माल और सेवाओं का निर्यात - बीमा कंपनियों द्वारा प्रस्तुत दावों का भुगतान बट्टे खाता डालना - आरबीआई - Reserve Bank of India
माल और सेवाओं का निर्यात - बीमा कंपनियों द्वारा प्रस्तुत दावों का भुगतान बट्टे खाता डालना
आरबीआइ/2007-08/353
ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.49
03 जून 2008
सेवा में
सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक
महोदया/महोदय
माल और सेवाओं का निर्यात - बीमा कंपनियों
द्वारा प्रस्तुत दावों का भुगतान बट्टे खाता डालना
प्राधिकृत व्यापारी बैंकों का ध्यान 24 सितंबर 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.22 की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके अनुसार प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को ईसीजीसी द्वारा निपटाये गये बकाया निर्यात बिलों के संबंध में उन्हें बट्टे खाता डालने तथा एक्सओएस(XOS statement)विवरण से हटा देने अनुमति दी गई है ।
2. निर्यातकों /व्यापारिक संस्थानों से बैंक को इस आशय के अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं कि बीमा नियत्रक और विकास प्राधिकरण में पंजीकृत सभी बीमा कंपनियों द्वारा निपटाये गये निर्यात बिलों को बट्टे खाता डालने की लागू सुविधा प्रदान की जाये । प्राप्त प्रत्यावेदनों की समीक्षा तथा प्रक्रिया को और अधिक उदार बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2008-09 की घोषित वार्षिक नीति विवरण (पैरा133) में प्राधिकृत व्यापारी श्रेण-I बैंकों को , ईसीजीसी द्वारा निपटाये गये निर्यात बिलों के अतिरिक्त , बीमा नियन्त्रक और विकास प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित बीमा कंपनियों द्वारा निपटाये गये निर्यात बिलों को बट्टे खाता डालने की अनुमति दी गई है ।
3. तदनुसार , प्राधिकृत व्यापारी श्रेण-I बैंक , इसके बाद से , ईसीजीसी/बीमा नियत्रक और विकास प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित बीमा कंपनियों द्वारा यह पुष्टि करते हुए कि बकाया निर्यात बिलों से संबंधित दावों का निपटान कर दिया गया है और वह भी निर्यात आय, यदि कोई हो , अभ्यर्पित कर दी गयी है , के दस्तावेजी साक्ष्य के साथ निर्यातक से आवेदनपत्र प्राप्त होने पर संबंधित निर्यात बिलों को बट्टे खाते डालेंगे और उन्हें एक्सओएस(Xध्एर् ेूीूासहू ) विवरण से हटा देंगे । इस प्रकार बट्टे खाते डाले गये मामलों में 09 सितंबर 2000 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं. 22 के पैराग्राफ 18(b) में निर्दिष्ट 10 प्रतिशत की सीमा लागू न होगी ।
3. यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे मामलों में जहां ईसीजीसी/बीमा कंपनियों द्वारा दावों का निपटान रुपयों में कर दिया गया है वहाँ इसका अर्थ विदेशी मुद्रा में निर्यात वसूली न लगाना चाहिये और 3 मई 2000 की विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम की अधिसूचना सं.फेमा 10/2000-आरबी के विनियम 4 के अनुसार रखे गये एक्सचेंज अर्नर्स फॉरेन करेंसी एकाउंट में क्रेडिट करने अनुमति न दी जाये ।
4. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने निर्यातक ग्राहकों को अवगत करा दें।
5. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।
भवदीय
(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक