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बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 23 - दरवाजे पर (डोर-स्टेप) बैंकिंग

आरबीआइ/2006-2007/262
बैंपविवि. सं. बीएल. बीसी. 59/22.01.010/2006-07

21 फरवरी 2007
2 फाल्गुन 1928 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 23 - दरवाजे पर (डोर-स्टेप) बैंकिंग

कृपया आप उपर्युक्त विषय पर 30 अप्रैल 2005 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. बीएल. बीसी. 86/22.01.001/2004-05 देखें जिसके अनुसार बैंकों को यह सूचित किया गया था कि वे अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से ग्राहक के परिसर में सेवाएं उपलब्ध कराने की योजना बनाएं और अनुमोदन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें ।

2. ग्राहकों के अधिकारों और दायित्वों के संदर्भ में पारदर्शिता सुनिश्चित करने, दृष्टिकोण में एकरूपता लाने तथा उसमें निहित जोखिमों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों को "दरवाजे पर" सेवाएं उपलब्ध कराते समय अपनाये जानेवाले सामान्य सिद्धांत और स्थूल मानदंड निर्धारित किया जाएं । तदनुसार, बैंक इस पत्र में संलग्न दिशानिर्देशों के अनुसरण में अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से अपने ग्राहकों को "दरवाजे पर" बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए योजना बनाएं ।

3. बैंकों का ध्यान बाज़ार में जाली नोटों, खास तौर से उच्च मूल्य वर्ग के नोटों के संचलन के प्रसंगों की ओर भी आकर्षित किया जाता है — बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अपने एजेंटों को शिक्षित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाएं ताकि वे जाली और कटे-फटे नोटों का पता लगा सकें जिससे ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी और विवादों से बचा जा सके ।

4. बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि वे ग्राहकों को सीधे अथवा एजेंटों के माध्यम से दरवाजे पर बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के कारण उभरनेवाले विभिन्न जोखिमों को ध्यान में रखें तथा उनसे निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाएं । बैंक विशेष रूप से इस संबंध में अपने एजेंटों और ग्राहकों के लिए नकदी सीमाएं निर्धारित करने पर विचार करें ।

5. बैंकों के निदेशक मंडलों द्वारा इस योजना के परिचालन के पहले वर्ष के दौरान छमाही आधार पर तथा बाद में वार्षिक आधार पर समीक्षा भी की जाए ।

भवदीय

(पी. विजय भास्कर)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

दरवाजे पर (डोर-स्टेप) बैंकिंग के लिए दिशानिर्देश

1. प्रदान की जानेवाली सेवाएं

बैंक अपने ग्राहकों को उनके दरवाजे पर निम्नलिखित बैंकिंग सेवाएं प्रदान कर सकते हैं -

(क) कार्पोरेट ग्राहक/सरकारी विभाग/सरकारी उपक्रम आदि

    i. नकदी लाना (पिक अप)

    ii. लिखत लाना (पिक अप)

    iii. काउंटर पर प्राप्त चेकों के बदले नकदी की सुपुर्दगी

    iv. मांग ड्राप्टों की सुपुर्दगी

(ख) व्यक्तिगत ग्राहक/नैसर्गिक व्यक्ति

    1. नकदी लाना (पिक अप)
    2. लिखत लाना (पिक अप)
    3. मांग ड्राप्टों की सुपुर्दगी

2. सुपुर्दगी की विधि

(क) अपने कर्मचारियों के माध्यम से
(ख) एजेंटों के माध्यम से

जहां बैंक, सेवाएं प्रदान करने के लिए एजेंटों की सेवाएं ले रहे हों, वहां यह सुनिश्चित किया जाए कि निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित नीति में एजेंटों के चयन और उनके कमीशन/फीस आदि के स्थूल सिद्धांत निर्धारित किये गये हों — बैंक उनके द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग में जोखिम प्रबंधन तथा आचार संहिता संबंधी 3 नवंबर 2006 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. 40/21.04.158/2006-07 द्वारा जारी दिशानिर्देशों को देखें तथा दरवाजे पर (डोर-स्टेप) बैंकिंग सेवाएं प्रदान करते समय उक्त परिपत्र में निहित सिद्धांतों का अनुपालन सुनिश्चित करें ।

3. सुपुर्दगी (डिलीवरी) की प्रक्रिया

  1. ग्राहक से इकट्ठा की गई नकद राशि की प्राप्ति-सूचना बैंक की ओर से रसीद जारी कर दी जानी चाहिए ।
  2. ग्राहक से इकट्ठा की गई नकद राशि को, उसे इकट्ठा करने के समय के आधार पर, ग्राहक के खाते में उसी दिन या अगले कार्य दिवस को जमा कर देना चाहिए ।
  3. उचित सूचना जारी कर ग्राहक को जमा करने की तारीख सूचित करना चाहिए ।
  4. मांग ड्राप्ट की सुपुर्दगी लिखित आवेदन/चेक स्वीकार करने के आधार पर खाते में नामे करके देनी चाहिए तथा दरवाजे पर (डोर-स्टेप) प्राप्त की गयी नकदी या लिखतों के बदले नहीं की जानी चाहिए ।
  5. नकद राशि सुपुर्दगी सेवाएं कार्पोरेट ग्राहकों/सरकारी उपक्रमों/केंद्र और राज्य सरकार के विभागों को सिर्फ शाखा में चेक स्वीकार करने के बदले में ही दी जानी चाहिए तथा टेलीफोन पर अनुरोध के बदले नहीं दी जानी चाहिए । किंतु ऐसी सुविधा किसी व्यक्तिगत ग्राहक को प्रदान नहीं की जानी चाहिए ।

4. जोखिम प्रबंधन

यह सुनिश्चित किया जाए कि ग्राहक के साथ किए गए करार से, बैंक के नियंत्रण के बाहर की परिस्थितियों में उसके द्वारा दरवाजे पर (डोर-स्टेप) सेवाएं प्रदान करने में विफल हो जाने पर, बैंक पर किसी विधिक या वित्तीय देयता का भार न पड़े । इन सेवाओं को शाखा में प्रदान की जा रही बैंकिंग सेवाओं के विस्तार मात्र के रूप में देखा जाना चाहिए तथा बैंक की देयता वही होनी चाहिए जो शाखा में उसके द्वारा किए गए लेनदेन की होती । करार में ग्राहक को उसके दरवाजे पर सेवाएं प्राप्त करने के अधिकार का दावा प्रदान नहीं किया जाना चाहिए ।

5. पारदर्शिता

दरवाजे पर (डोर-स्टेप) सेवाएं प्रदान करने के लिए यदि कोई प्रभार लगाया जाना हो तो उसे निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित नीति में शामिल किया जाना चाहिए तथा वह ग्राहक के साथ किए गए करार का हिस्सा होना चाहिए । दरवाजे पर दी जानेवाली सेवाएं प्रदान करनेवाले ब्रोशर पर स्पष्ट रूप से प्रभार दर्शाया जाना चाहिए ।

6. अन्य शर्तें

  1. दरवाजे पर सेवाएं उन्हीं ग्राहकों को प्रदान की जानी चाहिए जिनके मामले में 29 नवंबर 2004 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं. एएमएल. बीसी. 58/ 14.01.001/2004-05 तथा उक्त विषय पर उसके बाद जारी परिपत्रों में दी गई केवाईसी क्रियाविधियों का अनुपालन किया गया हो ।
  2. ये सेवाएं ग्राहक के निवास या कार्यालय में प्रदान की जानी चाहिए जिसके पते का करार में स्पष्ट रूप से और विस्तार से उल्लेख किया गया हो ।
  3. ग्राहक के साथ किए गए करार/संविदा में यह स्पष्ट किया गया हो कि बैंक ‘एजेंट’ की भूल-चूक के लिए जिम्मेदार होगा ।
  4. यह योजना किसी विशेष ग्राहक या श्रेणी के ग्राहकों के लिए सीमित नहीं होनी चाहिए ।
  5. आउटसोर्स की गई सेवाओं का भुगतान करते हुए, बैंक, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 10(1) (ख) (ii) (ख) द्वारा लागू प्रतिबंधों को ध्यान में रखें ।

7. शिकायत का निवारण

क) बैंकों को अपने ‘एजेंटों’ द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं के संबंध में शिकायतों के निवारण के लिए आंतरिक तौर पर एक उचित शिकायत निवारण तंत्र बनाना चाहिए । ‘बैंक’ के नामित शिकायत निवारण अधिकारी का नाम और टेलीफोन नंबर बैंक की वेबसाइट सहित ग्राहकों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए ।नामित अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राहकों की वास्तविक शिकायतों का तुंत निवारण किया जाता है ।

ख) यदि कोई ग्राहक यह महसूस करता है कि उसकी शिकायत पर संतोषजनक ढंग से ध्यान नहीं दिया गया है तो उसे अपनी शिकायत के निवारण के लिए संबंधित बैंकिंग लोकपाल के कार्यालय में संपर्क करने का विकल्प होगा ।

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