मास्टर परिपत्र - वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये दिशानिर्देश - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये दिशानिर्देश
भा.रि.बैं/2012-13/99 2 जुलाई 2012 सभी अनुसूचित बैंकों/प्राथमिक व्यापारियों और महोदय/महोदय वाणिज्यिक पत्र, वचन पत्र के रूप में जारी की जानेवाली एक गैर-जमानती मुद्रा बाज़ार लिखत है जिसे भारत में 1990 में पहली बार जारी किया गया । इसे जारी करने का उद्देश्य यह कि उच्च दर्जे के कार्पोरेट उधारकर्ता अपने अल्पावधि उधारों के स्रोतों का विवधीकरण कर सकें और निवेशकों को एक अतिरिक्त लिखत मुहैया कराया जा सके । 2. इस विषय पर सभी वर्तमान दिशानिर्देशों/अनुदेशों/निदेशों को समाहित करते हुये एक मास्टर परिपत्र सभी बाजार सहभागियों और अन्य संबंधित संस्थाओं के संदर्भ हेतु तैयार किया गया है । यह उल्लेखनीय है कि यह मास्टर परिपत्र परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित सभी अनुदेशों/दिशानिर्देशों को उस हद तक समेकित व अद्यतन करता है, जिस हद तक इन परिपत्रों का संबंध वाणिज्यिक पत्र जारी करने के दिशानिर्देशों से है । इस मास्टर परिपत्र को भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट /en/web/rbi/notifications/master-circulars पर उपलब्ध कराया गया है । भवदीय (के. के. वोहरा) अनुलग्नक यथोक्त वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये दिशानिर्देशों पर मास्टर परिपत्र
वाणिज्यिक पत्र एक गैर जमानती मुद्रा बाजार लिखत है जिसे वचन-पत्र के रूप में जारी किया जाता है । निजी तौर पर जारी की जाने वाली लिखत के रूप में वाणिज्यिक पत्र भारत में 1990 में प्रारंभ किया गया ताकि उच्च दर्जे के कार्पोरेट उधारकर्ता अपने अल्पावधि उधारों के स्रोतों का विविधिकरण कर सकें और निवेशकों को एक अतिरिक्त लिखत मुहैया कराया जा सके । बाद में प्राथमिक व्यापारियों, अनुषंगी व्यापारियों और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं को भी वाणिज्यिक पत्र जारी करने की अनुमति प्रदान की गई ताकि वे अपने परिचालनों के लिये अपनी अल्पावधि निधि आवश्यकताओं को पूरा कर सकें । अब तक जारी सभी संशोधानों को समाहित करते हुए तैयार किये गये वाणिज्यिक पत्र जारी करने संबंधी दिशानिर्देश तत्काल संदर्भ हेतु नीचे प्रस्तुत हैं । 2. वाणिज्यिक पत्र के पात्र जारीकर्ता 2.1. कंपनियाँ, प्राथमिक व्यापारी और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं, जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित समग्र सीमा के तहत (नीचे पैराग्राफ 6.2 में पारिभाषित किए अनुसार) अल्पावधि संसाधन जुटाने की अनुमति प्रदान की गई है; वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये पात्र हैं । 2.2. एक कंपनी वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये पात्र है बशर्ते कि : (क) लेखापरीक्षित अद्यतन तुलन पत्र के अनुसार कंपनी की वास्तविक स्वाधिकृत निधि चार करोड़ रुपये से कम नही होनी चाहिये; (ख) कंपनी को बैंक/बैंकों या अखिल भारतीय वित्तीय संस्था/संस्थाओं द्वारा कार्यशील पूंजी मंजूर की गयी हो; और (ग) कंपनी के उधार संबंधी खाते को वित्त प्रदान करने वाले बैंक/बैंकों/संस्था/संस्थाओं द्वारा मानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया हो । सभी पात्र प्रतिभागी वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये क्रेडिट रेटिंग इन्फार्मेशन सर्विसेज़ ऑफ इंडिया लि. (क्रिसिल) या इन्वेस्टमेंट इन्फार्मेशन और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया लि. (आई.सी.आर.ए.) या क्रेडिट एनालेसिस एंड रिसर्च लि. (केअर) या एफ.आई.टी.सी.एच. रेटिंग्स इंडिया प्रा.लि. या इस प्रयोजन के लिये समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किसी अन्य रेटिंग एजेंसी से क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करेंगे । न्यूनतम क्रेडिट रेटिंग "ए-2" होनी चाहिए (सेबी द्वारा निर्धारित रेटिंग चिह्न और परिभाषा के अनुसार) । वाणिज्यिक पत्र जारी करने के समय जारीकर्ता यह सुनिश्चित करेगा कि इस प्रकार प्राप्त की गई रेटिंग वर्तमान समय की है और इसकी समीक्षा लंबित नहीं है । 4. वाणिज्यिक पत्र निर्गम की तारीख से न्यूनतम 7 दिन और अधिकतम 1 वर्ष तक की परिपक्वता अवधि के लिये जारी किये जा सकते हैं । वाणिज्यिक पत्र की परिपक्वता की तारीख जारीकर्ता की क्रेडिट रेटिंग की वैधता की तारीख से अधिक नहीं होनी चाहिये । वाणिज्यिक पत्र 5 लाख रु. के मूल्यवर्ग या उसके गुणजों में जारी किये जा सकते हैं। किसी एक निवेशक द्वारा निवेशित राशि (अंकित मूल्य) 5 लाख रुपये से कम नही होनी चाहिये । 6. वाणिज्यिक पत्र जारी करने की सीमा और राशि 6.1. वाणिज्यिक पत्र 'स्टैंड अलोन' उत्पाद के रूप में जारी किया जा सकता है । किसी जारीकर्ता द्वारा जारी किये गये वाणिज्यिक पत्रों की समग्र राशि इसके निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित सीमा या विनिर्दिष्ट रेटिंग के लिये क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा दर्शायी गयी मात्रा, जो भी कम हो, के भीतर होनी चाहिये । तथापि, बैंक और वित्तीय संस्थाओं को वाणिज्यिक पत्रों सहित वित्तपोषण करने वाली कंपनियों के संसाधन ढांचे को ध्यान में रखते हुए कार्यशील पूंजी सीमाओं को निर्धारित करने के लिये लचीलापन उपलब्ध रहेगा । 6.2. कोई वित्तीय संस्था बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग द्वारा जारी तथा समय-समय पर संशोधित, वित्तीय संस्थाओं के लिए संसाधन जुटाने संबंधी मानदण्डों पर मास्टर परिपत्र में निर्धारित अधिकतम सीमा के भीतर वाणिज्यिक पत्र जारी कर सकती है । 6.3. जारी किए जाने वाले प्रस्तावित वाणिज्यि पत्र की कुल राशि जारीकर्ता द्वारा अभिदान के लिए इश्यू खोलने की तारीख से दो सप्ताह के भीतर जुटाई जानी चाहिये । वाणिज्यिक पत्र एक दिन या विभिन्न तारीखों को टुकड़ो में जारी किये जा सकते हैं बशर्ते कि विभिन्न तारीखों को जारी किये जाने की स्थिति में प्रत्येक वाणिज्यिक पत्र की परिपक्वता की तारीख समान होगी । 6.4. नवीकरण सहित वाणिज्यिक पत्रों के प्रत्येक निर्गम को एक नये निर्गम के रूप में माना जाना चाहिए । 7. जारीकर्ता और भुगतानकर्ता एजेंट (आइ.पी.ए.) वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये केवल अनुसूचित बैंक ही आइ.पी.ए. के रूप में कार्य कर सकता है । वाणिज्यिक पत्र व्यक्तियों, बैंकिंग कंपनियों, भारत में पंजीकृत या निगमित अन्य कार्पोरेट निकायों और गैर-निगमित निकायों, अनिवासी भारतीयों और विदेशी संस्थागत निवेशकों को जारी किये जा सकते हैं और उनके द्वारा रखे जा सकते हैं । तथापि, विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा किया गया निवेश भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा उनके लिये निर्धारित सीमा के भीतर होना चाहिये । वाणिज्यिक पत्रों में काउंटर पर सभी कारोबार फिमडा रिपोर्टिंग मंच को कारोबार से 15 मिनट के भीतर सूचित किए जाने चाहिए । 10.1. वाणिज्यिक पत्र वचनपत्र (अनुसूची –I) के रूप में या सेबी द्वारा अनुमोदित और उसके पास पंजीकृत किसी भी निक्षेपागार के माध्यम से डीमेट रूप में जारी किया जा सकता है । 10.2. वाणिज्यिक पत्र अंकित मूल्य से घटे हुए मूल्य पर जारी किया जायेगा जिसका निर्धारण जारीकर्ता द्वारा किया जायेगा । 10.3. वाणिज्यिक पत्र का कोई भी जारीकर्ता निर्गम को हामीदारी के तहत या सह-स्वीकार्य रूप में जारी नहीं करेगा । यद्यपि जारीकर्ता और अभिदाता दोनों के लिये विकल्प मौजूद है कि वे वाणिज्यिक पत्र को कागज़ रहित प्रारूप में या भौतिक प्रारूप में जारी करे/रखें, फिर भी जारीकर्ताओं और अभिदाताओं को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे केवल इसके कागज रहित प्रारूप को जारी करने/रखने को तरजीह दें और उस पर अधिक भरोसा करें । तथापि, 30 जून 2001 से बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और प्राथमिक व्यापारियों से अपेक्षित है कि वे वाणिज्यिक पत्रों में नये निवेश कागज़ रहित प्रारूप में करें और उन्हें उसी रूप में धारित करें । 12. वाणिज्यिक पत्रों का भुगतान वाणिज्यिक पत्र में प्रारंभिक निवेशक, वाणिज्यिक पत्र के बट्टागत मूल्य का जारीकर्ता और भुगतान एजेंट के माध्यम से जारीकर्ता के खाते में एक रेखांकित चेक द्वारा भुगतान करेगा । वाणिज्यिक पत्र की परिपक्वता पर, जब वाणिज्यिक पत्र भौतिक रूप में रखा गया हो, वाणिज्यिक पत्र का धारक जारीकर्ता और भुगतान एजेंट से माध्यम से जारीकर्ता को भुगतान के लिये लिखत प्रस्तुत करेगा । तथापि, कागज रहित रूप में वाणिज्यिक पत्र धारण करने की स्थिति में वाणिज्यिक पत्र का धारक निक्षेपागार के जरिए इसे भुनायेगा और जारीकर्ता एवं भुगतान एजेंट से भुगतान प्राप्त करेगा । 13.1. वाणिज्यिक पत्र चूंकि 'स्टैंड अलोन' उत्पाद है इसलिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिये किसी भी रूप में यह बाध्यकारी नहीं होगा कि वे वाणिज्यिक पत्रों के जारीकर्ताओं को 'स्टैंड बाई सुविधा' मुहैया कराये । तथापि, बैंक अपने वाणिज्यिक अधिनर्णियन के आधार पर तथा यथालागू विवेकशील मानदंड के अध्यधीन तथा अपने बोर्डों के विशिष्ट अनुमोदन से वाणिज्यिक पत्रों के किसी भी निर्गम हेतु आपातिक सहायता/ऋण के रूप में ऋण-वृद्धि करने, बैकस्टॉप सुविधा आदि का प्रावधान कर सकता है । 13.2. कार्पोरेट सहित गैर-बैंकिंग संस्थायें भी वाणिज्यिक निर्गम के लिये ऋणवृद्धि हेतु शर्तरहित और अपरिवर्तनीय गारंटी प्रदान कर सकती है बशर्ते: (i) वाणिजियक पत्र जारी करने के लिये निर्गमकर्ता निर्धारित पात्रता मानदंड पूरा करता हो; प्रत्येक जारीकर्ता वाणिज्यिक पत्रों को जारी करने के लिये एक जारीकर्ता और भुगतान एजेंट (आई.पी.ए.) नियुक्त करेगा । जारीकर्ता मानक बाज़ार प्रथाओं के अनुरूप अपने संभाव्य निवेशकों को अपनी वित्तीय स्थिति का खुलासा करेगा । निवेशक और जारीकर्ता के बीच सौदे का विनिमय हो जाने के पश्चात् जारीकर्ता कंपनी निवेशक को या तो प्रत्यक्ष प्रमाणपत्र जारी करेगी अथवा निक्षेपागार में खोले गये निवेशक के खाते में वाणिज्यिक पत्र को जमा करने की व्यवस्था करेगी । निवेशकों को आई.पी.ए. प्रमाण पत्र की एक प्रति प्रदान की जायेगी जिसका आशय होगा कि जारीकर्ता का आई.पी.ए. के साथ एक वैध करार है और दस्तावेज वास्तविक है। (अनुसूची II) । जारीकर्ता, जारीकर्ता और भुगतान एजेंट (आई.पी.ए.) और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी की भूमिका और उत्तरदायित्व निम्नलिखित है:- (क) जारीकर्ता वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिये प्रक्रिया का सरलीकरण होने के कारण जारीकर्ता के पास अब और अधिक लचीलापन है । तथापि, जारीकर्ता को यह सुनिश्चित करना होगा कि वाणिज्यिक पत्र जारी करने के दिशानिर्देशों और प्रक्रियाओं का कड़ाई से अनुपालन हो । (ख) जारीकर्ता और भुगतान एजेंट (आई.पी.ए.) (i) आई.पी.ए. यह सुनिश्चित करेगा कि जारीकर्ता के पास भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथा निर्धारित न्यूनतम क्रेडिट रेटिंग है और वाणिज्यिक पत्रों को जारी करके जुटायी गयी राशि क्रेडिट रेटिंग ऐजेंसी द्वारा विशिष्ट रेटिंग के लिये उल्लिखित मात्रा या उसके निदेशक मंडल द्वारा यथा अनुमोदित मात्रा, जो भी कम हो, के भीतर है । (ii) आई.पी.ए. जारीकर्ता द्वारा प्रस्तुत किये गये सभी दस्तावेजों नामत: निदेशक मंडल का संकल्प, प्राधिकृत कार्यकर्ताओं के हस्ताक्षरों (जब वाणिज्यिक पत्र भौतिक रूप में हो) की जांच करेगा और एक प्रमाणपत्र जारी करेगा कि सभी दस्तावेज वास्तविक है । वह यह भी प्रमाणित करेगा कि उसका जारीकर्ता के साथ वैध करार है । (अनुसूची –II) (iii) आई.पी.ए. द्वारा सत्यापित मूल दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियॉं आई.पी.ए. अपनी सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा । (iv) आइपीए के रूप में कार्यरत सभी अनुसूचित बैंक वाणिज्य पत्र जारी करने का ब्योरा, सीपी जारी करने की तारीख से दो दिन के भीतर ऑन लाइन रिटर्न फाइलिंग सिस्टम (ओआरएफएस) माड्यूल पर प्रस्तुत करेगा । (ग) क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (i) वाणिज्यिक पत्रों की रेटिंग के लिये क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों पर पूंजी बाजार लिखतों की रेटिंग के लिये सेबी द्वारा निर्धारित आचार संहिता लागू होगी । (ii) इसके अलावा, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी को अब से जारीकर्ता की सामर्थ्य के अनुसार दृष्टिकोण बनाते हुये रेटिंग की वैधता अवधि निर्धारित करने का विवेकाधिकार प्राप्त होगा । तदनुसार, रेटिंग करते समय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्पष्ट रूप से उस रेटिंग की समीक्षा करने की तारीख का उल्लेख करेगी । (iii) यद्यपि क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रेडिट रेटिंग की वैधता अवधि निर्धारित कर सकती है तथापि उन्हें जारीकताओं की रेटिंग की नियमित अंतरालों पर उनके ट्रैक रिकार्ड के परिप्रेक्ष्य में निकट से निगरानी करनी होगी और उन्हें अपने प्रकाशनों और वेबसाइट के जरिए रेटिंगस में किये गये परिवर्तनों की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी । 16. दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया 16.1. वाणिज्यिक पत्रों के परिचालन में लचीलापन और उसकी सुचारू कार्यप्रणाली के लिये निर्धारित आय मुद्रा बाजार और व्युत्पन्न (डेरिवेटिव्ज) संघ (फिमडा), भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से किसी मानक प्रक्रिया और दस्तावेजीकरण का निर्धारण कर सकता है जिसका अनुपालन प्रतिभागियों को सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय पद्धतियों के अनुरूप करना होगा। जारीकर्ता/आई.पी.ए. इस संबंध में फिमडा द्वारा 5 जुलाई 2001 को जारी किये गये विस्तृत दिशानिर्देश देखें । 16.2. इन दिशानिर्देशों का उल्लघंन करने पर दंड लगाया जा सकता है और इसमें संस्था द्वारा वाणिज्यिक पत्र बाजार में लेनदेन करने पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल हो सकता है । 17. वाणिज्यिक पत्र बाज़ार में चूक वाणिज्यिक पत्रों के मोचन में होने वाली चूकों की निगरानी करने के लिये आई.पी.ए. के रूप में कार्य करने वाले अनुसूचित बैंकों को सूचित किया गया है कि वे वाणिज्यिक पत्रों के चुकौती में चूक होने पर तत्संबंधी पूर्ण विवरण अनुलग्नक –I में दिये गये प्रारूप में मुख्य महाप्रबंधक, वित्तीय बाजार विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, फोर्ट, मुंबई-400001 पर तत्काल सूचित करें । 18. कुछ अन्य निर्देशों का लागू न होना गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी सार्वजनिक जमाराशि की स्वीकार्यता (रिज़र्व बैंक) निदेशन, 1998 में अंतनिर्हित कोई भी तथ्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी पर लागू नही होगा जहां तक कि यह इन दिशानिर्देशों के अनुरूप वाणिज्यिक पत्रों के निर्गम द्वारा जमाराशियों की स्वीकार्यता से संबंधित है । 19. इन दिशानिर्देशों में प्रयुक्त कुछ शब्दों की परिभाषा अनुलग्नक-II में दी गई है। वाणिज्यिक पत्र (सीपी) की चुकौती में हुई चूक का विवरण
परिभाषाएं इन दिशानिर्देशों में जब तक प्रसंगवश अन्यथा अपेक्षित न हो तब तक: (क) "बैंक" या "बैंकिंग कंपनी" का अर्थ है बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खंड (सी) में याथा परिभाषित बैंकिंग कंपनी या उसके खंड (डीए), खंड (एनसी) और खंड (एनडी) में क्रमश: याथा परिभाषित "तदनुरूपी नया बैंक", "भारतीय स्टेट बैंक" या "सहायक बैंक" जिसके अंतर्गत उक्त अधिनियम की धारा 56 के साथ पठित धारा 5 के खंड (सीसीआई) में याथा परिपाभाषित "सहाकारी बैंक" भी शामिल है । (ख) "अनुसूचित बैंक" का तात्पर्य है भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की द्वितीय अनुसूची में शामिल बैंक । (ग) "अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं (एफआई)" का तात्पर्य हैं वे वित्तीय संस्थाएं जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सावधि धन, सावधि जमा राशियों, जमा प्रमाणपत्रों, वाणिज्यिक पत्र और अंतरकंपनी जमाराशियों, जो भी लागू हो, द्वारा समग्र सीमा के अंदर संसाधन जुटाने के लिए विशिष्टि रूप से अनुमति दी गई है । (घ) "प्राथमिक व्यापारी" से अभिप्रेत है ऐसे गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी जो 29 मार्च 1995 के समय समय पर याथा संशोधित "सरकारी प्रतिभूति बज़ार में प्रथमिक व्यापारी संबंधी दिशानिर्देश" के अनुसार रिज़र्व बैंक द्वारा प्राथमिक व्यापारी होने के संबंध में जारी वैध आधार पत्र का धारण करती हो । (ङ) "कापोरेट" या "कंपनी" का अर्थ है भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45 I(एए) यथा परिभाषित कंपनी, मगर इसमें ऐसी कंपनी शामिल नहीं है जिसे वर्तमान में किसी कानून के अंतर्गत बंद किया जा रहा है । (च) "गैंर बैंकिंग कंपनी" का तात्पार्य है बैंकिंग कंपनी से इतर कंपनी । (छ) "गैंर बैंकिंग वित्तीय कंपनी" से अभिप्रेत है भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45 I (एसफ) में यथा पारिभाषित कंपनी । (ज) "कार्यशील पूंजीगत सीमा" का तात्पर्य है कुल सीमाएं जिनमें कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक या अधिक बैंकों /एफआई द्वारा बिलों की खरीद / डिस्काउंट द्वारा प्राप्त राशियां शामिल हैं । (झ) "मूर्त निवल मालियत" से अभिप्रेत है कंपनी के अद्यतन लेखा परीक्षित तुलन पत्र के अनुसार चुकता पूंजी सह मुक्त प्रारक्षित निधियां (शेयर प्रीमियम खाते में धारित शेष राशियां, पूंजी और डिबंजरों के मोचन से प्राप्त प्रारक्षित निधियां और ऐसी अन्य प्रारक्षित निधि शामिल हैं जिनका सृजन भविष्य में आनेवाली किसी देयता की चुकौती के लिए अथवा परिसंपत्तियां के मूल्यह्रास के लिए अथवा अशोध्य ऋण अथवा परिसंपत्तियों के पुनर्मूल्यांकन द्वारा आरक्षित निधियों के लिए न किया गया हो) जिसमें से हानि की संचित शेष राशि, आस्थागित राजस्व व्यय की शेष राशि तथा अन्य अमूर्त परिसंपत्तियों को घटाया गया हो । (ञ) इसमें प्रयुक्त लेकिन इसमें अपरिभाषित और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) में परिभाषित शब्दों और अभिव्यक्तियों का अर्थ वही होगा जो उक्त अधिनियम में दिया गया है । समेकित परिपत्रों की सूची
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