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मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा – कंपनियों के अरक्षित (अनहेज्‍़ड) विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर

आरबीआई/2012-13/302
बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 61/21.04.103/2012-13

21 नवंबर 2012
30 कार्तिक 1934 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्‍य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा –
कंपनियों के अरक्षित (अनहेज्‍़ड) विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर

कृपया दिनांक 30 अक्‍तूबर 2012 को घोषित मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा के ‘अरक्षित (अनहेज्‍़ड) विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर की निगरानी’ पर पैरा 95 तथा 96 (उद्धरण संलग्‍न) देखें।

2. कंपनियों के अरक्षित (अनहेज्‍़ड) विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर पर दिनांक 27 अक्‍तूबर 2001 के हमारे परिपत्र सं. बैंपविवि. बीपी. बीसी. 37/21.04.048/2001-2002 द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि वे उपयुक्त रिपोर्टिंग प्रणाली के माध्‍यम से मासिक आधार पर, उन कंपनियों के विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजरों के अरक्षित हिस्‍सों की निगरानी तथा समीक्षा करें जिनका कुल विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर तुलनात्‍मक रूप से अधिक (उदाहरण के लिए, 25 मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक या उसके समतुल्‍य राशि) है। इसी क्रम में उक्‍त विषय पर दिनांक 5 दिसंबर 2004 के हमारे परिपत्र सं. बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 51/21.04.103/2003-04 द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि वे 10 मिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के विदेशी मुद्रा ऋण (या ऐसी न्यूनतर सीमाएं जो बैंक के ऐसे एक्‍सपोजरों के पोर्टफोलियो को देखते हुए उचित मानी जाएं) केवल विदेशी मुद्रा ऋणों की हेजिंग के संबंध में उनके बोर्डों द्वारा सुस्‍थापित नीति के आधार पर ही प्रदान करें।

3. उक्‍त अनुदेशों को ग्राहकों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर – बैंकों द्वारा निगरानी पर दिनांक 10 दिसंबर 2008 के हमारे परिपत्र सं. बैंपविवि. बीपी. बीसी. 96/21.04.103/2008-09 द्वारा दुहराया गया था और बैंकों को सूचित किया गया था कि लघु तथा मध्‍यम उद्योगों (एसएमई) सहित सभी ग्राहकों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर उनके बोर्ड की नीति के दायरे में आने चाहिए। बैंकों को यह भी सूचित किया गया था कि ग्राहकों के समग्र अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजरों की गणना करने के लिए, विदेशी मुद्रा उधारों तथा बाह्य वाणिज्यिक उधारों सहित सभी स्रोतों से उनके एक्‍सपोजरों को गणना में शामिल करना चाहिए तथा सहायता संघीय व्‍यवस्था/बहु बैंकिंग व्‍यवस्‍था के मामले में ग्राहकों के उपर्युक्त अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजरों की निगरानी करने में उस सहायता संघ के अग्रणी/सर्वाधिक एक्सपोज़र वाले बैंक को प्रमुख भूमिका निभानी होगी।

4. दिनांक 2 फरवरी 2012 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 76/21.04.103/2011-12 द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि कंपनियों को सर्वाधिक एक्‍सपोज़र वाली निधि आधारित और गैर-निधि आधारित ऋण सुविधाएं प्रदान करते समय बैंकों को कंपनियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजरों से होने वाले जोखिमों का कड़ाई से मूल्‍यांकन करना चाहिए तथा ऋण जोखिम प्रीमियम में उसका मूल्‍य निर्धारण करना चाहिए। बैंक बोर्ड द्वारा मंजूर की गई नीति के आधार पर कंपनियों की अरक्षित पोजीशन की सीमा तय करने पर भी विचार कर सकते हैं।

5. बार-बार इन अनुदेशों के जारी करने के बावजूद, यह देखा गया है कि अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर जोखिमों का कड़ाई से मूल्‍यांकन नहीं किया जा रहा है तथा ऋण के मूल्‍य निर्धारण में एन्हें शामिल नहीं किया जा रहा है। यह जोर दिया जाता है कि कंपनियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर, संबंधित कंपनी के साथ-साथ वित्‍तपोषक बैंक तथा वित्‍तीय प्रणाली के लिए जोखिम के स्रोत हैं। इसके अतिरिक्‍त यह पाया गया है कि भारी अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजर के कारण कुछ खाते अनर्जक बन गये हैं। अतः बैंकों को सूचित किया जाता है कि फरवरी 2012 के दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों को चाहिए कि वे कंपनियों के अरक्षित विदेशी मुद्रा एक्‍सपोजरों से होने वाले जोखिमों का कड़ाई से मूल्‍यांकन करने तथा ऋण जोखिम प्रीमियम में उनका  मूल्‍य निर्धारण करने के लिए उचित प्रणाली स्‍थापित करें। बैंक बोर्ड द्वारा मंजूर की गई नीति के आधार पर कंपनियों के अरक्षित पोजीशन की सीमा तय करने पर भी विचार कर सकते हैं।

6. बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे दिसंबर 2012 अंत तक इस विषय पर हमारे पास अनुपालन/की गई कार्रवाई रिपोर्टें अपने निदेशक मंडल से अनुमोदन प्राप्‍त करने के बाद प्रस्‍तुत करें। उक्‍त रिपोर्टों की एक प्रति प्रभारी मुख्‍य महाप्रबंधक, बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, विश्‍व व्‍यापार केंद्र, कफ परेड, मुंबई को भी प्रेषित की जाए।

भवदीय

(राजेश वर्मा)
मुख्‍य महाप्रबंधक

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