बैंकिंग सेवाओं के विस्तार के माध्यम से वित्तीय समावेशन - व्यवसाय प्रदाताओं (सुविधादाताओं)और व्यवसाय प्रतिनिधियों (संपर्ककर्ताओं) का उपयोग
आरबीआइ/2007-08/295
बैंपविवि. सं. बीएल. बीसी. 74/22.01.009/2007-08
24 अप्रैल 2008
4 वैशाख 1930 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सहित )तथा
स्थानीय क्षेत्र बैंक
महोदय
बैंकिंग सेवाओं के विस्तार के माध्यम से वित्तीय समावेशन - व्यवसाय प्रदाताओं (सुविधादाताओं)और व्यवसाय प्रतिनिधियों (संपर्ककर्ताओं) का उपयोग
कृपया उपर्युक्त विषय पर 25 जनवरी 2006 का हमारा परिपत्र बैंपविवि सं. बीएल. बीसी. 58/ 22.01.001/2005-06 तथा 22 मार्च 2006 का हमारा परिपत्र बैंपविवि सं. बीएल. बीसी. 72 / 22.01.009/2005-06 देखें ।
2. कुछ बैंकों द्वारा पूछे जाने पर हमने यह स्पष्ट किया था कि बैंक अपनी स्वीकार्यता के आधार पर व्यक्तियों को व्यवसाय प्रदाता के रूप में नियुक्त कर सकते हैं, बशर्ते वे ऐसा करने के पहले समुचित छानबीन करते हैं तथा पर्याप्त एहतियात बरतते हैं ।
3. माननीय वित्त मंत्री, भारत सरकार द्वारा 2008-09 के बजट भाषण के पैरा 92 में की गयी घोषणा को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों को पहले से अनुमत संस्थाओं के अलावा समुचित छानबीन के आधार पर सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारियों, भूतपूर्व सैनिकों और सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करने की तत्काल प्रभाव से अनुमति दी जाए । ऐसे व्यक्तियों को व्यवसाय प्रतिनिधियों के रूप में नियुक्त करते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये व्यक्ति उस क्षेत्र के स्थायी निवासी हैं जहां वे व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना चाहते हैं ।बैंकों को एजेंसी जोखिम को न्यूनतम रखने के लिए आवश्यक अतिरिक्त सुरक्षा उपाय भी लागू करना चाहिए ।
4. इसके अलावा, बैंकों द्वारा व्यवसाय प्रतिनिधियों के परिचालन और गतिविधियों की समुचित निगरानी सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि प्रत्येक व्यवसाय प्रतिनिधि किसी एक विनिर्दिष्ट बैंक शाखा से संबद्ध होगा तथा उसकी निगरानी के अधीन होगा । ऐसी शाखा को आधार शाखा कहा जाएगा । व्यवसाय प्रतिनिधि के कारोबार के स्थान तथा आधार शाखा के बीच की दूरी सामान्यत: ग्रामीण, अर्द्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में 15 कि. मी. से अधिक नहीं होनी चाहिए । महानगरीय केंद्रों में दूरी 5 कि. मी. तक हो सकती है । तथापि, यदि दूरी संबंधी शर्त को शिथिल करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है तो इस मामले को संबंधित जिले की जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाना चाहिए । जहां इस प्रकार के मामले आसन्न जिलों से संबद्ध हों, वहां मामले पर निर्णय राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) द्वारा लिया जाना चाहिए, जो महानगरीय क्षेत्रों का भी संबंधित मंच होगा । कम बैंक सुविधा वाले क्षेत्र अथवा ऐसे क्षेत्र जहां आबादी बड़े क्षेत्र में बिखरी हुई हो तथा जहां बैंकिंग सेवा प्रदान करना आवश्यक हो, लेकिन शाखा खोलना अर्थक्षम न हो - ऐसे क्षेत्रों से प्राप्त अनुरोधों पर डीसीसी/एसएलबीसी को अनुरोध करनेवाले बैंक की आधार शाखा द्वारा व्यवसाय प्रतिनिधि पर पर्याप्त निगरानी रखने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए मामले के गुण-दोष के आधार पर विचार करना चाहिए ।
5. जिन क्षेत्रों में अभी व्यवसाय प्रतिनिधि ऊपर निर्दिष्ट दूरी सीमा के परे कार्य कर रहे हैं, वहां डीसीसी/एसएलबीसी को इसकी सूचना दी जाए तथा यदि उपर्युक्त पैरा 4 में निर्दिष्ट आधार पर डीसीसी/एसएलबीसी से विशेष अनुमोदन प्राप्त न हुआ हो तो छह महीने के भीतर निर्दिष्ट सीमा का पालन करने के लिए कदम उठाए जाएं ।
6. यह कहना आवश्यक नहीं है कि व्यवसाय प्रदाता/व्यवसाय प्रतिनिधि मॉडल में जो बड़े पैमाने पर वृद्धि की जा रही है, वह देश के बृहद् आकार को देखते हुए बहुत बड़ी चुनौती है । इस पृष्ठभूमि में बैंकों के समक्ष कोई भी महत्वपूर्ण मुद्दा उपस्थित हो तो उसे भारतीय रिज़र्व बैंक के ध्यान में लाया जाना चाहिए ताकि तुंत सुधारात्मक कदम उठाये जा सकें । बैंकों के नियंत्रक प्राधिकारियों को व्यवसाय प्रदाता/व्यवसाय प्रतिनिधि मॉडल के कार्यान्वयन की गंभीरता से निगरानी करनी चाहिए तथा शाखाओं के आवधिक दौरे के दौरान व्यवसाय प्रदाताओं/व्यवसाय प्रतिनिधियों के कार्यों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए । इसके अलावा बैंकों को बोर्ड स्तर पर भी व्यवसाय प्रदाता/व्यवसाय प्रतिनिधि मॉडल के कार्यान्वयन की आवधिक समीक्षा की एक संस्थागत प्रणाली स्थापित करनी चाहिए ।
भवदीय
(पी. विजय भास्कर)
मुख्य महाप्रबंधक
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