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ऋण-हानि के निर्धारण के लिए 90 दिन का मानदंड

ऋण-हानि के निर्धारण के लिए 90 दिन का मानदंड
अपनाना - मासिक आधार पर ब्याज लगाना

संदर्भ : बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 73 /13.03.00/2001-02

09 मार्च 2002
18 फाल्गुन 1923 (शक)

सभी वाणिज्य बैंक

(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)
प्रिय महोदय,

ऋण-हानि के निर्धारण के लिए 90 दिन का मानदंड
अपनाना - मासिक आधार पर ब्याज लगाना

कृपया आप 2 मई 2001 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 116/21.04.048/2000-2001 का पैराग्राफ 1.क.ii देखें, जिसके अनुसार बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ यह भी सूचित किया गया है कि सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं की ओर बढ़ने और ऋणों की चुकौती में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंकों को ऋण-हानि के निर्धारण के लिए 31 मार्च 2004 को समाप्त वर्ष से 90 दिन का मानदंड अपनाना चाहिए । एक सुविधाजनक उपाय के रूप में बैंकों को 1 अप्रैल 2002 से मासिक आधार पर ब्याज लगाने की ओर बढ़ना चाहिए । इस संबंध में कुछ बैंकों ने हमसे कृषि अग्रिमों पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने, इससे अधिक के अंतराल पर ब्याज लगाने के विकल्पों जैसे मुद्दों पर स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है और प्रलेखीकरण संबंधी औपचारिकताओं पर परिचालनगत विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया है ।

2. आपको विदित ही है कि 9 अगस्त 2001 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 06/ 13.07.01/ 2001-02 के पैराग्राफ 1.1.1 और 1.1.2 के साथ पठित 19 अप्रैल 2001 के निदेश बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 106/13.03.00 /2000-01 के पैराग्राफ 1 के अनुसार बैंकों को ऋणों / अग्रिमों / नकदी ऋणों /ओवरड्राफ्टों अथवा दी गयी /नवीकृत की गयी किसी अन्य वित्तीय सुविधा पर तिमाही अथवा इससे अधिक अवधि के अंतरालों पर निर्दिष्ट दरों पर ब्याज लगाना चाहिए । इसलिए इस मामले की जांच हमने भारतीय बैंक संघ से परामर्श करके की है । अब यह निर्णय लिया गया है कि 19 अप्रैल 2001 के निदेश बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 106/13.03.00 /2000-01 के पैराग्राफ 1 और 9 अगस्त 2001 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 06/ 13.07.01/ 2001-02 के पैराग्राफ 1.1.1 और 1.1.2 में आंशिक संशोधन करते हुए और 1 अप्रैल 2002 से बैंक ऋणों / अग्रिमों पर मासिक आधार पर ब्याज लगाने की ओर बढ़ें, जो निम्नलिखित शर्तों पर होगा :

  1. मासिक आधार पर ब्याज लगाने की प्रणाली कृषि अग्रिमों पर लागू नहीं होगी और बैंक फसली मौसमों से सहबद्ध कृषि अग्रिमों पर ब्याज लगाने /चक्रवद्धि ब्याज लगाने की मौज़ूदा प्रथा जारी रखेंगे।
  2. मासिक आधार पर ब्याज लगाना नकदी ऋण (कैश क्रेडिट) और ओवरड्राफ्ट खातों तक ही सीमित रहेगा । मासिक आधार पर ब्याज लगाने के समय बैंक प्रलेखीकरण के प्रयोजन हेतु ऋणकर्ताओं से सहमति पत्र / पूरक करार प्राप्त कर सकते हैं ।
  3. लंबी / नियत अवधि के ऋणों के मामले में बैंक मासिक आधार पर ब्याज ऐसे खातों की समीक्षा या उनके नवीकरण के समय से लगायेंगे ।
  4. नये मियादी ऋणों तथा लंबी /नियत अवधि के अन्य ऋणों के मामले में बैंक ब्याज मासिक आधार परलगायें ।

2. इस विषय पर 9 मार्च 2002 का संशोधनकारी निदेश बैंपविवि. सं. बीसी. 72/13.03.00/2001-02 संलग्न है ।

भवदीय

(एम. आर. श्रीनिवासन )
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक

संलग्न : यथोक्त

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