तृतीय पक्षकार आदाता खाता चेकों का संग्रह - चेकों की रशि को तृतीय पक्षकार (थर्ड पार्टी) के खाते में जमा करने पर प्रति - आरबीआई - Reserve Bank of India
तृतीय पक्षकार आदाता खाता चेकों का संग्रह - चेकों की रशि को तृतीय पक्षकार (थर्ड पार्टी) के खाते में जमा करने पर प्रति
आरबीआइ. सं. 2010-11/238 19 अक्तूबर 2010 सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक महोदय तृतीय पक्षकार आदाता खाता चेकों का संग्रह - कृपया उपर्युक्त विषय पर 11 सितंबर 2010 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.केका. आरआरबी.बीसी.सं. 19/03.05.33/2009-10 देखें जिसमें यह बताया गया है कि "आदाता खाता" के रूप में रेखांकित चेकों का तृतीय पक्षकार खातों (सहकारी ऋण समितियों) के माध्यम से संग्रह करने की प्रथा को अनुमति नहीं दी जा सकती । तथापि, भुगतान प्रणाली के दृष्टिकोण से चेकों के संग्रह को सुगम बनाने के लिए उक्त परिपत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि समाशोधन गृहों के उप-सदस्य परिपत्र में उल्लिखित कतिपय परिस्थितियों में अपने ग्राहकों के खातों में क्रेडिट करने के लिए उनके चेकों का संग्रह प्रायोजक सदस्य के माध्यम से कर सकते हैं । 2. यह बात हमारी जानकारी में लाई गई है कि चूंकि सहकारी ऋण समितियां समाशोधन गृहों के उप-सदस्य भी नहीं हैं इसलिए ऐसी सहकारी ऋण समितियों के सदस्यों को, जिनके पास बैंक खाता नहीं है, उनके नाम से आहरित आदाता खाता चेकों के संग्रह में कठिनाई होती है । सहकारी ऋण समितियों के सदस्यों द्वारा आदाता खाता चेकों के संग्रह में महसूस की जाने वाली कठिनाइयों को कम करने की दृष्टि से यह स्पष्ट किया जाता है कि संग्रहकर्ता बैंक अपने ऐसे ग्राहकों के खाते में जमा करने के लिए, जो सहकारी ऋण समितियां हैं रु.50,000/- से अनधिक राशि के लिए आहरित आदाता खाता चेकों के संग्रह पर विचार कर सकते हैं बशर्ते ऐसे चेकों के आदाता इन सहकारी ऋण समितियों के सदस्य हों । इस प्रकार चेक संग्रह करने के लिए बैंकों के पास संबंधित सहकारी ऋण समितियों द्वारा लिखित रूप में दिया गया अभिवेदन होना चहिए कि वसूली के बाद चेकों की राशि सहकारी ऋण समिति के उसी सदस्य के खाते में क्रेडिट की जाएगी जो चेक पर अंकित नाम के अनुसार आदाता है । तथापि, यह व्यवस्था परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 के उपबंधों सहित उसकी धारा 131 की अपेक्षाओं को पूरा करने के अधीन होगी । 3. संग्रहकर्ता बैंकों को ऐसी सहकारी ऋण समितियों के संबंध में समुचित सावधानी बरतनी चहिए और यह सुनिश्चित करना चहिए कि ग्राहकों के ‘अपने ग्राहक को जानिए’ (केवाइसी) संबंधी दस्तावेज़ समिति के अभिलेख में सुरक्षित रखे हैं और संवीक्षा के लिए बैंक को उपलब्ध हैं । 4. तथापि, संग्रहकर्ता बैंकों को यह बात ध्यान में रखनी चहिए कि चेक के वास्तविक स्वामी द्वारा दावा किए जाने की स्थिति में चेक के वास्तविक स्वामी के अधिकार इस परिपत्र के द्वारा किसी भी प्रकार प्रभावित नहीं होते हैं और बैंकों को यह प्रमणित करना होगा कि उन्होंने संदर्भाधीन चेक का संग्रह करते समय सद्भाव से और सावधानीपूर्वक काम किया था। भवदीय ( बी.पी.विजयेन्द्र ) |