निदेशक मंडल पर मास्टर परिपत्र - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
निदेशक मंडल पर मास्टर परिपत्र - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
भारिबैं/2014-15/17 01 जुलाई 2014 मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया / महोदय निदेशक मंडल पर मास्टर परिपत्र - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक कृपया उपर्युक्त विषय पर 01 जुलाई 2013 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि.बीपीडी (पीसीबी)एमसी.सं.8/09.08.000/2012-13 भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2014 तक जारी सभी अनुदेशों/ दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है। भवदीय (ए.के. बेरा) संलग्नक: यथोक्त मास्टर परिपत्र 1.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक में निहित शक्तियों के अनुसार बैंकिंग से संबंधित कार्यों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण में कार्य कर रहे हैं। 1.2 तथापि, इन बैंकों के प्रशासनिक तथा प्रबंधकीय कार्य, निदेशकों के चुनाव तथा उनकी नियुक्ति आदि संबंधित राज्य सहकारी सोसायटियां अधिनियम और बहुराज्य सहकारी सोसायटियां अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर संबंधित राज्य/ केंद्र सरकार की परिधि में आती हैं। विभिन्न सहकारी सोसायटियां अधिनियम, उनके अंतर्गत बनाई गई उप-विधियां और मॉडल उप-विधियां इन बैंकों के निदेशकों की ड्यूटियों, कार्यों तथा दायित्वों को स्पष्ट करती हैं। 1.3 चूँकि निदेशकों को सदस्यों (सहयोजित तथा नामित निदेशकों को छोड़कर) में से चुना जाता है, इसलिए जो व्यक्ति एक सदस्य के रूप में प्रवेश के लिए पात्र नहीं है वह बैंक के प्रवर्तक के रूप में कार्य नहीं कर सकता या बैंक का निदेशक नही बन सकता। विशेष रूप से व्यक्तिगत हैसियत से या किसी संस्था के स्वत्वधारी/ साझीदार/ कर्मचारी/निदेशक की हैसियत से उधार देने, वित्त पोषण तथा निवेश गतिविधियों में शामिल व्यक्ति और नैतिक पतन सहित किसी प्रकार के दंडनीय अपराध में अभियोजित व्यक्ति भी मॉडल उप-विधि सं. 9 के खंड ख (ii) तथा/ या सहकारी सोसायटी अधिनियम (संबंधित) में निहित उपबंधों के अनुसार पात्र नहीं हैं। निदेशक मंडल प्रमुख रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक तथा राज्य/ केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाने से संबंधित है। निदेशक मंडल को दिन-प्रतिदिन का प्रशासन कार्य मुख्य कार्यपालक अधिकारी के जिम्मे छोड़कर बैंक की कार्यप्रणाली पर संपूर्ण पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण भी रखना चाहिए। 1.4 निदेशक मंडलों के संबंध में श्री माधव दास की अध्यक्षता में बनी "शहरी सहकारी बैंकों पर समिति" द्वारा की गई और बैंकों द्वारा उन्हें अपनाए जाने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा संस्तुत की गई सिफ़ारिशें अनुबंध 1 में दर्शाई गई हैं । 1.5 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकें के निदेशकों को जानकार और ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए। उन्हें अपनी जिम्मेदारी सुसंगत रूप से निभानी चाहिए और बैंक के मामलों का सहजता एवं दक्षतापूर्वक प्रबंधन करने के लिए उचित नेतृत्व प्रदान करना चाहिए। इसके लिए निदेशक मंडलों में एक निश्चित स्तर की व्यावसायिकता की आवश्यकता होती है । 1.6 निदेशक मंडल में व्यावसायिकता सुनिश्चित करने के लिए बैंकों में कम से कम दो निदेशक समुचित बैंकिंग अनुभव (मध्य/वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर) या विधि, बैंक लेखाकरण या वित्त जैसे क्षेत्र से संबंधित व्यावसायिक योग्यताओं वाले होने चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए बैंकों की उप-विधियों में यथोचित उपबंध होना चाहिए। तथापि, वेतनभोगी बैंकों की सदस्यता की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उनके मामले में इन अनुदेशों का आग्रह नहीं किया जाएगा। 2. निदेशकों की भूमिका - क्या करें और क्या न करें 2.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक के निदेशक मंडलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उचित ऋण नीतियों को अपनाया गया है और उनका अनुपालन किया जाता है। 2.2 यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारतीय रिज़र्व बैंक/ सरकार द्वारा जारी नीतियों से संबंधित सभी परिपत्र तथा अन्य सामग्री का अवलोकन निदेशक मंडल के प्रत्येक सदस्य द्वारा किया जाता है और उन्हें उचित कार्रवाई के लिए निदेशक मंडल के समक्ष रखा जाता है। 2.3 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशकों के मार्गदर्शन के लिए क्या करें और क्या न करें की एक सूची नीचे दी गई हैं। यह सूची उदाहरणात्मक हैं, परिपूर्ण नहीं और इसे संबंधित बैंकों की सहकारी विधि तथा/ या उप-विधियों में वर्णित निदेशक मंडल की निर्धारित ड्युटियों, उत्तरदायित्वों या अधिकारों के विकल्प के रूप में नहीं लिया जाना है । क्या करें (ए) अनुशासन तथा संबद्धता: निदेशकों को
(बी) रचनात्मक और विकासात्मक भूमिका : निदेशकों को :
(सी) व्यवसाय विशेष योगदान निदेशकों को बैंक की निम्नलिखित कार्यप्रणाली पर ध्यान देना चाहिए :
क्या न करें (ए) हस्तक्षेप नहीं करना : निदेशकों को :
(बी) अप्रायोजन: निदेशकों को
(सी) गोपनीयता
3. निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति: 3.1 प्रबंधन के एक साधन के रूप में आंतरिक/ निरीक्षण की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने एवं उसमें वृद्धि करने के लिए आंतरिक लेखा परीक्षा/ निरीक्षण तंत्र तथा बैंकों के अन्य कार्यपालकों की निगरानी करने और निदेश देने के लिए निदेशक मंडल स्तर पर एक शीर्ष लेखा परीक्षा समिति का गठन करना चाहिए। समिति में एक अध्यक्ष तथा तीन/ चार निदेशक हों जिनमें से ऐसे एक या उससे अधिक निदेशक सनदी लेखापाल हों या जिनके पास प्रबंधन, वित्त, लेखांकन तथा लेखा परीक्षा प्रणालियों आदि का अनुभव हो। 3.2 निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करनी चाहिए और तिमाही अंतरालों पर निदेशक मंडल के समक्ष उससे संबंधित नोट प्रस्तुत करना चाहिए। निदेशक मंडल के प्रमुख कार्य/ जिम्मेदारियां नीचे दी गई है : (i) उसे बैंक में संपूर्ण लेखा परीक्षा कार्य के परिचालनों को दिशा देनी और उनकी निगरानी करनी चाहिए। संपूर्ण लेखा परीक्षा कार्य का तात्पर्य बैंक के भीतर आंतरिक लेखा परीक्षा और निरीक्षण का संगठन, परिचालनात्मकता और गुणवत्ता नियंत्रण तथा बैंक की सांविधिक लेखा परीक्षा और रिज़र्व बैंक के निरीक्षण पर अनुवर्ती कार्रवाई होगा। (ii) उसे आंतरिक अनुवर्ती कार्रवाई के संबंध में बैंक के आंतरिक निरीक्षण/ लेखापरीक्षा - प्रणाली, उसकी गुणता तथा प्रभावकारिता-निरीक्षण/ लेखा परीक्षा की समीक्षा करनी चाहिए। उसे आंतरिक निरीक्षण रिपोर्टों पर अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा करनी चाहिए। उसे विशेष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए : (ए) अंतर - शाखा समायोजन लेखा (बी) अंतर - शाखा खातों में तथा अंतर बैंक खातों में लंबे समय से असमायोजित बकाया प्रविष्टियां (सी) विभिन्न शाखाओं पर बहियों के मिलान का बकाया कार्य (डी) धोखाधड़ियां तथा (इ) आंतरिक रखरखाव के सभी प्रमुख क्षेत्र (iii) सांविधिक लेखा परीक्षा/ संगामी लेखा परीक्षा/ भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्टों का अनुपालन; (iv) गंभीर अनियमितताओं का पता लगाने में आंतरिक निरीक्षण अधिकारियों की तरफ से हुई किसी चूक; तथा (v) बैंक के लेखाओं में ज्यादा पारदर्शिता तथा लेखांकन नियंत्रणों की पर्याप्तता सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंक की लेखांकन नीतियों/ प्रणालियों की आवधिक समीक्षा 4. समीक्षाओं का कैलेंडर - निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले विषय निदेशक मंडल के लिए क्या करें तथा क्या न करें की सूची (पैरा 2) में इस बात पर बल दिया गया है कि निदेशकों को बैंक की कार्यप्रणाली के महत्वपूर्ण पहलुओं की आवधिक समीक्षाओं पर अपना ध्यान देना चाहिए। समीक्षाओं की एक विस्तृत सूची जिसकी ओर निदेशकों का ध्यान आकृष्ट किया जाना चाहिए तथा कितने आविधक अंतराल पर ये समीक्षाएं निदेशक मंडल के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए उसे अनुबंध 2 में दर्शाया गया है। 5.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को उनके निदेशकों या अनके रिश्तेदारों और फर्मों/ संस्थाओं/ कंपनियों जिनमें उनके हित निहित हैं, को 1 अक्तूबर 2003 से जमानती या गैर-जमानती ऋण तथा अग्रिम देने, प्रदान करने या नवीकरण अथवा उन्हें अन्य कोई वित्तीय सुविधा प्रदान करने से प्रतिबंधित किया गया है। मौजुदा अग्रिमों को उनकी देय तारीख तक जारी रखने के लिए अनुमति दी जाए। 5.2 निदेशकों से संबंधित निम्नलिखित श्रेणियों के ऋणों को उपर्युक्त अनुदेशों के दायरे से छूट दी गई है।
5.3 'अन्य कोई वित्तीय सुविधा' शब्द में निधिकृत तथा गैर-निधिकृत ऋण सीमाएं तथा हामीदारियां तथा समान प्रतिबद्धताएं शामिल होंगी जैसाकि नीचे दिया गया है : (ए) निधिकृत सीमाओं में खरीदे/ भुनाए गए बिल, पोतलदानपूर्व और पोतलदानोत्तर ऋण सुविधाएं और उधारकर्ताओं को स्वीकृत मूल संसाधन की खरीद एवं किसी अन्य उद्देश्य के लिए स्वीकृत सीमाओं सहित आस्थगित भुगतान गारंटी सीमा और ऐसी गारंटियां शामिल हैं जिनके जारी करने पर कोई बैंक अपने ग्राहकों को पूंजी आस्तियां प्राप्त करने के लिए वित्तीय दायित्व स्वीकार करता है। (बी) गैर-निधिकृत सीमाओं में साख-पत्र, उपर्युक्त पैराग्राफ (ए) में उल्लिखित गारंटियों से इतर गारंटियां तथा हामीदारियां तथा वैसा ही प्रतिद्धताएं शामिल होंगी। 5.4 कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का रिश्तेदार तभी माना जाएगा यदि: (ए) वे किसी अविभक्त हिंदू परिवार के सदस्य हैं, या (बी) वे पति-पत्नी हों, या (सी) एक का दूसरे के साथ वैसा ही संबंध हो जैसा नीचे दर्शाया गया हैं : रिश्तेदारों की सूची
6. निदेशक, उनके रिश्तेदार जिस न्यास (ट्रस्ट) और संस्थान में पदधारी या हितबद्ध है उनके लिए दान 30 अगस्त 2013 से लागू रूप में शहरी सहकारी बैंकों द्वारा जिन न्यासों और संस्थाओं में निदेशक और या उनके रिश्तेदार पदधारी या हितबद्ध हैं उनको पिछले वर्ष के प्रकाशित लाभ के 1 प्रतिशत की स्वीकार्य सीमा तक होने पर भी दान देने से रोक लगा दी गई है। उक्त प्रयुक्त 'रिश्तेदार', 'हित' आदि शब्द से तात्पर्य अनुच्छेद सं 5.4 में बताए अनुसार है। न्यास जिसमें निदेशक/ निदेशकों के रिश्तेदार न्यासी के रूप में पदधारी हैं या हितधारी हैं या न्यास के कामकाज में किसी भी हैसियत से शामिल है, जिससे निदेशक(कों) की स्वाधीनता पर प्रभाव डालने की संभावना हो। 7. निदेशकों को फीस तथा भत्तों का भुगतान निदेशक मंडल की बैंठकों के संचालन आदि पर सभी खर्चों को लाभ-हानि खाते की मद 3 में दर्शाया जाए। इस प्रकार के खर्चों में निदेशक तथा स्थानीय समिति के सदस्यों को वास्तव में भुगतान की गई और इस प्रकार की बैंठकों में भाग लेने के लिए उनकी तरफ़ से खर्च की गई राशियां शामिल होंगी। मास्टर परिपत्र निदेशक मंडल के संबंध में शहरी सहकारी बैंकों सिफारिश 1. शाखा सदस्यों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए निदेशक मंडल शाखाओं के सदस्यों को शहरी बैंकों की गतिविधियों के प्रबंधन में शामिल करने की दृष्टि से निदेशक मंडल में उनका प्रतिनिधित्व आवश्यक है। निदेशक मंडल में निदेशकों के चयन के प्रयोजन से शाखाओं को निम्नलिखित श्रेणियों के अनुसार समूहबद्ध किया जा सकता है।
प्रतिनिधित्व शाखाओं की सदस्यता पर आधारित हो न कि उनकी जमाराशियों या ऋण कारोबार पर। निदेशक मंडल में कुछ निश्चित स्थान विशेष रूप से केवल प्रधान कार्यालय के नगर को प्रदान किए जाने चाहिए और किसी समूह की प्रत्येक शाखा को क्रमिक रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाए। 2. निदेशक के पद की अर्हता (i) किसी शहरी बैंक में निदेशक के रूप में पद ग्रहण करने की अर्हता के संबंध में शेयर धारिता को निर्धारक तत्व नहीं बनाया जाना चाहिए। किसी निदेशक का चुनाव सदस्यों में उसके प्रति विश्वास के आधार पर किया जाना चाहिए। निदेशक मंडल की सदस्यता के लिए न्यूनतम शेयर पात्रता संबंधी मौजूदा निर्धारण का आग्रह नहीं किया जाना चाहिए जो हितकारी है । (ii) शहरी बैंकों में निदेशक के पद के लिए चुनाव लड़ रहे व्यक्तियों को कम से कम दो वर्षों की अवधि के लिए बैंक का सदस्य होना चाहिए। इसी प्रकार, निदेशक मंडल में चुनाव लड़ने वाले सदस्यों की संबंधित शहरी बैंक में कम से कम लगातार दो वर्षों की अवधि तक किसी प्रकार की ` 500/- की न्यूनतम जमाराशि होनी चाहिए । 3. मतदान के लिए सदस्य की योग्यता मुख्य रूप से निदेशक मंडलों के स्थानों पर कब्जा जमाने की दृष्टि से तथा इसके जरिए दक्षतापूर्ण प्रबंधन वाले शहरी बैंकों के निदेशक मंडलों को अस्थिर तथा अपदस्थ करने के उद्देश्य से साधारण सभा की बैंठक के तुरंत पहले कुछ निहित स्वार्थों की पहल पर सामूहिक नामांकन रोकने के लिए प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक के सदस्यों को बैंक के प्रबंधन मंडल के चुनाव में भाग लेने की अनुमति उनके सदस्यता प्राप्त करने की तारीख से 12 महीनों की न्यूनतम अवधि पूरी होने के बाद ही मिलनी चाहिए । 4. निदेशक मंडल में महिला प्रतिनिधि जहां किसी भी क्षेत्र में केवल महिलाओं के लिए किसी शहरी बैंक के गठन के अवसर बहुत सीमित हैं, मौजूदा शहरी बैंक अपने प्रबंधक मंडलों में महिला सदस्यों को प्रतिनिधित्व दे सकते हैं और जहां आवश्यक हो महिला सदस्यों की जरुरतों को पूरा करने के लिए एक पृथक अनुभाग बना सकते हैं । निदेशक मंडलों में महिलाओं के लिए कम से कम एक स्थान आरक्षित रखा जाए। 5. निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए विकास कार्यक्रम एक दक्ष नीति निर्माता एवं निर्णयन निकाय में स्वयं को विकसित करने के लिए निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए नियमित कार्यक्रमों की आवश्यकता है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत निदेशक मंडल के सदस्यों को अल्पकालिक अभिमुख पाठ्यक्रमों, कार्यशालाओं, सेमिनारों से परिचित करवाना और अन्य बैंकों का दौरा शामिल है। बैंक ने स्वयं या शहरी बैंकों के संघों या संगठनों द्वारा तैयार किए गए उचित मैनुअल निदेशकों को उप-विधियों के तहत उनके कार्यों से परिचित कराने की एक प्रकार हो सकते हैं। राष्ट्रीय शहरी सहकारी बैंक तथा क्रेडिट सोसायटी संघ तथा शहरी बैंकों के राज्य स्तरीय संघों या संगठनों के सहयोग से राष्ट्रीय सहकारी संघ को शहरी बैंकों के प्रबंधन के निदेशक मंडलों को शिक्षित एवं प्राशिक्षित करने के इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के प्रति स्वयं को समर्पित करना चाहिए तथा इस प्रयोजन के लिए समन्वित कार्यक्रम की रूप-रेखा बनानी चाहिए। 6. निदेशक मंडल में मुख्य कार्यपालक की उपस्थिति किसी शहरी बैंक के मुख्य कार्यपालक को अधिमानत: निदेशक मंडल का एक सदस्य होना चाहिए अर्थात् उसे प्रबंध निदेशक होना चाहिए। 7. निदेशक मंडल में राज्य सरकार के नामित सदस्य की उपस्थिति जिस शहरी बैंक के शेयर पूंजी में राज्य की भागीदारी है ऐसे बैंकों के निदेशक मंडल में राज्य सरकार अपना प्रतिनिधि नामित कर सकता है। इस प्रकार के प्रतिनिधियों की संख्या निदेशकों की कुल संख्या के एक-तिहाई या तीन, इनमें से जो भी कम हो, से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा नामित निदेशकों को सहकारिता विभाग का अधिकारी होने के बजाय अधिमानत: सक्षम गैर-अधिकारी होना चाहिए । निदेशक मंडल पर प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशक I. मासिक 1. (ए) निधियों का प्रबंधन (बी) नकदी प्रारक्षित निधि/ सांविधिक तरलता अनुपात के अनुपालन से संबंधित स्थिति 2. परीक्षण शेष - आय/ व्यय विवरण 3. जमाराशियों/ अग्रिमों की तुलनात्मक स्थिति - 4. प्रत्यायोजित प्राधिकार के अंतर्गत अस्थाई ओवरड्राफ्ट सहित मंजूर ऋण प्रस्ताव - 5. महीने के दौरान प्रकाश में आई गंभीर अनियमितताएं / धोखाधड़ियां / र्विनियोजन, यदि कोई हों पर रिपोर्ट । 6. अतिदेय की तुलनात्मक स्थिति II. तिमाही
III. अर्द्धवार्षिक
IV. वार्षिक
(टिप्पणी : 1 ..... 12 कैलेंडर के महीनों को दर्शाते हैं) अर्थात् : 1 जनवरी प्रदर्शित करता है । 12 दिसंबर प्रदर्शित करता है। मास्टर परिपत्र क. मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
ख. निबंधक, सहकारी सोसायटियों को संबोधित परिपत्रों की सूची
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