मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा
डॉ. डी. सुब्बाराव भूमिका पिछली तिमाही से, दुनिया भर के नीति-निर्माता लगातार बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। दुनिया भर में जहाँ विकास की गति धीमी पड़ी है, वहीं सरकारों को वित्तीय समेकन और विकास को प्रोत्साहन के बीच संतुलन साधना पड़ा है जबकि साफ़ संकेत हैं कि ये दोनों उद्देश्य एक दूसरे के प्रति विरोध की मुद्रा में हैं। एक ओर जहाँ विकसित अर्थव्यवस्थाएं (एईज़) इन तनावों का सामना कर रही हैं और वैश्विक माँग कमज़ोर पड़ रही है, वहीं उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाएं (ईडीईज़) भी शिथिल पड़ रही हैं। 2. विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) में तिमाही के दौरान केंद्रीय बैंकों द्वारा डाली गई चलनिधि (लिक्विडिटी) से वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में कुछ स्थिरता आई है। पर ये उपाय उन सुदृढ़ संरचनात्मक समाधानों की जगह नहीं ले सकते जो विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) को सुधार की पटरी पर वापस ला सकें। इस समय, विकास के (रुकने/नीचे जाने) के ख़तरे बढ़ गए हैं और यह भी हो सकता है कि बढ़ी हुई चलनिधि के सकारात्मक प्रभावों पर ये हावी हो जाएं। इसके अलावा, हाल में कुछ हल्की कमी के बावजूद, वस्तुओं की कीमतें ऊँचाई पर हैं, चलनिधि के चलते कीमतों में होने वाली वृद्धि के खतरे महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। एक ओर जहाँ यह प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, आगामी महीनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अनिश्चितता बढ़ जाएगी। 3. इस वैश्विक मंदी व अनिश्चितता के बीच, रुके हुए निवेश, कमज़ोर पड़ते खपत व घटते निर्यात के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त बनी हुई है। तथापि, चारों ओर छाई हुई यह नकारात्मकता सरकार द्वारा हाल में नीतिगत स्तर पर की गई पहल से कुछ हद तक छँटी है। उम्मीद है कि घोषित उपाय जैसे-जैसे लागू होंगे तथा आगे और सुधारों की शुरुआत होगी, वैसे-वैसे निवेश का माहौल बेहतर होता जाएगा। 4. विकास में आई मंदी के बीच, मुद्रास्फ़ीति का कायम रहना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। विश्व स्तर पर इस रुझान के मामले में भारत एक अपवाद है जो कि घरेलू संरचनात्मक कारकों की भूमिका को रेखांकित करता है। विशेष चिंता की बात है, मूल (कोर) मुद्रास्फ़ीति का अड़ियल रवैया जिसके मुख्य कारण हैं आपूर्ति संबंधी बाधाएं और रुपए के मूल्य-ह्रास के चलते लागत पर पड़ने वाला दबाव। अत:, मौद्रिक नीति का प्राथमिक ध्यान मुद्रास्फ़ीति एवं मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को संचालित करने पर होना चाहिए। मौद्रिक नीति का एक केंद्रीय आधार यह है कि कम /निम्न और स्थिर मुद्रास्फ़ीति तथा सुस्थिर मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाएं निवेश के लिए सहायक परिवेश बनाने और उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ाने में सहायक होती है जो कि मध्यावधि में उच्चतर विकास को बनाए रखने की कुंजी है। 5. तदनुसार, विगत कुछ तिमाहियों से, मौद्रिक नीति को मुद्रास्फ़ीति पर फोकस करना पड़ा, जबकि विकास के (रुकने/नीचे जाने) खतरे बढ़ गए हैं। नीतिगत स्तर पर हाल में सरकार की ओर से की गई पहलकदमियों के परिणाम जब गतिविधियों में तेजी के रूप में सामने आने लगेंगे तो विकास को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीति को इन नीतियों के साथ तालमेल में काम करने का अवसर मिलेगा। तथापि, यह महत्त्वपूर्ण है कि ऐसा करने में मुद्रास्फ़ीति एवं मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को संचालित करने के प्राथमिक उद्देश्य को आँखों से ओझल न होने दिया जाए। 6. यह नीति समीक्षा उपर्युक्त वैश्विक व घरेलू सरोकारों के परिप्रेक्ष्य में तैयार की गई है। इसे रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए । 7. यह वक्तव्य दो भागों में है। भाग ए मौद्रिक नीति को कवर करता है और इसे चार खंडों में बांटा गया है: खंड I में वैश्विक एवं घरेलू समष्टि आर्थिक गतिविधियों का एक खाका दिया गया है; खंड II में घरेलू विकास, मुद्रास्फ़ीति और कुल मौद्रिक राशियों संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; खंड III मौद्रिक नीति के रुख़ को स्पष्ट करता है तथा खंड IV मौद्रिक व चलनिधि उपायों को बताता है। भाग बी में विकासात्मक एवं विनियामक नीतियां दी गई हैं और इसे छह खंडों में बांटा गया है: ब्याज दर नीति (खंड I); वित्तीय बाज़ार (खंड II); वित्तीय स्थिरता (खंड III); ऋण वितरण और वित्तीय समावेश (खंड IV), वाणिज्य बैंकों के लिए विनियामक एवं पर्यवेक्षी उपाय (खंड V), तथा संस्थागत गतिविधियां (खंड VI)। वैश्विक अर्थव्यवस्था 8. 2012 की तीसरी तिमाही में विश्व के कुछ हिस्सों में विकास में मामूली वृद्धि के बावजूद, वैश्विक अर्थव्यवस्था सुस्त बनी हुई है। अमेरिका में तीसरी तिमाही में, पिछली तिमाही की तुलना में वृद्धि कुछ तेज़ हुई। यूके में लगातार तीन तिमाहियों में घटने के बाद, तीसरी तिमाही में विकास सकारात्मक रहा। यूरो क्षेत्र में दूसरी तिमाही में उत्पादन में गिरावट देखी गई और मंदी की प्रतिरोधी हवाएं तीसरी तिमाही में भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं। जापान में विकास में महत्त्वपूर्ण कमी आई। सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में दीर्घावधि औसत की तुलना में हाल में बेरोजगारी की दर उच्च रही, जबकि यूएस में चार वर्षों में पहली बार सितंबर में बेरोजगारी दर घटकर 8 प्रतिशत के नीचे गई। जहाँ तक ब्रिक्स देशों – ब्राज़िल, रूस, चीन, और दक्षिण अफ्रिका - का सवाल है, 2012 की पहली छमाही में वे भी धीमे पड़े हैं तथा चीन में तो तीसरी तिमाही में और कमी आई है। तीसरी तिमाही में वैश्विक संमिश्र पीएमआई के औसत स्तर में पिछली तिमाही में दर्ज तीन वर्ष के सबसे निम्न स्तर की तुलना में लगभग कोई बदलाव नहीं आया जो कि उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य को और पुख़्ता कर रहा है। 9. सितंबर में, अमेरिकी फ़ेड, यूरोपीयन सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ़ जापान की ओर से की गई मात्रात्मक सुलभता संबंधी उपायों की घोषणा का बाज़ारों ने स्वागत किया जिसका प्रमाण जोखिम वाले एसेट्स की कीमतों और कीमत-लागत अंतर के कम होने में देखा गया। आईएमएफ के अक्टूबर 2012 के वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल के बाद से वित्तीय स्थिरता के प्रति खतरे बढ़ गए हैं क्योंकि केंद्रीय बैंकों की ओर से पहले से अधिक मौद्रिक निभाव (मोनिटरी एकोमोडेशन) के बावजूद वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में विश्वास अभी भी भुरभुरा ही है। घरेलू अर्थव्यवस्था 10. वृद्धि की गति में कमी जो 2011-12 में शुरू हुई वह 2012-13 तक बनी रही हालांकि पहली तिमाही में मंदी की गति कुछ कम हुई। फिर भी, विकास ट्रेंड से नीचे रहा और निवेश गतिविधि में लगातार कमी से परिदृश्य पर प्रतिकूल असर पड़ा । 11. 2010-11 की चौथी तिमाही में वर्ष-दर-वर्ष 9.2 प्रतिशत से चार लगातार तिमाहियों में कम होकर जीडीपी का विकास 2011-12 की चौथी तिमाही में 5.3 प्रतिशत पर आ गया और इसके बाद, 2012-13 की पहली तिमाही में जीडीपी-विकास में मामूली वृद्धि हुई और यह 5.5 प्रतिशत पर पहुँचा। 2012-13 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि में थोड़ी सी बढ़ोतरी हुई जो मुख्यत: निर्माण कार्य में वृद्धि और कृषि में उम्मीद से बेहतर वृद्धि के कारण हुई । 12. खर्च की ओर जाएं तो सकल (ग्रॉस) स्थिर पूंजी निर्माण का विकास 2011-12 की पहली तिमाही के 14.7 प्रतिशत से घटकर 2012-13 की पहली तिमाही में 0.7 प्रतिशत हो गया। निजी खपत व्यय की वृद्धि में 2011-12 की चौथी तिमाही के दौरान देखी गई कमी 2012-13 की पहली तिमाही में जारी रही। बाहरी मांग स्थितियां और कच्चे तेल के मूल्य भी प्रतिकूल बने रहे, जिसके फलस्वरूप कुल निर्यात पर बुरा प्रभाव पड़ा । 13. दो महीने लगातार कम होने के पश्चात, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआइपी) ने अगस्त में 2.7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की । खनन और उत्पादन क्षेत्रों में उछाल दिखाई दिया । तथापि, औद्योगिक गतिविधि अप्रैल-अगस्त अवधि के दौरान, पिछले साल की तत्संबंधी अवधि के 5.6 प्रतिशत के मुकाबले, 0.4 प्रतिशत के फीके स्तर पर थी। सबसे महत्वपूर्ण यह कि, पूंजीगत माल उत्पादन, निवेश मांग में आई कमी के कारण अप्रैल-अगस्त के दौरान 13.8 प्रतिशत घट गया। 14. सितंबर में मौसमी तौर पर समायोजित विनिर्माण पीएमआई अपने अगस्त स्तर की तुलना में अपरिवर्तित रही, परंतु अपने जून के लेवल से नीचे थी। मौसमी तौर पर समायोजित, हेडलाइन सर्विसेस बिजनेस एक्टिविटी इंडेक्स, अगस्त की तुलना में सितंबर में मामूली सा उंचाई पर था । 15. इस मौसम में शुरूआती आंशकाओं के बावजूद दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान वर्षा में कमी दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 8 प्रतिशत थी । तथापि, समय व स्थान की दृष्टि से इस वर्ष असमान मानसून का प्रतिकूल प्रभाव खरीफ़ पर पड़ने की संभावना है। प्रथम अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2012-13 में 117.2 मिलियन टन (एमटी )का उत्पादन पिछले वर्ष के रिकार्ड उत्पादन से 9.8 प्रतिशत कम होगा । 16. रिज़र्व बैंक की आदेश बही (ऑर्डर बुक), माल (इन्वेंटरी) और क्षमता उपयोग (कैपेसिटी यूटिलाईजेशन) सर्वेक्षण (ओबीआईसीयूएस), के अनुसार 2012-13 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की क्षमता उपयोगिता (कैपेसिटी यूटिलाईजेशन) पिछली तिमाही और एक साल की तुलना में कम हुई है । दूसरी तिमाही के लिए, कारोबारी विश्वास (बिजनेस कांफिडेंस) जिसे रिज़र्व बैंक के औद्योगिक परिदृश्य (इंडस्ट्रियल आउटलुक आउटलुक) सर्वेक्षण (आईओएस) के व्यापार प्रत्याशा सूचकांक (बिजनेस एक्सपेटेशन इंडेक्स) से मापा गया है, पिछली तिमाही से नीचे गिरा है । 17. 2012-13 की पहली छमाही में हेडलाइन डब्लयूपीआई मुद्रास्फ़ीति वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 7.5 प्रतिशत से अधिक पर अड़ी रही। आगे, सितंबर में हेडलाइन मुद्रास्फ़ीति की गति में बढ़ोतरी थी,जो ईंधन की कीमतों और खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स) की कीमतों के स्तर में बढ़ोतरी के कारण हुई थी । इसका आंशिक कारण पहले की कम कीमतों के रूप में दबी हुई मुद्रास्फ़ीति के सुधरने से हो सकती है, परंतु इसके बाद भी गति में मजबूती कायम है । 18. जुलाई से डब्लयूपीआई प्राथमिक खाद्य सामग्री की वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फ़ीति सब्जियों के मूल्यों में कमी के चलते कुछ कम हुई परंतु, खाद्यानों और प्रोटीन आधारित वस्तुओं जैसे दाल, अंडे, मछली और मांस की कीमतें बढ़ गईं। डब्लयूपीआई प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फ़ीति सितंबर में मुख्यत: शक्कर, खाद्य तेलों और पिसा हुआ अनाज (ग्रेन मिल) उत्पादों के भाव में मज़बूती आने से बढ़ गई । 19. ईंधन समूह की मुद्रास्फ़ीति सितंबर में महत्वपूर्ण रूप से बढ़ी,जिसका प्राथमिक कारण बिजली की कीमतों में जून से लागू तेज़ बढ़ोतरी, सितंबर मध्य में डीजल की कीमतों में वृद्धि का आंशिक प्रभाव और वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने के कारण नियंत्रण मुक्त ईंधन की कीमतों के महत्वपूर्ण रूप से बढ़ने से डब्लयूपीआई पर पड़ने वाला प्रभाव था । 20. जुलाई-सितंबर के दौरान खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति लगातार 5.6 प्रतिशत पर बनी रही और इसका दबाव ऊपर बना रहा जिसका कारण था धातु उत्पादों,और अन्य निवेश वस्तुओं (इनपुट्स) और मध्यवर्ती वस्तुओं की कीमतों में मजबूती,विशेषत:आयात प्रधान वस्तुओं की कीमतें क्योंकि रुपए का मूल्यह्रास हुआ। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (मौसमी रूप से समायोजित- 3 माह के गतिशील औसत वार्षिक मुद्रास्फ़ीति दर) का गति संकेतक (मूमेंटम इंडिकेटर) भी ऊँचाई पर रहा । 21. नयी संयुक्त (ग्रामीण और शहरी) सीपीआई (बेस: 2010=100) मुद्रास्फ़ीति उंचाई पर बनी रही, जो खाद्य मूल्य दबाव के बढ़ने को दर्शाती है। खाद्य और ईंधन समूहों को छोड़कर देखें तो सीपीआई मुद्रास्फ़ीति जून-सितंबर के दौरान पहले के दोहरे अंक से कुछ नीचे आई । औद्योगिक कामगारों के लिए सीपीआई पर आधारित मुद्रास्फ़ीति में प्रधानत: उच्च खाद्य मुद्रास्फ़ीति के कारण उछाल आया । ग्रामीण मजदूरी की वर्ष-दर-वर्ष बढ़ोतरी भले कुछ कम दिखाई दी, पर ऊँचाई पर बनी हुई है । 22. पिछले दो वर्षों से मुद्रास्फ़ीति के उच्च स्तर में आई कुछ नरमी के कारण, 2012-13 की दूसरी छमाही में शहरी परिवारों/इकाइयों (अर्बन हाउसहोल्ड) की मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाओं में भी मामूली गिरावट दिखाई दी, अलबत्ता यह दुहरे अंको में बनी हुई है । 23. रिजर्व बैंक का तिमाही आवास मूल्य सूचकांक (हाउस प्राइस इंडेक्स) बताता है कि आवास ऋण मुद्रास्फ़ीति (हाउस प्राइस) 2012-13 की पहली तिमाही में स्थिर रही। मकानों की कीमतों के बढ़ने के बावजूद हाउसिंग लेनदेनों की मात्रा पिछली तिमाही की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष अधिक तेजी से बढ़ी । 24. 2,308 गैर-सरकारी गैर-वित्तीय कंपनियों के एक कॉमन सेंपल पर 2012-13 की पहली तिमाही में कंपनी प्रदर्शन का विश्लेषण दर्शाता है कि वर्ष-दर-वर्ष बिक्री वृद्धि पिछली तीन तिमाही से क्रमिक रूप से घटी, पर मुद्रास्फ़ीति के लिए समायोजित करने के बाद सकारात्मक बनी रही। तथापि, बिक्री से संबंधित व्यय में अधिक बढ़ोतरी होने के कारण, आमदनी तेजी से सिकुड़ गई जो मूल्य निर्धारण शक्ति की कमी को दिखा रहा है । 2012-13 की दूसरी तिमाही के प्रारंभिक परिणाम से संकेत मिलता है कि बिक्री-वृद्धि व आय में गिरावट अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच रहे हैं। 25. 5 अक्तूबर 2012 को मुद्रा आपूर्ति (एम3) वर्ष-दर-वर्ष घटकर 13.3 पर आ गई, जो कि मौद्रिक नीति वक्तव्य 2012-13 में बताए गए 15 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से कम थी। इससे मूलत: समग्र जमाराशियों की वृद्धि में कमी दिखाई दी । 15.4 प्रतिशत की वर्ष-दर-वर्ष खाद्येतर ऋण वृद्धि 17 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से कम थी, जो वृद्धि की गति में कमी का संकेत है । अलग-अलग आँकड़े बताते हैं कि कृषि के अलावा, सभी मुख्य क्षेत्रों में, विशेषत: बुनियादी संरचना क्षेत्र (इनफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर), में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर ऋण-वृद्धि में गिरावट आई । 26. बैंकों, गैर-बैंकों और वाणिज्यिक क्षेत्र के बाहरी स्त्रोतों से वित्तीय संसाधनों का अनुमानित कुल प्रवाह 2012-13 (5 अक्तूबर 2012 तक) में रु.4,700 बिलियन के करीब है जो पिछले वर्ष की अपनी तत्संबंधी अवधि के दौरान दर्ज रु.5,000 बिलियन से कम था। बैंकों से संसाधनों के प्रवाह में कमी के अलावा, बाह्य वाणिज्यिक उधारियों (ईसीबी) और भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) में कमी से बाहरी संसाधनों के प्रवाह में गिरावट आई । 27. अप्रैल में पॉलिसी रिपो रेट और सितंबर में आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में कटौती के बाद, कई वाणिज्यक बैंकों ने अपनी जमा और उधार दरों में कमी की है। 2012-13 की पहली छमाही में, अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों के मोडल जमा दरों में सभी परिपक्वताओं में 13 आधार अंकों की कमी आई और बैंकों के मोडल बेस रेट में भी 25 आधार अंकों की कमी आई । 28. एलएएफ के अंतर्गत औसत निवल उधारी के अनुसार जुलाई-सितंबर के दौरान रु. 486 बिलियन की चलनिधि की स्थिति एनडीटीएल के (+/-) एक प्रतिशत की सुविधाजनक दायरे (कम्फर्ट जोन) में रही । तथापि अक्तूबर में चलनिधि स्थितियों में तंगी आई, जिसका मुख्य कारण केंद्र के नकद भंडार का बढ़ना, एवं मुद्रा की मांग (करेंसी डिमांड) में मौसमी बढ़ोतरी थी और जिससे 15-23 अक्तूबर के बीच औसत एलएएफ उधारी रु.871 बिलियन पर जा पहुंची जो कि एनडीटीएल के (+/-) एक प्रतिशत के बैंड से काफी ऊपर है । 29. अप्रैल-अगस्त के दौरान, केंद्र का राजकोषीय घाटा एक पूरे वर्ष के लिए समग्र तौर पर अनुमानित बजट का दो-तिहाई था। राजस्व और गैर योजना व्यय के ऊभरते पैटर्न को देखते हुए, संभावना है कि 2012-13 का राजस्व घाटा (आरडी) और सकल राजकोषीय घाटा (जीएफडी) बजटित स्तर से ऊंचा रहेगा। 30. 2012-13 की दूसरी तिमाही में, सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक्यूरिटी) के प्रतिफल(यील्ड) में गिरावट आई और अक्तूबर में रेंज के भीतर रही। 2012-13 की दूसरी तिमाही में सेंटिमेंट के बेहतर होने के कारण और विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) प्रवाहों में बदलाव से इक्विटि बाजार में भी सुधार हुआ। 31. प्रतिकूल बाह्य परिवेश और विशेष तौर पर विश्व व्यापार में गिरावट का असर निर्यात पर पड़ा। सितंबर में निर्यात लगातार पाँचवे महीने नीचे गिरा। परंतु इसके साथ ही आयात में भी कमी आने के कारण, 2012-13 की पहली छमाही (एच1) में व्यापार घाटा लगभग उसी स्तर पर रहा जिस पर एक वर्ष पहले था। बाहरी वित्तपोषण (एक्सटर्नल फाइनैंसिंग) में, एफडीआई और ईसीबी से निवल प्रवाह गत वर्ष के पूर्वार्द्ध (फर्स्ट हाफ) से काफी कम रहा परंतु इस कमी की भरपाई काफी हद तक अनिवासी जमाराशियों में वृद्दि एवं दूसरी तिमाही में एफआईआई प्रवाहों में स्थिति के बदलने से हो गई। इन घटनाक्रमों के कारण यूएस डॉलर के मुकाबले रुपए की सांकेतिक विनिमय दर (नॉमिनल एक्सचेंज रेट) पहली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में अपेक्षाकृत तंग दायरे में रही। कुल मिलाकर, 2012-13 की पहली छमाही में, रुपए में सामान्य संदर्भ में (इन नॉमिनल टर्म्स) 7.8 प्रतिशत का मूल्यह्रास हुआ। वास्तविक सदर्भ में (इन रियल टर्म्स) इसमें 5.4 प्रतिशत की गिरावट आई। निवल निर्यात पर वास्तविक मूल्यह्रास के प्रभाव की भरपाई, माँग की वैश्विक स्थितियों द्वारा हो रही है। वैश्विक परिदृश्य विकास 32. विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) की मौद्रिक नीति के समर्थन के बावज़ूद वैश्विक विकास संभावनाएं और भी बदतर हुई हैं तथा विकास के नीचे जाने के खतरे बढ़े हैं। यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण के दबाव को कम करने, विकास में सहयोगी संरचनात्मक सुधारों का राजकोषीय समेकन के साथ संतुलन लाने, क्षेत्र स्तर पर, विशेषत: बैंकिंग व वित्तीय दायरों में, एकीकरण को आगे बढ़ाने के लिए ठोस नीतिगत कार्रवाइयों पर काफ़ी कुछ निर्भर करता है। अमेरिका में, आपात् राजकोषीय कार्रवाई (फ़िस्कल क्लिफ़) से और अधिकतम ऋण की समयसीमा से एक बार फिर जद्दोजेहद से बचने के लिए एक विश्वसनीय मध्यावधि राजकोषीय समेकन रणनीति पर सहमत होने का दृढ़ राजनैतिक संकल्प बड़ा आवश्यक है। इन प्रयासों के न होने पर, विसकित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) का परिदृश्य निराशाजनक लगता है जिसमें मंदी के लंबे समय तक बने रहने के ख़तरे पहले से अधिक वास्तविक होंगे। विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) में ऐसे परिणामों के चलते उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) की संभावनाओं के नीचे चले जाने का ख़तरा गंभीर है, बावजूद इसके कि उनके मूलभूत पक्ष मज़बूत हैं और वित्तीय तनाव नही हैं। 33. अक्टूबर 2012 के अपने वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) में आईएमएफ़ ने 2012 में विश्व जीडीपी विकास के संबंध में जुलाई के 3.5 प्रतिशत के अपने पूर्वानुमान को घटाकर 3.3 प्रतिशत कर दिया, और 2013 के संबंध में 3.9 प्रतिशत के अपने पिछले पूर्वानुमान को 3.6 प्रतिशत कर दिया। 2012 में वैश्विक विकास के संबंध में आईएमएफ सितंबर 2011 से ही अपना अनुमान घटाता आ रहा है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनुमान से अधिक और लगातार बनी कमज़ोरी का प्रमाण है। मुद्रास्फ़ीति 34. आईएमएफ (डब्ल्यूईओ, अक्टूबर 2012) के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फ़ीति के विकसित अर्थव्यस्थाओं (एईज़) में 2012 के 1.9 प्रतिशत से गिरकर 2013 में 1.6 प्रतिशत पर और उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में 6.1 प्रतिशत से घटकर 5.8 प्रतिशत पर आने की संभावना है। कमज़ोर पड़ती वैश्विक आर्थिक गतिविधि के कारण हेडलाइन और कोर मुद्रास्फ़ीति में नरमी आने की संभावना है। तथापि, इस परिदृश्य के लिए भी रिस्क हैं/ इस स्थिति में भी बदलाव आने की आशंका है क्योंकि वैश्विक पण्य विशेषत: कच्चे तेल की कीमतों में, केवल मामूली सुधार हुआ है। आगे, इसकी संभावना है कि प्रमुख विकसित अर्थव्यस्थाओं (एईज़) में मौद्रिक नीति में अपनाई जा रही निभाव की नीति आपूर्तिगत दबावों से मिलकर पण्य कीमतों को ऊँचा एवं अस्थिर रखें। घरेलू परिदृश्य वृद्धि 35.अप्रैल 2012 के अपने नीति वक्तव्य में रिज़र्व बैंक ने 2012-13 में जीडीपी विकास का अनुमान 7.3 प्रतिशत पर लगाया। जुलाई की पहली तिमाही समीक्षा (एफक्यूआर) में इसे घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया यह देखते हुए कि वैश्विक मंदी, कमज़ोर औद्योगिक गतिविधि और सर्विसेज़ की मंथर वृद्धि के चलते घरेलू विकास को होने वाला नुकसान घटित हो चुका था। बदतर होती वैश्विक समष्टि आर्थिक स्थितियों, घरेलू औद्योगिक कार्य-कलापों में ढलान एवं सर्विस सेक्टर की वृद्धि ट्रेंड से नीचे चले जाने के कारण सितंबर की मध्य-तिमाही समीक्षा आते-आते विकास के कम पड़ने के खतरे बढ़ चुके थे 36. इसके बाद से, वैश्विक ख़तरे और बढ़ गए हैं और देश में निवेश माँग के रुके होने, खपत व्यय में नरमी और लगातार छीजती निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के साथ कमज़ोर कारोबारी व उपभोक्ता विश्वास के कारण घरेलू रिस्क भी बढ़ गए हैं। यद्यपि अगस्त में औद्योगिक उत्पादन मामूली रूप से बढ़ा और सितंबर में सर्विसेज़ पीएमआई में हल्की वृद्धि दिखी, पर इसके बावज़ूद परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है। अगस्त और सितंबर महीनों में वर्षा में सुधार के बावजूद, 2012 के ख़रीफ़ उत्पादन के अग्रिम आकलन गत वर्ष की तुलना में कुछ कम खुशनुमा हैं। तदनुसार, कृषि की संभावनाएं प्रत्यास्थ (रेज़ीलिएंट) दिख तो रही हैं, परंतु समग्र तौर पर आर्थिक कार्य-कलापों का परिदृश्य ढंडा बना हुआ है। इन विचारों के आधार पर, वर्ष 2012-13 के लिए जीडीपी वृद्धि के आधार-स्तरीय अनुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) को संशोधित करते हुए घटाकर 5.8 प्रतिशत किया गया है (चार्ट 1)। मुद्रास्फ़ीति 37. आगे देखें तो, मुद्रास्फ़ीति का रास्ता दो परस्पर विरोधी शक्तियों के समूह तय करेंगे। नीचे की ओर, धीमा विकास और कुछ क्षेत्रों में अतिरिक्त क्षमता से कोर मुद्रास्फ़ीति को कम होने में मदद मिलेगी। स्थिर, या सबसे अच्छा यदि हुआ, गिरती पण्य कीमतें इस प्रवृत्ति को दृढ़तर करेंगी। आयातों, विशेषत: पण्यों के आयात के रुपया लागत को कम करके मूल्य में बढ़ता रुपया भी मुद्रास्फ़ीतीय दबाव को कम करने में हाथ बँटाएगा। करेगा। ऊपर की ओर, डिमांड के बढ़ने पर लगातार बने हुए आपूर्ति अवरोध बढ़ेंगे जिससे मूल्यों पर दबाव बढ़ेगा। वैश्विक वित्तीय अस्थिरता से रुपए का मूल्यह्रास होगा जो कि आयातित मुद्रास्फ़ीति को बढ़ा देगा। मुद्रास्फ़ीति का एक महत्त्वपूर्ण कारक ग्रामीण और शहरी पारिश्रमिकों में होने वाली बढ़ोतरी है जिससे लागत का दबाव बढ़ रहा है। अंतत:, जिन उत्पादों का मूल्य कम (अंडरप्राइसिंग) करके रखा गया था, उनका मूल्य राजकोषीय समेकन प्रक्रिया (फ़िस्कल कोन्सोलिडेशन प्रोसेस) के तहत जब सुधारा जाता है तो दबी हुई मुद्रास्फ़ीति खुले में आ जाती है। यह कदम आवश्यक तो है ही, परंतु इसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फ़ीति की रीडिंग ऊपर जाती है। 38. उपर्युक्त कारकों को ध्यान में रखते हुए, मार्च 2013 के हेडलाइन मुद्रास्फ़ीति (इनफ्लेशन) के आधारभूत अनुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) को जुलाई में उल्लिखित 7.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.5 प्रतिशत किया जा रहा है। (चार्ट 2). महत्त्वपूर्ण यह है कि, इससे पहले कि चौथी तिमाही में यह कम होने लगे, तीसरी तिमाही में यह कुछ बढ़ेगा। 39. यद्यपि पिछले दो वर्षों में मुद्रास्फ़ीति लगातार अधिक रही है, यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि डब्ल्यूपीआई और सीपीआई दोनों दृष्टियों से 2000 के दशक में इसका औसत 5.5 प्रतिशत रहा है जो कि अपने पहले के ट्रेंड रेट 7.5 प्रतिशत से कम है। इस रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति का संचालन मुद्रास्फ़ीति की अवधारणा को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में बनाए रखने व नियंत्रित करने का होगा। यह विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण के अनुरूप 3.0 प्रतिशत मुद्रास्फ़ीति के मध्यावधि लक्ष्य के अनुसार है। कुल मौद्रिक राशियां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स) 40. मुद्रा आपूर्ति (एम3), जमाराशि और ऋण वृद्धि अब तक अप्रैल पॉलिसी में उल्लिखित और जुलाई समीक्षा में दुहराए गए रिज़र्व बैंक के सांकेतिक अनुमानों से पीछे चल रहे हैं। ब्याज दरों में कमी के साथ जमाराशि वृद्धि घटी है, विशेषकर सावधि जमा (टर्म डिपॉजिट्स) के मामले में। निवेश माँग में सुस्ती, विशेष तौर पर बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में और सामान्य तौर पर उद्योग द्वारा पहले से कम ऋण पचाए जाने के कारण ऋण वृद्धि घटी है। वर्ष के दौरान अब तक के घटनाक्रम और वर्षांत में सामान्यतया आने वाली उछाल को देखते हुए, 2012-13 की मौद्रिक कुल राशियों (मॉनिटरी एग्रीगेट्स) के भावी पथ में एम3 के लिए 14.0 प्रतिशत, जमाराशि वृद्धि के लिए 15.0 प्रतिशत और खाद्येतर ऋण वृद्धि के लिए 16.0 प्रतिशत का अनुमान किया गया है। हमेशा की तरह ये आंकड़े सांकेतिक पूर्वानुमान हैं, न कि लक्ष्य। 41. मध्य सितंबर से केंद्र सरकार के पास नकद के जमा होने और त्यौहारों में मांग में वृद्धि के कारण लिक्विडिटी के निकल जाने के साथ जमा राशि वृद्धि और ऋण वृद्धि के बीच के अवरोध (वेज) ने प्रणाली स्तर पर लिक्विडिटी में कमी को ऊँचा (डेफिसिट हाइ) बनाए रखा है। इसके निहितार्थ उत्पादक क्षेत्रों की ओर ऋण के प्रवाह के लिए और समग्र रूप से अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए प्रतिकूल हैं। जोखिम के कारक 42. 2012-13 की शेष अवधि के विकास और मुद्रास्फीति से संबंधित अनुमान कई तरह के जोखिमों पर निर्भर हैं जिन्हें नीचे बताया जा रहा है:
43. जनवरी 2010 - अक्टूबर 2011 की अवधि में, बढ़ती मुद्रास्फ़ीति को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक कसाव की शुरुआत की। इससे मुद्रास्फ़ीति को इसकी अप्रैल 2010 की 10.9 प्रतिशत की चोटी से कम करके जनवरी-अगस्त 2012 की अवधि में 7.5 प्रतिशत के औसत स्तर पर लाने में सहायता मिली। तथापि, इस अवधि में विकास धीमा पड़ गया और अभी औसत/ट्रेंड से नीचे चल रहा है। इस धीमेपन में मौद्रिक कसाव के साथ और भी कई कारकों का हाथ है। 44. अप्रैल 2012 से, मौद्रिक नीति रुख में विकास-मुद्रास्फ़ीति (के गत्यात्मक संबंध) को चरणबद्ध सुलभता के द्वारा संतुलित करने की कोशिश की गई है। इन कार्रवाइयों के अर्थव्यवस्था में संचरण हो रहा है और उम्मीद की जाती है कि इसके साथ हाल में घोषित राजकोषीय व अन्य उपायों के मिश्रित प्रभाव से अगले कुछ महीनों में विकास-ह्रास की गति को रोकने में मदद मिलेगी। जैसे-जैसे मुद्रास्फ़ीति और कम होगी, विकास के जोखिम को कम करने और अर्थव्यवस्था को टिकाऊ व उच्चतर विकास पथ पर ले जाने के लिए मौद्रिक नीति को राजकोषीय व अन्य कार्रवाइयों के साथ मिलकर काम करने का अवसर मिलेगा। 45. तथापि यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि सितंबर में मुद्रास्फ़ीति ने फिर से सर उठाया। कुछ हद तक इसमें आंशिक प्रभाव डीज़ल व बिजली कीमतों में संशोधन का रहा है। मुद्रास्फ़ीति में इन संशोधनों का जो भी योगदान रहा हो, पर ये एकदम जरूरी थे। इसके अलावा, खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स इनफ्लेशन) में झलके मुद्रास्फ़ीतीय दबाव स्वीकार्य सीमा से ऊपर अड़े हुए हैं। तदनुसार यह महत्त्वपूर्ण है कि, मौद्रिक नीति रुख़ जब विकास के जोखिमों को दूर करने की तरफ़ शिफ्ट हो तब भी, मुद्रास्फ़ीति को रोकने व मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को सुस्थिर करने के उद्देश्य पर ज़ोर कम न हो जाए। 46. इस पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति का रूख़ है कि:
47. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुझान के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है: आरक्षित नकदी निधि अनुपात 48. यह निर्णय लिया गया है कि:
49. सीरआरआर में इस कटौती से बैंकिंग सिस्टम में लगभग ₹175 बिलियन की प्राथमिक चलनिधि (प्राइमरी लिक्विडिटी) आएगी। रिपो रेट 50. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत (पॉलिसी) रिपो रेट को 8.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। रिवर्स रिपो रेट 51. एलएएफ़ के तहत रिवर्स रिपो रेट, जिसमें रिपो रेट से 100 आधार अंकों से कम का अंतर होता है, 7.0 प्रतिशत पर है । सीमांत (मार्जिनल) स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ रेट) 52. रेपो दर से 100 आधार अंकों के अधिक के अंतर पर निर्धारित की जाने वाली मार्जिनल स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ़ रेट) 9.0 प्रतिशत पर है। बैंक दर 53. बैंक दर 9.0 प्रतिशत पर है। मार्गदर्शन 54. सीआरआर में कटौती का उद्देश्य यह है कि चलनिधि (लिक्विडिटी) स्थितियों के तंग होने की संभावना से निबटने की तैयारी हो जिससे विकास की सहायता के लायक लिक्विडिटी के स्तर को बनाए रखा जाए। इसमें मुद्रास्फ़ीति के अनुमानित भावी मार्ग को ध्यान में रखा गया है जिसके अनुसार अंतिम तिमाही में घटने के पहले मुद्रास्फ़ीति में वृद्धि के संकेत हैं। एक ओर जहाँ, इस मार्ग के ख़तरे बने हुए हैं, वहीं आधारभूत परिदृश्य (बेसलाइन सिनेरियो) यह संकेत देता है कि 2012-13 की चौथी तिमाही में नीतिगत दरों में और कमी आएगी। तथापि उपर्युक्त मार्गदर्शन विकास-मुद्रास्फ़ीति के उभरते परिदृश्य के अनुसार निर्धारित होगा। प्रत्याशित परिणाम 55. ऐसी प्रत्याशा है कि इन मौद्रिक नीति कार्रवाइयों और वक्तव्य में दिए गए मार्गदर्शन से: i. चलनिधि स्थितियां इस लायक होंगी कि उत्पादक क्षेत्रों में ऋण वृद्धि (क्रेडिट ग्रोथ) की हालत सुधरे और विकास को सहायता मिले; ii. मुद्रास्फ़ीतीय जोखिमों के नरम पड़ने से विकास को बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा घोषित नीतिगत कार्रवाइयों को बल मिलेगा; और iii. कम व स्थिर मुद्रास्फ़ीति के प्रति विश्वसनीय प्रतिबद्धता के आधार पर मध्यावधि मुद्रास्फीतीय प्रत्याशाएं सुस्थिर होंगी। मौद्रिक नीति 2012-13 की मध्यवाधि समीक्षा 56. वर्ष 2012-13 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा मंगलवार 18 दिसंबर 2012 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी। मौद्रिक नीति 2012-13 की तीसरी तिमाही समीक्षा 57. मौद्रिक नीति 2012-13 की तीसरी तिमाही समीक्षा मंगलवार, 29 जनवरी 2013 को की जाएगी। भाग बी -विकासात्मक और विनियामक नीतियां 58. वक्तव्य के इस भाग में हाल के नीति वक्तव्यों में रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीतिगत उपायों में हुई प्रगति की समीक्षा और नए उपायों की जानकारी भी है। 59. अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य के बाद, वैश्विक वित्तीय स्थिरता के प्रति खतरे बढ़ गए हैं, बावजूद इसके कि चलनिधि के मामले में असाधारण कार्रवाइयों से जुड़े बाज़ारों में कुछ सुधार है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अहम राजकोषीय (फिस्कल) चुनौतियों के समष्टि-वित्तीय चिंताओं में बदल जाने की संभावना है। उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) के मामले में वित्तीय स्थिरता जोखिम, कहीं विकास में मंदी से निबटने की तो कहीं लंबे समय तक चल रहे मुद्रास्फीतीय दबावों का सामना करने की घरेलू चुनौतियों से जुड़े खतरों के अलावा उन संभावित नकारात्मक परिणामों से जुड़े हुए हैं जिनका असर व्यापक तौर पर पड़ता है। दूसरी तरफ़ यह भी है कि इन अस्थिर हालातों ने वित्तीय व्यवस्था को अधिक सुरक्षित, कम जटिल व अधिक पारदर्शी बनाने के लिए तथा वित्तीय संस्थाओं को कम ऋण-ग्रस्त (लेस लेवरेज़्ड), बेहतर पूँजीकृत (बेटर कैपिटलाइज़्ड) बनाने के लिए वैश्विक विनियामक सुधारों की पहल की गति दी ताकि विभिन्न प्रकार के जोखिमों से बेहतर ढंग से निबटा जा सके। ऐसे कई सुधार अभी कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। 60. चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिवेश और विकास-मुद्रास्फ़ीति की कठिन स्थितियों के बीच भारत में, विकासात्मक और विनियात्मक नीतियों ने ऐसी सुदृढ़, सक्षम और जीवंत वित्तीय प्रणाली बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है जिससे समाज के विस्तृत तबके को वित्तीय सेवाएं प्रभावी रूप से प्राप्त हो सकें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित हो रहे सर्वोत्तम तौर-तरीकों के कदम के साथ कदम मिलाकर वित्तीय क्षेत्र सुधार आगे बढ़ रहे हैं और इसमें देश-विशेष की स्थितियों का भी ध्यान रखा गया है। तदनुसार, सहभागिता व परामर्शी ढंग से संबंधित सभी पक्षों को शामिल करते हुए वित्तीय बाज़ार विकास, ऋण की गुणवत्ता (क्रेडिट क्वालिटी), ऋण वितरण (क्रेडिट डेलिवरी), ग्राहक सेवा और वित्तीय समावेश के कार्य को आगे बढ़ाया गया है। 61. मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों की इस समीक्षा में हाल के नीति वक्तव्यों में घोषित उपायों में हुई प्रगति के आकलन के साथ कुछ प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है : ब्याज दर नीतियों व उत्पादों की समीक्षा: वित्तीय बाज़ार विकास को आगे ले जाने व बाज़ार की बुनियादी व्यवस्थाओं की मज़बूती: भुगतान व निपटान प्रणालियां; ऋण वितरण और वित्तीय समावेश को और बेहतर करना; ग्राहक सेवा संबंधी प्रयासों को व्यापक बनाना; बासल III की प्रगति में विनियामक व पर्यवेक्षी ढाँचे को अपग्रेड करना, जोखिम आधारित पर्यवेक्षण (आरबीएस), अनर्जक आस्तियों(एनपीए) के प्रबंधन/पुनर्गठन और समाधान ढाँचों; और मुद्रा प्रबंध का सुदृढ़ीकरण । नियत ब्याज दर वाले उत्पाद (प्रोडक्ट्स) 62. 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में, यह नोट किया गया कि अधिकांशत: जमाराशियों पर ब्याज दरें नियत (फिक्स्ड) हैं, वहीं ज्यादातर खुदरा कर्ज उत्पादों (रिटेल लोन प्रॉडक्ट्स), विशेषत: आवास ऋण, में फ्लोटिंग रेट आधार पर लोन मंजूर किए जाते हैं जिससे उधारकर्ता को ब्याज दर अनिश्चितता एवं इससे जुड़े हुए ब्याज दर ख़तरों का सामना करना पड़ता है। इस मामले पर विचार करने के लिए, बाहरी और साथ ही साथ आंतरिक विशेषज्ञों के साथ एक समिति (अध्यक्ष: श्री के के वोहरा) बनाई गई है जिसका काम बैंकों द्वारा दीर्घावधि नियत ब्याज दर ऋण उत्पादों की शुरुआत किए जाने की व्यवहार्यता का आकलन करना है।
ओटीसी डेरिवेटिव्स के लिए ट्रेड रिपोज़िटरी का विकास 63. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) इंटर-बैंक फॉरेन एक्सचेंज फॉर्वर्ड्स, स्वैप्स और आपशन्स के लिए रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की शुरुआत जुलाई 2012 में की गई। एक सुपरिभाषित योजना के अंतर्गत यह निर्णय लिया गया है कि इस व्यवस्था को क्रमिक रूप से बढ़ाया जाए ताकि इसमें निम्नलिखित को शामिल किया जा सके :
सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर व्युत्पन्नों के बाज़ार पर कार्यदल 64. अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार, बाज़ार के सहभागियों की राय जानने के लिए कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आर गांधी) की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखी गई थी। जो फीडबैक मिले, उसके आधार पर कार्यदल ने 10 अगस्त 2012 को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया । कार्यदल ने द्वितीयक बाज़ार (सेकेंडरी मार्केट) में चलनिधि (लिक्विडिटी) बढ़ाने, सरकारी प्रतिभूति बाज़ार (जी-सेक् मार्केट) में खुदरा सहभागिता बढ़ाने और ब्याज दर व्युत्पन्नों (इंटरेस्ट रेट डेरीवेटिव्स) के बाज़ार को विकसित करने के उपाय सुझाए। सरकारी प्रतिभूति बाज़ार (जी-सेक् मार्केट) का समेकन करने, परिपक्वता तक धारित संविभाग (हेल्ड टू मैच्यूरिटी पोर्टफोलियो) पर ऊपरी सीमा को क्रमश: कम करने, टर्म रिपो मार्केट को बढ़ावा देने, दीर्घावधि में सरकारी प्रतिभूति बाज़ार के खुदरा सहभागियों के लिए केंद्रीकृत बाजार निर्माता (सेंट्रलाइज़्ड मार्केट मेकर्स) विकसित करने और समुचित विनियमनों के अधीन नकद निपटान (कैश सेटल्ड) 10-वर्षीय ब्याज दर फ्यूचर्स (आईआरएफ्स) का सुझाव भी कार्यदल ने दिया है। कुछ सुझाव जैसे प्राथमिक नीलामी (प्राइमरी ऑक्शन) में बोली लगाने (बिडिंग) के लिए टाइम विंडो को ट्रंकेट करने और राज्य विकास ऋण में वर्तमान प्रतिभूतियों को फिर से जारी किए जाने जैसे कुछ सुझाव लागू किए गए हैं। कार्यदल के सुझावों के आधार पर, यह निर्णय लिया गया है कि:
65. इस संबंध में परिचालनगत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। 66. इस मामले में हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करके रिज़र्व बैंक शेष सुझावों की परीक्षा कर रहा है। वित्तीय बाजार आधारभूत संरचना निर्यात रिपोर्टिंग और अनुवर्ती कार्रवाई पर कार्यदल 67. विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा) 1999 के तहत, निर्यातकों के लिए यह जरूरी है कि पूर्ण निर्यात मूल्य वसूल करें और भारत में प्रत्यावर्तित (रिपैट्रियेट) करें। तथा इस संबंध में निगरानी और फॉलो-अप का काम प्राधिकृत डीलर बैंकों के माध्यम से रिज़र्व बैंक करता है। यह देखा गया है कि निर्यात लेन-देन के संबंध में कस्टम व बैंक रिपोर्टिंग में मेल नहीं खाने वाले लेन-देन की संख्या में वृद्धि हुई है जिसके कारण निर्यात वसूली अनुवर्ती कार्रवाई कमज़ोर हुई है। तदनुसार, वर्तमान निर्यात रिपोर्टिंग और अनुवर्ती कार्रवाई प्रक्रिया में कमियों/खामियों का पता लगाने के लिए एवं प्रणाली की उपयुक्त पुनर्संरचना पर सुझाव के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष:रश्मि फ़ौजदार) का गठन किया गया। कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट 27 सितंबर 2012 को प्रस्तुत की और सुझाव दिया कि रिज़र्व बैंक की सिक्योर्ड वेबसाइट का उपयोग करते हुए एक आई-टी आधारित समाधान लागू किया जाए ताकि निर्यात डेटाबेस रियल टाइम में अपडेट किया जा सके जिससे जल्द आँकड़े मिलें/अनुवर्ती काररवाई हो/नीति निर्माण हो। यह निर्णय लिया गया है कि:
वित्तीय स्थिरता का आकलन 68. जून 2012 में जारी पाँचवीं वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में यह बात देखी गई कि स्थिरता के प्रति जोखिम पहले की अपेक्षा बढ़े होने के बावज़ूद घरेलू वित्तीय प्रणाली सुदृढ़ रही। रिज़र्व बैंक के दूसरे प्रणाली सर्वेक्षण में उभरते वैश्विक खतरों के प्रति चिंता देखने को मिली। घरेलू मोर्चे पर, विकास में कमी, ऊँची मुद्रास्फ़ीति तथा बढ़े हुए राजकोषीय व चालू खाता घाटों को वित्तीय स्थिरता को जोखिम पहुँचाने वाला माना गया। बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ते एनपीए के बावजूद, जून-2012 के अंत में बैंकों के लिए विभिन्न परिस्थितियों में आघातों के अनुरूपण (सिम्यूलेशन) से यह देखने को मिला कि पूरे तंत्र के स्तर पर (सिस्टम लेवल) सीआरएआर का स्तर 9 प्रतिशत के अपेक्षित न्यूनतम स्तर से ऊपर था। ऋण (क्रेडिट), बाजार (मार्केट) और चलनिधि (लिक्विडिटी) के खतरों के प्रति भी बैंक प्रत्यास्थ (रेज़िलिएंट) रहे। तथापि बैंकों के बीच, आपद् निर्भरता बढ़ गई है और इस वज़ह से निगरानी और कड़ी करने की जरूरत है। वित्तीय स्थिरता के प्रति संभावित खतरों पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की उप समिति (सब कमिटी ऑफ द फाइनैंशियल स्टेबिलिटी एंड डेवलपमेंट कॉउन्सिल) के समग्र आकलन का प्रतिबिंब वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में है। वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) और इसकी उप समितियां 69. एफएसडीसी की उप समिति की सहायता के लिए दो तकनीकी ग्रूप्स हैं, यथा, वित्तीय समावेश व वित्तीय साक्षरता तकनीकी दल और अंतर-विनियामक तकनीकी दल। इसके अलावा, वित्तीय संगुटों (फ़ाइनैशंशियल कोंग्लोमरेट्स)(एफसी) के पर्यवेक्षण (सुपरविज़न) के ढाँचे को संस्थागत रूप देने और इन संगुटों की कार्य-कलापों से प्रणाली स्तर पर पैदा होने/फैलने वाले ख़तरों की निगरानी और प्रबंधन के लिए समिति ने रिज़र्व बैंक में सुपरविज़न के प्रभार वाले उप गवर्नर की अध्यक्षता में एक अंतर-विनियामक फोरम के गठन को अनुमोदित किया जिसमें अन्य विनियामक/पर्यवेक्षी एजेंसियों से कार्यपालक (एक्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर) स्तर के सदस्य होंगे। यह अंतर-विनियामक फोरम इन संगुटों (एफसीज़) के लिए पहचान, समूह-व्यापी जोखिम प्रबंधन और कंपनी शासन–व्यवस्था आदि से संबंधित नीतियां बनाने और उच्च-स्तरीय सुपरविज़न संचालित करने का काम करेगा । यह फोरम देशी पर्यवेक्षकों के बीच पर्यवेक्षी समन्वय/सहयोग तंत्र को मज़बूत करने का भी प्रयास करेगा ताकि सुपरविज़न प्रभावी हो सके। IV. ऋण वितरण और वित्तीय समावेश बैंक-सुविधा-रहित गाँवों में बैंकिंग सेवा की व्यवस्था की कार्ययोजना 70. अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में राज्य-स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) को 2,000 से कम की जनसंख्या वाले गाँवों में बैंकिंग सेवा की व्यवस्था की कार्ययोजना बनाने का आदेश दिया गया और कहा गया कि बैंकों को ये गाँव इस दृष्टि से कल्पित तौर पर आबंटित कर दिए जाएं ताकि इन गाँवों को समय-सीमा के भीतर बैंकिंग सेवा मिल सके। तदनुसार 19 जून, 2012 को राज्य-स्तरीय बैंकर समिति संयोजक (एसएलबीसी) बैंकों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए। इसके अलावा बैंकों को कहा गया कि वे गांवों के आबंटन की जानकारी का विवरण रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों को अगस्त 2012 के अंत तक प्रस्तुत कर दें। सितंबर 2012 को समाप्त तिमाही से बैंकिंग आउटलेट खोलने में जिला-वार तथा क्षेत्र-वार प्रगति पर तिमाही विवरण तिमाही के बाद वाले महीने की दस तारीख तक भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत कर दिए जाने हैं। वित्तीय समावेश सलाहकार समिति का गठन 71. सार्वभौमिक वित्तीय समावेश की ओर बढ़ना एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता और रिज़र्व बैंक के लिए नीतिगत प्राथमिकता का विषय रहा है। अधिकधिक वित्तीय समावेश के प्रयासों को तेज़ करने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक वित्तीय समावेश सलाहकार समिति (अध्यक्ष: डॉ के सी चक्रवर्ती) बनाई। समिति सदस्यों के सामूहिक अनुभव व विशषज्ञता का उपयोग पहुँच योग्य और वहन करने योग्य वित्तीय सेवाओं वाली व्यवहार्य व टिकाऊ बैंकिग सेवाएं उपलब्ध कराने का मॉडल लाने में, वर्तमान में बैंकिंग नेटवर्क के बाहर पड़े ग्रामीण व शहरी उपभोक्ताओं के लिए प्रोडक्ट्स व प्रक्रियाओं को विकसित करने में तथा समुचित विनियामक ढाँचा सुझाने में किया जा सकेगा जिससे वित्तीय समावेश व वित्तीय स्थिरता में तालमेल सुनिश्चित हो । प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की नई परिभाषा 72. जैसा कि अक्टूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में कहा गया था, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधारों के वर्तमान वर्गीकरण की फिर से जाँच करने तथा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार पर संशोधित दिशा-निर्देश सुझाने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक समिति (अध्यक्ष: श्री एम.वी.नायर) गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट फरवरी 2012 में प्रस्तुत की । विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा और प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों के आधार पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के दिशा-निर्देशों को 20 जुलाई, 2012 को संशोधित किया गया। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने का अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के समग्र लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं रखते हुए इसे समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) या तुलन-पत्रेतर एक्सपोज़र (ओबीई) के ऋण समतुल्य (सीई) का 40 प्रतिशत इन दोनों में पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार जो भी अधिक हो उसके बराबर रखा गया है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों कृषि ऋणों के लक्ष्यों में कोई बदलाव नहीं करते हुए इन्हें क्रमश: 13.5 प्रतिशत और 4.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार के अंतर्गत लक्ष्य/उप-लक्ष्य के मालले में 20 या इससे अधिक शाखाओं वाले विदेशी बैंकों को देशी वाणिज्यिक बैंकों के समकक्ष लाया गया है। 20 से कम शाखाओं वाले विदेशी बैंकों के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार के अंतर्गत लक्ष्य एएनबीसी या ओबीई के सीई का 32 प्रतिशत इन दोनों में पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार जो भी अधिक हो उसके बराबर रखा गया है , बिना किसी उप-लक्ष्य के। 73. प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के संशोधित दिशा-निर्देशों के बारे में बैकों की चिंताएं दूर करने के लिए चुनिंदा बैंकों के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशकों (सीएमडीज़)/मुख्य कार्यपालक अधिकारियों (सीईओज़) और प्राथमिकता क्षेत्र विभागों के परिचालनात्मक (ऑपरेशनल) प्रमुखों के साथ विचार-विमर्श किया गया। 74. विदशी बैंकों को पाँच वर्षों के भीतर लक्ष्य प्राप्त करने की कार्ययोजना तैयार करनी है और लक्ष्य के संदर्भ में उनके कार्य की आवधिक समीक्षा की जाएगी। 75. जो फीडबैक मिले हैं, उनके आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि:
76. किए गए बदलावों पर दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं। शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) – कॉरपोरेट बॉण्डों में रिपो 77. अक्टूबर 2009 की दूसरी तिमाही समीक्षा (एसक्यूआर) में रिज़र्व बैंक ने कॉरपोरेट बॉण्डों में रिपो की घोषणा की थी और जनवरी 2010 में कॉरपोरेट ऋण प्रतिभूतियों में रिपो (रिज़र्व बैंक) दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। शहरी सहकारी बैंको (यूसीबीज़) के परिसंघों (फेडरेशन्स)/ संघों (एसोशिएन्स) से प्राप्त अनुरोध के आधार पर, यह निर्णय लिया गया है कि:
78. विस्तृत दिशा निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। नये शहरी सहकारी बैंकों के लिए लाइसेंस 79. जनता से प्राप्त फीडबैक और विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: श्री वाई एच मालेगाम) के सुझावों के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि प्रशासन व्यवस्था संबंधी मामलों को सरकार के साथ सुलझा लेने क बाद नये शहरी सहकारी बैंक शुरू करने के कदम उठाए जाएं। सहकारी संगठनों की लाइसेंसिंग 80. वित्तीय क्षेत्र आकलन समिति (अध्यक्ष: डॉ राकेश मोहन और सह अध्यक्ष: श्री अशोक चावला) ने सुझाया था कि मार्च -2012 के अंत तक जो ग्रामीण सहकारी बैंक लाइसेंस नहीं प्राप्त कर पाएं, उन्हें ऑपरेट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । रिज़र्व बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ मिलकर लाइसेंस रहित राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबीज़) और ज़िला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों (डीसीसीबीज़) को लाइसेंस जारी करने की एक कार्ययोजना बनाई, जिसमें वर्तमान स्थिति में उथल-पुथल किए बिना मार्च 2012 के अंत तक लाइसेंसिंग का काम पूरा कर लिया जाए। लाइसेंस ईश्यू करने के संबध में नाबार्ड के रिकमेंडेशनों के अनुसार जाँचे जाने पर 31 राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबीज़) में से एक और 371 में से 42 ज़िला मध्यवर्ती सहकारी बैंक (डीसीसीबीज़) मार्च 2012 के अंत तक लाइसेंसिंग मानदंड पूरा करने में असफल रहे। 81. बाद में, नाबार्ड द्वारा एसटीसीबी और 42 डीसीबीबीएस को लाइसेंस प्रदान करने की सिफारिश की गई, क्योंकि राज्य सरकारों द्वारा निधि (फंड) जारी किए जाने के पश्चात इन बैंकों ने लाइसेंस मानदंडों को प्राप्त कर लिया था। शेष 26 डीसीसीबी जिन्होंने विस्तारित अवधि अर्थात 30 सितंबर 2012 के पहले लाइसेंस मानदंडों को पूरा नहीं किया उन्हें मार्गदर्शन दिया जा रहा है। इस कार्य के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा इन राज्यों में गठित टास्क फोर्स ने यह पाया कि ये डीसीसीबी अपने वर्तमान रूप में लाभ नहीं कमा पा रहे हैं और उन्हें बनाए नहीं रखा जा सकता । इन राज्यों के सहकारी संरचना पर कोई प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विकल्पों का विश्लेषण किया जा रहा है। अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना को सरल बनाना 82. संरचनागत बाधाओं के मुद्दों की जांच करने तथा ऋण जरूरतों को पूरा करने के लिए उपयुक्त संस्थाओं व उपकरणों के माध्यम से ग्रामीण सहकारी ऋण स्वरूप को मजबूत करने के रास्तों का पता लगाने के लिए यह प्रस्ताव था कि अल्पावधि सहकारी ऋण संरचना (एसटीसीसीएस) की समीक्षा के लिए एक कार्य दल का गठन किया जाए । तदनुसार, रिज़र्व बैंक ने एक विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: डॉ.प्रकाश बक्शी) का गठन किया जो एसटीसीसीएस का गहराई से विश्लेषण कर सके और वर्तमान थ्री टियर संरचना के बजाए टू-टियर एसटीसीसीएस के स्थापना की संभाव्यता और ऋण की लागत को कम करने के विभिन्न विकल्पों की जाँच कर सके । समिति की रिपोर्ट दिसंबर 2012 के अंत तक आने की उम्मीद है । रुग्ण,अत्यंत लघु और मझोले उद्यमों (एमएसईज़) की परिभाषा 83. अत्यंत लघु औरछोटे उद्यम क्षेत्र (एमएसइज़), विशेषत: कार्यक्षम/लाभर्जक (वायबल) हो सकने वाली रुग्ण इकाइयों की पुनर्वास की समस्या को देखते हुए, रिज़र्व बैंक ने एक कार्यदल (अध्यक्ष: डॉ.के.सी.चक्रवर्ती) का गठन किया था, जिसने रुग्णता की परिभाषा और रुग्णएमएसई इकाइयों को लाभर्जक (वायबल) बनने की संभावना का आकलन करने की प्रक्रिया में परिवर्तन की सिफारिश की है। यह निर्णय लिया गया था कि भारत सरकार का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय इस प्रस्ताव की जांच के लिए एक समिति का गठन करेगा । इस समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार प्रस्ताव है कि:
84. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे है । ग्राहक सेवा बैंक में ग्राहक सेवा पर समिति 85. रिज़र्व बैंक द्वारा ग्राहक सेवा पर गठित की गयी समिति (अध्यक्ष: श्री एम.दामोदरन) की सिफारिशों में से 152 लागू की गईं जिसमें से 142 पर भारतीय बैंक समूह (आईबीए) ने बैंकों को दिशानिर्देश जारी किए हैं । ग्राहकों के लिए गंभीर महत्त्व के उत्पादों और सेवाओं के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शर्तों (एमआईटीसीएस) का उल्लेख; वर्तमान विनियामक दिशा-निर्देशों के अंतर्गत ऋण आवेदन (लोन एप्लीकेशन) के निपटान के लिए निर्धारित समय का बैंकों द्वारा सख्ती से पालन और ग्राहकों के लिखित आवेदन के विकल्प पर ही एटीएम कार्ड को जारी किया जाना आदि बातें इनमें शामिल हैं । विनियामक दिशा-निर्देशों को जारी करते हुए कार्यान्वित की गई दस सिफारिशों में फ्लोटिंग रेट के आवास ऋण के पूर्वभुगतान दंड /फोरक्लोज़र चार्जेज़को खत्म करने के लिए बैंकों को निर्देश, बेसिक सेविंग्स एकांउट की शुरुआत ,नो फ्रिल्स एकांउट खोलते समय अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) के एक अंग के रूप में यूनिक आइडेटिफिकेशन नंबर (यूआईडी) और डेबिट कार्डों के लिए विभेदक व्यापारी छूट (डिफरेंशियल मर्चेंट डिस्काउंट)/फीस शामिल है । बैंकिंग लोकपाल योजना (बीओएस) 2006 86. बैंक में ग्राहक सेवा पर समिति की सिफारिशों और राज्य सभा कमिटी ऑन सबोर्डिनेट लेजीसलेशन की 183वीं रिपोर्ट में दिए गए सुझावों के आधार पर, रिज़र्व बैंक में बीओएस, 2006 की समीक्षा करने, इसे अद्यतन बनाने और संशोधित करने के लिए एक कार्य दल (अध्यक्ष: श्रीमती सुमा वर्मा) का गठन किया गया । दिसंबर 2012 के अंत तक कार्य दल के रिपोर्ट प्रस्तुत करने की संभावना है । V. विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय विनियामक पूँजी संरचना पर बासेल III प्रकटीकरण आवश्यकताएं (डिस्क्लोज़र रिक्वायरमेंट्स) 87. जैसा कि अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में घोषित किया गया था, 2 मई 2012 को रिज़र्व बैंक ने सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को (स्थानीय क्षेत्र बैंक (एलएबीएस) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबीएस) को छोड़कर) बासेल III पूंजी विनियमन के कार्यान्वयन पर दिशानिर्देश जारी किए । बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासेल समिति (बीसीबीएस) ने विनियामक पूँजी रिपोर्टिग और मार्केट डिसिप्लिन में पारदर्शिता को बेहतर करने के लिए विनियामक पूंजी की संरचना के संबंध में प्रकटीकरण आवश्यकताओं के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया है। चूँकि ये प्रकटीकरण (डिसक्लोज़र) राष्ट्रीय प्राधिकारियों (नेशनल आथिरिटीज) द्वारा 30 जून 2013 तक किए जाने हैं, यह निर्णय लिया गया है कि:
केंद्रीय प्रतिपक्षों (काउंटरपार्टीज) (सीसीपी) में बैंकों का एक्सपोज़र 88. बीसीबीएस ने सीसीपीज़ के लिए बैंकों के एक्सपोजर की पूँजी आवश्यकताएं निर्धारित करने के लिए एक अंतरिम रूपरेखा भी जारी की है । इस रूपरेखा को वर्तमान के बासेल पूंजी पर्याप्तता रूपरेखा में संशोधन के रूप में लाया जा रहा है और इसका उद्देश्य सीसीपीएज़ के प्रयोग को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहनों का निर्माण करना है। ये मानक 1 जनवरी 2013 से प्रभावी होगें। तद्नुसार यह निर्णय लिया गया है कि:
प्रभावी बैकिंग पर्यवेक्षण के प्रमुख सिद्धांत 89. हाल के वैश्विक वित्तीय मंदी के दौरान सीखे गए सबक के आधार पर बासेल समिति ने सितंबर 2012 में प्रमुख सिद्धांतों (कोर प्रिंसिपल्स) का एक संशोधित संस्करण जारी किया है। इस संबंध में, यह प्रस्ताव है कि :
बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना के लिए विवेकसम्मत मानदंडों की समीक्षा 90. जैसा कि अप्रैल 2012 की मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा गया था, एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री बी.महापात्रा) ने बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना के वर्तमान विवेकसम्मत मानदंडों की समीक्षा की । कार्यदल ने जुलाई में रिपोर्ट प्रस्तुत की और इसे रिज़र्व बैक की बेव-साईट पर रखकर इस पर हितधारकों (स्टेकहोल्डरों) से राय माँगी गई थी । 91. कार्यदल की सिफारिशों और इस संबंध में प्राप्त टिप्पणी/सुझावों की जांच की जा रही है और जनवरी 2013 के अंत तक डाफ्ट्र दिशा-निर्देशों को जारी किया जाएगा। तत्काल उपाय के रूप में, यह निर्णय लिया गया है कि :
92. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं । अनर्जक परिसंपत्तियां (एनपीए) और अग्रिमों की पुनर्संरचना 93. बैंकों के एनपीए और पुनर्संरचित ऋण महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ रहे हैं। बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में गिरावट का एक बड़ा कारण उनमें सूचना के प्रभावी आदान-प्रदान की कमी है बावजूद इसके कि सितंबर और दिसंबर 2008 में ऋण, डेरिवेटिव्स और अरक्षित (अनहेज्ड) विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की जानकारी से संबंधित सूचना के साझा किए जाने(शेयर करने) से संबंधित विशिष्ट अनुदेश जारी किए गए हैं । इसलिए, यह सूचित किया जाता है कि:
94. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे है । अरक्षित (अनहेज़्ड) विदेशी मुद्रा एक्स्पोजर की निगरानी 95. कॉरपोरेट्स के अरक्षित (अनहेज़्ड) विदेशी मुद्रा एक्स्पोजर, खुद उनके लिए और साथ ही उनको फाइनैंस करने वाले बैंकों और वित्तीय व्यवस्था के लिए जोखिम (रिस्क) के स्रोत हैं। कुछ मामलों में बड़ी अरक्षित (अनहेज़्ड) विदेशी मुद्रा एक्स्पोजर से खाते एनपीए में बदल गए हैं । इसलिए फरवरी 2012 में बैंकों को कहा गया कि वे कंपनियों के अरक्षित (अनहेज़्ड) विदेशी मुद्रा एक्स्पोजर से होने वाले जोखिम का मूल्यांकन सख्ती से करें और निधि आधारित और गैर निधि आधारित ऋण सुविधा (फंड बेस्ड एंड नॉन फंड बेस्ड क्रेडिट फेसिलिटीज़) देते समय क्रेडिट रिस्क प्रीमियम में इसे शामिल करें । आगे, बैंकों को यह भी सूचित किया गया था कि वे बैंकों के बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के आधार पर कंपनियों की अनहेज़्ड स्थिति पर एक सीमा निर्धारित करने पर विचार करें । इन अनुदेशों के बावजूद, इन जोखिमों का सख्ती से मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है और इसे ऋण कीमत में इसे शामिल नहीं किया जा रहा है। इसलिए यह अपेक्षित है कि:
96. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं । ऋण सूचना का प्रसार 97. ऋण सूचना कंपनियां (सीआईसी) वित्तीय क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे का एक महत्वपूर्ण भाग हैं। ऋण सूचना संकलन और प्रसार प्रणाली की सफलता सीआईसी को ऋण संस्थाओं द्वारा सप्लाई किए गए डेटा की गुणवत्ता और समयबद्धता पर निर्भर करती है तथा इस बात पर भी कि लोन आवेदन पर निर्णय लेते समय ऋण संस्थाएं सीआईसी के पास उपलब्ध डेटा का कितना व्यापाक उपयोग करती हैं। 14 दिसंबर 2006 से सीआईसी (विनियमन) अधिनियम, 2005 के लागू होने के बाद से भारत में इस समय चार सीआईसीज़ कम कर रही हैं । 98. यह देखा गया है कि लोन स्वीकृति के समय ऋण संस्थाओं द्वारा प्राप्त (एक्सेस) की गई ऋण सूचना रिर्पोटों की संख्या उनके द्वारा विचार किये गए ऋण (क्रेडिट) आवेदनों से बहुत कम है। इससे यह पता लगता है कि कुछ मामलों में ऋण संस्थाएं सीआईसी को उचित और समय पर ऋण डेटा दे नहीं रही हैं और ऋण से संबंधित निर्णय लेते समय उपलब्ध ऋण सूचना पर भरोसा नहीं कर रहे है जो कि उन्हें करना चाहिए, बावजूद इस तथ्य के कि पहली बार उधार लेने वालों (फ़र्स्ट–टाइम बॉरोवर्स) का रिकार्ड सिस्टम में उपलब्ध नहीं भी हो सकता है। इसलिए यह अपेक्षित है कि:
99. इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे है । विनियामक ढाँचे का सुदृढ़ीकरण : वित्तीय संस्थाओं के लिए बैंक समाधान (रिजॉल्यूशन) व्यवस्था 100. सब प्राइम संकट ने प्रणाली स्तर पर वैसी महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थाओं (एसआईएफआई) के समाधान (रिजॉल्यूशन) के महत्त्व को जाहिर किया जो दबाव में आ सकती हैं और जिनके समाधान (रिजॉल्यूशन) की आवश्यकता पड़ सकती है। अक्टूबर 2011 में, वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) ने बारह मूल तत्व प्रस्तावित किए हैं यानी प्रमुख विशेषताएं (की एट्रिब्यूट्स) जो एसआईएफआई के प्रभावी समाधान के लिए अत्यावश्यक हैं। एफएसडीसी की उपसमिति के निर्णयानुसार, भारत में समस्त प्रकार के वित्तीय संस्थाओं के व्यापक व पूर्ण समाधान के लिए रिज़र्व बैंक के उप गवर्नर श्री आनंद सिन्हा की अध्यक्षता और आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव की सह-अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। केवाईसी अनुदेशों की समीक्षा 101. रिज़र्व बैंक को केवाईसी मानदंडों से संबंधित शिकायतें प्राप्त हुई हैं जो पहचान/पते के दस्तावेजी प्रूफ़, बैंक खाता खोलने के लिए परिचय की आवश्यकता, और केवाईसी दस्तावेजों की समीक्षा की अवधि जैसे विषयों से जुड़े हैं । इन बातों को देखते हुए, प्रस्ताव है कि:
स्वर्ण की खरीद और स्वर्ण के बदले अग्रिमों पर बैंक वित्त (बैंक फाइनैंस) 102. वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंक वे स्वर्ण के डीलर्स/ट्रेडर्स को स्वर्ण बुलियन के बदले कोई अग्रिम न दें यदि उनके आकलन के अनुसार ऐसे अग्रिमों का नीलामियों (आक्शन्स) में सोने की खरीद और/या स्टॉक व बुलियन के सट्टा/अटकल के लिए रखे जाने (स्पेक्यूलेटिव होल्डिंग) की संभावना है। इस संबंध में, हाल के वर्षों में सोने के आयात में आई विशेष बढ़ोतरी चिंता का विषय है क्योंकि सोने की किसी भी रूप में खरीद जैसे बुलियन/ अपरिष्कृत सोना (खान से निकाला हुआ सोना/प्राइमरी गोल्ड)/गहने/सोने के सिक्के की खरीद के लिए बैंक के सीधे वित्तपोषण (डायरेक्ट बैंक फाइनैंसिंग) से सट्टा कार्यों (स्पेक्यूलेटिव पर्पसेज़) के लिए सोने की मांग में जोर पकड़ने की संभावना है। अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में एक कार्य दल (संयोजक: श्री के.यू.बी.राव) का गठन करने की घोषणा की गई जो भारत में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा स्वर्ण ऋणों और स्वर्ण आयातों से संबंधित मुद्दों का अध्ययन करेगा । कार्य दल ने अपनी डाफ्ट्र रिपोर्ट अगस्त 2012 में प्रस्तुत की। उनकी सिफारिशों पर निर्णय आने तक प्रस्ताव है कि बैंकों को यह सूचित किया जाए कि:
103. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं । शाखा प्राधिकरण नीति (ब्रांच ऑथराइजेशन पॉलिसी) टियर 1 केंद्रों में प्रशासकीय/नियंत्रक कार्यालयों का खोला जाना 104. वर्तमान में घरेलू अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (आरआरबी को छोड़कर) को टियर 2 से टियर 6 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार 99,999 तक की जनसंख्या वाले क्षेत्र) में और पूर्वोत्तर राज्यों और सिक्किम में ग्रामीण, अर्ध-शहरी और शहरी केंद्रों में क्षेत्रीय कार्यालय और आंचलिक कार्यालय और शाखाएं खोलने की अनुमति रिज़र्व बैंक की इज़ाजत के बगैर परंतु रिपोर्टिंग के तहत है। बैंकों की परिचालनीय स्वतंत्रता (ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी) को और बढ़ाने के लिए, प्रस्ताव है कि:
105. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं । रुपए में मूल्यवर्गित (डिनोमिनेटेड) को- ब्रांडेड प्री-पेड/डेबिट कार्ड जारी करना 106. प्रत्येक को- ब्रांडिंग व्यवस्था के लिए रिज़र्व बैंक के पास आने की जरूरत न रहे, इसलिए यह प्रस्तावित है कि :
107. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं । ऋण मूल्य निर्धारण पर कार्यदल 108. अक्टूबर 2011 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार ऋण के उचित, पारदर्शी और भेद-भाव-रहित मूल्य निर्धारण के सिद्धांतों पर विचार करने के लिए ऋण मूल्य निर्धारण पर एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री आनंद सिन्हा) बनाया गया। आशा है कि कार्य दल की रिपोर्ट दिसंबर 2012 के अंत तक आएगी। पर्यवेक्षी (सुपरवाइज़री) नीतियां, कार्यविधियां और प्रक्रियाएं 109. भारत में वाणिज्य बैंकों के संबंध में वर्तमान पर्यवेक्षी प्रक्रियाओं की समीक्षा के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा बनाई गई उच्च-स्तरीय संचालन समिति (एचएलएससी) (अध्यक्ष: डॉ. के. सी. चक्रवर्ती) ने अपनी रिपोर्ट 11 जून 2012 को प्रस्तुत की। इस एचएलएससी ने रिकमेंड किया है कि लेन-देन-जाँच (ट्रांजैक्शन–टेस्टिंग) आधारित कैमल्स(सीएएमईएलएस) ढाँचे से जोख़िम-आधारित रास्ता (रिस्क बेस्ड एप्रोच) अपनाया जाए ताकि ख़तरों को समय रहते पहचाना जा सके और समय से समुचित पर्यवेक्षी हस्तक्षेप किया जा सके। जोखिम आधारित पर्यवेक्षण (आरबीएस) की तरफ जाने के लिए क्रमिक रास्ता अपनाया जा रहा है। अप्रैल 2013 से प्रारंभ हो रहे अगले पर्यवेक्षी चक्र से 50 प्रतिशत बैंकों को आरबीएस के अंतर्गत कवर किया जाएगा तथा शेष बैंकों को उसके बाद लिया जाएगा। समिति के रिकमेंडेशन के अनुसार बैंकों को कहा गया है कि आरबीएस लागू किए जाने संबंधी आवश्यक पूर्वापेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए वे अपने जोखिम प्रबंधन ढाँचे, संस्कृति, तौर-तरीकों व संबंधित प्रक्रियाओं का आकलन करें। आरबीएस अपनाने में जोखिम प्रबंधन प्रणालियों, प्रक्रियाओं और प्रबंध सूचना प्रणाली (एमआईएस) को संभालने में लगने वाले अपने मानव संसाधन का भी लेखा-जोखा बैंक ले लें। बुनियादी ढांचा क्षेत्र को उधार की परिभाषा 110. बुनियादी ढांचा क्षेत्र को बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार में महत्वपूर्ण रूप से वृद्धि हुई है । विभिन्न विनियामकों के बीच बुनियादी ढांचा क्षेत्र की तरह–तरह की परिभाषाओं से उत्पन्न भ्रम और कठिनाइयों को देखते हुए भारत सरकार ने मार्च 2012 में बुनियादी ढांचा क्षेत्र/ सब सेक्टर की एक मास्टर लिस्ट अधिसूचित की है। तदनुसार, प्रस्ताव है कि:
111. विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं । अंतःसमूह लेनदेन और एक्सपोज़र [इंट्रा-ग्रूप ट्रांजैक्शन्स एंड एक्सपोज़र्स (आईटीईज़) ] 112. 14 अगस्त, 2012 को रिज़र्व बैंक ने अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को लागू इंट्रा-ग्रूप ट्रांजैक्शन्स एंड एक्सपोज़र्स (आईटीईज़) के प्रबंधन पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी किए। ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों में आईटीईज़ के लिए मात्रात्मक सीमा और नॉन–फ़ाइनैंशियल आईटीईज़ के लिए विवेकसम्मत उपाय (प्रूडेंशियल मेज़र्स) बताए गए हैं ताकि बैंक आईटीईज़ का काम सुरक्षित व अच्छी तरह से कर पाएं और इससे होने वाले केंद्रीकरण (कॉन्सेंट्रेशन) व संक्रमण (कॉन्टैजियन) जोख़िम को रोका जा सके। इन उपायों के अनुसार समूह इकाइयों से डील करते समय बैंक दूरी बनाए रखें, समूह जोखिम व समूह निगरानी के लिए निर्धारित न्यूनतम अपेक्षाएं पूरी करें और आईटीईज़ के निर्धारित विवेकसम्मत सीमा (प्रूडेंशियल लिमिट्स) का पालन करें। प्रस्ताव है कि:
समीक्षाओं के कैलेंडर को युक्तिसंगत बनाने संबंधी आंतरिक कार्यदल 113. वाणिज्य बैंकों को अपने निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स)/बोर्ड की प्रबंध समिति (मैनेजमेंट कमिटी)/लेखा परीक्षा समिति (ऑडिट समिति)के सामने बैंकों के कार्य के विभिन्न क्षेत्रों पर आवधिक रूप से समीक्षा प्रस्तुत करनी होती है। ये समीक्षाएं रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित कैलेंडर के अनुसार प्रस्तुत की जाती हैं। इस कैलेंडर को रिज़र्व बैंक समय समय पर रिव्यू करता है ताकि ताज़ा घटनाक्रमों के अनुसार इसे प्रासंगिक रखा जा सके। तदनुसार कैलेंडरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्री दीपक सिंहल) बनाया गया है जो इस संबंध में वर्तमान दिशा-निर्देशों की परीक्षा और समीक्षा करेगा। कार्यदल को अपनी रिपोर्ट दिसंबर 2012 के अंत तक देनी है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां मूल निवेश (कोर इन्वेस्टमेंट) कंपनियों द्वारा विदेशों में निवेश 114. अप्रैल 2012 में की गई घोषणा के अनुसार निवेश (कोर इन्वेस्टमेंट) कंपनियों द्वारा विदेशों में निवेश संबंधी ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों को आम जनता की राय के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर मई-2012 में रखी गई। जनता से प्राप्त टिप्पणियों को जांचा –परखा जा रहा है और यह प्रस्ताव है कि :
एनबीएफसियों के लिए विनियामक ढाँचा 115. एनबीएफसी पर कार्यदल (अध्यक्ष:श्रीमती उषा थोरात) की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की विबसाइट पर अगस्त 2011 को रखी गई थी। प्राप्त फ़ीडबैक और इस क्षेत्र के विभिन्न प्रतिनिधियों से इस संबंध में और आगे चर्चा के बाद, यह निर्णय लिया गया है कि:
एनबीएफसी –फैकटर्स का रजिस्ट्रेशन 116. केंद्र सरकार की फैक्टरी अधिनियम, 2011 की अधिसूचना के बाद 23 जुलाई 2012 को रिज़र्व बैंक ने एनबीएफसी –फैकटर्स के लिए एक विस्तृत विनियामक ढाँचे तैयार किया है। रजिस्ट्रेशन के लिए एनबीएफसी –फैकटर्स की न्यूनतम निवल स्वाधिकृत निधि ₹50 मिलियन होनी चाहिए; फैक्टरिंग गतिविधि कुल आस्तियों की कम से कम 75 प्रतिशत होनी चाहिए; और फैक्टरिंग कारोबार से प्राप्त आय कुल आय के 75 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। जो एनबीएफसी –फैकटर्स आयात/निर्यात फैक्टरिंग के जरिये फोरेक्स में डील करना चाहते हों, उन्हें फेमा, 199 के तहत रिज़र्व बैंक से एक प्राधिकार प्राप्त करना होगा । बैंकों से आँकड़ों का स्वचालित प्रवाह (ऑटोमेटेड डेटा फ्लो) 117. जैसा कि अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्त व्य में कहा गया है रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जाने वाली सभी विवरणियां (रिटर्न्स) अपनी स्त्रोत प्रणाली से बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के जेनरेट करने के लिए बैंकों को उपयुक्त समाधान (सॉल्यूशन्स) लागू करने होंगे। उम्मीद है कि यह प्रक्रिया मार्च 2013 के अंत तक पूरी कर ली जाएगी। इस संबंध में कार्यान्वयन की प्रगति पर रिज़र्व बैंक ने कड़ी निगरानी रखी है। यह दुहराया जाता है कि निर्धारित समय-सीमा में यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए बैंक समुचित प्रणाली व प्रक्रियाओं की व्यवस्था करें। भारत में भुगतान प्रणाली : विज़न 2012-15 118. देश में भुगतान प्रणाली में अगले तीन वर्षों में और सुधार लाने की कार्ययोजना “भारत में भुगतान प्रणाली : विज़न 2012-15” नामक दस्तावेज में दी गई है जो व्यापक आम विचार-विमर्श के बाद 1 अक्टूबर 2012 को जारी की गई। इस विज़न दस्तावेज में हासिल किए जाने वाले प्रमुख लक्ष्यों की चर्चा है। समग्र रूप से नीतिगत रुख़ कमतर-नकद वाले समाज को बढ़ावा देने का है और इस प्रक्रिया में उन समूहों के पार जाना है जिन्हें वर्तमान में सेवा (सर्विस) मिल रही है, एवं इस प्रकार देश में वृहत्तर वित्तीय समावेश को आगे बढ़ाना है। पहले कदम के रूप में, सभी वर्गों व किस्मों को कार्ड स्वीकार करने वाली आधारभूत संरचना लगाने के लिए प्रोत्साहित करने और छोटे मूल्य के लेन-देन की स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए डेबिट कार्ड्स के लिए मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) को घटाया गया । चेक जारी करने व इसके इस्तेमाल को हतोत्साहित करना 119. यह देखते हुए कि अभी भी चेकों का इस्तेमाल काफी अधिक है, लोगों व संस्थागत उपयोक्ताओं को भी को इसके इस्तेमाल से हतोत्साहित करने वाली कोई भी रणनीति बहुमुखी होनी चाहिए जिसमें लागत व समय पर विचार हो, पेपर आधारित उपकरणों/लिखतों को हतोत्साहित व इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन को प्रोत्साहित किए जाने की व्यवस्था हो। तदनुसार यह निर्णय लिया गया है कि दिसंबर-2012 के अंत तक इस विषय पर एक चर्चा पत्र तैयार किया जाए और लोगों की राय जानने के लिए पब्लिक डोमेन में रखा जाए। इलेक्ट्रॉनिक भुगतान : नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फ़ंड्स ट्रांसफ़र (एनईएफटी) 120. 2005 में लागू किया गया एनईएफटी सिस्टम अब एक रिटेल इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट प्रॉडक्ट बन गया है जिसका महत्त्व पूरी व्यवस्था के स्तर पर है। बैंकों को हाल में कहा गया कि वे एनईएफटी आवेदन फॉर्म में अपेक्षित विवरण (लक्ष्य बैंक शाखा का भारतीय वित्तीय प्रणाली (इंडियन फाइनैंशयल सिस्टम) कोड (आईएफएससी) भरने में ग्राहकों की सहायता में तत्परता/अग्रसक्रियता बरतें ताकि धन-प्रेषण के काम (रेमिटेंस) में किसी तरह की परेशानी/ग़लती न हो। प्रणाली की कार्यक्षमता एवं ग्राहक सेवा को बेहतर करने के लिए एक और कदम उठाते हुए यह निर्णय लिया गया कि 19 नवंबर 2012 से एनईएफ सिस्टम में 8.00 बजे एक अतिरिक्त बैच शुरू किया जाए। इसका उद्देश्य यह है कि एनईएफटी लेन-देन की बढ़ते माँग और मात्रा को सँभाला जा सके और शनिवार समेत सभी दिनों को पहले बैच में लेन-देन के बढ़ते अंबार का अवरुद्ध-रहित निपटान हो। वैकल्पिक भुगतान : जीआईआरओ आधारित भुगतान प्रणाली कार्यान्वयन समति 121. भारत में इलेक्ट्रॉनिक जीआईआरओ सिस्टम, यानी एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में भुगतान का निर्देश, जिसका प्रारंभ भुगतानकर्ता करता है, आदाता (पानेवाला) नहीं, के कार्यान्वयन को भारत में भुगतान प्रणालियां: विज़न 2012-15 में एक अहम कार्य के रूप में देखा गया है । तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि इलेक्ट्रॉनिक और चेक आधारित दोनों प्रकार के जीआईआरओ भुगतानों की रूप-रेखा को अंतिम रूप देने के लिए समिति (अध्यक्ष: श्री जी पद्मनाभन) गठित की जाए। समरूप (यूनिफॉर्म) राउटिंग कोड और खाता संख्या ढाँचा 122. भारत में, राउटिंग लेन-देन हेतु बैंक/शाखाओं की पहचान के लिए विभिन्न भुगतान प्रणालियां अलग-अलग कोडों का इस्तेमाल करते हैं। सभी बैंकों में समरूप राउटिंग कोड और समरूप खाता संख्या की व्यवहार्यता की परिक्षा करने के लिए विभिन्न हितधारकों को लेकर एक तकनीकी समिति (अध्यक्ष: श्री विजय चुघ) का गठन किया गया है। दिसंबर-2012 के अंत तक समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगी।. कार्ड प्रेजेंट लेन-देन को सुरक्षित करने हेतु अधिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) के लिए आधार का प्रयोग 123. कार्ड प्रेजेंट लेन-देन को सुरक्षित करने हेतु गठित कार्यदल (अध्यक्ष: सुश्री गौरी मुखर्जी) का एक रिकमेंडेशन यह था कि एटीएम और विक्रय बिंदुओं (प्वाइंट ऑफ सेल) के टर्मिनलों पर कार्ड प्रेजेंट लेन-देन के अधिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) के एक अतिरिक्त कारक के रूप में चुंबकीय-पट्टी के साथ आधार जैवमीतीय (बायोमिट्रिक) ऑथेंटिकेशन पर विचार कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कार्ड प्रेजेंट लेन-देन के अधिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) के एक अतिरिक्त कारक के रूप में आधार का प्रयोग करते हुए एक दिल्ली में 15 नवंबर, 2012 से एक पायलट प्रोजेक्ट तय किया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के परिणाम के आधार पर, रिज़र्व बैंक आगे की कार्रवाई करेगा। चेक ट्रंकेशन सिस्टम (सीटीएस) 124. चेक ट्रंकेशन सिस्टम (सीटीएस), पेपर क्लियरिंग में कार्यक्षमता बढ़ाने में रिज़र्व बैंक की एक महत्त्वपूर्ण पहल है क्योंकि चेक अभी भी देश में भुगतान का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं। यह सोचा गया है कि सीटीएस का अखिल भारतीय रोल-आउट दिसंबर 2013 के अंत तक पूरा कर लिया जाए। यह कार्य भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनसीपीआई) को सौंपा गया है और यह समय-सीमा एनसीपीआई की कार्य-योजना के अनुसार है। मुद्रा प्रबंध (करेंसी मैनेजमेंट) बैंक नोटों और सिक्कों के वितरण के माध्यम 125. अप्रैल 2012 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार, मुद्रा प्रबंध में बैंकों के मुख्य प्रबंध निदेशकों को उनकी भूमिका के प्रति सचेत किया गया। जहाँ-जहाँ रिज़र्व बैंक का निर्गम कार्याकय (ईश्यू ऑफिस) हैं, ऐसे प्रत्येक केंद्र पर उन्हें चार-पाँच शाखाएं चिह्नित करने को कहा गया है। ये शाखाएं मैले/कटे-फटे नोटों को बदलने की सुविधा मुहैया कराएंगीं और अपने सुनिर्दिष्ट काउंटरों के माध्यम से सामान्य जनता को सिक्के भी जारी करेंगीं। अक्तूबर 2012 के अंत तक रिज़र्व बैंक को सूचित किया जाना है कि चिह्नित की गई शाखाएं कौन सी हैं। इसके अलावा, देश भर में दूसरे करेंसी चेस्टों और शाखाओं में भी सुगम व बाधा-रहित विनिमय सुविधाओं के लायक अपनी प्रणालियों को तैयार करने की आवश्यक कार्रवाई भी बैंक करें। नकली बैंक नोटों की पकड़ और रिपोर्टिंग 126. मई 2012 में बैंकों को कहा गया था कि अपने नकदी प्रबंधन में यह सुनिश्चित करने की व्यवस्था करें कि रु.100 से अधिक मूल्यवर्ग की नकद प्राप्तियों को जाँच के लिए मशीन से प्रोसेस किए बगैर दुबारा चलन (सर्कुलेशन) में न लाया जाए। बैंक चाहें तो अपनी शाखाओं को मशीन दें या यह सुनिश्चित करें कि जिन शाखाओं के पास मशीन नहीं हैं, उनको जनता में पुनर्वितरण के लिए केवल मशीन से छाँटे गए नोट ही सप्लाइ किए जाएं। 127. तथापि यह देखा गया है कि नकली नोटों की पकड़ की रिपोर्टिंग पत्याशित रूप से आगे नहीं बढ़ पाई है। यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि यद्यपि 90 प्रतिशत करेंसी चेस्ट सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सेक्टर) के बैंकों के पास हैं, परंतु वहाँ से केवल 10 प्रतिशत नकली नोटों की रिपोर्टिंग होती है, जबकि प्राइवेट बैंक, जिनके पास केवल 10 प्रतिशत करेंसी चेस्ट हैं, ऐसे 90 प्रतिशत मामले रिपोर्ट कर रहे हैं। मई 2012 में रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों के कार्यान्वयन के स्थिति की समीक्षा नवंबर 2012 के पहले सप्ताह में की जाएगी। यह दुहराया जाता है कि उन मामलों में जिनमें नकली नोट पकड़े जाएं परंतु उन्हें नष्ट और रिपोर्ट न किया जाए, उनमें यह माना जाएगा कि संबंधित बैंक नकली नोटों को चलाने में लिप्त है तथा ऐसे मामलों में दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। सिक्कों की माँग पर उच्चस्तरीय समिति 128. सिक्कों की बढ़ती माँग की जाँच करने के लिए भारत सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष: डॉ.के सी चक्रवर्ती) ने अपनी रिपोर्ट 14 अगस्त 2012 को प्रस्तुत की। इसके कुछ प्रमुख सुझावों (रिकमेंडेशन्स) में से एक यह है कि रिज़र्व बैंक को केवल मुद्रा प्रणाली (करेंसी सिस्टम) के प्रबंधन व योजना पर ध्यान देने की जरूरत है जबकि व्यक्तियों व संस्थाओं के बीच सिक्कों व नोटों के वितरण की जिम्मेदारी पूरी तरह बैंकों पर रहे। यह सब रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1935 की धारा 38 और 39 की व्यवस्था के अधीन होगा। समिति ने यह भी रिकमेंड किया है कि यदि कोने-कोने तक सिक्कों/छोटे नोटों के वितरण के कार्य पूरा करना है तो बैंकों को छोटे नोटों एवं सिक्कों के वितरण के रास्ते तलाशने होंगे। इसलिए बैकों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे इस मामले में फ्रेंचाइज़ी मॉडल शुरू करने की संभावना को खंगालें। 129. इसके अलावा, प्राथमिकता क्षेत्र उधार हेतु लीड बैंक स्कीम/सर्विस एरिया एप्रोच की तर्ज़ पर प्रत्येक बैंक को कुछ इलाके आबंटित किए जाएं ताकि संबंधित क्षेत्र के अन्य करेंसी चेस्टों व छोटे सिक्कों के डीपो के समन्वय से उस इलाके में सिक्कों व स्वच्छ नोटों की सप्लाई सुनिश्चित हो। टकसालों (मिन्ट्स) में उपलब्ध स्थान में अतिरिक्त स्टोरेज प्वाइंट्स या अंडरग्राउंड सिलो बनाए जा सकते हैं जिनका इस्तेमाल प्रति-चक्रीय् बफ़र्स के रूप में किया जा सकता है – अधिशेष (सरप्लस) वाले वर्षों में वे सिक्के स्टोर/अवशोषित कर सकते हैं और शॉर्टेज के समय उन्हें रिलीज़ कर सकते हैं। मुंबई 30 अक्तूबर 2012 |