक का कैपिटल एडेक्वेसी काफी कंफर्टेबल है। बैंक बैड-लोन्स और स्ट्रेस्ड-लोन्स के लिए जो प्रोवीजंस करते हैं वह प्रोविजनिंग भी काफी मजबूत है। बैंकों का ओवरऑल फाइनेंशियल फंडामेंटल्स काफी मजबूत है। लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि आगे जाकर बैंकों को कैपिटल और भी रेज़ करना चाहिए क्योंकि इंटरनेशनल सिचुएशन बहुत वोलेटाइल है; काफी अनसर्टेंटी है, हमें हमेशा सबसे बुरे दौर को ध्यान में रखते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ कार्य करना चाहिए। वी हैव टू थिंक ऑफ द वर्स्ट एंड प्रिपेयर; डू आवर बेस्ट थिंकिंग ऑफ़ द वर्स्ट। मतलब ज्यादा स्ट्रेस क्या और कितना हो सकता है उसको ध्यान में रख कर हमें अपना सर्वोत्तम करना चाहिए मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आने वाला समय ख़राब है। मेरे कहने का मतलब वह नहीं है। लेकिन हमको हमेशा तैयार रहना चाहिए। सभी बैंकों को मूल्यांकन करना चाहिए कि परिस्थितियां उनके लिए कहां तक नेगेटिव जा सकता है उसके लिए मैं तैयार हूं क्या? उस तरह का विश्लेषण कर बैंकों को कैपिटल्स अरेंज़ करना चाहिए। इसके अलावा एक और बात मैं कहना चाहता हूं कि अभी जो लोन ग्रोथ हो रहा है, अगर बैंकों को अपना लोन्स-लेंडिंग सस्टेन करना चाहते हैं तो उनको एडीशनल कैपिटल की भी ज़रूरत होगी। ज़ी बिजनेस आज़ादी के अमृत महोत्सव पर हम 75 साल पूरा करने के बाद आगे के 25 सालों की तरफ़ देखते हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि हिंदुस्तान का समय आ चुका है। अगले 25 साल शायद दुनिया की दूसरी या तीसरी सबसे बड़ी इकोनोमी होंगे तो ज़ाहिर सी बात है हमारे पास उतने बड़े बैंक्स भी चाहिए। और हाल ही के बड़े बैंक मर्जर को आरबीआई और कई सारे रेग्युलेटर्स ने हाथों हाथ लिया। जो उनकी उम्मीद है उससे जल्दी सारे अप्रूवल्स आते दिख रहे हैं। अगले 25 सालों के लिए आप अपने बैंकिंग सेक्टर को कैसे देखना चाहते हैं? कैसे तैयार करना चाहते हैं? क्योंकि अगर हम वर्ल्ड में 5 बड़े बैंक नहीं हैं तो हम वर्ल्ड की टॉप तीन इकोनॉमी में कैसे होंगे ? शक्तिकान्त दास हमारी हमेशा कोशिश यही रही है कि हमारा जो बैंकिंग और फाइनेंशियल सिस्टम है, वह रोबस्ट और स्ट्रॉन्ग रहे। उस दिशा में जो भी जरूरत होगा हम कर रहे हैं और आगे जाकर भी करते रहेंगे। हाल में दो-तीन साल में एनबीएफसीज़ के लिए नए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क लाए हैं, बैंकों के लिए हमने न्यू गवर्नेंस फ्रेमवर्क इंट्रोड्यूज किया है अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक के लिए न्यू फ्रेमवर्क इंट्रोड्यूज किया है डिजिटल लेंडिंग के लिए हमने न्यू रेगुलेटरी फ्रेमवर्क हाल में अनाउंस किया है। फाइनेंशियल सेक्टर स्ट्रॉन्ग रहे और आगे जाकर जो नए चैलेंजेस आएंगे और जो नई रिक्वायरमेंट आएंगे उस में बैंकिंग सेक्टर ज्यादा से ज्यादा एफिशिएंट तौर पर काम करेंगे उसके लिए हम स्टेप्स हमेशा लेते रहे हैं और आगे जाकर भी लेते रहेंगे। फाइनैन्शिल सेक्टर इकोनॉमी का बैकबोन है। इसलिए वित्तीय स्थिरता को बनाये रखना, हमारी पहली प्राथमिकता होगी और एक सुदृढ़ बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र कैसे एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को किस तरह से बैक कर सकते हैं यह भी प्राथमिकताओं में रहेगा। ज़ी बिजनेस देश में कितने बैंक होने चाहिए उसको लेकर के हमेशा से बातें होती रहती हैं। नए बैंकिंग लाइसेंस ऑन-टैप पर हैं, आप जब चाहे ले सकते हैं। लेकिन, जो आमतौर पर आरबीआई की छवि है लोगों में कि आरबीआई बहुत ज्यादा लाइसेंस देने के मूड में नहीं है। आपको क्या लगता है, क्या वाकई में बैंकों में कंसोलिडेशन की जरूरत है? चाहे वह प्राइवेट सेक्टर बैंक्स हो या छोटे-छोटे पब्लिक सेक्टर बैंक्स हों, क्या वे बड़े बैंकों के साथ मर्ज हों या फिर नए लाइसेंस देकर नए और बड़े बैंक बनाने की जरूरत है? आप कैसे देखते हैं? शक्तिकान्त दास लाइसेंस तो ऑन-टैप है। हमारा एक ही रिक्वायरमेंट है फिट एंड प्रॉपर टेस्ट। कोई एप्लीकेंट अगर फिट एंड प्रॉपर है तो हम एप्लीकेशन दे देंगे और यह फिट एंड प्रॉपर रिक्वायरमेंट इसलिए बहुत इंपॉर्टेंट है क्योंकि एक बैंक लाइसेंस का यह मतलब होता है कि आप एक कंपनी, जो एप्लीकेंट हो, को पब्लिक डिपॉज़िट कलेक्ट करने के लिए परमिशन देते हैं, एक लाइसेंस देते हैं यह बहुत सेक्रेड फंक्शन है, बहुत इंपॉर्टेंट फंक्शन है क्योंकि लोगों का एक डिपाजिटर के तौर पर फाइनेंशियल सिस्टम के ऊपर जो आस्था है, वह बरकरार रहना चाहिए। इसीलिए जब हम लाइसेंस देते हैं बहुत केयरफुली फिट एंड प्रॉपर एनालिसिस करते हैं और उसके हिसाब से कोई एप्लीकेशन आएगा तो हम जरूर विचार करेंगे। ऐसा कोई माइंडसेट नहीं है कि हम और एप्लीकेशन नहीं लेंगे। लेकिन जो एप्लीकेंट है वह हमारे रिक्वायरमेंट को फुल फिल करना चाहिए। ज़ी बिजनेस लेकिन छोटे बैंकों का मर्जर होना चाहिए? अगर होता है तो आप उसके लिए खुले हैं? शक्तिकान्त दास अगर छोटे बैंक किसी लार्ज बैंक के साथ अपने आप मर्जर करना चाहेंगे, तो लॉ में प्रोविजन है दोनों बैंकों के बोर्ड को डिसाइड करना पड़ेगा। अगर वो मर्ज करेंगे फिर हम देखेंगे मर्जर का नतीजा क्या निकल रहा है? मर्जर के बाद बैंक स्ट्रॉन्ग हो रहा है या वीक हो रहा है या अगर कोई नए प्रमोटर आ रहे हैं तो वो नए प्रमोटर का क्या क्वालिफिकेशन है हमारा जो क्राइटेरिया है, जिसे फिट एंड प्रॉपर कहते हैं, उसको वो सैटिस्फ़ाई करते हैं या नहीं। हमारा ऐसा कोई माइंडसेट नहीं है कि हम इसको एनकरेज करेंगे या एनकरेज नहीं करेंगे। इन सबको मद्देनजर रखकर, कोई एप्लीकेशन आएगा तो विद एन ओपन माइंड, वी विल एग्जामिन इट। ज़ी बिजनेस आपने दो बड़ी चुनौतियों वाले समय देखे हैं। एक तो पैंडेमिक के वक्त, आई एम श्योर वह एक लाइफटाइम एक्सपीरियंस रहा होगा । इस समय एक तरह से ग्लोबल चैलेंजेस बहुत जबरदस्त हैं चाहे वह मंदी के खतरे हों, युद्ध चल रहे हों। 2020 और 2022 कौन सा ज्यादा चैलेंजिंग लगता है आपको? शक्तिकान्त दास दोनों सिचुएशंस चैलेंजिंग हैं। 2020 में जब कोविड आया, सबके लिए, बहुत बड़ा सरप्राइज और शॉक था और अभी 2022 में जब यूरोप में वार शुरू हो गया वह भी सबके लिए सरप्राइज था। किसी ने उम्मीद नहीं किया था कि इस हद तक वॉर होगा और इसका इंपैक्ट, स्पिलओवर्स इतना रहेगा। वह भी एक बहुत बड़ा सरप्राइज रहा है तो ये सारे सिचुएशन चैलेंजिंग रहे हैं और चैलेंज के हिसाब से हम कैसे उसको रेस्पॉन्ड कर सकते हैं, कैसे एंटीसिपेट कर सकते हैं! हमारा कोशिश तो हमेशा यही रहता है कि जो चैलेंजेस है उसके हिसाब से हम आगे जाकर काम करेंगे। ज़ी बिजनेस आपका क्या विजन है हिंदुस्तान को लेकर अगले 25 सालों में आप कहां देखते हमारे देश को, हमारी इकोनॉमी को? शक्तिकान्त दास देखिए मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूं कि बताऊं कि देश का क्या विजन है। ज़ी बिजनेस आरबीआई का नाम सिर्फ हिंदुस्तान के सबसे बड़े और सक्सेसफुल रेगुलेटर में ही नहीं बल्कि दुनियाभर के सेंट्रल बैंक में सबसे सम्मान से लिया जाता है क्योंकि आप और बहुत सारे हमारे पहले जो गवर्नर रहे हैं प्रोएक्टिव रहे हैं समय से पहले चीजों को भांपकर समय से पहले एक्शन लेने के लिए जाने जाते रहे हैं इसलिए आपकी विनम्रता है जो आप ऐसा कह रहे हैं। लेकिन डेफिनेटली, मैं आपसे जानना-समझना चाहता हूं कि अगले 25 साल में आप कहां देखते हैं इकोनॉमी को? शक्तिकान्त दास यह जो समय है यह हमारे लिए बहुत बड़ा अपॉर्चुनिटी है। अगले 10 साल या अगले 25 साल भारत के लिए यह बहुत बड़ा एक अपॉर्चुनिटी है। हमारा डेमोग्राफिक डिविडेंड जो शायद 2050 या 2060 तक है, उस डेमोग्राफिक डिविडेंड को हमें कैपिटलाइज़्ड करना चाहिए। अभी विश्वभर में इतना प्रॉब्लम है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था काफी रेसिलियंट है। ग्लोबल सप्लाई चेन, में काफी डिसरप्शन हो रहा है और यह भारत के लिए एक बहुत बड़ा अपॉर्चुनिटी है। उसको हमें कैपिटलाइज़्ड करना चाहिए और हो भी रहा है। यह जो सिचुएशन है भारत के लिए बहुत बड़ा अपॉर्चुनिटी है और मेरा मानना है कि यदि हम फोकस्ड रहेंगे तो हम सबके लिए ये एक अपॉर्चुनिटी है कोई भी हो चाहे कोई एथोरिटीज़ हो, कोई प्राइवेट सेक्टर प्लेयर हो, कोई भी स्टेक-होल्डर हो, सबके लिए बहुत बड़ी अपॉर्चुनिटी है। मैं भारत के ग्रोथ के विषय में बहुत ऑप्टिमिस्टिक हमेशा रहता हूं। और केवल ऑप्टिमिज़्म रखना ही काफी नहीं है, ऑप्टिमिज़्म रखना चाहिए और उसके हिसाब से जो कदम लेना चाहिए, जो मेज़र्स लेना चाहिए, वह भी लेना चाहिए। इसीलिए अगले 10-25 सालों मेरे अनुसार से भारत का जो प्रोस्पेक्ट है वह काफी ब्राइट है और उसके हिसाब से सबको काम करना पड़ेगा ताकि 2047, जब हम अपने इंडिपेंडेंस के लिए 100 साल मनाएंगे इंडिया, अभी का जो सिचुएशन है सिक्स्थ लारजेस्ट इकॉनमी, उस पर से ऊपर जाना चाहिए। ज़ी बिजनेस सर कोई आरबीआई का अनफिनिश्ड एजेंडा जो ग्रोथ और इन्फ्लेशन, दो हमेशा आपके टारगेट पर रहते ही हैं दोनों को संभालना है लेकिन उसके अलावा आपको लगता है आरबीआई को देश की ग्रोथ में प्रोग्रेस में ये बड़ा काम करना बाकी है। शक्तिकान्त दास मुझे याद है, पिछली बार भी आपने यही सवाल किया था। अनफिनिश्ड एजेंडा एक रेगुलेटर के लिए हमेशा रहता है और रहेगा ही, रहना अच्छा भी है ताकि रेगुलेटर जो है अलर्ट रहेगा और स्टेप्स लेता रहेगा इसलिए अनफिनिश्ड एजेंडा इसका कोई टाइम बाउंड डेफिनेशन नहीं है। एक एजेंडा है, एक चैलेंज है उसको आप डील करेंगे। अगले दिन एक और चैलेंज आ जाएगा, और एक एजेंडा आ जाएगा तो समय के हिसाब से चलना पड़ेगा। ज़ी बिजनेस शक्तिकान्त दास साहब का कोई पर्सनल अनफिनिश्ड एजेंडा कि हम इस लाइफ में वैसे तो आपने बहुत काम किए हैं। हर एक मंत्रालय में अलग-अलग पदों पर और आरबीआई गवर्नर पदों पर दूसरा टर्म है वह भी इस मुश्किल भरे दौर से गुजर कर आप दूसरे टर्म को सर्व कर रहे हैं। पर्सनली आपको लगता है यह काम अभी करना बाकी है, चाहे मैं गवर्नर रहते हुए करूँ या उसके बाद। शक्तिकान्त दास देखिए, मेरा पर्सनल एजेंडा कुछ नहीं रहता है। मेरा एजेंडा हमेशा रहता है जो अपना ओर्गेइज़ेशन का एजेंडा है। आरबीआई का जो एजेंडा है और जो एजेंडा होना चाहिए, वही मेरा एजेंडा है। हमारी कोशिश यही रहती है कि उस एजेंडा को कैसे बेहतर ढंग से इंप्लीमेंट कर सकते हैं। वही हमेशा मेरा टारगेट रहता है। और कई सारे चलेंजेज़ हैं, आज की तारीख में भी कई सारे चैलेंजेज़ हैं और हम डील कर रहे हैं। जैसे कि आपने बताया था - डिजिटल लेंडिंग, वो एक इश्यू था हमने उसको डील किया हैं लेकिन डिजिटल लेंडिंग में नए-नए चलेंजेज़ आगे जाकर करना पड़ेगा। साइबर सिक्योरिटी भी एक चैलेंजिंग एरिया है। कई तरह के इनोवेशंस आ रहे हैं। जो इनोवेशंस आ रहे हैं सिस्टम में, फिंटेक इनोवेशन, उसको कैसे हम कैपिटलाईज कर सकते हैं उसको कैसे ज्यादा इनसे बढ़ोतरी दे सकते हैं, एट द सेम टाइम जो रिस्क्स हैं, रिस्क बिल्ड-अप उसकी तरफ भी ध्यान देना चाहिए तो इसीलिए ग्लोबल सिचुएशन जो बहुत डायनेमिक है और बहुत फास्ट चेंजिंग है। इस फास्ट चेंजिंग वर्ल्ड में, एक रेगुलेटर के लिए सबसे बड़ा चैलेंज है निंबलफूटेड। और क्विकली मतलब हमको रन स्कोर करना होता है और वह हम करते रहेंगे। ज़ी बिजनेस पिछले 2 सालों में बिजनेस जर्नलिज्म में और बिजनेस न्यूज़ देखने वाले दर्शकों की संख्या 2 गुना से ज्यादा हो गई है। डीमेट अकाउंट बहुत खुले हैं और लोग आपको, आरबीआई को हिंदी में देखना, सुनना और समझना चाहते हैं। आज आपने समय दिया और आप हिंदी सप्ताह मना रहे हैं और आपने हिंदी बिजनेस चैनल को एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया। बहुत-बहुत धन्यवाद सर, बहुत-बहुत धन्यवाद बहुत-बहुत शुक्रिया आपका सर। शक्तिकान्त दास बहुत-बहुत धन्यवाद आपको और आपके सारे दर्शकों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद। |