संगामी लेखा परीक्षा की प्रभावोत्पादकता - आरबीआई - Reserve Bank of India
संगामी लेखा परीक्षा की प्रभावोत्पादकता
आरबीआई/2011-12/589 30 जून 2011 अध्यक्ष तथा मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदय, संगामी लेखा परीक्षा की प्रभावोत्पादकता बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित की गई आवास ऋण क्षेत्र के अंतर्गत धोखाधड़ियों सहित बड़ी राशियों की धोखाधड़ियों की एक जांच नियंत्रण व्यवस्था में उन कमियों को समझने हेतु की गई, जो धोखाधड़ियाँ करवाने में सहायक थी जब शाखाएं संगामी लेखा परीक्षा के अधीन थी। यह पाया गया कि अधिकांश धोखाधड़ियां उधारकर्ताओं द्वारा जमा किए गए उन जाली दस्तावेजों के कारण की गई थी, जिन्हें व्यावसायिकों अर्थात मूल्यांकनकर्ताओं/एडवोकेटो/सनद लेखाकारों द्वारा प्रमाणित किया गया था । 2. संगामी लेखा परीक्षकों की ओर से की गई चूक के लिए उत्तरदायी कारण संभवता वित्तीय उत्पादों या लेनदेनों की नई/उन्नतिशील/जटिल प्रकृति है । इसके अतिरिक्त बैंकों ने लेखा परीक्षा उत्तरदायित्व उनके स्वंय के स्टाफ को सौंपी है, यह सुनिश्चित किए बिना कि वे उक्त लेखा परीक्षा उत्तरदायित्व को पूरा करने में पूर्ण रूप से प्रशिक्षित है । 3. उक्त धोखाधड़ियों को रोकने के उद्देश्य से, बैंक एक प्रणाली लागू करें जिसमें संगामी लेखा परीक्षा निम्नलिखित पर जांच करें तथा निम्नलिखित पहलूओं पर सूचना दें: (i) जहां कहीं भी ऋणों हेतु जमानत के रूप में टाइटल के दस्तावेजों को जमा किया जाता है, वहां एक व्यवस्था होनी चाहिए जहां टाइटल के दस्तावेज उनकी वास्तविकता के संबंध में सत्यापन के अधीन हों, विशेष रूप से बड़ी राशियों के ऋणों हेतु। भूमि की जमानत पर ऋण के मामले में, बैंक ऋण मंजूरी से पहले टाइटल डीडों के संबंध में स्थानीय राजस्व प्राधिकारियों से रिपोर्टों की मांग कर सकते है। (ii) जहां कहीं भी उधारकर्ता द्वारा सनद लेखाकार प्रमाणपत्र, संपत्ति मूल्यांकन प्रमाणपत्र, विधि प्रमाणपत्र, गारंटी/ऋण व्यवस्था या अन्य कोई तृतीय पक्षकार प्रमाणन प्रस्तुत किया जाता है, तो बैंक को प्रमाण पत्र जारी करने वाले संबंधित प्राधिकारी से सीधे संपर्क करते हुए ऐसे प्रमाणनों की वास्तविकता का सत्यापन स्वतंत्र रूप से करना चाहिए, अप्रत्यक्ष पुष्टि की भी सहायता ली जा सकती है अर्थात जारीकर्ता को यह दर्शाना कि एक अमूक समय सीमा तक कोई उत्तर नहीं मिलने पर, यह माना जाएगा कि प्रमाण पत्र वास्तविक है । (iii) पहलूओं जैसे आंतरिक अनुशासन, स्टाफ रोटेशन, जांचों तथा नियंत्रणों इत्यादि को बैंक द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए । (iv) ऐसे मामलों में जहां यह पुष्टि होती है कि सनद लेखाकार, वकील, पंजीकृत संपत्ति मूल्यांकनकर्ता या ऐसे तृतीय पक्षकार द्वारा दिया गया प्रमाणन गलत है, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को प्रमाणनकर्ता के संबंध में सभी बैंकों को एक सावधानी सूची जारी करने के लिए एक प्रक्रिया लागू करनी चाहिए । इस संबंध में बैंक इस मामले में हमारे परिपत्र बैंपर्यवि.केंका.धोनिक.बीसी.3 /23.04.001/2008-09 दिनांक 16 मार्च 2009 का अनुपालन सुनिश्चित करें । कृपया प्राप्ति सूचना भेजें। भवदीय (ए. माडसामी) |