भारत से बाहर के निवासी व्यक्तियों के लिए सुविधाएं – स्पष्टीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत से बाहर के निवासी व्यक्तियों के लिए सुविधाएं – स्पष्टीकरण
भारिबैंक/2013-14/454 20 जनवरी 2014 सभी श्रेणी I प्राधिकृत व्यापारी बैंक महोदया/महोदय, भारत से बाहर के निवासी व्यक्तियों के लिए सुविधाएं – स्पष्टीकरण प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों का ध्यान 3 मई 2000 की विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियमावली 2000 [अधिसूचना सं. फेमा. 25/आरबी-2000] और 22 अक्तूबर 2012 के ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.45 की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसके अनुसार विदेशी संस्थागत निवेशकों को भारत में ईक्विटी और/या कर्ज (debt) में हुए उनके संपूर्ण निवेश के किसी तारीख विशेष को बाजार मूल्य के संबंध में मुद्रा जोखिम को हेज करने के लिए, उसमें वर्णित शर्तों के अंतर्गत, किसी भी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक से संपर्क करने की अनुमति दी गई है। 2. हमें बाजार सहभागियों से इस आशय के संदर्भ प्राप्त हो रहे हैं कि इसी प्रकार क्या विदेशी संस्थागत निवेशकों और अन्य विदेशी निवेशकों के कैश(Cash)/टॉम/स्पॉट आधार पर विप्रेषणों के लिए अभिरक्षक नामित प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक से भिन्न बैंक से संपर्क करना संभव है। इस संबंध में यह स्पष्ट किया जाता है कि विदेशी निवेशक फेमा, 1999 अथवा उसके अंतर्गत निर्मित विनियमावलियों/दिशानिर्देशों के अंतर्गत अनुमत किसी भी लेनदेन के लिए अपनी पसंद के किसी भी बैंक के मार्फत निधियों का विप्रेषण करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस प्रकार विप्रेषित निधियाँ बैंकिंग चैनल से नामित प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I अभिरक्षक बैंक को अंतरित की जा सकती हैं। तथापि, यह नोट किया जाए कि विप्रेषक के संबंध में 'अपने ग्राहक को जानने (केवायसी)' संबंधी अपेक्षा का अनुपालन करने, जहां कहीं आवश्यक हो, की संयुक्त ज़िम्मेदारी विप्रेषण प्राप्त करनेवाले बैंक और अंतत: विप्रेषणगत निधियाँ प्राप्त करने वाले बैंक की होगी। जबकि, पहला बैंक विप्रेषक और विप्रेषण प्रयोजन संबंधी ब्योरे लेगा, वहीं दूसरा बैंक प्राप्तकर्ता के दृष्टिकोण से पूरी सूचना तक पहुंचने का हकदार होगा। इसके अलावा, विप्रेषित निधियां विदेशी मुद्रा में आई हैं इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए विप्रेषण प्राप्तकर्ता बैंक से अपेक्षित है कि वह आगम राशि के प्राप्तकर्ता बैंक के लिए विदेशी आवक विप्रेषण प्रमाणपत्र (FIRC) जारी करे। 3. 22 अक्तूबर 2012 के हमारे ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.45 में निहित सभी अन्य शर्तें आवश्यक परिवर्तनों सहित लागू रहेंगी। 4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने घटकों और ग्राहकों को अवगत कराएं। 5. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और 11 (1) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किये गये हैं। भवदीय, (रुद्र नारायण कर) |