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फेमा 1999- भारतीय कंपनी निकाय केअनिवासी भारतीयभारतीय मूल के निवासी कर्मचारियों को रुपया ऋण की मंजूरी

भारतीय रिज़र्व बैंक
विदेशी मुद्रा नियंत्रण विभाग
केंद्रीय कार्यालय
मुंबई 400 001

ए.पी. (डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.27

10 अक्तूबर 2003

सेवा में
विदेशी मुद्रा के सभी प्राधिकृत व्यापारी

महोदय/ महोदया

फेमा 1999- भारतीय कंपनी निकाय के अनिवासी भारतीय/
भारतीय मूल के निवासी कर्मचारियों को रुपया ऋण की मंजूरी

प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान  3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा सं.04/2000 आरबी के विनियम 8 की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके अनुसार कोई प्राधिकृत व्यापारी अथवा राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा अनुमोदित भारत की कोई आवास वित्त संस्था किसी अनिवासी भारतीय/ अथवा भारत से बाहर रहने वाले भारतीय मूल के किसी व्यक्ति को उसमें निर्दिष्ट शर्तों पर भारत में आवास के लिए अधिग्रहण की अनुमति दे सकता है।

2. समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि भारतीय कंपनियों अर्थात् भारत में निगमित अथवा पंजीकृत निकाय निगम  को अपने उन कर्मचारियों को निम्नलिखित शर्तों के अधीन रुपयों में ऋण प्रदान करने की सामान्य मंजूरी दी जाए जो कि अनिवासी भारतीय हैं अथवा भारतीय मूल के व्यक्ति हैं :

(i)  भारत में आवास संपत्ति की खरीद सहित केवल निजी प्रयोजनों के लिए ऋण प्रदान किया जायेगा।

(ii) उधारदाता की स्टाफ कल्याण योजना/ स्टाफ आवास ऋण योजना और भारत में रहने वाले कर्मचारियों पर लागू अन्य  शर्तों के अधीन ऋण प्रदान किया जायेगा।

(iii) उधारदाता यह सुनिश्चित करेगा कि इस प्रकार से उधार ली गई निधियों का उपयोग 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा सं.04 के विनियम 6 के खंड (1) की उपधारा (i) से (iv) तक तथा खंड 2 में निर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए नहीं किया जाता है।

(iv) उधारदाता, उधारकर्ता के भारत में एनआरओ खाते में ऋण-राशि जमा करेगा अथवा भुगतान लिखत पर विशेष रूप से निर्दिष्ट करते हुए ऐसे खाते में राशि जमा करना सुनिश्चित करेगा।

(v) ऋण करार में  यह उल्लेख किया जाएगा कि ऋण की चुकौती भारत से बाहर से आने वाले विप्रेषणों के जरिये अथवा उधारकर्ता के एनआरई/ एमआरओ/ एफसीएनआर खाते को डेबिट करके की जायेगी और उधारकर्ता अन्य किसी माध्यम से पुनर्भुगतान स्वीकार नहीं करेगा।

तदनुसार, 20 अगस्त 2000 की अधिसूचना फेमां सं.67/2000-आरबी जारी कर दी गई है। उक्त अधिसूचना की एक प्रति संलग्न है। 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमां सं..04/2000-आरबी में कृपया आवश्यक संशोधन करें।

3.  प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने सभी संबंधित घटकों को अवगत कराएं।

4. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुदा प्रबंध अधिनियम 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11 (1) के अधीन जारी किए गए हैं।

 भवदीया

 (ग्रेस कोशी)
 मुख्य महाप्रबंधक


भारतीय रिज़र्व बैंक
विदेशी मुद्रा विभाग
केन्द्रीय कार्यालय
मुंबई - 400 001

अधिसूचना सं. फेमा.67/2002-आरबी

दिनांक: 20 अगस्त 2003

विदेशी मुद्रा प्रबंध (रुपयों में उधार लेना अथवा देना)
(संशोधन) विनियमावली, 2002

विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 6 की उपधारा (3) के खंड (ङ) तथा धारा 47 की उप- धारा (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए तथा 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा. सं. 4/ आरबी-2000 में आंशिक आशोधन करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक, समय- समय पर यथा संशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (रुपयों में उधार लेना अथवा देना) विनियमावली, 2000 में संशोधन करते हुए निम्नलिखित विनियमावली तैयार करता है, अर्थात् :-

संक्षिप्त नाम और प्रारंभ

1. (क)  येन विनियम विदेशी मुद्रा प्रबंध (रुपयों में उधार लेना अथवा देना) विनियमावली,   2002 कहलायेंगे।

(ख) ये सरकारी राजपत्र  में उसके प्रकाशन की तारीख से लागू  होंगे।

विनियमावली का संशोधन

विदेशी मुद्रा प्रबंध (रुपयों में उधार लेना और उधार देना) विनियमावली, 2002 के विनियम 8 के बाद निम्नलिखित  विनियम अंत:स्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-

" 8 ए- भारतीय निकाय निगम के अनिवासी भारतीय/ भारतीय मूल के निवासी  कर्मचारियों को रुपया ऋण"

भारत  में पंजीकृत अथवा निगमित कंपनी निकाय, अनिवासी भारतीय  अथवा भारतीय मूल के अपने कर्मचारियों को निम्नलिखित  शर्तों पर रुपया ऋण प्रदान कर सकते हैं, अर्थात् :-

(i) भारत में आवास संपत्ति की खरीद सहित केवल निजी प्रयोजनों के लिए ऋण प्रदान किया जायेगा।

(ii) उधारदाता की स्टाफ कल्याण योजना/ स्टाफ आवास ऋण योजना और भारत में रहने वाले कर्मचारियों पर लागू अन्य  शर्तों के अधीन ऋण प्रदान किया जायेगा।

(iii) उधारदाता यह सुनिश्चित करेगा कि इस प्रकार से उधार ली गई निधियों का उपयोग विनियम 6 के खंड (1) की उपधारा (i) से (iv) तक तथा खंड 2 में निर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए नहीं किया जाता है।

(iv)  उधारदाता, उधारकर्ता के भारत में एनआरओ खाते में ऋण-राशि जमा करेगा अथवा भुगतान लिखत पर विशेष रूप से निर्दिष्ट करते हुए ऐसे खाते में राशि जमा करना सुनिश्चित करेगा।

(v)  इस ऋण करार में यह शर्त  रहेगी कि ऋण चुकौती भारत से बाहर से विप्रेषण द्वारा अथवा उधारकर्ता के एनआरई/ एमआरओ/ एफसीएनआर खाते से की जायेगी और ऋणदाता किसी भी अन्य स्रोत से की गयी चुकौती को स्वीकार नहीं करेगा।

(कि.ज.उदेशी)
कार्यपालक निदेशक

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