केन्द्रीय प्रतिपक्षों (सीसीपी) हेतु निदेश - आरबीआई - Reserve Bank of India
केन्द्रीय प्रतिपक्षों (सीसीपी) हेतु निदेश
आरबीआई/2018-2019/209 12 जून 2019 आरबीआई द्वारा प्राधिकृत केन्द्रीय प्रतिपक्ष/ महोदया / महोदय केन्द्रीय प्रतिपक्षों (सीसीपी) हेतु निदेश कृपया 15 अक्तूबर 2018 के परिपत्र डीपीएसएस.केका.ओडी.सं.No.803/06.08.005/2018-2019 का अवलोकन करें जिसमें सीसीपी के लिए पूंजी की अपेक्षाओं और अभिशासन व्यवस्था से संबंधित निदेशों के निर्धारण के साथ विदेशी सीसीपी को मान्यता देने की व्यवस्था भी दी गई थी। 2. इसके खंड-अ – भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में परिचालन के लिए प्राधिकृत स्वदेशी सीसीपी के अभिशासन पर निदेशों में प्रबंध निदेशक, निदेशक, नामित निदेशक, स्वतंत्र निदेशक और अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए 65 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित की गई थी। 3. इन निदेशों की समीक्षा के बाद निदेशक, नामित निदेशक, स्वतंत्र निदेशक और अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए आयु की ऊपरी सीमा को संशोधित करके 70 वर्ष कर दिया गया है। प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्ति के लिए ऊपरी सीमा 65 वर्ष ही बनी रहेगी। 4. सीसीपी के संचालन का नियंत्रण करने हेतु नवीनतम निदेश अनुलग्नक में दिए गए हैं। भवदीया, (संगीता लालवानी) संलग्नक: यथोक्त केन्द्रीय प्रतिपक्षों (सीसीपी) हेतु निदेश 1. अनुमेयता भारत में क्लीयरिंग और निपटान सहित अपने परिचालन करने के लिए इन निदेशों के प्रावधान भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (2007 का अधिनियम 51) के अधीन प्राधिकृत स्वदेशी केंद्रीय प्रतिपक्ष और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अधीन मान्यता प्रदत्त विदेशी सीसीपी पर लागू होंगे। 2. परिभाषाएँ इन निदेशों में प्रयुक्त प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं: (क) "अधिनियम" का अर्थ है भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (2007 का अधिनियम 51)। (ख) "प्राधिकृत केन्द्रीय प्रतिपक्ष" का अर्थ है ऐसा सीसीपी जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस अधिनियम की धारा 7 की उपधारा के तहत प्राधिकार प्रमाणपत्र जारी किया है। (ग) “कम्पनी” का अर्थ होगा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(20) में परिभाषित कम्पनी। (घ) ‘नियंत्रण’ में शामिल होंगे अधिकांश निदेशकों को नियुक्त करने के अधिकार या प्रबंधन को नियंत्रण में रखने या किसी व्यक्ति द्वारा या अलग-अलग स्तरों पर कार्यरत व्यक्तियों द्वारा सहमति से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग किए जा सकने वाले नीतिगत निर्णय जिसमें शेयरधारिता के कारण या प्रबंधन अधिकारों या शेयरधारकों के समझौतों या मतदान समझौतों या किसी अन्य प्रकार से प्रबंधन के अधिकार प्राप्त हैं। (ङ) ‘केन्द्रीय प्रतिपक्ष’ (सीसीपी) का अर्थ है सिस्टम प्रदाता जो नवस्थापन के कारण सिस्टम में संव्यवहार के सहभागियों के बीच सन्निविष्ट हैं, जिन्हें निपटान के लिए प्रविष्ट किया गया है जिसके कारण वे प्रत्येक विक्रेता के लिए क्रेता और प्रत्येक क्रेता के लिए विक्रेता का कार्य करते हैं जिसका प्रयोजन इनके संव्यवहारों का निपटान प्रभावी करना है। (च) ‘बोर्ड’ का अर्थ है प्राधिकृत सीसीपी का निदेशक बोर्ड। (छ) ‘स्वदेशी केन्द्रीय प्रतिपक्ष’ का अर्थ है भारत में निगमित और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस अधिनियम के तहत प्राधिकृत कोई सीसीपी। (ज) 'विदेशी केन्द्रीय प्रतिपक्ष' का अर्थ है भारत के बाहर निगमित कोई सीसीपी (झ) ‘प्राधिकृत केन्द्रीय प्रतिपक्ष’ का अर्थ है ऐसा विदेशी सीसीपी जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस अधिनियम के तहत भारत में सीसीपी के तौर पर परिचालन करने के लिए प्राधिकृत किया जाता है। (ञ) ‘गैर कार्यपालक निदेशक’ का अर्थ है पूर्णकालिक निदेशक के अलावा कोई निदेशक। (ट) ‘वरिष्ठ प्रबंधन’ का अर्थ है कम्पनी के वे कार्मिक जो इसकी मुख्य प्रबंधन टीम के सदस्य हैं, इनमें निदेशक बोर्ड शामिल नहीं है, इसमें कार्यकारी प्रमुखों सहित वे सभी व्यक्ति शामिल हैं जो कार्यपालक निदेशकों से एक स्तर न्यून हैं। (ठ) ‘प्रयोक्ता’ का अर्थ है समान्य कारोबारी सत्र में पूरा किए गए कारोबार की क्लीयरिंग और निपटान क प्रयोजन से सीसीपी के उपनियमों, नियमों और विनियमों के अनुसार सदस्य के रूप में प्रविष्ट नियंत्रित संस्थान। (ड) ‘सुविधादाता’ का अर्थ है ऐसा संस्थान जो सीसीपी के उपनियमों, नियमों और विनियमों के अनुसार इसके सदस्य के रूप में प्रविष्ट ‘प्रयोक्ता’ के अलावा कोई अन्य प्रतिष्ठान। (ढ) इन निदेशों में प्रयुक्त और परिभाषित नहीं किए गए लेकिन इस अधिनियम या कम्पनी अधिनियम, 2013 परिभाषित हैं तो उन शब्दों और अभिव्यक्तियों का वही अर्थ रहेगा जो संबंधित अधिनियमों में निर्धारित है। खंड क अभिशासन ऐसी प्रक्रिया निर्धारित करता है जिसके माध्यम से कोई संस्थान अपने उद्देश्यों को निर्धारित करता है, इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तरीकों को निर्धारित करता है और उद्देश्यों की तुलना में कार्यनिष्पादन की निगरानी करता है। स्वदेशी सीसीपी के अभिशासन में निहित व्यापक सिद्धांत निम्नानुसार हैं: 1. बोर्ड का गठन (1) प्रत्येक प्राधिकृत सीसीपी के बोर्ड में शामिल होंगे: (क) नामित निदेशक; (ख) स्वतंत्र निदेशक; (ग) प्रबंध निदेशक; और (घ) अन्य ऐसे निदेशक जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किए जाएं (2) बोर्ड में निदेशकों की न्यूनतम संख्या कम्पनी अधिनियम, 2013 में बताए अनुसार रखनी होगी। (3) “स्वतंत्र निदेशक” का वही अर्थ रहेगा जो कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 149(6) में निर्धारित किया गया है। (4) “नामित निदेशक” का अर्थ ऐसा निदेशक है जो: (क) सीसीपी के संस्था के अंतर्नियमों के अनुसरण में किसी शेयारधारक द्वारा नामित किया गया हो; या (ख) ततसमय के लिए लागू किसी भी कानून के अनुसरण में या किसी अन्य करार के अनुसार किसी वित्तीय संस्थान द्वारा नामित किया गया हो। (5) प्रबंध निदेशक इनके बोर्ड में पदेन निदेशक होंगे और इन्हें स्वतंत्र निदेशकों या नामित निदेशकों में से किसी भी श्रेणी में शामिल नहीं किया जाएगा। (6) बोर्ड और सीसीपी की समितियों में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या कम-से-कम नामित निदेशकों (प्रबंध निदेशक सहित) की संख्या के समतुल्य होनी चाहिए और मतों की संख्या बराबर हो जाने की स्थिति में बोड/समिति के अध्यक्ष (जो स्वंतत्र निदेशक होते हैं) को द्वितीय या निर्णायक मत का अधिकारी होगा। (7) प्राधिकृत सीसीपी के बोर्ड में किसी भी विदेशी संस्थागत निवेशक को किसी प्रकार का प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा। (8) कम-से-कम एक स्वतंत्र निदेशक बोर्ड की बैठक में उपस्थित रहेंगे ताकि कोरम का गठन हो जाए। सीसीपी के निदेशक बोर्ड की बैठक में कुल संख्या का एक तिहाई या दो निदेशकों को मिलाकर, जो भी उच्चतर हो, कोरम माना जाएगा। 2. बोर्ड की भूमिका और दायित्व (1) प्राधिकृत सीसीपी के बोर्ड की भूमिका और दायित्व में निम्नलिखित शामिल रहेगा: (क) सीसीपी हेतु स्पष्ट रणनीतिगत लक्ष्यों की स्थापना; (ख) वरिष्ठ प्रबंधन की प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करना; (ग) जोखिम प्रबंधन प्रकार्य और तात्विक जोखिम निर्णयों की स्थापना और निगरानी; (घ) आंतरिक नियंत्रण कार्यों की निगरानी (स्वतंत्रता और पर्याप्त संसाधन सुनिश्चित करने सहित); (ङ) सभी पर्यवेक्षी और निगरानी अपेक्षाओं का अनुपालन सुनिश्चित करना; (च) समुचित प्रतिपूर्ति नीतियों की स्थापना करना; (छ) वित्तीय स्थायित्व और अन्य संगत लोक हितों के महत्त्व सुनिश्चित करना; (ज) स्वामियों, सहभागिेयों और अन्य उचित हिस्सेदारों को जिम्मेदारी प्रदान करना; और (झ) सीसीपी का उचित और पारदर्शी संचालन सुनिश्चित करना 3. निदेशकों की नियुक्ति की शर्तें (1) सभी निदेशकों की नियुक्ति यहां बताए गए ‘योग्य और उचित’ की कसौटियों के आधार पर सीसीपी की निदेशकों के नामांकन और पारिश्रमिक समिति की संस्तुतियों के आधार पर सीसीपी के बोर्ड द्वारा की जाएगी। (2) नामांकनकर्ता संस्थान द्वारा नामित निदेशक सेवारत पदाधिकारी रहेंगे जिनके पास समुचित अनुभव और विशेषता हो। (3) निदेशकों, प्रबंध निदेशकों और अध्यख की नियुक्ति का तरीका प्राधिकृत सीसीपी, कम्पनी अधिनियम, 2013 और/या इनके तहत नियमों या विनियमों की शर्तों के अनुसार रहेगा। 4. अध्यक्ष की नियुक्ति (1) अध्यक्ष भारत का नागरिक होगा। (2) अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल से अधिक नहीं रहेगा। संतोषजनक कार्यनिष्पादन समीक्षा और भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन की शर्त के आधार पर अध्यक्ष का कार्यकाल एक और कालावधि तक बढ़ाया जा सकेगा। (3) गैर-कार्यपालक अध्यक्ष की नियुक्ति / इस रूप में बरकरार रहने के लिए अधिकतम अनुमेय आयु 70 वर्ष1 रहेगी। (4) भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन की शर्त के तहत बोर्ड द्वारा स्वतंत्र निदेशकों में से भी अध्यक्ष का चयन किया जा सकेगा। शिक्षा, विशेषज्ञता, ट्रैक रिकार्ड और सत्यनिष्ठा के आधार इस पद के लिए योग्य पाए गए अभ्यर्थी/अभ्यर्थियों का औचित्य सुनिश्चित करने के बाद अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए प्रस्ताव करने वाले अभ्यर्थियों के नाम सीसीपी द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को अग्रेषित किए जाएंगे। परिशिष्ट-1 – ‘योग्य और उचित’ कसौटियां – में दिए गए प्रपत्र में दी गई सूचना भेजे गए नाम/नामों के साथ होनी चाहिए। (5) भारतीय रिज़र्व बैंक इन आवेदनों की संवीक्षा करेगा ताकि ‘योग्य और उचित’ कसौटियों के आधार पर व्यक्ति की योग्यता सुनिश्चित हो सके और उसके बाद यह अपना अनुमोदन या अन्यथा की जानकारी सीसीपी को प्रेषित करेगा। (6) उक्त प्रक्रिया का अनुसरण नियुक्ति/पुन: नियुक्ति के समय किया जाएगा और इसके बाद ही सीसीपी के महा-निकाय की वार्षिक सभा में रखा जाएगा। 5. निदेशक / स्वतंत्र निदेशक / नामित निदेशक की नियुक्ति (1) निदेशक / स्वतंत्र निदेशक / नामित निदेशक भारत के नागरिक होंगे। (2) निदेशक / स्वतंत्र निदेशक / नामित निदेशक की नियुक्ति तीन-तीन साल के अधिकतम दो कार्यकालों के लिए अथवा 70 साल2 की आयु, जो भी पहले हो, तक होगी। हालांकि इन निदेशों के जारी होने की तारीख को सीसीपी के बोर्ड में सेवारत निदेशक अपना कार्यकाल पूरा होने तक पद पर बने रहेंगे। (3) निदेशक / स्वतंत्र निदेशक / नामित निदेशक का प्रथम कार्यकाल एक और कार्यकाल तक के लिए बढ़ाया जा सकेगा लेकिन कार्यनिष्पादन की संतोषजनक समीक्षा और भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन की शर्त रहेगी। (4) कोई नामित निदेशक को स्वतंत्र निदेशक के तौर पर नियुक्त किए जाने या इसके व्यतिक्रम स्थिति के लिए तीन साल की कूलिंग-ऑफ अवधि अनुमेय होगी। (5) निदेशक के पास सीसीपी के परिचालनों के संगत क्षेत्रों में विषयगत विशेषज्ञता होनी चाहिए। (6) निदेशकों की नियुक्ति/पुन: नियुक्ति के बारे में प्राधिकृत सीसीपी द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित किया जाएगा और बोर्ड द्वारा नियुक्ति दिए जाने की तारीख से 15 कैलेन्डर दिवस के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को यथा निर्धारित किए अनुसार निदेशकों की प्रोफाइल, ‘योग्य और उचित’ कसौटियों के बारे में निदेशकों द्वारा प्रस्तुत घोषणा और निदेशक के तौर पर कार्य करने के लिए उनकी सहमति भिजवाएंगे। (7) प्राधिकृत सीसीपी द्वारा बोर्ड में किसी भी परिवर्तन की जानकारी वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद 15 कैलैन्डर दिवस के भीतर निर्धारित प्रपत्र में भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रकटीकरण भेजेंगे। 6. प्रबंध निदेशक की नियुक्ति (1) प्रबंध निदेशक भारत के नागरिक होंगे। (2) प्रबंध निदेशक द्वारा कम्पनी अधिनियम, 2013 के तहत यथानिर्धारित कसौटियों और इस बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस अधिनियम, समय-समय पर यथासंशोधित, के तहत यदि कोई निदेश जारी किए गए हों तो उनके अनुसार मानदंडों को को पूरा करेंगे। (3) प्रबंध निदेशक का कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक नहीं होगा। प्रबंध निदेशक का कार्यकाल एक और कार्यकाल के लिए अथवा 65 वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा, जो भी पहले हो, बशर्ते कार्यनिष्पादन की संतोषजनक समीक्षा हो और भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमोदन लिया गया हो। हालांकि सीसीपी के प्रबंध निदेशक, इन निदेशों के जारी किए जाने की तारीख को, अपना कार्यकाल पूरा होने तक पद पर बने रहेंगे। (4) प्रबंध निदेशक पद का नवीकरण करने के मामले में नियुक्ति प्रक्रिया को नए सिरे से संचालित किया जाएगा। (5) किसी भी प्राधिकृत सीसीपी के प्रबंध निदेशक की नियुक्ति, नियुक्ति के नवीकरण और सेवा के समापन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन अपेक्षित होगा। (6) सीसीपी द्वारा प्रबंध निदेशक की नियुक्ति के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निम्नानुसार है: (क) प्रबंध निदेशक का चयन करने के लिए सीसीपी का बोर्ड एक पद्धति निर्धारित करेगा और इसके लिए यह एक समिति (इसे जो कोई भी नाम दिया जाए) का गठन करेगा। (ख) अर्हता, विशेषज्ञता, ट्रैक रिकार्ड, सत्यनिष्ठाा और ‘योग्य और उचित’ की अन्य कसौटियों के आधार नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की योग्यता (जैसा कि परिशिष्ट – 1 में विस्तार से बताया गया है) का निर्धारण करने के लिए यह विधिवत सावधानी की प्रक्रिया रखेगा। (ग) सीसीपी चयनित अभ्यर्थियों के नाम और उनका जीवन-वृत्त और अन्य घोषणाएं पूर्वानुमोदन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक को भेजेगा। (7) ‘योग्य और उचित’ की कसौटियों के आधार पर व्यक्ति की उपयुक्तता का निर्धारण करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक आवेदन की संवीक्षा करेगा और इसके बाद यह अपने अनुमोदन अथवा अन्यथा की जानकारी सीसीपी को देगा। (8) इस पद के लिए अनुक्रम में नियुक्ति की प्रक्रिया काफी समय पहले आरंभ कर दी जानी चाहिए ताकि वर्तमान पदधारी का कार्यकाल पूरा होने से काफी पहले ही अधिनिर्धारण/नियोजन पूरा हो जाए। 7. वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग की नियुक्ति (1) प्राधिकृत सीसीपी की नामांकन और पारिश्रमिक समिति द्वारा यथानिर्धारित किए अनुसार ही वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग के कार्मिकों की नियुक्ति और पारिश्रमिक रहेगा। (2) वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग के दायित्वों में निम्नलिखित समाहित होंगे: (क) बोर्ड द्वारा यथा निर्धारित उद्देश्यों और रणनीतियों के साथ प्राधिकृत सीसीपी के क्रियाकलापों की समरूपता सुनिश्चित करना; (ख) प्राधिकृत सीसीपी के उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिए आंतरिक नियंत्रण पद्धतियों और अनुपालन का डिजाइन तैयार करना और स्थापित करना ; (ग) आंतरिक नियंत्रण पद्धतियों की नियमित समीक्षा और परीक्षण; (घ) यह सुनिश्चित करना कि जोाखिम प्रबंधन और अनुपालन के लिए पर्याप्त संसाधन लगाए गए हैं; (ङ) जोखिम नियंत्रण प्रक्रिया; और (च) यह सुनिश्चित करना कि सीसीपी की क्लीयरिंग और संबंधित क्रियाकलापों से प्राधिकृत सीसीपी को हाने वाले जोखिमों का समाधान किया गया है। (3) सीसीपी के सभी कर्मचारियों को भुगतान की जा रही प्रतिपूर्ति के माध्यक की तुलना में उन्हें भुगतान की जा रही प्रतिपूर्ति का अनुपात सीसीपी प्रकट करेंगे। 8. निदेशकों के लिए योग्य और उचित की कसौटियां किसी निदेशक को ‘योग्य और उचित समझा जाएगा यदि: (1) उस व्यक्ति का रिकार्ड निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा का है, जिसमें निम्नलिखित के अलावा अन्य भी शामिल हैं — (क) वित्तीय सत्यनिष्ठा; (ख) अच्छी प्रतिष्ठा और चरित्र; और (ग) ईमानदारी; (2) ऐसे व्यक्ति में निम्नलिखित में से कोई अनर्हता नहीं हो — (क) नैतिक पतन या किसी आर्थिक अपराध या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियंत्रित किसी अन्य कानून के तहत किसी अन्य अपराध के लिए किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध किया गया हो; (ख) ऋणशोधन अक्षम घोषित किया गया है और इससे मुक्त नहीं हुआ हो; (ग) कोई आदेश जो किसी विनियामक प्राधिकरण द्वारा पारित हो और उस आदेश में निर्धारित अवधि पूरी नहीं हुई हो जिसमें किसी व्यक्ति को किसी भी वित्तीय प्रणाली में अभिगम/कारोबार करने से प्रतिबंधित, निषिद्ध या अयोग्य कहा गया हो; (घ) किसी सक्षम न्यायक्षेत्र वाले न्यायालय द्वारा विक्षिप्त दिमाग वाला पाया गया हो और उसके निष्कर्ष अभी लागू हो; और (ङ) वित्तीय रूप से सुदृढ़ नहीं हो। (3) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति योग्य और उचित व्यक्ति है अथवा नहीं तो ऐसे प्रश्न पर भारतीय रिज़र्व बैंक का निर्णय अंतिम रहेगा। 9. बोर्ड की समितियां (1) नामांकन और पारिश्रमिक समिति (1) प्राधिकृत सीसीपी एक नामांकन और पारिश्रमिक समिति का गठन करेंगे जिसमें तीन या अधिक गैर-कार्यपालक निदेशक होंगे इनमें से अधिकांश स्वतंत्र निदेशक होंगे। प्रावधान किया जाता है कि सीसीपी का अध्यक्ष नामांकन और पारिश्रमिक समिति का सदस्य तो हो सकता है पर ये ऐसी समिति की अध्यक्षता नहीं करेंगे। (2) नामांकन और पारिश्रमिक समिति उन व्यक्तियों को अभिनिर्धारित करेगी जो निर्धारित कसौटियों के अनुसार वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग में नियुक्त किए जा सकने के लिए योग्य हैं, इनकी नियुक्ति के लिए बोर्ड से संस्तुति करेगी और प्रत्येक निदेशक के कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन करेगी और यदि अपेक्षित हुआ तो उन्हें हटाने की सिफारिश करेगी। (3) नामांकन और पारिश्रमिक समिति निदेशक की अर्हताओं, सकारात्मक योगदान और स्वतंत्रता के निर्धारण हेतु कसौटियों का निरूपण करेगी और निदेशकों, प्रबंध निदेशकों और वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग हेतु पारिश्रमिक से संबंधित नीति की संस्तुति बोर्ड से करेगी। समिति द्वारा इस नीति की निगरानी की जाएगा और कम-से-कम वार्षिक आधार पर इसकी समीक्ष की जाएगी। (4) नामांकन और पारिश्रमिक समिति नीति का निरूपण करते समय सुनिश्चित करेगी कि (क) पारिश्रमिक का स्तर और गठन समुचित प्रकार का है और यह सीसीपी को सफलतापूर्वक चलाने के लिए अपेक्षित गुणों वाले निदेशकों को आकर्षित करने, बनाए रखने और प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त है; (ख) कार्यनिष्पादन से पारिश्रमिक का संबंध स्पष्ट है और समुचित कार्यनिष्पादन के संस्तरों को पूरा करता है; और (ग) प्रबंध निदेशक और वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग के कार्मिकों के पारिश्रमिक में निश्चित और प्रोत्साहक भुगतान के बीच एक संतुलन निहित है जो अल्प और दीर्घकालीन कार्यनिष्पादन के प्रयोजनों को प्रकट करता है जो सीसीपी के कार्यचालन और इसके लक्ष्यों के लिए समुचित है। (2) जोखिम प्रबंधन समिति (1) प्रत्येक प्राधिकृत सीसीपी बोर्ड की जोखिम प्रबंधन समिति का गठन करेगा जिसकी अध्यक्षता एक ऐसे स्वतंत्र निदेशक द्वारा की जाएगी जो जोखिम प्रबंधन के क्षेत्र में पर्याप्त ज्ञान रखते हों। (2) यह समिति अपनी बैठकों में शामिल होने के लिए वरिष्ठ पदाधिकारियों और स्वतंत्र विशेषज्ञों को आमंत्रित करे। (3) जोखिम प्रबंधन समिति जोखिम प्रबंधन की विस्तृत नीति का निरूपण करेगी जिसे बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाएगा। यह समिति वार्षिक आधार पर जोखिम प्रबंधन नीति की समीक्षा करेगी। (4) जोखिम प्रबंधन विभाग के प्रमुख जोखिम प्रबंधन नीति लागू करने के जिम्मेदार होंगे और जोखिम प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को रिपोर्ट करने के लिए उनके पास एक अतिरिक्त रिपोर्टिंग व्यवस्था रहेगी। (5) जोखिम प्रबंधन समिति जोखिम प्रबंधन नीति के कार्यान्वयन की निगरानी करेगी और बोर्ड को इसके कार्यान्वयन और यदि कोई विचलन हुआ तो उसके जानकारी देती रहेगी। (6) जोखिम प्रबंधन समिति ऐसी किसी भी व्यवस्था की जानकारी बोर्ड को देगी जो प्राधिकृत सीसीपी के जोखिम प्रबंधन को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि जोखिम मॉडल, मूलभूत पद्धतियों, सदस्यों को स्वीकार करने हेतु कसौटियों, लिखतों के नए वर्गों या कार्यों की आउटसोर्सिंग में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन। (3) लेखा परीक्षा समिति (1) किसी प्राधिकृत सीसीपी की लेखापरीक्षा समिति में स्वतंत्र न्यूनतम तीन निदेशक होने चाहिए जिनमें स्वतंत्र निदेशक अधिसंख्य में होने चाहिए। प्रावधान किया जाता है कि लेखापरीक्षा समिति के अध्यक्ष सहित इसके अधिकांश सदस्यों में वित्तीय विवरणों को पढ़ने और समझने की योग्यता होनी चाहिए। (2) प्रत्येक लेखापरीक्षा समिति बोर्ड द्वारा लिखित में निर्दिष्ट विचारार्थ विषयों के अनुसार कार्य करेगी, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित का समावेश होगा: (क) सीसीपी के लेखापरीक्षकों की नियुक्ति, पारिश्रमिक और नियुक्ति की शर्तों हेतु संस्तुति करना; (ख) लेखापरीक्षक की स्वतंत्रता और कार्यनिष्पादन और लेखापरीक्षा प्रक्रिया की प्रभाशीलता की समीक्षा और निगरानी; (ग) वित्तीय विवरणों और इन पर लेखापरीक्षक की रिपोर्ट का परीक्षण; (घ) संबद्ध पार्टियों के साथ सीसीपी के संव्यवहारों के परावर्ती संशोधन का अनुमोदन; (ङ) अंतर-कार्पोरेट ऋणों और निवेशों की संवीक्षा; (च) सीसीपी की हामीदारियों या आस्तियों का मूल्यांकन, जो भी अनिवार्य हो; (छ) आंतरिक वित्तीय नियंत्रणों और जोखिम प्रबंधन प्रणाली की ऑडिट रिपोर्ट का मूल्यांकन; (ज) सार्वजनिक प्रस्तावों के माध्यम से जुटाई गई निधियों के अंतिम प्रयोग और संबंधित मामलों की निगरानी; (झ) कम्पनी अधिनियम, 2013 या अन्य अधिनियमों या इनके तहत नियमों/विनियमों के तहत यथा-निर्दिष्ट अन्य मामले। (3) बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले ही लेखापरीक्षा समिति आंतरिक नियंत्रण प्रणालियों के बारे में लेखापरीक्षकों के अभिमत, लेखापरीक्षा के दायरे, लेखापरीक्षकों के अवलोकनों और वित्तीय विवरणों की समीक्षा मांग सकती है और आंतरिक तथा सांविधिक लेखापरीक्षकों और सीसीपी के प्रबंधन के साथ किसी भी संबंधित मुद्दे पर विचार विमर्श भी कर सकती है। (4) लेखापरीक्षा समिति को यह प्राधिकार होगा कि उप-धारा(2) में निर्दिष्ट या बोर्ड द्वारा इसे भेजी गई मदों के संबंध में किसी मामले की जांच करे और इस प्रयोजन के लिए इसे यह शक्ति होगी कि बाहरी स्रोतों से व्यावसायिक परामर्श करे और इसे सीसीपी के रिकार्ड में निहित जानकारी तक पूरी पहुंच रहेगी। (5) जब लेखापरीक्षकों की रिपोर्ट पर विचार किया जाए तो लेखापरीक्षा समिति की बैठकों में सीसीपी के लेखापरीक्षकों और वरिष्ठ प्रबंधन के कार्मिकों को सुने जाने का अधिकार होगा लेकिन इन्हें मतदान का अधिकारी नहीं होगा। (6) प्राधिकृत सीसीपी कम्पनी अधिनियम, 2013 के तहत आंतरिक लेखापरीक्षक और सांविधिक लेखापरीक्षक और आरबीआई द्वारा समय-समय पर इस अधिनियम और इसके तहत नियमों या विनियमों के तहत यथाविनिर्दिष्ट अन्य लेखापरीक्षक नियुक्त करेगी। (7) प्राधिकृत सीसीपी ऐसी अन्य समितियां भी गठित करेंगे जो कम्पनी अधिनियम, 2013 के तहत निर्धारित हो या आरबीआई द्वारा इस अधिनियम के तहत या इसके तहत बनाए गए नियमों या विनियमों के तहत निर्दिष्ट हो। (4) तकनीकी समिति (1) प्रत्येक प्राधिकृत सीसीपी बोर्ड की तकनीकी समिति का गठन करेगा जिसकी अध्यक्षता एक ऐसे स्वतंत्र निदेशक द्वारा की जाएगी जिनके पास सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र का पर्याप्त ज्ञान हो। (2) यह समिति वरिष्ठ पदाधिकारियों और बाहरी स्वतंत्र विशेषज्ञों को अपनी बैठकों में शामिल होने के लिए आमंत्रित करे। (3) तकनीकी समिति सूचना प्रौद्योगिकी पर विस्तृत नीति का निरूपण करेगी जिसे बोर्ड द्वारा अनुमोदन दिया जाएगा। यह समिति इस नीति की समीक्षा वार्षिक आधार पर करेगी। (4) तकनीकी समिति बोर्ड द्वारा लिखित में निर्दिष्ट विचारार्थ विषयों के अनुसार कार्य करेगी, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित का समावेश होगा, लेकिन विषय इतने तक ही सीमित नहीं रहेंगे: (क) आईटी नीतियों/अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों पर परामर्श; (ख) आईटी के महत्त्वपूर्ण निर्णय जो सीसीपी कारोबार के लिए आवश्यक हैं; (ग) आईटी संबद्ध संसाधनों, सिस्टम और अवसंरचना की निगरानी; और (घ) यह समीक्षा करना कि कारोबारी निरंतरता प्रबंधन प्रक्रियाएं और आपदा के बाद बहाली का अभ्यास आवधिक रूप से किया जाता है। (5) विनियमाक अनुपालना समिति (1) प्रत्येक प्राधिकृत सीसीपी द्वारा बोर्ड की विनियामक अनुपालना समिति का गठन किया जाएगा जिसकी अध्यक्षता स्वतंत्र निदेशक द्वारा की जाएगी। (2) विनियामक अनुपालना बोर्ड द्वारा लिखित में निर्दिष्ट विचारार्थ विषयों के अनुसार कार्य करेगी, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित का समावेश होगा, लेकिन विषय इतने तक ही सीमित नहीं रहेंगेइ– (क) विनियामक द्वारा जारी निदेशों के अनुपालन की समीक्षा (ख) निरीक्षण की संस्तुतियों के अनुपालन की निगरानी। 10. अनुपालन अधिकारी (1) प्राधिकृत सीसीपी द्वारा एक अनुपालन अधिकारी पदनामित किया जाएगा। (2) इस अधिनियम और इसके तहत नियमों या विनियमों और अन्य विनियामक निकायों द्वारा जारी दिशानिदेशों और यथाअनुमेय अन्य अधिनियमों के अनुपालन क निगरानी करने का दायित्व अनुपालन अधिकारी पर होगा। (3) अनुपालन अधिकारी: (क) बोर्ड द्वारा स्थापित अनुपालन नीतियों और पद्धतियों को लागू करेंगे और स्थिति की रिपोर्ट विनियामक अनुपालना समिति को देंगे; (ख) अनुपालन नहीं किए जाने की घटनाओं के प्रभावी उपचार हेतु पद्धतियां स्थापित करेंगे; और (ग) सुनिश्चित करेंगे कि अनुपालन कार्य में लगे हुए संबंधित व्यक्तियों को उन सेवाओं और क्रियाकलापों के निष्पादन में नहीं लगाया जाता है जिनकी वे निगरानी करते हैं और ऐसे व्यक्तियों के हित-संघर्षों का समुचित रूप से अभिनिर्धारण करते हुए इन स्थितियों का उन्मूलन किया जाता है। 11. प्रकटीकरण प्राधिकृत सीसीपी द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट वित्तीय स्थिति, प्रयोक्ताओं के अधिकारों और दायित्वों, कार्यनिष्पादन, स्वामित्व और अभिशासन सहित सभी तात्विक मामलों पर भारतीय रिज़र्व बैंक को समय पर और परिशुद्ध प्रकटीकरण भेजा जाता है। 12. हित संघर्ष (1) प्राधिकृत सीसीपी द्वारा (i) इसके प्रबंधन वर्ग, कर्मचारियों, निकट सहयोगियों, धारिताओं, अनुषंगी या सहायक कम्पनियों सहित स्वयं इसके और (ii) इसके सदस्यों के बीच संभावित हित संघर्षों के अभिनिर्धारण और प्रबंध के लिए प्रभावी और लिखित रूप में संगठनात्मक और प्रशासनिक व्यवस्था अवश्य की जाए। (2) प्राधिकृत सीसीपी को एक आंतरिक नियमपुस्तिका रखनी होगी जिसमें इसके वाणिज्यिक और विनियामक कार्यचालनों के बीच संघर्षों के प्रबंधन को दायरे में लिया गया हो। इसके अलावा संघर्ष प्रबंधन की समस्त व्यवस्था की आवधिक समीक्षा की जाएगी और इस प्रकार की समीक्षा के निष्कर्षों के आधार पर इसे सुदृढ़ किया जाएगा। (3) स्वतंत्र निदेशकों द्वारा ऐसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों का अभिनिर्धारण किया जाएगा जिनमें सीसीपी के लिए ऐसे हित संघर्ष निहित हो सकते हैं जिनसे प्राधिकृत सीसीपी के कार्यचालन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता हो या जो इसके बाजार खंड के हित में नहीं हों। इसकी रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक को दी जाएगी। खंड ख करोबार में संभावित हानियों को सहन करने और कार्यरत संस्थान के रूप में निरंतर सेवाएं प्रदान करने के लिए सीसीपी के पास पर्याप्त मालियत होनी चाहिए। रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत/से मान्यता प्राप्त केन्द्रीय प्रतिपक्षों के लिए मालियत के बारे में विशिष्ट अपेक्षाओं को आगे बताया जा रहा है: 1. सीसीपी की मालियत (1) इस अधिनियम की धारा के तहत सीसीपी के रूप में प्राधिकार/मान्यता मांगने के लिए अपना आवेदन प्रस्तुत करने के समय प्रत्येक आवेदक को रु.3 बिलियन न्यूनतम मालियत3 रखनी होगी। (2) सीसीपी के लिए मालियत अपेक्षा की पर्याप्तता की समीक्षा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर की जाएगी। हालांकि सीसीपी के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अपने आकलन के आधार पर उच्चतर मालियत निर्धारित करेगा। (3) जब तक उक्त उप-अनुच्छेद (1) और (2) के तहत, जैसी भी स्थिति हो, निर्धारित मालियत प्राप्त नहीं कर ली जाती है तब तक प्राधिकृत सीसीपी किसी भी तरीके से अपने लाभ का वितरण अपने शेयरधारकों में नहीं करेगा। (4) प्रत्येक प्राधिकृत सीसीपी वित्तीय वर्ष के समापन के बाद छह माह के भीतर सांविधिक लेखापरीक्षक से वित्तीय वर्ष के समापन पर लेखापरीक्षित मालियत प्रमाणपत्र प्रस्तुत करेगा। मालियत की संगणना भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों के अनुसार की जानी अपेक्षित है। (5) सीसीपी अपने पास न्यूनतम छह माह के वर्तमान परिचालन व्ययों के समतुल्य इक्विटी पूंजी से निधिकृत निवल नकद आस्तियां4 अपने पास रखेगें। 2. सीसीपी का स्वामित्व (स्वदेशी सीसीपी के लिए अनुमेय) (1) प्राधिकृत सीसीपी शेयरों द्वारा परिसीमित सार्वजनिक कम्पनी होगी जिसकी शेयरधारिता निम्नानुसार रहेगी: (क) प्राधिकृत सीसीपी के शेयरों को ऐसे व्यक्तियों द्वारा रखा जा सकेगा जो प्राधिकृत सीसीपी के प्रयोक्ता हैं। यदि कोई व्यक्ति इसका प्रयोक्ता नहीं रह जाता है तो सीसीपी यह सुनिश्चित करेंगे कि उस व्यक्ति के शेयरों को विनियोजित कर दिया जाता है। प्रावधान किया जाता है कि कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का कोई वर्ग, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से, व्यक्तिगत रूप से या सहमति से प्राधिकृत सीसीपी के चुकता शेयर पूंजी की निर्धारित से अधिक प्रतिशतता का अधिग्रहण या धारिता अपने पास नहीं रखेगा जो प्रतिशतता भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाती है। 3. शेयरों के अधिग्रहण या धारिता के लिए पात्रता (स्वदेशी सीसीपी के लिए अनुमेय) (1) कोई भी व्यक्ति अपने पास, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी प्राधिकृत सीसीपी के इक्विटी शेयरों का अधिग्रहण या धारिता नहीं रखेगा जब तक कि वह ‘योग्य और उचित’ की आगे बताई जा रही कसौटियों को पूरा नहीं करता हो। (2) कोई भी व्यक्ति भारतीय रिज़र्व बैंक से बिना पूर्वानुमोदन लिए किसी प्राधिकृत सीसीपी के इक्विटी शेयरों का अंतरण/ विनिवेश/विक्रय/क्रय नहीं करेगा – (क) यदि शेयरों का अंतरण उसी सीसीपी के शेयरों के 5 प्रतिशत के समतुल्य या इससे अधिक है या (ख) यदि शेयरों का अधिग्रहण और संचयी शेयरधारिता 5 प्रतिशत या अधिक पर पहुंच जाए। (3) अपने बोर्ड द्वारा इक्विटी शेयरों के अंतरण या विनिवेश का अनुमोदन करने के बाद 15 कैलेन्डर दिवस के भीतर इस अंतरण या विनिवेश के बारे में प्राधिकृत सीसीपी द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित किया जाएगा। (4) इस अधिनियम, इसके तहत नियमों और/या विनियमों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना प्राधिकृत सीसीपी द्वारा वार्षिक आधार पर अपनी शेयरधारिता की पद्धति की जानकारी परिशिष्ट 2 में दिए गए प्रपत्र में भारतीय रिज़र्व बैंक को दी जाएगी। (5) प्राधिकृत सीसीपी हर समय इइस निदेश की निगरानी और अनुपालन सुनिश्चित करेंगे। 4. शेयरधारकों के लिए योग्य और उचित की कसौटियां (1) किसी व्यक्ति को ‘योग्य और उचित’ माना जाएगा यदि — (क) ऐसे व्यक्ति के पास निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता का रिकार्ड हो, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं, लेकिन इतने तक ही सीमित नहीं: (i) वित्तीय सत्यनिष्ठा; और (ii) ट्रैक रिकार्ड; (ख) ऐसे व्यक्ति में निम्नलिखित अयोग्यताएं प्राप्त नहीं की हों – (i) उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्य समाप्त करने का आदेश पारित किया गया हो; (ii) उस व्यक्ति, या उसके किसी भी पूर्णकालिक निदेशकों या प्रबंधन भागीदारों में से किसी को भी ऋणशोधन में अक्षम घोषित किया गया हो और उसे इससे विमुक्त नहीं किया गया हो; (iii) किसी व्यक्ति या उसके किसी भी पूर्णकालिक निदेशकों या प्रबंधन भागीदारों में से किसी के भी विरुद्ध किसी भी वित्तीय बाजार लिखत या वित्तीय बाजार के किसी भी भाग में अभिगम से दूर रहने, प्रतिबंधित या वर्जित करने का आदेश किसी विनियामक निकाय द्वारा पारित किया गया है और उस आदेश में निर्दिष्ट अवधि अभी पूरी नहीं हुर्ह हो; (iv) किसी विनियामक प्राधिकरण द्वारा धन-शोधन (एएमएल) मानकों / आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने (सीएफटी) / धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत किसी व्यक्ति या इसके किसी भी पूर्णकालिक निदेशकों या प्रबंधन भागीदारों में से किसी के भी विरुद्ध कोई आदेश या नोटिस हो; और (v) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित ऐसी ही अन्य कसौटियां। (2) प्रस्तावित अधिग्राही के पास लेखापरीक्षित नवीनतम तुनलपत्र के अनुसार धनात्मक मालियत होनी चाहिए। शेयर का अंतरण करने के लिए जहां भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमोदन अपेक्षित है वहां भारतीय रिज़र्व बैंक विभिन्न पैरामीटरों पर विचार करेगा यथा अलग-अलग विनियामकों द्वारा निर्धारित विनियामक पूंजी पर्याप्तता मानदंड, लाभदेयता आदि के अलावा अन्य पहलुओं जैसे कि अधिग्राही का कारोबार, जरूरत के समय पर प्राधिकृत सीसीपी की इक्विटी पूंजी में आगामी योगदान करने में अधिग्राही की क्षमता। इस मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक का निर्णय अंतिम होगा। (3) ऐसा व्यक्ति सीसीपी को उपरोक्त उप-निर्देश (I) के तहत निर्दिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने और ऐसी अन्य जानकारी जो सीसीपी या आरबीआई द्वारा अपेक्षित हों, के बारे में एक घोषणा प्रस्तुत करेगा। (4) यदि इस बारे में कोई प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति ‘योग्य और उचित’ है या नहीं तो इस बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक का निर्णय अंतिम होगा। खंड ग इस अधिनियम में स्वदेशी और विदेशी प्रतिष्ठानों में कोई भेद नहीं किया गया है। किसी विदेशी प्रतिष्ठान द्वारा प्रदत्त कोई भी सेवा भारत में मौजूद समग्र विधिक व्यवस्था के भीतर रहेगी। एकाधिक न्यायक्षेत्रों में कार्यरत सीसीपी को मान्यता देने के बारे में अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के अनुरूप ही सीसीपी को मान्यता देने के लिए अपेक्षाएं निम्नानुसार हैं: 1. मान्यताप्राप्त सीसीपी के रूप में अनुमोदन हेतु आवेदन (1) कोई विदेशी सीसीपी भारत में अपने क्लीयरिंग और निपटान परिचालनों के लिए मान्यताप्राप्त सीसीपी के रूप में अनुमोदन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक को आवेदन करे। (2) आवेदन— (क) इस प्रकार और तरीके से किया जाएगा जैसा भुगतान और निपटान विनियमन, 2008 में निर्धारित है; और (ख) के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथानिर्धारित फीस दी जाएगी। (3) भारतीय रिज़र्व बैंक किसी भी आवेदक से यह अपेक्षा कर सकता है कि आवेदन के संबंध में वह जानकारी या प्रलेख प्रस्तुत किए जाएं जिन्हें यह अनिवार्य समझता है। (4) मान्यता प्रदान करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक पूछताछ या अन्य प्रकार से अपनी संतुष्टि कर सकता है कि विदेश में आवेदक के परिचालनों पर ऐसी अपेक्षाओं और पर्यवेक्षण की शर्तें हैं जो प्रणालीगत जोखिम से बचाव के अंशों के संबंध में पर्याप्त रूप से समतुल्य हैं और इस अधिनियम और इन निदेशों और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संगत समझे जाने वाले अन्य तथ्यों के अनुसार क्लीयरिंग और निपटान सुविधाएं प्रदान करने की सेवाओं में प्रभावशीलता के स्तरों के अनुसार निष्पक्षता रखते हैं। (5) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथा अपेक्षित जानकारी को किसी अन्य तरीके से शेयर करने के लिए आवेदक भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ सहयोग करने का वचन देगा। (6) मान्यताप्राप्त सीसीपी के परिचालनों के लिए भारत में स्वदेशीय अवसंरचना रखना अपेक्षित है, वह अपनी विदेशी अवसंरचना पर निर्भर नहीं करेगा। 2. यह मान्यता भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर यथा निर्धारित प्रकार और तरीके से जारी की जाएगी। 3. वित्तीय बाजार अवसंरचना हेतु सिद्धांतों (पीएफएमआई)5 का अनुपालन करने की अपेक्षाओं के अलावा, मान्यताप्राप्त सीसीपी निम्नलिखित संगठनात्मक अपेक्षाओं का भी अनुपालन करेगा: (क) मान्यताप्राप्त सीसीपी के निदेशकों के पास वित्त, विधि, प्रबंधन, विक्रय, विपणन, प्रशासन, शोध, निगमगत अभिशासन, सूचना प्रौद्योगिकी या सीसीपी से संबंधित अन्य विधाओं में पर्याप्त दक्षता, अनुभव और ज्ञान का समुचित सामंजस्य हो; (ख) ऐसे निदेशक समुचित प्रसिद्धि और अनुभव वाले हों; (ग) सीसीपी को सुपरिभाषित, पारदर्शी संगठनात्मक अवसंरचना वाली प्रबल अभिशासन व्यवस्था रखनी होगी ताकि इसके सामने आ सकने वाले जोखिमों का प्रबंधन, निगरानी और इनकी रिपोर्ट की जा सके; (घ) मान्यताप्राप्त सीसीपी बोर्ड की जोखिम प्रबंधन समिति का गठन करेंगे जिसके सदस्यों के पास जोखिम प्रबंधन के क्षेत्र का पर्याप्त ज्ञान हो – (i) जोखिम प्रबंधन समिति अपनी बैठकों में शामिल होने के लिए वरिष्ठ पदाधिकारियों और स्वतंत्र विशेषज्ञों को आमंत्रित करे; (ii) जोखिम प्रबंधन समिति द्वारा जोखिम प्रबंधन की विस्तृत नीति का निरूपण और समीक्षा की जाएगी जिसे बोर्ड द्वारा अनुमोदन दिया जाएगा; और (iii) जोखिम प्रबंधन समिति द्वारा जोखिम प्रबंधन नीति के कार्यानवयन की निगरानी की जाएगी और इसके कार्यान्वयन और विचलन, यदि कोई हों, के बारे में बोर्ड को सूचित करती रहेगी। 4. सीसीपी के परिचालनों के क्रम में भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसी शर्तें और निबंधन निर्धारित करेगा जो सीसीपी के निरापछ और दक्ष कार्यचालन के लिए यथा अपेक्षित हों। 5. भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर मान्यताप्राप्त सीसीपी को उस सीमा तक निदेश देगा जिस सीमा तक इन निदेशों के प्रावधान उनके लिए अनुमेय हैं। 6. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना जारी करते हुए इन निदेशों में ऐसे संशोधन या परिवर्तन करेगा जो मान्यताप्राप्त सीसीपी के समुचित विनियमन और पर्यवेक्षण के लिए यथा आवश्यक हों। 1 दिनांक 12 जून 2019 के परिपत्र डीपीएसएस.केका.ओडी.2655/06.08.005/2018-19 के माध्यम से 12 जून 2019 से संशोधित। इस संशोधन से पहले इसे “65” रखा गया था। 3 मालियत में चुकता इक्विटी पूंजी, अधिमानता शेयर जो अनिवार्य रूप से इक्विटी पूंजी में परिवर्तनीय हों, मुक्त आरक्षित निधियां, शेयर प्रीमियम खाते में शेषराशि और आस्तियों के विक्रय से प्राप्तियों से मिलने वाले अधिशेष को दर्शाने वाले पूंजीगत आरक्षित निधियों को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें संचित हानि की शेषराशि के लिए समायोजन करते हुए आस्तियों के पुन: मूल्यांकन से सृजित होने वाली आरक्षित निधियों को नहीं लिया जाए, अमूर्त आस्तियों के बही-मूल्य और आस्थगित राजस्व व्यय, यदि कोई हों, को लिया गया है। 4 पीएफएमआई में निर्धारित मानकों के अनुसार सीसीपी को इक्विटी से निधिकृत निवल नकद आस्तियां रखनी चाहिए (जैसे शेयर पूंजी, मुक्त आरक्षित निधियां या अन्य प्रतिधारित अर्जन) ताकि यदि इसे सामान्य कारोबारी हानियां उठानी पड़ें तो भी कार्यरत संस्था के रूप में यह अपने परिचालनों और सेवाओं को बरकरार रख सके। |