बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 17(2) - आरक्षित निधि से विनियोग - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 17(2) - आरक्षित निधि से विनियोग
आरबीआइ/2006-07/132
बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी. 31/21.04.018/2006-07
20 सितंबर 2006
29 भाद्र 1928 (शक)
सभी वाणिज्य बैंकों के
अध्यक्ष एवं प्रबंधक निदेशक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय
बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 17(2) - आरक्षित निधि से विनियोग
बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 17 (1) तथा 11 (1) (ख) (वव) के अनुसार बैंकों को लाभ-हानि खाते में प्रकट किये गये लाभ के शेष में से, ऐसे लाभ के कम-से-कम 20 प्रतिशत तक की राशि के समकक्ष राशि आरक्षित निधि में अंतरित करनी होती है । यह प्रावधान न्यूनतम अपेक्षा है । आरक्षित निधियों के संवर्धन की अनिवार्य आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, 23 सितंबर 2000 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 24/21.04.018/2000-2001 द्वारा यह सूचित किया गया था कि भारत में कार्यरत सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (विदेशी बैंकों सहित) को 31 मार्च 2001 को समाप्त होनेवाले वर्ष से अपने ‘निवल लाभ’ (विनियोग से पूर्व) में से कम-से-कम 25 प्रतिशत तक की राशि आरक्षित निधि में अंतरित करनी चाहिए ।
2. धारा 17 (2) के अनुसार जहां कोई बैंकिंग कंपनी आरक्षित निधि अथवा शेयर प्रीमियम खाते में से किसी राशि का विनियोग करती है तो वह ऐसे विनियोग की तारीख से ‘इक्कीस’ दिनों के भीतर रिज़र्व बैंक को इस तथ्य की सूचना देगी जिसमें ऐसे विनियोग से संबंधित परिस्थितियों को स्पष्ट किया गया हो । यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके द्वारा सांविधिक आरक्षित निधि को आहरण द्वारा कम करने का अवलंब
विवेकपूर्ण रूप से लिया गया है तथा वह किसी भी विनियामक आदेश के उल्लंघन में नहीं है , बैंकों को उनके हित में सूचित किया जाता है कि वे सांविधिक आरक्षित निधि अथवा किसी अन्य आरक्षित निधि में से किसी प्रकार का विनियोग करने से पूर्व रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करें ।
3. बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि :
(i) सभी व्यय जिनमें किसी अवधि में मान्यता प्राप्त प्रावधान तथा बट्टे खाते डाली गयी राशियां शामिल हैं, चाहे वे अनिवार्य अथवा विवेकसम्मत हों, उक्त अवधि के लिए लाभ-हानि खाते में ‘लाभ निकालने से पूर्व’ मद (अर्थात् ‘निवल लाभ’ निर्धारित करने से पूर्व) के रूप में प्रकट होने चाहिए ।
(ii) जहां कहीं रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन से आरक्षित निधियों को आहरण से कम किया जाता है, उसे केवल ‘लाभ निकालने के बाद’ (अर्थात् वर्ष के लिए लाभ/हानि निर्धारित करने के बाद) दिखाया जाए; तथा
(iii) यह भी सुनिश्चित किया जाए कि तुलन पत्र के ‘लेखा पर टिप्पणियों’ में आरक्षित निधियों के इस तरह से आहरण द्वारा कमी किये जाने संबंधी समुचित प्रकटीकरण किये गये हैं ।
भवदीय
(प्रशांत सरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक