माल और सेवाओं का निर्यात / ईसीजीसी द्वारा दावों का भुगतान - आरबीआई - Reserve Bank of India
माल और सेवाओं का निर्यात / ईसीजीसी द्वारा दावों का भुगतान
ए.पी(डीआईआर सिरीज़)परिपत्र सं. 22 सितंबर 24, 2003 सेवा में विदेशी मुद्रा के समस्त प्राधिकृत व्यापारी महोदया /महोदय, माल और सेवाओं का निर्यात / ईसीजीसी द्वारा दावों का भुगतान प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान सितंबर 9, 2000 के ए.पी(डीआईआर परिपत्र) सं.12 की परिशिष्ट के पैराग्राफ इ. 17 की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसके अनुसार निर्यातक निर्यात अवधि के भीतर निर्यात मूल्य की वसूली करने के लिए जीआर/एसडीएफ/पीपी/सॉफटेक्स फार्मों पर उल्लिखित अपने सांविधिक दायित्व से मुक्त नहीं होता, चाहे भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम लिमिटेड (ईसीजीसी) द्वारा दावों का निपटान क्यों न कर दिया गया हो । इसके अतिरिक्त, प्राधिकृत व्यापारियों से अपेक्षित है कि वे जीआर /एसडीएफ/पीपी/सॉफटेक्स फार्मों की अनुलिपियों को अपनी अनुरक्षण में रखेंगे और सामान्य रूप से अनुवर्तन प्रारंभ करना जारी रखेंगे । 2. अब यह निर्णय किया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी बकाया बिलों का ईसीजीसी द्वारा निपटान किए जानेके संबंधित दस्तावेजी साक्ष्य के साथ अगर कोई आवेदन प्राप्त होता है तो वे निर्यात बिलों को बट्टे खाते डाल सकते है और एक्सओएस विवरणियों से उनको हटा सकते हैं । ऐसे बट्टे खाते डालने पर उक्त परिपत्र के पैराग्राफ इ.18(ख) में उल्लिखित 10 प्रतिशत की सीमा तक सीमित नहीं होगा । 3. यह स्पष्ट किया जाता है कि ईसीजीसी द्वारा रूपये में किए गए दावों के निपटान को विदेशी मुद्रा में निर्यात की वसूली नहीं माना जाना चाहिए और दावे की रकम को फेमा अधिसूचना फेमा 10/2000-आरबी दिनांक मई 3, 2000 के विनियम 4 के अनुसार धारित विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते में जमा करने की अनुमति नहीं होगी । 4. प्राधिकृत व्यापारी उक्त परिपत्र की विषयवस्तु से अपने सभी संबंधित ग्राहकों को अवगत करा दे। 5. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999(1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं । भवदीय (ग्रेस कोशी) |