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विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा (ईईएफसी) खाता योजना - व्यापार से संबंधित ऋण / अग्रिम

आरबीआई/2004/233
ए पी(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं.94

जून 7, 2004

सेवा में

विदेशी मुद्रा के सभी प्रधिकृत व्यापारी

महोदया / महोदय

विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा (ईईएफसी) खाता योजना -
व्यापार से संबंधित ऋण / अग्रिम

प्राधिकृत व्यारियों का ध्यान फरवरी 14, 2003 और मई 31, 2003 के ए.पी. (डीआइआर सिरीज ) परिपत्र सं. क्रमश: 78 और 104 की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके अनुसार मई 3, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 3/2000-आरबी के विनियम 5 के उप-विनियम (4) अर्थात विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (विदेशी मुद्रा में उधार लेना अथवा उधार देना) विनियमावली, 2000 की शर्तों के अनुपालन के अधीन निर्यातकों को अपने ईईएफसी खाते से बगैर किसी सीमा के अपने विदेशी आयातक ग्राहकों को व्यापार संबंधी ऋण / अग्रिम प्रदान करने की अनुमति दी गई है । इसके अलावा अधिसूचना सं. फेमा 3/2000-आरबी के अनुसार जहां ऋण राशि 25,000 अमरीकी डॉलर से अधिक है, विदेशी उधारकर्ता द्वारा उधारदाता के पक्ष में भारत के बाहर स्थित अंतरराष्टीय ख्याति प्राप्त किसी बैंक के गारंटी की जरुरत होती है ।

2. उदारीकरण के अगले उपाय के रुप में यह निर्णय लिया गया है कि उपर्युक्त सीमा को 25,000 अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 1,00,000 अमरीकी डॉलर कर दिया जाए । तदनुसार विदेशी उधारकर्ता द्वारा उधारदाता के पक्ष में भारत के बाहर स्थित अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किसी बैंक की गारंटी की आवश्यकता तब होगी जब निर्यातक के ईईएफसी खाते से दी जानी वाली व्यापार संबंधी ऋण / अग्रिम की राशि एक लाख अमरीकी डॉलर से अधिक हो ।

3. फरवरी 14, 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरिज ) परिपत्र सं. 78 के अनुसार सूचना देने की आवश्यकता जारी रहेगी ।

4. विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (विदेशी मुद्रा में उधार लेना अथवा उधार देना) विनियमावली, 2000 में आवश्यक संशोधन दिनांक मार्च 6, 2004 की अधिसूचना सं. फेमा 112/2004-आरबी (प्रतिलिपि संलग्न) द्वारा जारी किए गए हैं ।

5. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने सभी ग्राहकों को अवगत करा दें ।

6. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं ।

भवदीया,

गेस कोशी
मुख्य महाप्रबंधक

संलग्नक : एक

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