कृषि ऋणों पर ब्याज को मूलधन में जोड़ना - आरबीआई - Reserve Bank of India
कृषि ऋणों पर ब्याज को मूलधन में जोड़ना
भारिबैं / 2010-11/474 11 अप्रैल 2011 अध्यक्ष् महोदय, कृषि ऋणों पर ब्याज को मूलधन में जोड़ना कृपया उपर्युक्त विषय पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को संबोधित 11 जून 2002 के परिपत्र आरआरबी.बीसी.सं. 105/03.05.34/2001502 के पैरा 2 के साथ पठित ग्राआऋवि. के 11 जुलाई 2001 के परिपत्र आरआरबी.बीसी.सं. 96/03.05.3422001-02 के पैरा 2 में निहित अनुदेशों के साथ-साथ अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को संबोधित प्राथमिकता क्षेत्र को ऋण के संबंध में 01 जुलाई 2010 के भारतीय रिज़र्व बैंक के मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि. केंका.आयो.बीसी.सं. 10/04.09.01/2010-11 में पैरा 5 में निहित अनुदेश् देखें। 2. नाबार्ड और भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा चुनिंदा राज्यों में किए गए एक अध्ययन से यह प्रकट हुआ है कि कुछ क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों में कृषि ऋण पर ब्याज को तिमाही/छमाही आधार पर मूलधन में जोड़ देने की प्रथा व्याप्त है, फसल / फसल कटाई के चक्रों के अनुसार जोड़ने की नहीं । कतिपय मामलों में नाबार्ड ने यह भी पाया है कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, अपने प्रायोजक बैंकों द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर पैकेज का प्रयोग कर रहे हैं, जिसमें अगली अवधि के लिए ब्याज लगाते समय ब्याज को मूलधन से अलग रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। जहाँ कहीं भी हाथ से गणना की जाती थी, वहाँ कुछ ही मामलों में ब्याज को मूलधन में जुड़ा हुआ पाया गया, जिसे मानवीय गलती बताया गया। 3. अतः यह अनिवार्य है कि प्रायोजक बैंक/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ऐसा सॉफ्टवेयर पैकेज विकसित करें / उक्त साफ्टवेयर पैकेज को इस प्रकार संशोधित करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कृषि ऋणों पर ब्याज को मूलधन में जोड़ना, इस विषय परउन्हें जारी किएगएवर्तमानअनुदेशों के अनुरूप हो । क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक संगत मामलों की पुनर्जांच करें और गलती से अधिक लगाई गई ब्याज की राशि को उक्त खातों में पुनः जमा करें और हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों / नाबार्ड को इसकी सूचना दें। भवदीय ( सी.डी.श्रीनिवासन ) |