रेलवे पेंशन का संवितरण - एजेंसी बैंकों द्वारा रेलवे के पैसे को रोकना - आरबीआई - Reserve Bank of India
रेलवे पेंशन का संवितरण - एजेंसी बैंकों द्वारा रेलवे के पैसे को रोकना
आरबीआई/2004/215 12 अक्टूबर 2004 अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक महोदय, रेलवे पेंशन का संवितरण - एजेंसी बैंकों द्वारा रेलवे के पैसे को रोकना कृपया हमारे दिनांक 16 जून 2004 के, पेंशन वितरण बैंकों द्वारा रक्षा निधि रोके जाने से संबंधित परिपत्रडीजीबीए.जीएडी. संख्या एच-1174/45.02.001/2003-04 का संदर्भ ग्रहण करें। हमें रेलवे प्राधिकारियों से शिकायतें मिली हैं, जिनमें कहा गया है कि कुछ पेंशन भुगतान करने वाले बैंक पेंशनभोगियों की मृत्यु के बाद भी उनके खाते में पेंशन राशि जमा कर रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं, पेंशनभोगियों के बैंक खातों में उनकी मृत्यु के बाद जमा की गई राशि अतिरिक्त भुगतान के समान है। इसलिए, यह पेंशन संवितरण शाखा की जिम्मेदारी है कि पेंशन के अतिरिक्त भुगतान से बचने के लिए पेंशन के संवितरण की योजना के अनुसार आवश्यक प्रमाण पत्र प्राप्त करें जो ये सुनिश्चित करे की पेंशनभोगियों/पारिवारिक पेंशनभोगियों के खाते में कोई अतिरिक्त पेंशन राशि जमा नहीं की जाती है यदि वे हर वर्ष जीवन प्रमाण पत्र नवम्बर माह में जमा करने में विफल रहते हैं। वे पेंशनर जो तीन साल से अधिक समय तक जीवन प्रमाण पत्र जमा करने में विफल रहते हैं, उनके कागजात आगे की आवश्यक कार्रवाई के लिए एफए और सीएओ जिन्होंने मूल रूप से पीपीओ जारी किया था, को वापिस कर दिये जाने चाहिए। 2. सभी पेंशन भुगतान करने वाले बैंकों को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी प्रमाण पत्र जैसे कि : गैर-विवाह / पुनर्विवाह / विवाह प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र और जीवन प्रमाण पत्र, आदि “सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के माध्यम से पेंशन संवितरण की योजना” के अंतर्गत मौजूदा आदेशों के अनुसार प्राप्त किए जाते हैं। 3. इसलिए, आपको सलाह दी जाती है कि आप अपनी संबंधित शाखाओं को उपरोक्त निर्देशों को दोहराते हुये इन का सावधानीपूर्वक पालन करने का निर्देश दें ताकि सरकारी खाते से अतिरिक्त भुगतान से बचा जा सके और पेंशनभोगियों के निधन की सूचना प्राप्त होने के बाद पेंशन भुगतान बंद किया जा सके। 4. आपसे यह भी अनुरोध किया जाता है कि आप समीक्षा करें कि किसी खाते में पेंशन / पारिवारिक पेंशन, पेंशन की समाप्ति की तारीख के बाद पेंशनर के खाते में जमा की जा रही है। भवदीय, (गिरीश कल्लियानपुर) |