मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाना - आरबीआई - Reserve Bank of India
मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाना
मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाना
डीएस.पीसीबी.परि. 3 /13.04.00/2002-03
20 जुलाई 2002
आषाढ़ 1924 (शक)
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
प्रिय महोदय,
मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाना
कृपया आप 30 मार्च 2002 का हमारा परिपत्र शबैंवि.डीएस.पीसीबी.परि.38/13.04.00/2001-02 देखें जिसमें बैंकों को 1 अप्रैल 2002 से अग्रिमों पर मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाने की पद्धति अपनाने के लिए सूचित किया गया था ।
2. इन अनुदेशों के संबंध में स्पष्टीकरण मांगते हुए हमसे बैंकों ने पूछताछ की है । इस मामले की जांच की गयी है और हम सूचित करते हैं कि 30 मार्च 2002 के हमारे निदेश शबैवि.सं.डीआइर. 5/13.04.00/ 2001-02 की मद (i) के अनुसार कृषि अग्रिमों पर ब्याज लगाने /चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की मौजूदा प्रथा को फसली मौसमों से सहबद्ध किया जायेगा और मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाने संबंधी अनुदेश कृषि अग्रिमों पर लागू नहीं होंगे । बैंकों को उक्त निदेश के पैराग्राफ (ii) से (iv) में बताये गये अन्य अग्रिमों के संदर्भ में मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाना होगा । इस संबंध में यह स्पष्ट किया जाता है कि 1 अप्रैल 2002 से मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाने की पद्धति को अपनाने की परिकल्पना 31 मार्च 2004 को समाप्त वर्ष से ऋण-हानि के निर्धारण के लिए 90 दिन का मानदंड अपनाने तथा उसके परिणामस्वरूप ऋणकर्ताओं के खातों की गहन निगरानी के परिप्रेक्ष्य में की गयी थी । अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे 31 मार्च 2003 तक मासिक अंतरालों पर चक्रवृद्धि ब्याज न लगायें और मासिक चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की प्रथा 1 अप्रैल 2003 से अपनायें ।
3. 1 अप्रैल 2003 से मासिक अंतरालों पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाते समय बैंक यह सुनिश्चित करें कि जहां कहीं प्रशासित दरें लागू होती हैं वहां बैंक की न्यूनतम उधार दर को ध्यान में रखते हुए अग्रिमों के संबंध में उन्हें उपयुक्त रूप से पुन: सुसंबद्ध करना चाहिए (उधार दर निर्धारित करने के लिए उन्हें दी गयी स्वतंत्रता को देखते हुए) ताकि वे उनका अनुपालन कर सकें । अन्य सभी मामलों में भी बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रभावी दर मासिक अंतरालों पर ब्याज लगाने की प्रणाली अपनाये जाने के कारण मात्र से ही अधिक न हो जाये ।
4. अल्प समय की फसलों एवं तत्संबंधी कृषि कार्यकलापों पर उपर्युक्त अनुदेश के लागू होने के बारे में भी कुछ स्पष्टीकरण मांगे गए हैं । यह सूचित किया जाता है कि बैंक अल्प समय की फसलों और संबद्ध कृषि कार्यकलापों के संबंध में यदि ऋण / किस्त का भुगतान अतिदेय हो जाये तो वे ब्याज लगाने और चक्रवृध्दि ब्याज लगाने के समय ऋण लेने वालों के साथ लचीलेपन और फसल कटने /बेचने के मौसम के आधार पर तय की गयी तारीखों को ध्यान में रखें ।
भवदीय
(एस.करुप्पसामी)
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक