बाह्य वाणिज्यिक उधार - मान्यताप्राप्त उधारदाताओं के रूप में विदेशी कंपनी निकायों के संबंध में स्पष्टीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
बाह्य वाणिज्यिक उधार - मान्यताप्राप्त उधारदाताओं के रूप में विदेशी कंपनी निकायों के संबंध में स्पष्टीकरण
आरबीआइ/2005-06/385
ए पी(डीआइआर सिरीजॅ)परिपत्र सं.34
मई 12, 2006
सेवा में
विदेशी मुद्रा का कारोबार करने के लिए प्राधिकृत सभी बैंक
महोदया/महोदय,
बाह्य वाणिज्यिक उधार - मान्यताप्राप्त उधारदाताओं के रूप में विदेशी कंपनी निकायों के संबंध में स्पष्टीकरण
प्राधिकृत व्यापारी बैंकों का ध्यान सितंबर 16, 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.14 की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके अनुसार वर्तमान विदेशी मुद्रा प्रबंध विनियमावली के तहत उपलब्ध विभिन्न मार्गों/ योजनाओं के अंतर्गत एक पात्र "निवेशकर्ता वर्ग" के रूप में विदेशी कंपनी निकायों की मान्यता रद्द कर दी गई है। दिसंबर 8, 2003 के ए.पी. (डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.44 और विदेशी मुद्रा प्रबंध डविदेशी कंपनी निकायों को दी गई सामान्य अनुमति को वापस लेना विनियमावली, 2003 की ओर भी ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिन्हें अक्तूबर 3, 2003 की अधिसूचना फेमा 101/2003-आरबी में अधिसूचित किया गया है।
2. दिसंबर 8, 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.44 के साथ संलग्न एफएक्यू के पैरा ङ, प्रश्न 27 के अनुसार "भारत में निवासी कोई व्यक्ति किसी विदेशी कंपनी निकाय से/को विदेशी मुद्रा अथवा रुपये में उधार ले अथवा दे नहीं सकता है। इसके अलावा यथा लागू विदेशी मुद्रा प्रबंध विनियमावली के अनुसार किसी विदेशी कंपनी निकाय से लिया गया उधार/ को दिया गया ऋण चाहे वह विदेशी मुद्रा में हो या रुपये में हो, सितंबर 16, 2003 को बकाया रहा हो तो ऐसे उधार या ऋण को देय होने पर नवीकृत नहीं किया जाएगा और चुकौती के लिए देय होने के बाद उस पर कोई ब्याज उपचित नहीं होगा"। इस प्रतिबंध के बावज़ूद यह देखा गया है कि उधारकर्ताओं ने इस आधार पर कि विदेशी कंपनी निकाय उनके विदेशी ईक्विटी धारक हैं, विदेशी कंपनी निकायों के निवेशक वर्ग के रूप में मान्यता रद्द होने के बाद भी विदेशी कंपनी निकाय से बाह्य वाणिज्यिक उधार लिया है।
3. अत: यह दोहराया जाता है कि निवेशक के रूप में मान्यता न होने पर विदेशी कंपनी निकाय मान्यता प्राप्त उधारदाता नहीं हो सकता है।
4. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने घटकों और निर्यातक ग्राहकों को अवगत करा दें।
5. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।
भवदीय
(एम. सेबेस्टियन)
मुख्य महाप्रबंधक