अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं के एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षाएं - आरबीआई - Reserve Bank of India
अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं के एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षाएं
आरबीआई/2013-14/448 15 जनवरी 2014 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक महोदय अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं के एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षाएं कृपया उपर्युक्त विषय पर 2 जुलाई 2013 को जारी ड्राफ्ट दिशानिर्देश और 29 अक्तूबर2 013 को घोषित मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा का पैरा 22 देखें (उद्धरण संलग्न)। संस्थाओं1 को अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर न केवल उस संस्था के लिए बल्कि समस्त वित्तीय व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। अपनी विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की हेजिंग न कर पाने वाली संस्थाओं को विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण अत्यधिक हानि हो सकती है। यह हानि बैंकिंग व्यवस्था से लिए गए ऋणों को चुकाने की उनकी क्षमता घटा सकती है और इस प्रकार बैंकिंग प्रणाली की सुदृढ़ता को प्रभावित कर सकती है। 2. हमने ऐसे अनेक दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनमें बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने उधारकर्ता ग्राहकों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की ध्यानपूर्वक निगरानी करें और ऋण के मूल्य निर्धारण में इस जोखिम को भी शामिल करें। तथापि, संस्थाओं के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का परिमाण उच्च स्तर पर बना हुआ है और इससे उच्च मुद्रा अस्थिरता के समय चूक की संभावना बढ़ सकती है। अतः अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं को बैंक एक्सपोजर के संबंध में वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी अपेक्षाएं शुरू करने का निर्णय लिया गया है। वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी अपेक्षाओं की गणना करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाएः क. अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (यूएफसीई) की राशि निश्चित करनाः विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का तात्पर्य तुलन पत्र की उन सभी मदों की सकल राशि से है जिनका प्रभाव विदेशी मुद्रा विनियम दर में उतार-चढ़ाव के कारण लाभ-हानि खाते पर पड़ता है। संबंधित लेखांकन मानक के प्रावधानों का अनुसरण करके इसकी गणना की जा सकती है। अगले पांच वर्षों की अवधि के दौरान परिपक्व होने वाली अथवा नकद प्रवाह वाली मदों पर ही विचार किया जाए। अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर में ऐसी मदों को शामिल नहीं किया जाए जो एक दूसरे के लिए प्रभावी बचाव हैं। इस उद्देश्य के लिए, ऐसे दो प्रकार के बचाव (हेज) हैं जिन पर विचार किया जा सकता है – वित्तीय बचाव (हेज) और प्राकृतिक बचाव (हेज)। वित्तीय बचाव (हेज) सामान्यतः किसी वित्तीय संस्था के साथ डेरिवेटिव संविदा के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है। डेरिवेटिव के माध्यम से बचाव (हेजिंग) पर केवल वहां विचार किया जा सकता है जहां डेरिवेटिव संविदा प्रारंभ करते समय संबंधित संस्था ने बचाव (हेजिंग) के उद्देश्य और रणनीति को लिपिबद्ध किया हो और आवधिक अंतरालों में बचाव (हेजिंग) लिखत के रूप में उसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया हो। बचाव (हेज) की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से इस मामले में भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान की घोषणाओं से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। प्राकृतिक बचाव (हेज) पर उस समय विचार किया जा सकता है जब कंपनी के परिचालन से उत्पन्न होने वाला नकद प्रवाह ऊपर परिभाषित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर से उत्पन्न जोखिम को प्रतिसंतुलित कर दे। अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की गणना करने के उद्देश्य से किसी एक्सपोजर को तब प्राकृतिक रूप से हेज किया हुआ माना जा सकता है यदि ऑफ सेटिंग एक्सपोजर का उसी लेखांकन वर्ष के भीतर परिपक्वता/नकद प्रवाह हो। उदाहरणार्थ, निर्यात राजस्व (प्राप्य राशि के रूप में बुक किया गया) किसी बाह्य वाणिज्यिक उधार के भुगतान दायित्वों से उत्पन्न होने वाले विनिमय जोखिम को प्रतिसंतुलित कर सकता है बशर्ते, दोनों एक्सपोजर का उसी लेखांकन वर्ष के भीतर नकद प्रवाह/परिपक्वता हो। ख. संभावित घाटे के स्तर का आकलन करनाः यूएसडी-आईएनआर विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के मामले में संबंधित संस्था को होने वाले घाटे की गणना वार्षिककृत अस्थिरता के प्रयोग से की जा सकती है। इस उद्देश्य के लिए विगत दस वर्षों की अवधि के दौरान यूएसडी-आईएनआर दरों में देखी गई वृहत्तम वार्षिक अस्थिरता को यूएसडी-आईएनआर दर के प्रतिकूल उतार-चढ़ाव के रूप में लिया जा सकता है2। ग. अरक्षित स्थिति के जोखिम का आकलन करें और समुचित प्रावधान करें – यदि एक बार घाटे संबंधी आंकड़े की गणना कर ली जाती है, तो सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा प्रमाणित नवीनतम तिमाही परिणाम के अनुसार इसकी तुलना वार्षिक ईबीआईडी3 से कर सकते हैं। इस घाटे की संगणना ईबीआईडी के प्रतिशत के रूप में किया जा सकता है। यह प्रतिशत जितना अधिक होगी, प्रतिकूल विनिमय दर उतार-चढ़ाव के प्रति संस्था की संवेदनशीलता उतनी ही अधिक होगी। अतः, विवेकपूर्ण उपाय के रूप में ऐसी संस्थाओं के प्रति सभी एक्सपोजर पर (चाहे विदेशी मुद्रा में हो अथवा आईएनआर में) वृद्धिशील पूंजी और प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षाएं (वर्तमान अपेक्षाओं के अलावा) निम्नानुसार लागू होंगीः
3. 21 नवंबर 2012 के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 61/21.04.103/2012-13 के अनुसार बैंकों को मासिक अंतराल पर अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की निगरानी करना है। बैंकों को कम से कम तिमाही आधार पर वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी अपेक्षाओं की गणना करनी चाहिए। तथापि, अमेरिकी डालर- भारतीय रुपये में उच्च अस्थिरता की अवधि के दौरान, यह गणना मासिक अंतराल पर करें। 4. इन दिशानिर्देशों को लागू करने में कार्यान्वयन के अधीन परियोजना और ऐसी नई संस्थाओं जिनके पास वार्षिक ईबीआईडी के आंकड़े उपलब्ध न हो, के प्रति एक्सपोजर के संबंध में कुछ मुद्दे सामने आ सकते हैं। कार्यान्वयन के अधीन प्रोजेक्ट के लिए वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी संबंधी अपेक्षाएं वाणिज्यिक परिचालन के आरंभ की तिथि से तीन वर्षों के लिए अनुमानित औसत ईबीआईडी पर आधारित होगी और वृद्धिशील पूंजी और प्रावधानीकरण प्रावधानीकरण अपेक्षा के 20 आधार अंक की न्यूनतम सीमा के अधीन संगणित की जानी चाहिए। नई संस्थाओं के लिए भी, इसी ढांचे को लागू किया जाए। 5. विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (अर्थात् भारत के बाहर निगमित बहुराष्ट्रीय कंपनियां) के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की गणना करते समय समूह के भीतर विदेशी मुद्रा एक्सपोजर अर्थात् भारत में स्थित विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी की किसी सहायक कंपनी ने अपनी मूल कंपनी से उधार लिया हो) उस दशा में अलग रखा जा सकता है, यदि बैंक इससे संतुष्ट हो कि ऐसे विदेशी मुद्रा एक्सपोजर समुचित ढंग से हेज किये गये हैं अथवा मूल कंपनी द्वारा सुदृढ़ ढंग से इनका प्रबंध किया जाता है। 6. ये दिशानिर्देश विदेशी मुद्रा एक्सपोजर के प्रति घरेलू उधारकर्ताओं की दुर्बलता को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं। तथापि, विदेशी शाखाओं और विदेशी सहायक कंपनियों के एक्सपोजर के लिए मुद्रा प्रेरित ऋण जोखिम पर भी विचार किया जा सकता है। बैंक की विदेशी शाखाओं और विदेशी सहायक कंपनियों के एक्सपोजर के मामले में इन दिशानिर्देशों को परिचालन में लाने के लिए भारतीय मुद्रा के स्थान पर उस क्षेत्राधिकार की घरेलू मुद्रा प्रयुक्त होनी चाहिए। 7. बैंक यह सुनिश्चित करें कि ऋण जोखिम के प्रबंधन के लिए उनकी नीतियों और प्रक्रियाओं में मुद्रा प्रेरित ऋण जोखिमों के प्रति उनके एक्सपोजर को ध्यान में रखा गया है और उन उधारकर्ताओं को ध्यान में रखते हुए मापदंड बनाया गया है जिनकी भुगतान करने की क्षमता विनिमय दर और अन्य बाजार परिवर्ती राशियों में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होती है। इन मापदंडों में इन एक्सपोजरों की आंतरिक सीमा का निर्धारण शामिल हो सकता है, जो समग्र जोखिम ग्रहण क्षमता पर विचार करते हुए निर्धारित की जा सकती है। जहां ऐसे एक्सपोजर अधिक हों, वहां जुड़े जोखिम को कम करने के लिए बैंकों के पास उपलब्ध विकल्प में इन एक्सपोजर को कम करना, विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की हेजिंग करके अपने मुद्रा असंतुलन को कम करने के लिए उधारकर्ताओं को प्रेरित करना, उच्चतर प्रावधानीकरण करना और पूंजी रखना, इत्यादि शामिल हैं। बैंक यह भी सुनिश्चित करें कि अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का जोखिम उनकी आंतरिक क्रेडिट रेटिंग प्रणाली में प्रभावी ढंग से सम्मिलित है और यह सुनिश्चित करें कि उनकी ऋण मूल्य निर्धारण नीतियों से समग्र ऋण जोखिम समुचित रूप में प्रकट होता है। इन अपेक्षाओं का कार्यान्वयन उधारकर्ताओं से नियमित आधार पर पर्याप्त और विश्वसनीय आंकड़े प्राप्त करने वाले सुदृढ़ एमआईएस पर निर्भर होगा। 8. बैंक सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा प्रमाणित वित्तीय विवरण के भाग के रूप में मुद्रा प्रेरित ऋण जोखिम के प्रबंधन के लिए अपनी नीतियों को प्रकट करें। साथ ही बैंक इस जोखिम के लिए अपने पास रखे वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी का भी खुलासा करें। 9. मुद्रा प्रेरित ऋण जोखिम का परिमाणन बैंकों के आंतरिक पूंजी पर्याप्तता मूल्यांकन कार्यक्रम (आईसीएएपी) का एक भाग होगा और बैंकों से अपेक्षित है कि वे परिपूर्ण रूप से इस जोखिम का समाधान करें। आईसीएएपी में बैंक के समक्ष मौजूद मुद्रा प्रेरित ऋण जोखिम के स्तर और साथ ही ऐसे एक्सपोजर के संकेंद्रण का आकलन होना चाहिए। बैंक आईसीएएपी के अंतर्गत विभिन्न आत्यंतिक परंतु संभव विनिमय दर परिदृश्यों के अधीन दबाव परीक्षण भी करें। आईसीएएपी के परिणाम से बैंक जोखिम में कमी, अधिक पूंजी अथवा प्रावधान करने आदि जैसे समुचित ऋण प्रबंध कार्रवाई करने के लिए बाध्य हो सकते हैं। पिलर 2 के अंतर्गत पर्यवेक्षी समीक्षा और मूल्यांकन प्रक्रिया (एसआरईसी) के भाग के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकों द्वारा उठाए गए जोखिम प्रबंधन संबंधी उपाय और मुद्रा प्रेरित ऋण जोखिम के प्रबंधन में इसकी पर्याप्तता की समीक्षा कर सकता है, विशेष रूप से उस स्थिति में जब ऐसे जोखिम के प्रति उच्चतर एक्सपोजर का आकलन किया गया हो। 10. यह प्रणाली 1 अप्रैल 2014 से लागू की जाए। भवदीय, (प्रकाश चंद्र साहू) मौद्रिक नीति विवरण, 2013 – 14 की दूसरी तिमाही समीक्षा का उद्धरण 22. कंपनियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र चिंता का विषय हें क्योंकि वे संबंधित कंपनी और समूची वित्तीय व्यवस्था के लिए भी खतरा हैं। उद्योग के सहभागियों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर, प्रस्ताव है कि:
1 इस परिपत्र के उद्देश्य से संस्थाओं का तात्पर्य ऐसी संस्थाओं से है जिन्होंने भारतीय रुपये तथा अन्य मुद्राओं में उधार लेने के साथ-साथ बैंकों से उधार लिया हो। 2बैंक विगत दस वर्षों की अवधि के दौरान निम्नलिखित तरीके से वृहद वार्षिक अस्थिरता की गणना कर सकते हैं: प्रथम, अमेरिकी डालर – भारतीय रुपये में होने वाले दैनिक परिवर्तन की गणना कल की दर पर आज की दर के लॉग वापसी के रूप में की जा सकती है। द्वितीय, दैनिक अस्थिरता की गणना एक वर्ष की अवधि के दौरान इन वापसी के मानक विचलन के रूप में की जा सकती है (250 टिप्पणियां) । तृतीय, यह दैनिक अस्थिरता को 250 के वर्ग मूल से गुणा कर करे। इसका वार्षिक मूल्य निकाला जा सकता है। यह गणना विगत दस वर्षों में सभी दिनों के लिए दैनिक आधार पर की जा सकती है। गणना के माध्यम से इस प्रकार यनिकाली गई वृहद वार्षिक अस्थिरता का प्रयोग अरक्षित विदेशी मुद्रा विनिमय से इसका गुणा करके संभावित घाटे की गणना के लिए होना चाहिए। 3डीएससीआर की गणना के लिए यथापरिभाषित ईबीआईडी = कर के बाद लाभ + मुद्रास्फीति + ऋण पर ब्याज + पट्टा किराया, यदि कोई हो। 4इस श्रेणीमें अमेरिकी डालर – भारतीय रुपये की दर में अस्थिरता के कारण उच्च अरक्षित एक्सपोजर के कारण चूक होने की प्रबल संभावना है। यदि खाता अनर्जक हो जाता है तो बैंक को तदनुसार प्रावधान करने पड़ते हैं। |