विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण
आरबीआई/2013-14/291 25 सितंबर 2013 सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक तथा एक्जिम बैंक महोदय/महोदया विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित समग्र विनियामक संरचना के अंतर्गत बैंक अपनी स्वयं की आंतरिक उधार नीतियों के अनुसार भारतीय रुपये और विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण देते हैं, जैसे विदेशी मुद्रा में पोतलदान-पूर्व ऋण (पीसीएफसी) तथा विदेशी मुद्रा में पोतलदानोत्तर ऋण (पीएससीएफसी)। 2. यह पाया गया है कि निर्यात ऋण सीमाओं की गणना भारतीय रुपये में की जाती है तथा उसे रुपये तथा विदेशी मुद्रा घटकों में विभाजित किया जाता है, जो उधारकर्ता की आवश्यकता पर निर्भर करता है। हालांकि समग्र निर्यात ऋण सीमाएं भारतीय रुपये में नियत रहती हैं, किंतु निर्यात ऋण के विदेशी मुद्रा घटक में विद्यमान विनिमय दरों के आधार पर घट-बढ़ होती है। 3. हमें निर्यातकों के संगठनों से अभ्यावेदन भी मिले हैं कि भारतीय रुपये के मूल्यह्रास के कारणः i. निर्यात ऋण का न लिया गया विदेशी मुद्रा घटक कम हो जाता है; ii. निर्यात ऋण के पहले से लिए गए विदेशी मुद्रा घटक का भारतीय रुपये के रूप में उच्चतर मूल्य में पुनर्मूल्यांकन किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप निर्यातक से आंशिक भुगतान करके एक्सपोजर कम करने के लिए कहा जाता है, अथवा जहां निर्यात ऋण सीमा का पूर्ण संवितरण नहीं किया गया है, वहाँ उधारकर्ता को उपलब्ध सीमा घट जाती है, जिससे निर्यातक को निधि से वंचित होना पड़ता है। 4. इस संदर्भ में हम आपका ध्यान निर्यातकों को सेवा/सुविधा पर गठित तकनीकी समिति (अध्यक्षः श्री जी पद्मनाभन) की रिपोर्ट के पैरा 2.28 की ओर आकर्षित करते हैं, जिसके अनुसार निर्यात वित्त सीमा भारतीय बैंकों द्वारा मंजूर की जाती है, जो पीसीएफसी तथा पीएससीएफसी जैसे विदेशी मुद्रा उधार का आवधिक (दैनिक से मासिक तक) रूप से पुनः मूल्यांकन करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप रुपया कमजोर होने की स्थिति में मंजूर सीमा से अधिक कल्पित अतिरिक्त उपयोग हो जाता है। समिति के विचार में उक्त सुविधा को विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित (डिनॉमिनेट) करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि निर्यातक रुपये के मूल्य में उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रहें। 5. हमने मामले की जांच की है और बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे चालू आस्तियों, चालू देयताओं और विनिमय दरों की विद्यमान स्थिति के आधार पर उधारकर्ता की समग्र निर्यात ऋण सीमा की निरंतर, जैसे मासिक आधार पर गणना करें, तथा बैंक की अपनी नीति के अनुसार विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण की सीमा पुनर्निधारित करें। इसके परिणामस्वरूप निर्यात ऋण के विदेशी मुद्रा घटक की भारतीय रुपये में समतुल्य राशि में घट-बढ़ हो सकती है। 6. इसके विकल्प के रूप में बैंक रुपए के मूल्य में उतार-चढ़ाव से निर्यातकों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से निर्यात ऋण के विदेशी मुद्रा घटक को विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित (डिनॉमिनेट) कर सकते हैं। निर्यात ऋण के विदेशी मुद्रा घटक की मंजूरी, संवितरण और बकाया स्थिति विदेशी मुद्रा में रखी और निगरानी की जाएगी। तथापि, बैंक की बहियों में विदेशी मुद्रा आस्तियों के रूपांतरण के लिए प्रचलित विनिमय/फेडाई दरों का उपयोग किया जाए। भवदीय (प्रकाश चंद्र साहू) |